Saturday, November 29, 2008

पारद विज्ञानं और काल ज्ञान

वर्षों से लोग पारद के ऊपर परिश्रम कर रहे हैं. लाखो रुपयों का सोना खरीद खरीद कर जला डाला पर नतीजा वाही शून्य . वर्षो परिश्रम कर भस्म बनाई पर वो है की वेधन करने को ही तैयार नही … अब गलती किसकी है क्या क्रिया को दूषण दे. नही यह तो उचित नही होगा क्यूँ की यदि क्रिया ग़लत होती तो उसी क्रिया का प्रयोग कर जितने रस- सिद्ध हुए हैं उन्होंने सफलता कैसे प्राप्त करी.

असफलता के वसीभूत होकर साधक इस विज्ञानं को ही ग़लत बताने लगता है जबकि ऐसा नही है . इन्ही कारणों से इस विज्ञानं को गुरु के मार्गदर्शन में करने के लिए कहा गया है क्यूंकि शास्त्रों में सब कुछ तो नही लिखा गया है न.

तंत्र के अन्य भागो की तरह पारद तंत्र में भी ज्योतिष के द्वारा सही समय के चयन को महत्त्व पूर्ण मन गया है और उस पर शोध किया गया है . श्रेष्ट मुहूर्त में की गयी रस क्रिया सफल होती ही है . कुछ खास नक्षत्रों और कालों में की गयी क्रिया से रस सिद्धि की प्राप्ति होती है. जैसे हस्त नक्षत्र और स्वर्ण सिद्धि मुहूर्त, वेध क्रिया सिद्ध मुहूर्त, ऐसे ही चयनित सप्ताह के दिवसों में भी इन करियों को संपादित किया जाता है .

पारद कर्म में सफलता पाने के लिए कोमल दिवसों को चयनित कर क्रूर दिवस को त्याग दिया जाता है . इसी प्रकार जन्म कुंडली के द्वारा और हस्त परिक्षण कर यह भी देखा जाता है की साधक के ग्रह उसे रस कार्यों के लिए अनुकूलता देते हैं या नही , कही साधक दग्ध हस्त तो नही है , उसकी कुंडली में रस कार्यों की सफलता का योग है या नही.

इसके अतिरिक्त प्रत्येक संस्कार में मंत्रों का भी प्रयोग किया गया है जिससे पारद शक्ति संपन हो कर सफलता दे व वनस्पतियों की उर्जा और मंत्रों की उर्जा से संपन होकर रसेन्द्र बन सके .
जैसे की पारद की नापुन्शाकता , उसकी शंद्ता को दूर करने के लिए उसका संस्कार करते समय निम्न मंत्र का प्रयोग किया जाता है :

नमस्ते विश्व रुपये वैश्वनार्सू मुर्तये
नमस्ते जल रुपये सुत्रतं वपुषे नमः .
यस्मिन सर्वे लिंग देहा ओत प्रोत व्यवस्थिता
नमः पराजय स्वरुपये नमो व्याकृत मुर्तये.
नमः परत्व स्वरुपये नमस्ते ब्रह्म मुर्तये
नमस्ते सर्व रुपये सर्व लक्श्यतं मुर्तये .


इसी प्रकार प्रत्येक संस्कार व पारद के पक्ष छेदन के मंत्र अलग अलग हैं जो की साधक को उसका अभिस्ठ देते हैं और काल ज्ञान व मंत्र ज्ञान के द्वारा रस क्रिया पूर्ण होती है तथा साधक को रस सिद्धि मिलती है .

तो आइये और सद्गुरु के चरणों में निवेदन करे और इन गोपनीय सूत्रों को प्राप्त करके सिद्धता की और कदम आगे करे .


****आरिफ****

Friday, November 28, 2008

पारदेश्वर और रासेश्वरी दीक्षा

जिस विज्ञानं के द्वारा जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन किया जा सकता है . तंत्र का वो श्रेष्ट तं रूप्सिर्फ़ पारद विज्ञानं में ही दृष्टिगोचर होता है . तंत्र के इस प्रभाग से जीवन को पूर्ण रूप से संवारा जाता है और जीवन के सभिश्रेष्ठ उद्देश्य इस से पूरे किए जा सकते है.

