Saturday, December 27, 2008

आपस की बात


विगत दिनों मेरे पास काफी संदेश और काल्स यह जानने के लिए आए थे की पारद क्रिया से सम्बंधित प्रमाणिक सामग्री कहा से उपलब्ध हो सकती है , तो मेरे भाइयों पारद क्रिया के लिए प्रमाणिक सामग्री का लगभग अकाल सा रहता है और बाजार में जो सामान मिलता है वो भी ओरिजनल हो ऐसी कोई ग्यारंटी नही है । और एक बातो सत्य है की यदि प्रमाणिक सामग्री नही मिल पाती तो क्रिया सफल नही हो सकती , इस लिए यदि आप में जिसे भी जो सामग्री चाहिए मुझे आप सूचित करियेगा मैं आपको वो सामग्री उपलब्ध करवाने का प्रयास करूँगा. क्यूंकि कुछ सामान तो हमारे देश में कम मात्र में ही सही मिलता है पर कुछ सामग्री का आयात बाहर से होता है , और जो सामान यहाँ मिलता है उसमे भी व्यापारियों की कुछ कारीगरी हो जाती है जिससे सामग्री के गुणों में न्यूनता आना स्वाभाविक है जैसे पारद में एक तो वैसे भी दोष होते हैं ऊपर से बाजार में व्यापारी उसमे अपने थोड़े से लाभ के लिए और ज्यादा , सीसा, रांगा, जस्ता, कैडियम , आदि मिला देते हैं और इन अशुद्ध धातुओं और तापान्तर के कारण बाजार में उपलब्ध पारद पूर्ण रूप से षंड हो जाता है अब चाहे कोई लाख सर पटके यह पारद वेधन कर ही नही सकता . लोग बाजार से पारा ले लेकर कीमिया की कोशिश करते रहते हैं न तो औषधि ही प्रमाणिक बन सकती है और न ही लोह वेध की क्रिया हो पाती है . कुछ ऐसा ही अन्य सामग्रियों के लिए भी होता है चाहे वो वज्राभ्रक हो, रक्त गंधक हो , कायम हरताल हो, श्वेत गुरु हो (जिसके द्वारा कैसी भी वनस्पति से रस और दूध निकाला जा सकता है) . एक बात तो तय है की यदि सामग्री प्रमाणिक हो तो क्रिया सफल होती ही है . यदि आप चाहेंगे तो अष्ट संस्कृत पारद (या फिर अलग अलग संस्कारों यथा पहला ,दूसरा संस्कार युक्त पारद ) भी मैं आपको उपलब्ध कराने का प्रयास करूँगा , मेरा उद्देश्य आपकी सफलता और इस विद्या का प्रसार है जिसमे मैं आपका सहयोग ही चाहूँगा .हालाँकि मुझे इस बात का बेहद दुःख है की इतनी दुर्लभ विद्या के लिए जो ग्रुप बनाया गया उसके कुल सदस्य ६ महीने में सिर्फ़ १६ ही हैं . मेरे एक आत्मीय मित्र की देवरंजिनी गुटिका भी उनके निर्देशानुसार मैंने बना कर रखी है पर उनका एड्रेस लाख प्रयास के बाद भी उपलब्ध नही हो पाया है , और न ही उन्हें मेरे मेल्स मिल रहे होंगे क्यूंकि यदि उन्हें मिलते तो वो कांटेक्ट जरूर करते. उनकी पूँजी मेरे पास संचित, सुरक्षित है. खैर आप लोगो को या आपके किसी मित्र को जिनकी रुचि पारद विज्ञानं में हो और वे इस पर मेहनत करके सकारात्मक परिणाम चाहते है तो आप सामग्री के लिए जरूर बताइयेगा . एक बात और की यहाँ पर बात क्रय-विक्रय की नही हो रही अपितु उपलब्धता की हो रही है , आप को सफलता मिले बस इसी कामना की सफलता के लिए सदगुरुदेव से प्रार्थना करता हूँ.