यह शिष्यों का सौभाग्य हैकि आज भी हमारे मध्य में इस दिव्या साधना के समस्त सूत्रों को प्रदान करनेवाले तत्वज्ञ सदगुरुदेव के रूप में हैं .

मुझे यह तो नही पता की आप मेरी बातों को कितना ज्यादा समझते होंगे. पर यदि मुझे कुछ मिला है तो आप भी उस विषय को सद्गुरु से प्राप्त कर सकते हैं.
मैं बार बार आप लोगो से निवदन करता हूँ की आप पारद और उसके महत्त्व को समझे ........

इस ब्रह्माण्ड में पारद ही वो धातु है जो की पूर्ण रूपसे प्रकृति के पंचभूतों को स्वरूपित करता है:
सॉलिड - ( पृथ्वी)
liquid- water (jal)
chanchal-air (vayu)
light(tez)- fire (agni)
sukshma - sky (aakash)

अपने इन्ही स्वरूपों के कारण यह भगवान् शिव के पञ्च कृत्यों का सञ्चालन भी करता है .

श्रृष्टि
पालन
संहार
तिरोभाव
अनुग्रह

अब तो कोई अभागा ही होगा जो कृपा के इन पक्षों को प्राप्त न करे.

यदि हम अपने जीवन ऐश्वर्य और दिव्यत्व के रंगों से भरना चाहतेहैं तो हमें पारदेश्वर की स्थापना करना चाहिए और उनका पूजन करमा चाहिए.उनके पूजन से सर्व विध मनोरथ पूरे होते हैं .

जिन साधकों की अभिलाषा रस विज्ञानं में सफलता पाने की है वे रसेश्वर गायत्री मंत्र का जप अधिक से अधिक करें.

पारदेश्वर के २ प्रकार होते हैं :
१.सकल पारदेश्वर- इनका निर्माण गोल्ड, सिल्वर,अभ्रक और रत्नों आदि केद्वारा पारद बंधन करके होता है. इन धातुओं के ग्रास्सन के कारण साधक को ऐश्वर्या और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है .जिससे जीवन के सभी पक्ष संवर जाते हैं.

g२. निष्कल पारदेश्वर â€" इनका निर्मान्पूर्ण रूप से दिव्या वनस्पतियों और पारद के द्वारा होता है .यह रसेश्वर योगियों के मध्य अध्यात्मिक उर्जा देने के लिए विख्यात है. और इनकी साधना भी उन्हें ही फलीभूत हैं क्योंकि एक मर्यादित जीवन का पालन गृहस्थों के लिए सम्भाव्नाही है.


रस विज्ञानं में सफलता और सिद्ध्होने के लिए रासेश्वरी दीक्षा अनिवार्य ही है , इस दिव्व्य दीक्षा के द्वारा साधक के शरीर में गुरु उन दिव्या बीज मंत्रों और शक्ति का स्थापन कर देता है जिसके द्वारा साधक को सफलता मिलती ही है , और वे रहस्य भी ज्ञात हो जाते हैं जो काल व पात्र की मर्यादा के कारण गुप्त रखे जाते हैं.

इस दीक्षा के ५ चरण होते हैं.:

१.समाया दीक्षा
२. साधक दीक्षा
३. निर्वाण दीक्षा
४. आचार्य दीक्षा
५. सिद्ध दीक्षा

इस दीक्षा के बाद आपको सद्गुरु से पारद के रसेन्द्र स्तोत्र , निष्कल रस्स्तोत्र और रासेश्वरी मंत्र की प्रप्तिहोती है जिसके द्वारा पारद की देवदुर्लभ बंधन प्रक्रिया सहज हो जाती है .....

रसेश्वर गायत्री मंत्र :
ऍम रसेश्वराय विद्महे रस अंकुशाय धीमहि तन्नोह सुतः प्रचोदयात

अब मैं तो सिर्फ़ यही कह सकता हूँ ki yadi अभी भी हम नही जागे तो हमारे दुर्भाग्य के दोषी हम ही हैं और कोई नही.......


****आरिफ****

Wednesday, November 26, 2008

Alchemical stages

rasa vada or metallic alchemy is never the end by itself,nor was it ever meant for the economic prosperity of any individual।on the other hand,it was only a means and a step preparatory for the higher processing of mercury into "rasa linga" which is said to possess extraordinary cosmogenic and biogenic energies required for the highest human aspirations comprising of 1.longvity 2.perpetual good health 3.happiness and wealth energy 4.freedom and liberation from bondagerasa linga is fused and cristalized ,mercury cone with other minerals technically caled"odes" and sarcastically called 'philosphers stone'. quite a number of these odes are described in printed manuals like 'ras kamdhenu' and 'rasarnava tantra' and classified in to khechari,bhuchari and other miscellaneous groups according to their nature and properties. the method of the therapeutic action on the human bodies of the odes is styled'deha vada' and that property will be prossessed only by the odes made with mercury,which was well possessed for 'loha vedha' or prossessing the property of converting itself into golds, as well as converting baser metals like copper and lead in to gold,therefore ,lohavedha or convertibility of mercury in to gold is only a test for the perfection of the prossessing for fitness for employment in the clinical procedure of deha vedha, through the further process vof rasa bandhana.again ,as each ode is valued many hundred times more than its weight in gold,it will be terribly uneconomic and the aspirant is forbidden from entertaining ideas of commercialisation of the knowledge of the art of utilizing the gold for his personal and domestic economy. being a branch of artharva veda ,there are quite a number of printed books and cartloads af palmleaf manuscripts in private and public libraries ,each containing scores of yogas for making gold and rasa lingas.but need more practice in this field under master.if u want success.
****आरिफ****