****आरिफ****

Friday, December 19, 2008

सदगुरुदेव और पारद विज्ञान


भारतीय शास्त्रों में पारद की दूसरी संज्ञा “ रस” भी कही गयी है और इस अर्थ की विवेचना करते हुए कहा गया है:

“जो समस्त धातुओं को अपने में समाहित कर लेता है तथा बुढापा रोग व मृत्यु की समाप्ति के लिए रस पूर्वक ग्रहण किया जाता है वो “रस है”

इश्वर के लिए भी कहा गया है की “ रसो वै सः ”

वस्तुतः प्राचीन कालम से ही ऋषियों के प्रयास से ही पारद का प्रयोग केवल, लोह सिद्धि और औषधियों के लिए ही नही अपितु कायाकल्प, विशिष्ट विद्याओं की प्राप्ति और सहज समाधि अवस्था को प्राप्त करने के लिए भी किया गया है.

यहाँ तक कहा गक्या है की बिना रस सिद्ध हुए व्यक्ति कैसे मुक्ति प्राप्त कर सकता है.

भारतीय रसायन सिद्धों ने स्वर्ण निर्माण के अलावा साधना जगत में पारद का प्रयोग कर वायु गमन सिद्धि, शून्य सिद्धि, अदृश्य सिद्धि, देह लुप्त क्रिया भी सिद्ध की.

और इन्ही रस सिद्धों के कारण भारतीय रसायन विद्या सुदूर देशों में पहुची.जिसे कीयागिरी का नाम दिया गया.

पारद की महत्ता इतनी अधिक व्यापक रही की लगभग सभी सम्प्रदाय के साधकों ने इसका अपने अपने तरीके से प्रयोग कर सम्प्रदायों को समृद्ध व शक्ति संपन बनाया.

यद्यपि इन सभी की मूल रुचि तो स्वर्ण निर्माण में थी , किंतु इन्ह्ने यह भी अनुभव किया की कुछ विशेष क्रियाओं के द्वारा यदि पारद का भक्षण कर लिया जाए शरीर का कायाकल्प हो जाता है.

और यह क्रिया तभी हो पति है जब की पारद के अन्दर के विष को ८ संस्कारों कद वर निकाल कर उसे अमृत में बदल दिया जाता है . तथा ऐसा पारद यदि विशेष विधियों के द्वारा किसी कुशल रस ज्ञाता की देख रेख में यदि उचित मात्र में ग्राहम किया जाए तो सारे शरीर का कायाकल्प हो जाता है, और यह क्रिया इतनी तीव्र होती है की जिसमे वर्षो या महीनो नही बल्कि कुछ हफ्तों का ही समय पर्याप्त होता है.

सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी का योगदान पारद जगत में कोई नही भूल सकता . विभिन् शिविरों ,ग्रंथो में उन्होंने पारद के ऐसे ऐसे सूत्र प्रकट किए हैं जिन्हें सुनकर और क्रिया रूप में करके आदमी दांतों टेल अंगुली दबाने को विवश हो ही जाता है. पारद के १०८ संस्कारों से समाज का परिचय सबसे पहले उन्होंने ही करवाया . वे १०८ संस्कार जिनके विश्जय में लोगो ने कभी सुना भी नही , सदगुरुदेव ने इन संस्कारों को प्रत्यक्ष करके भी दिखाया.

“ स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ने हस्ते हुए कहा ‘इतना ही क्यूँ ! अनंत शक्ति संपन इस पारद से , हम जो चाहे कर सकते हैं – हवा में उड़ सकते हैं, अदृश्य हो सकते हैं , सोने का ढेर लगा सकते हैं, अक्षय यौवन का वरदान प्राप्त कर सकते हैं, यौगिक शक्ति प्राप्त करके परकाया प्रवेश कर सकते हैं”.
“मेरी बात सुनकर स्वामी जी गंभीर हो गए , कुछ सोचते रहे , फिर बोले की पारद को बुभुक्षित करने जो तांत्रिक क्रिया है , उससे तो इतना सोना बन सकता है की – स्सोने की लंका ही बन जाए.

‘रावण शिव भक्त था . शिव का ही तत्व पारद है रावण ने मंत्रो के द्वारा पारद को बुभुक्षित कर पारस बनाकर स्वर्ण की लंका बनाई थी.’