Tuesday, November 25, 2008

कच्छप श्री यंत्र के गूढ़ रहस्य

वो यन्त्र जो भौतिक समृद्धि और ऐश्वर्या का प्रतिक मन जाता है और जो सर्व विध मनोकामना की पूर्ति करता है निश्चित ही सिर्फ़ श्रीयंत्र ही हो सकता है.हजारो लाखो वर्षों से सम्पनता का प्रतिक यही रहा है.
कभी सदगुरुदेव ने बताया था की जहा लक्ष्मी साधना से प्राप्त धन उनके चांचल्य गुणों के कारन सहज ही नही पास में रुकता और उसे स्थाई करने के लिए उसका अबद्धिकरण आवश्यक होता है वही श्रीविद्या या श्रीयंत्र से प्राप्त धन और ऐश्वर्या न सिर्फ़ वरदायक होते हैं अपितु शुभता के साथ स्थाई भी होते हैं .
आख़िर क्या है श्रीयंत्र की ज्यामितीय संरचना में जो की आज भी अबूझ पहेली बनकर विदेशी शोधकर्ताओं के सामने राखी हुयी है.यह तो नितांत सत्य है की इसके प्रत्येक रेखा में कई कई शक्तियां जो की जीवन को श्रेष्टता देती हैं आबद्ध हैं.
और जब इस यन्त्र राज के साथ श्री सूक्त का सम्बन्ध हो जाता है तो फिर आभाव को तो समाप्त होना ही है.
पर इसके विभिन् भेड़ों में से प्रत्येक भेद एक अलग प्रभाव से युक्त है. सदगुरुदेव ने बताया था की प्रत्येक राष्ट्र की भौतिक व अध्यात्मिक उन्नति के सूत्रों का अंकन किसी आकृति के रूप में कर दिया जाता था और उस रहस्य को समझ कर तदनुरूप क्रिया करने पर वे सूत्र साकार हो जाते हैं और ऐश्वर्या की प्राप्ति होती ही है.हमारे राष्ट्र की सर्वांगीं उन्नति के गुह्य सूत्रों का अंकन श्रीयंत्र के रूप में किया गया है.यह तो हम सभी जानते हैं की श्रीयंत्र की साधना से सफलता की प्राप्ति होती है.पर श्रीयंत्र का सबसे बड़ा रहस्य तो यह है की उसमे पारस , सिद्ध सूत और स्वर्ण निर्माण के सूत्र हैं जो ज्यामितीय रूप में अंकित हैं और वही श्री सूक्त उन क्रियाओं का शाब्दिक रूप से अंकन है. और सदगुरुदेव ने स्वर्नातान्त्रम, स्वर्णसिद्धि, अल्चेमी तंत्र में इसका उल्लेख भी किया है.श्री यन्त्र का सुमेरु कच्छप भेद के ऊपर तनिक विचार करेंगे तो आप को स्वयं ही समझ में आ जाएगा की वो रहस्य क्या है बस आपने रस्विज्ञान का थोड़ा अभ्यास किया हो ...... अरे भाई कच्छप सुमेरु यन्त्र की आकृति कैसी होती है ?
........
अरे नीचे एक कच्छप होता है,उसके ऊपर सुमेरु आकर में यन्त्र जो उस कच्छप की पीठ पर अवस्थित होता है .और उस सुमेरु के सर्वोच्च बिन्दु में ऐश्वर्यदात्री लक्ष्मी अवस्थित हैं.रस तंत्र में कच्छप यन्त्र का बहुत महत्व पूर्ण स्थान है,जिसके द्वारा शिव वीर्य की शक्ति राज से क्रिया करी जाती है मतलब गंधक जारण कराया जाता है और तब पारद रसेन्द्र पथ पर अग्रसर होता है.इसी क्रम में दिव्या वनस्पतियों या सिद्ध तत्वों से क्रिया कराकर पारद को सिद्ध सुता और स्वर्ण में परिवर्तित किया जाता है और यह सब होता है इसी कच्छप श्रीयंत्र में.
जिसमे यन्त्र भूमि के नीचे होता है जो की नीचे से पानी में हल्का सा डूबा रहता है.और उस यन्त्र के ऊपर अजस्र या निश्चित मात्र में अग्नि का प्रयोग किया जाता है,और यही अग्नि जिसका प्रतिक उर्ध्वमुखी त्रिकोण है उस कच्छप जो की भूमि में छुपा हुआ है पर अवस्थित रहता है .अब जब उस अग्नि के द्वारा उस यन्त्र में सिद्ध रस का मंथन होता है तो उस अग्नि रुपी पर्वत के शीर्ष पर लक्ष्मी को उपस्थित होना ही पड़ता है.और अपने वरदान से साधक को उसका अभिस्थ फल देना ही पड़ता है।


****आरिफ*****

स्वर्ण रहस्यम


आप सभी का मैं आभार मानता हूँ की आप लोगो में प्राचीनतम विधाओं को जानने और अपनाने की ललक है. मैंने पिछले मेल में स्वर्ण रहश्यम के बारे में बात की थी. मेरा उद्देश्य किसी प्रकार का प्रचार करना नही है.
यह हम सभी गुरु भाइयों की जिम्मेदारी है की यदि हमारे पास कोई ज्ञान है तो हम उसे हम अपने पास न रख कर उसे और भी भाइयों को दे. याद रखिये की कभी भी सदगुरुदेव ने कुछ छुपाया नही बल्कि जिसने जो कुछ भी माँगा उसे सहर्ष ही उन्होंने दे दिया .क्योंकि ठहरा हुआ पानी भी बदबू देने लगता है. फिर हम सब तो जिवंत ग्रन्थ बन्ने की राह पर अग्रसर हैं.
पारद विज्ञानं की दुर्गति का एक सबसे बड़ा कारण लोगो की संचयी प्रकृति का होना है. गुरुदेव ने बहुत सारे शिष्यों को इस विघ्याँ का ज्ञान दिया था. पर न जाने क्यों उन्होंने इस विघ्याँ को आगे नही बढाया.
रस विघ्याँ दिव्या ओउर परिश्रम से भरा हुआ है.इसे सिर्फ़ पढ़ कर नही समझा जा सकता बल्कि इसे आत्मसात करने के लिए लगातार और अथक परिश्रम की जरुरत है,तभी आप इसमे सफल हो सकते हैं.किताबें सिर्फ़ पथ दिखा सकती हैं.
७०० पृष्ठों में लिखित स्वर्ण रहस्यम में २१ अध्याय हैं:-
:-****** introduction
१.रस सिध्धि प्रदाता स्वामी निखिलेश्वरानंद जी
२.रासेश्वरी साधना एवं उसका प्रयोग
3.कच्छप सुमेरु श्री यन्त्र(स्वर्ण निर्माण का गुप्त रहस्य)
४.रस शोधन (41 विधियां )
५.रस से रसेन्द्र तक (एक आत्मीय यात्रा)
६.पाश्चात्य व भारतीय रस पद्धति
७.रस व स्वर्ण साम्यवाद
८.रस शास्त्र की दिव्य साधनाये