निखिलेश्वरानंद जी ने बताया की ‘सुद्ध किया हुआ पारद शरीर में दिव्व्य क्रियाओं से यदि प्रवेश करा दिया जाए तो हिमालय की बर्फीली चोटियों पर तुम नंगे शरीर घूम सकते हो, ठण्ड का कोई प्रभाव तुम पर नही पड़ेगा.उन्होंने वैसा करके मुझे दिखाया भी . उन्होंने पारद की गुटिका मुझे देकर कहा ,’ इसे मच में रख कर चाहे जितनी दूर की यात्रा करो ,थकान नही होगी, कोई छूट की बिमारी नही होगी, भूख प्यास नही लगेगी, यदि इसे गले में धारण करके परकाया प्रवेश किया जाए तो शरीर की दीर्घकाल तक रक्षा करती है, यदि कोई इसे निगल ले और कालांतर में उसकी मृत्यु हो जाए तो शव में लंबे समय तक कोई परिवर्तन नही होगा.

( उड़ते हुए संन्यासी से साभार)

चाहे सिद्ध सूट बनाना का तरीका हो या फिर पारद के गोपनीय सूत्रों का शिष्यों को ज्ञान कराना . कभी भी सदगुरुदेव ने कोई कमी नही की. उन्होंने सिद्ध सूट बनाने का सरलतम विधान भी बताया.

चाहे वो सवित्र कुष्ठ से निदान हो या कृपता का सुन्दरता में परिवर्तन .

चंद्रोदय जल बनाने का विधान भी उन्होंने शिष्यों क्ले सामने १९८९ में बताया .जिसके द्वारा पारद बंधन की क्रिया अत्यन्त सरलता से हो जाती है और यह जब सम्पूर्ण रोगों से देह को मुक्त रखता है.

पारद द्वारा गौरान्गना का निर्माण जिसके उपयोग से एक दिन में ही गोरापन प्राप्त किया जा सकता है. जबकि बाजार में उपलब्ध बड़े से बड़े उत्पाद भी ऐसा नही कर पाए हैं.

पूज्य गुरुदेव की कृपा से वाराणसी क एक साधक ने तेलिया कांड द्वरा पारद को सुद्ध स्वर्ण में परिवर्तित कर दिया था.

उन्होंने बताया की पारद ६ प्रकार से फलदायक है – दर्शन, स्पर्श,भक्षण,स्मरण,पूजन एवं दान . पारद को इतना पवित्र मन गया है की इसकी निंदा करने वाला भी परम पापी मन गया है.

अष्ट संस्कारित पारद की गुटिका या मुद्रिका का निर्माण कर धारण करने से शरीर वज्र तुली हो जाता है, यह गुटिका साधक को मानसिक या शारीरिक व्याधियों से भी मुक्त रखती हैं. और सम्मोहन की आभा देती है . यो भी पारद का सम्मोहन और वशीकरण की क्रियाओं में एक प्रमुख स्थान है और अत्यन्त उच् कोटि की वशीकरण साधनाये पारद गुटिका को वशीकरण गुटिका के रूप में परिवर्तित कर के ही की जाती है .

रस सिद्ध साधक ८ संस्कारों से युक्त पारद देने में अत्यन्त हिचकिचाहट का अनुभव करते हैं . पर सदगुरुदेव ने इन संस्कारों से युक्त पारद की गुतिकाए और मुद्रिकाए उपलब्ध करवाईं.

इसके अतिरिक्त पारद के विग्रह बनाने का विधान और उनसे कैसे लाभ पाया जा सकता है कौन कौन सी क्रियायें करना चाहिए , यह सबन भी साधको को समझाया.

उन्होंने बताया की पारद के विग्रहो की इतनी महत्ता क्यूँ है, क्यूंकि धन मानव जीवन का अनिवार्य अंग है उसके बिना जीवन सुचारू रूप से नही चल सकता . और एक मात्र पारद ही वो धातु है अक्षय है . तथा अपनी चंचलता में लक्ष्मी की चंचलता को समाहित किए हुए है . इस लिए उसको बंधन करते ही स्वतः ही लक्ष्मी का बंधन होने लगता है और एनी धातुओ की भाति इसकी शक्ति समय के साथ कमजोर नही होती जैसे की एनी यंत्रो की जो ताम्बे आदि से बने हो उनकी चैतन्यता कुछ वर्षो तक ही रह पाती है पर पारद आजीवन प्रभाव शाली रहता है.

पारद शिवलिंग का स्थापन वास्तु दोष दूर करता है और उसकी निर्माण विधि पर पहले भी बहुत कुछ लिखा जा चुका है. इनका स्थापन कर यदि नित्य जल चढाते हुए ‘ॐ नमः शिवाय’ का ११ बार जप कर वह जल थोड़ा पी लें तो कुछ ही दिनों में अपूर्व यौवन की प्राप्ति होती है. तथा ऐसे पारद शिवलिंग पर विशेष मन्त्र से सोमवार को कुबेर साधना करने से अक्षय सम्पाती की प्राप्ति होती है. त्राटक करते हुए यदि पारदेश्वर पर यदि पूर्व जन्म दर्शन साधना की जाए तो निश्चय ही ऐसा सम्भव होता है . वायु गमन और शून्य आसन की सिद्धि का तो पारद शिवलिंग आधार ही है .

पारद लक्ष्मी के विषय में भी बहुत कुछ बताया जा चुका है, यदि पारद लक्ष्मी का पूजन करके सौन्दर्य लक्ष्मी मन्त्र का जप किया जाए तो अपूर्व सुन्दरता प्राप्त होती है.

पारद श्रीयंत्र का निर्माण कर यदि भूगर्भीय मंत्रो से उसे सिद्ध कर के भवन बनाते समय यदि भूमि में दबा दिया जाए तो भवन सदैव लक्ष्मी के विविध रूपों से भरा रहता है.

शायद आप लोगो को याद होगा की आज से १२-१५ साल पहले बेरोजगारी हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या थी पर सद्ग्रुदेव द्वारा जबसे रास्त्र-पति भवन में पारदेश्वर की स्थापना करने के बाद आज हमारा देश कैसा प्रगति कर रहा है आप सभी देख सकते हैं, वैश्विक मंडी के इस दौर में बड़े बड़े विकसित देश कंगाली के कगार पर पहुच गए पर . हमारा देश आज भी सीना ताने खड़ा है .

पारद दुर्गा और पारद कलि जैसे जटिल विग्रहों का निर्माण तभी सम्भव हो पाटा है जब ललिता सहस्त्रनाम और नवार्ण मन्त्र का जप करते हुए इन्हे बनाया जाए बाद में कैसे उन्हें अभिसिक्त किया जाए यह विधान भी उन्होंने समझाया. ऐसे चैतन्य विग्रह के सामने ‘दुर्गा द्वात्रिन्स्न्नाम माला’ का पथ करने पर कैसी भी व्याधि हो उससे आजीवन मुक्ति मिलती ही है.

पारद गणपति, तथा पारद अन्नपूर्ण के निर्माण की गोपनीय विधियां भी सदगुरुदेव ने शिविरों में बतायी जिससे साधक को समस्त सुखों की प्राप्ति होती ही है. और भी बहुत कुछ गुरूजी ने प्रदान किया शिष्यों को.

क्या क्या बताऊ …॥ इतना कुछ है मेरे सदगुरुदेव के बार में बोलने के लिए की शब्द मौन हो जाते हैं। आज हम जिस परम्परा से जुड़े हुए हैं , उस पर गर्व करने से बड़ा सुच आर आनद कुछ नही है. बस हमें इस परम्परा को आगे बढ़ाना है. यही संकल्प हम लें , यही हम सदगुरुदेव से प्रार्थना करे.


****आरिफ****

Wednesday, December 17, 2008

रस शास्त्र के अद्भुत ग्रन्थ

पारद तंत्र ब्रह्माण्ड का सर्व श्रेष्ठ तंत्र है इसमे कोई दो मत नही है. ऐसा मैं इस लिए नही कह रहा हूँ की मैं ख़ुद रस शास्त्र का अभ्यास करता हूँ बल्कि इस लिए मैं ऐसा कह रहा हूँ क्यूंकि यह एक मात्र वो तंत्र है जिसके द्वारा सृजन , पालन और संहार की क्रिया संपन होती है. सदगुरुदेव कहते हैं की ६४ तंत्रों में यह सबसे महत्वपूर्ण और अन्तिम तंत्र है मतलब इस तंत्र तक पहुचने के लिए आपको सारी चुनौतिया पार करनी पड़ती हैं, अपने आपको साबित करमा पड़ता है , और यदि इस बात को ग़लत मानते हैं तो बताइए की आज ऐसे कितने लोग हैं जो प्रमाणिक रूप से १८ संस्कार करके दिखा सकते हैं.