९ धातु परिवर्तन सम्भव है
8. अष्ट संस्कार (क्योंकि पारद जीवित- जाग्रत है)
११ सिद्ध सूत ( नाथ योगियों की दिव्य विधियां )
१२.अग्नि स्थायित्व एक अनिवार्य कर्म
१३.९ से १८ तक संस्कार(जारण से वेधन योग)
१४.सिध्ध रस निर्माण
१५.पारद परस गुटिका (निर्माण एवं साधना)
१६.दिव्या वनस्पतियाँ जो उपलब्ध हैं( परिचय रंगीन चित्रों के साथ )
१७..स्वर्ण निर्माण के ५१ प्रयोग
१८.काल ज्ञान और रस विज्ञानं


१९.सिध्ध रस एवं कायाकल्प
२०.मृत्युंजयी गुटिका,अघोर धंदा गुटिका,भूचरी गुटिका,खेचरी गुटिका, आदि


२१.क्या पारस बन सकता है
और भी बहुत कुछ है उन साधकों के लिए जो बदलना चाहते हैं अपना भाग्य अपने परिश्रम से.
आप जो भी जानकारी रस विज्ञान के बारे में चाहेंगे अवश्य देने का प्रयास करूँगा.
प्रार्थना कीजियेगा की सदगुरुदेव मेरे इस प्रयत्न को सार्थक करे।

**** आरिफ****

change to gold


आधुनिक रसायन शास्त्र की दृष्टि से प्रत्येक तत्त्व का अपना एक्परमाणु संघटन होता है,जो की उस तत्त्व की अपनी विशेषता प्रदान करता है और किसी अन्य तत्त्व के परमाणु से वैभिन्य प्रदर्शन में मदद करता है.किसी भी तत्त्व के परमाणु एक जैसे होते हैं(अयुसोतोप अपवाद है).मोटे रूप में परमाणु संघटन सौरमंडल के संघटन के जैसे होता है.लोर्ड रुथरफोर्ड के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक परमाणु का एक केन्द्र या नाभिक होता है, इस्नाभी का निर्माण होता हैदो तरह के हैवी कानो से :
1. protons(+ prapranu)
2.nutrons(- prapranu)
इस केन्द्र के आस पास अलग अलग कक्षाओं में एलेक्ट्रोंस नाम के लगभग भार विहीन -विध्युतात्मक कण लगातार गति करते हैं.
पारद के प्रत्येक परमाणु के सेंटर में ८० प्रोटोन और १२० नेउत्रोन होते हैं,इस तरह इकाई का भर २०० होता है,और सेंटर के ८० एलेक्ट्रोंस चक्कर लगते रहते हैं.
गोल्ड का परमाणु अंक ७९ है और परमाणु भर १९७.......
मतलब पारद ज्यादा करीब है गोल्ड के ,तब तो इसे गोल्ड में बदला जा सकता है पारद के परमाणु को १ प्रोटोन से इस तरह विद्ध किया जाए की वह सेंटर में सेंटर में क्षण भर ठहर कर हेलियम के रूप में बहार आ जाए तो पारद का गोल्ड बन जाएगा:

80 hg200+ip1=79 au 197+he4

parad ke परमाणु सेंटर में से २ - ३ + - विद्युत कण बाहर निकलने के लिए उस सेंटर को तेज ठोकर लगने पर ही यह ट्रांस्मुटेशन होगा.
यह काम पढने में तो सरल लगता है,पर है बहुत कठिन,इसीलिए पारद के ८-१८ संस्कार किए जाते हैं। शत गुन गंधक का जारण,क्रमण ,खरल ,पुट तथा बिडों आदि के द्वारा उनके अनु,रेनू,परमाणु को भेद कर सुक्षमातिसुक्ष्मा करना.
यदि हम इस जानकारी को ध्यान में रखकर क्रिया करेंगे तो हमें सफल होना ही है.और इस ज्ञान को आत्मसात कर अपनी लाइफ को हैल्थ और वेअल्थ से भर लेना है.पारद संस्कार आदि नेक्स्ट लेख में.........