सदगुरुदेव की विराट महिमा का एक पहलु यह भी रहा है की उन्होंने सबसे पहले समाज के सामने उन १०८ संस्कारों के विषय में बताया जिनके विषय में कभी लोगो ने सुना भी नही था. आख़िर ऐसा क्यूँ था? इसकी वजह यह रही है की पारद ८ संस्कार के बाद शक्ति वां होकर आपको भौतिक और शारीरिक उपलब्धियां देता है , यह तो ठीक है पर १८ के बाद तो वो विपरीत क्रिया करने लगता है और उसे संभालना और नियंत्रण में रखना बहुत कठिन कार्य या ये कहे की लगभग असंभव ही हो जाता है . यदि इसे नियंत्रित कर लिया जाए तो साधक को ब्रह्माण्ड के वे रहस्य उपलब्ध हो जाते हैं जिनके विषय में शायद कल्पना भी नही की जा सकती.

सदगुरुदेव ने स्वर्ण तन्त्रं में कहा है की यदि मुझे २-४ शिष्य भी मिल जाए तो मैं भारत को उसका आर्थिक गौरव पुनः दिला सकता हूँ, साथ ही साथ उन ग्रंथो को भी फिर से समाज के सामने रखा जा सके जो पारद जगत के दुर्लभ ग्रन्थ हैं.

रस शास्त्र का अध्यन करने वाले साधको के लिए यह ग्रन्थ अनिवार्य हैं क्यूंकि यह सारे ग्रन्थ न सिर्फ़ प्रमाणिक हैं बल्कि कालातीत भी हैं.

इन ग्रंथों में वर्णित क्रियायें साधकों को विस्मित कर देती हैं . अलग अलग सम्प्रदाय की गुप्त क्रियाओं को समझना और क्रियात्मक रूप से करने का आनंद ही और है. विदेशों में लोग रस तंत्र को सिर्फ़ दर्शन शास्त्र तक ही रखे हुए हैं पर हमारे यहाँ इनका कई बार प्रमाणिक रूप से दिग्दर्शन भी कराया है. यह ग्रन्थ हैं:

स्वर्ण तन्त्रं

स्वर्ण सिद्धि

स्वर्ण तन्त्रं (परशुराम )

आनंद कन्द

रसार्नव

रस रत्नाकर – नित्य नाथ

रस रत्नाकर – नागार्जुन

रस ह्रदय तंत्र

रस सार

रस कामधेनु (लोह पाद)

गोरख संहिता (भूति प्रकरण)

वज्रोदन

शैलोदक कल्प

काक चंदिश्वरी

रसेन्द्र मंगल

रसोप्निशत

रस चिंता मणि

रस चूडामणि

रसेन्द्र चिंतामणि

रसेन्द्र चूडामणि

रस संकेत कलिका

रस पद्दति

रोद्रयामल

लोह सर्वस्व

रसेन्द्र सार

और भी अनेक ग्रन्थ हैं जिन्हें प्राप्त कर अध्यन करमा ही चाहिए क्यूंकि जब आप इनका अध्यन करेंगे तभी आप हमारी गौरवशाली परम्परा के मूल्यों को समझ पाएंगे.

****आरिफ****

Tuesday, December 16, 2008

Alchemicle stages

rasa vada or metallic alchemy is never the end by itself,nor was it ever meant for the economic prosperity of any individual.on the other hand,it was only a means and a step preparatory for the higher processing of mercury into "rasa linga" which is said to possess extraordinary cosmogenic and biogenic energies required for the highest human aspirations comprising of 1.longvity 2.perpetual good health 3.happiness and wealth energy 4.freedom and liberation from bondagerasa linga is fused and cristalized ,mercury cone with other minerals technically caled"odes" and sarcastically called 'philosphers stone'. quite a number of these odes are described in printed manuals like 'ras kamdhenu' and 'rasarnava tantra' and classified in to khechari,bhuchari and other miscellaneous groups according to their nature and properties. the method of the therapeutic action on the human bodies of the odes is styled'deha vada' and that property will be prossessed only by the odes made with mercury,which was well possessed for 'loha vedha' or prossessing the property of converting itself into golds, as well as converting baser metals like copper and lead in to gold,therefore ,lohavedha or convertibility of mercury in to gold is only a test for the perfection of the prossessing for fitness for employment in the clinical procedure of deha vedha, through the further process vof rasa bandhana.again ,as each ode is valued many hundred times more than its weight in gold,it will be terribly uneconomic and the aspirant is forbidden from entertaining ideas of commercialisation of the knowledge of the art of utilizing the gold for his personal and domestic economy. being a branch of artharva veda ,there are quite a number of printed books and cartloads af palmleaf manuscripts in private and public libraries ,each containing scores of yogas for making gold and rasa lingas.but need more practice in this field under master.if u want success.