****ARIF****

कीमिया का उद्देश्य


ज्ञानदान देने वाले सद्गुरु ही ब्रह्म,विष्णु, और सदाशिव हैं अर्थात अविचल नियमानुसार विश्व के उत्पादक,संरक्षक और संहारक जो देव मने गए हैं उनकी शक्ति सदगुरुदेव के ह्रदय में अवस्थित रहती है.इन तीन लोको में उनसा दयालु कोई नही है, और उनके चरणों में नतमस्तक रहते हुए जो भी ज्ञान की याचना करता है उसे रस सिद्धि का फल प्राप्त होता ही है.
'' we are told that a man can receive the secret knowledge only through divine inspiration or frm the lips of a master,and also that no one can complete the work except with the help of god.''

वाम संप्रदाय की प्रबल सरिता के प्रवाह में बहते हुए समाज का उद्धार करने के लिए इस श्री विद्या का (रस विद्या का) सनातन सत्य समाज को दिया गया था हमारे ऋषियों द्वारा.

विभिन्न रोगों की निवृत्ति के लिए रस का प्रयोग कर के रोग मुक्त समाज का निर्माण इस विद्या का उद्देश्य था.

निर्धनता रूपी महापाप को नष्ट करने के लिए इस रस विद्या का प्राकट्य किया गया .जिससे जीवन में दरिद्रता और गरीबी का शाप साधक को न पीड़ित करे.

"यथा देहे तथा लोहे"
इस ब्रह्माण्ड में जो शाश्वत है वो रस ही है .......
यह सृष्टि विद्युत् और प्रकास के परिणाम स्वरुप है.विद्युत, जल,और पृथ्वी के कार्यों में प्रवेश करके सूक्ष्मतम,सुक्ष्म, स्थूल, स्थुल्तम आदि विभिन्न रूपों को धारण करती रहती है.इस विद्युत का चंद्र किरण के साथ सम्मिलन होकर जो स्थूल रूपांतर होता है,वह पारद बन जाता है.उस पारद का स्थूल रूप विनाश होने पर पुनः मूल सूक्ष्मतम रूप में विलीन हो जाता है.इसके आलावा दूसरा तत्त्व सूर्य किरण है वह विद्युत के साथ सम्मिलित होकर स्थूल रूप धारण कर रक्त गंधक बन जाता है.
यही दो रस सिद्धों के मुख्या द्रव्य हैं.
विशुद्ध प्रद को स्वर्ण, अभ्रक का ग्रास देकर उसे रसेन्द्र बनाकर उससे हरगौरी रस या सिद्ध रस का निर्माण किया जाता है.इस सिद्ध रस को ही अलग अलग देशो में अलग अलग नाम से जन जाता है.
ग्रीक- उनम
china- ching chin
western country-etarnal water
islamic country- aaftaab
इसे व्हाइट रोस,रेड रोस,फिलोसोफेर' स स्टोन.एलिक्सिर वित,अर्कानुस, सोल ऑफ़ मैटर भी कहते हैं.
जीवों को रोग मुक्त और दरिद्रता से मुक्त करने के लिए ही रस सिद्ध इस हर गौरी रस का निर्माण करने के लिए अथक प्रयत्न करते रहते हैं .