Sunday, December 14, 2008

पारद की महत्ता


सदगुरुदेव कहते हैं की वे लोग धन्य हैं जिन्होंने जीवन में पारद के दर्शन किए हो और जो पारदेश्वर की साधना में रत हो. क्यूंकि पारदेश्वर और पारद लक्ष्मी के माध्यम से ही जीवन की वे उन्चैयाँ हमें प्राप्त होती हैं जिनकी चाहत हमें होती है.

पारद शिवलिंग संसार का दुर्लभ शिवलिंग होता है यदि उस दिव्व्य व शुभ्र प्रवाहित पारद को स्वर्ण ग्रास देकर भव्य व आबद्ध बनाया जाए . और यह ग्रास देने की क्रिया ३२ बार होनी चाहिए . क्यूंकि ऐसा स्वर्ण ग्रास दिया पारद ही जीवन में भौतिकता और आध्यात्मिकता का समावेश करता है. यहाँ पर सदगुरुदेव ने बहुत ही विशेष बात कही है की स्वर्ण ग्रास के बगैर पारद पूर्णता दे ही नही सकता . फिर चाहे उस निर्बीज (बिना ग्रास लिए हुए) का आप शिवलिंग या पार्देश्वरी बनाओ या फिर उसे भस्म करो क्यूंकि शास्त्र कहता है की निर्बीज पारद को भस्म करने वाला नरक गामी होता है वो शिव हत्या का दोषी होता है. और यह ग्रास देने की क्रिया विजय काल से प्रारम्भ होनी चाहिए. तथा जहा पर पारद शिवलिंग स्थापित हो या निर्माणित हो रहा हो वह पर आग्नेय कोण में पार्देश्वरी स्थापित होना चाहिए.

भगवान् शिव के दिव्व्य ३२ रूपों को तभी आबधिकरण किया जा सकता है जब उनके प्रत्येक रूप के जप द्वारा ग्रास दिया जाए. इसी प्रकार हीरक ग्रास भी ३२ बार लक्ष्मी के ३२ रूपों की स्थापना के लिए दिया जाता है और यह पूर्ण प्रक्रिया १६ घंटो में होती है प्रत्येक घंटे में २ बार शिव चैतन्य होते हैं और दो बार लक्ष्मी.

इस प्रकार जो पारद प्राप्त होता है उससे निर्माणित विग्रह अद्विय्तीय होता है पूर्णता दायक होता है और ऐसे ही शिवलिंग और लक्ष्मी पर की गयी साधना फलीभूत होती ही है . वैसे भी जो लोग दूकान से पारद के विग्रह खरीद कर स्थापित करते हैं उन्हें कोई अनुकूलता इसी लिए नही मिलती क्यूंकि जब पारद अष्ट संस्कार के बाद बुभुक्षित होता है तो उसे भोजन देना अनिवार्य है , आप ख़ुद ही सोचिये की जो ख़ुद भूखा हो वो आप को तृप्ति कैसे दे सकता है. और दूसरी बात दुकानों पर मिलने वाले विग्रह पारद से नही बल्कि सीसे से या जस्ते से निर्मित होते हैं जिनमे नाम मात्र का पारद होता है , न उनमे चेतना होती है न ही कोई संस्कार. अब वो आपको पूर्णता कैसे दे सकते हैं. यह जीवन का सौभाग्य होता है की जीवित गुरु से इन विग्रहों को प्राप्त कर अपने घर में स्थापित करें और ऐश्वर्य व साधनात्मक स्टार की उच्चता की प्राप्ति करे जो होती ही है. इन ६४ दिव्य लक्ष्मी- शिव रूपों के आलावा उनमे ४ और विशिष्ट शिव रूपों की भी स्थापना होती है. इस प्रकार ६४ तंत्रों की दिव्व्य शक्तियों से यह विग्रह संयुक्त हो जाते हैं. यदि इन प्रक्रियाओं से युक्त पारदेश्वर और पार्देश्वरी घर में स्थापित हो तब कैसा भी बुरा ग्रह प्रभाव, तंत्र प्रभाव, पूर्व जन्म्क्रित दोषों से सद्फ्हक को मुक्ति मिलती है.

और ऐसा विग्रह ही आपको वो अनुकूलता और पूर्णता देता है जैसा की आप चाहते हैं. ऐसी पार्देश्वरी ही आग्नेय कोण में स्वर्णावती बनकर स्थापित होती है और खुशियों की बारिश करती हैं.

ऐसे पारद शिवलिंग पर ही शैव गुरु साधना , पूर्व जन्म दर्शन साधना ,तथा सप्त लोक भेदन साधना होती है जो की सदगुरुदेव द्वारा विश्व की श्रेष्ट दीक्षाएं में भी दी हुयी है.
एक महत्वपूर्ण बात याद रखिये , ऐसे विग्रह पूर्ण शुभ्र और दैदीप्यमान होते हैं जो सम्मोहन क्षमता और दिव्व्य तेज से आपको आप्लावित कर देते हैं , तो आइये और सदगुरुदेव से इन विग्रहों को प्राप्त कर जीवन को सफल बनायें

****आरिफ****

Saturday, December 13, 2008

दिव्य तत्व पारद

प्राचीन भारत की समृद्धि का आधार पारद था . धातु परिवर्तन की प्रक्रिया में निपुण हमारे पूर्वजों ने इस देश को सोने से सजा दिया था , इसका मतलब यह नही की ऐसा उन्होंने सिर्फ़ लोह सिद्धि से ऐसा किया था बल्कि कई दिव्य साधनाओं से उन्होंने श्री और सम्पन्नता को बाँध कर रखा था जिससे उनके जीवन में किसी भी प्रकार की न्यूनता नही थी , यह अलग बात है की हमने अपने पूर्वजों की थाती को संभल कर नही रखा वरना आज हमारी ऐसी दुर्दशा तो कम से कम नही होती. सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में पारद ही एकमात्र तत्व है जिसके द्वारा मोक्ष और ऐश्वर्य दोनों ही पाए जा सकते हैं. इसी विद्या के द्वारा कलयुग में भी जगत गुरु आदी शंकराचार्य ने स्वर्ण वर्षा करवा कर दिखाया था . उनके गुरुदेव श्री गोविन्द पादाचार्य का पारद व लोह सिद्धि पर लिखा रस ह्रदय तंत्र ग्रन्थ विख्यात है .जिसमे दी गयी क्रियाये आज भी उतनी ही सत्य हैं जितनी तब रही होंगी.

पारद बंधन की दिव्य क्रिया का मन्त्र साधना द्वारा योग करके कई अद्भुत परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं . सदगुरुदेव ने बताया है की यदि साधना स्थल के ईशान कोण में यदि चैतन्य और विजय काल में निर्मित पारदेश्वर और आग्नेय कोण में यदि राजस मंत्रों से पारद लक्ष्मी की स्थापना यदि की जाए तो पारद लक्ष्मी का स्वरुप स्वर्णावती में बदल जाता है . और तब साधक को जिस ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है उसका वर्णन सहज नही है .पुरातन काल की उसी परम्परा को सदगुरुदेव ने आज भी जीवित रखा रखा है . कौन सा ऐसा ज्ञान रहा जो की उन्होंने शिष्यों को न दिया हो.

पारद के सर्वोपरि होने का महत्त्व पूर्ण कारण था उसका आत्म स्वरुप होना , उसका दिव्य होना. जब हम पारद का शुद्धि कारन करते हैं तो हमारा भी शुद्धिकरण होता है , पारद की चंचलता के साथ हमारे मन की चंचलता भी आबद्ध होती जाती है .आप ख़ुद ही सोचे की यदि असीमित शक्ति शाली पारद और ऐसी ही शक्ति से परिपूर्ण हमारे मन पर हमारा नियंत्रण हो जाए . उनकी चंचलता हमारे काबू में आ जाए तो फिर क्या असंभव है हमारे लिए. क्यूंकि सभी सिद्धियों का मूल तो चित की एकाग्रता ही है न.