****ARIF****

Monday, November 17, 2008

Alchemy and Precious stones




  • ...It is indeed very difficult to believe the Mercury could at all be converted in to Gold or Tin be converted in to silver.
    This science of Dhatuvad has not been lost even to-day. The fact is that the sadhus and siddhs ,well versed in it, do not come forword in the public.
    The success of siddhi also depends upon religion and Mantra-shastras along with Prayogas. It has been so ordained by the sciptures and the guiding preceptor that a person endowed with this Swarna –siddhi should not use its wealth in the least of himself. It has been prescribed to be used for the protection and nourishment of Siddhas knowing Vedas, cows, religion, scriptures,religiou s places etc.
    Dhatuvad is also embodied in many mss. Of Tantra such as Dattatreya tantra,Rudrayamal tantra, Uddish tantra , Harmekhla tantra etc.
    ... A very intresting part of Alchemy is called Ratna shastra. Ratna shastra is ourunrivalled wonderful science. To give an instance if 5 to 10 tolas of any of the pure Diamonds, Rubies , Emralds or Pearl taken in a powdered form and rendered in to Dravan with Mercury Ash are heated by a special process . they will constitute one large unit of stone of about equal weight. After crystallizing it, single Jewel will bring 25 to 70 lakhs of rupees, wheras in powdered form,it would have fetched aboud very diffrencive marjin. Means very very low but after crystallizing very very high cost.

    So that's only miracle of Alchemy tantra.
    If sadhak like all of you evincing intrest in our ancient lore come forword to encourage us. We can be very help ful to our country by carring on research in this secret science....
    yours

    ****ARIF****

    __._,_.___

Wednesday, November 12, 2008

मेरी यात्रा

जब भी बात प्राचीन विद्याओं की होती है मुझे यह डेक कर दुःख होता है की हमारी वर्त्मानिक पीढी का न तो अपने इतिहास पर कोई ध्यान है और न ही उन गुप्त व पुरातन रहस्यों को समझने के लिए कोई जूनून.
सदगुरुदेव ने अपना पूरा जीवन इन दिव्य व दुर्लभ ज्ञान को पुनर्जीवन देने में लगा दिया ,पर उनके इस प्रयास को समाज या हम कितना समझ पाएंगे यह तो आने वाला समय ही बताएगा. क्यूंकि समय से बेहतर परीक्षक कोई नहीं होता .

मेरे जीवन में मुझे इन्ही विद्याओं को आत्मसात करना है यह तो उसी समय निर्धारित हो गया था जब सदगुरुदेव ने मेरी अंगुली पकड़ी थी और मुझे वे इस पथ पर लेकर चले थे, मुझे याद है वे हमेशा येही कहते थे की अबकी बार खोने का कोई दर मत रखो क्यूंकि अब हाथ मैंने पकडा है. तब से आज तक उनका स्पर्श हमेशा महसूस करता रहा हूँ . जब भी कोई कठिनाई ई तो उन्होंने उसका निराकरण भी तुंरत ही कर दिया . पारद के गुप्त से गुप्त सूत्र भी सहज उपलब्ध हो गए.
यहाँ बात आत्म-प्रवंचना की नहीं हो रही है , मैं तो बस इतना कहना चाहता हूँ की एक बार सोचो तो की हमने क्या वादा किया था अपने गुरु और अपने आप से . की जीवन को पूर्ण करने का कोई अवसर नहीं छोडेंगे. फिर वे वादे कहा गए. क्या काल के गर्त में समाकर वे भी इतिहास में बदल गए?
मुझे यह तो नहीं पता की कौन है जो इस राह पर चलेगा , पर मुझे नहीं रुकना है और चलते जाना है क्यूंकि बहुत सारा बाकि है और जीवन के पल उसके बनिस्बत कही कम ही होते हैं . अभी तक जो भी मिला है वो निश्चय ही ख़ुशी देता है और प्रेरित करता है और आगे बढ़ने के लिए क्यूंकि हार तो संभव ही नहीं है यदि सद्गुरु का वरद हस्त सर पर हो तो.
मुझे इस दिव्य व दुर्लभ ज्ञान के द्वारा गुरु,देश व समाज का ऋण उतरना है .क्युकी ये सब इन्ही के आशीष से ही तो प्राप्त हुआ है और आगे भी होगा,
"मार ही डाले बेमौत ये दुनिया वो है , हम जो जिन्दा हैं तो जीने का हुनर रखते हैं"



निखिल