दिव्य वनस्पतियों का संस्कार और मंत्रों का योग पारद के साथ आपको भी चैतन्यता दे जाता है . यही कारण है की जब हम ऐसे दिव्य पारद विग्रहों को घर में स्थापित करते हैं तो स्वतः ही सकारात्मक उर्जा , आकर्षण , तेज से हमारा व्यक्तित्व भी भरता चला जाता है , और इसमे कोई अतिशयोक्ति भी नही है . क्यूंकि यदि आपने स्वर्ण तन्त्रं पढ़ी होगी तो सदगुरुदेव ने बताया है की आठ संस्कारों से युक्त पारद से बनी गुटिका सभी तंत्रों के प्रभावों को दूर कर के वशीकरण छमता देती है.

जग विख्यात है की यदि व्यक्ति ब्रह्म हत्या का भी दोषी हो या कैसे भी पाप उसने किए हो तब भी पारद का स्पर्श , दर्शन व पूजन सभी दोषों से मुक्त कर देता है.

Monday, December 1, 2008

पारद लक्ष्मी

जीवन में मानसिक और भौतिक उन्नति के लिए धन की उपयोगिता को नाकारा नही जा सकता. क्यूंकि कहावत है की “शत्रु को समाप्त करना हो तो उसकी आर्थिक प्रगति के सोर्स को ही ख़त्म कर दो वो ख़ुद ही ख़त्म हो जाएगा”.

सदगुरुदेव ने कभी भी यह नही कहा की दरिद्र रहने में म्हणता है. न ही जितना है उतने में सुखी रहो जैसे वाक्यों को शिष्यों को दिया .
भाग्य को सौभाग्य में बदलने और जीवन स्टार को उचा उठाने के लिए ही उन्होंने प्रत्येक शिविर में धन व सौभाग्य से सम्बंधित साधनाएं शिष्यों और साधकों को करवाई.
इन्ही साधनों में पारद लक्ष्मी जो श्री का ही प्रतिक है का प्रयोग व स्थापन पूर्ण प्रभाव दायक है. जिस घर में भी पार्देश्वरी स्थापित होती हैं ,उस स्थान पर दरिद्रता रह ही नही सकती , ऐश्वर्य व सौभाग्य को वह पर आना ही पड़ता है , मुझे अपने जीवन में जो भी सफलता व उन्नति की प्राप्ति हुयी है ,उसके मूल में भगवती पार्देश्वरी की साधना और स्थापन का अभूतपूर्व योगदान है.

हमें पार्देश्वरी से और आर्थिक उन्नति से सम्बंधित कुछ बातो की जानकारी होनी चाहिए :

पारद लक्ष्मी का निर्माण विशुद्ध प्रद से होना चाहिए क्यूंकि पारद चंचल होता है और लक्ष्मी भी चंचल होती हैं , इस लिए पारद के बंधन के साथ लक्ष्मी भी अबाध होते जाती हैं.
पार्देश्वरी का निर्माण श्रेष्ठ व धन प्रदायक योग में होना चाहिए.


पार्देश्वरी के निर्माण के लिए पारद मर्दन करते समय तथा उनके अंगो को बनते समय राजस मंत्र का जप २०००० बार होना चाहिए इसमे १०००० मंत्र खरल करते हुए सामान्य रूप से तथा १०००० बार लोम विलोम रूप से मंत्र के प्रत्येक वर्ण का स्थापन उनके अंगों में करना चाहिए. राजस मंत्र जो की आधारभूत मंत्र या पूर्ण वर्णात्मक मंत्र कहलाता है के बिना इनका निर्माण करने पर चैतन्यता का आभाव रहता है तथा यह एक विग्रह मात्र होती हैं जिसे घर में रखने पर कोई लाभ नही होता . येही वजह है की जब आप किसी दुकान से इस प्रकार की मूर्ति खरीदते हैं तो कोई लाभ नही होता भले ही आप उनकी कितनी भी पूजा कर लें.

पार्देश्वरी का स्थापन आग्नेय दिशा में होना चाहिए.

इसके बाद आप सद्द गुरुदेव से इनका मंत्र प्राप्त कर प्रयोग करे , यदि प्रयोग नही भी कर पते तब भी इनका स्थापन उन्नति के पथ पर आपको अग्रसर करता ही है.

आप इन बातो का ध्यान रखे और देखे की कैसे सम्पन्नता आपके गले में वरमाला डालती है।

****arif****