गुरु सायुज्य त्रिशक्ति-साधना
जय सदगुरुदेव /\
स्नेही आत्मीय
भाइयो बहनों !
शरद्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी,
तस्यां
ममैतान्माहात्म्याँ श्रुत्वा भक्ति-समन्वितम ||
सर्व बाधा
विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतन्वितः
मनुष्यो
मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: ||
अर्थात शरद ऋतू की इस नवरात्री के पूजन का महत्व अति
विशिष्ट है इस महापूजा, आराधना से साधक सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर
धन-धान्य और सम्रद्धि से परिपूर्ण हो जाता है, मानव जीवन को उज्जवल करने वाली इस
महासाधना के सम्बन्ध में कोई संशय नहीं |
भाइयो बहनों ! बीच
के बहुत से विशेस दिन आपके छूट गएँ होंगे या आपने कुछ और किया होगा, कोई बात नहीं
अब हम सब मिलकर इन विशेस दिवस की विशष्ट साधना सम्पन्न करेंगे |
नवरात्री अपने आप में चैतन्य और जाग्रत दिवस होती है और
भगवती के साक्षात्कार का सबसे सुन्दर अवसर, इन दिनों यदि साधक दृढ़ विश्वास के साथ
इस महाशक्ति की साधना संपन्न करे तो निश्चित ही माँ से साक्षात्कार होने की
संभावना बनती है और कृपा प्राप्त होती ही
है | इस साधना
में संलग्न होने से पहले गुरु आज्ञा और और उनकी कृपा अति आवश्यक अतः प्रत्येक साधक
को अपने गुरु से अनुमति लेकर या उनके सानिध्य में ये साधना सम्पन्न करें तो अति
उत्तम या अपने साधना काल में गुरुदेव का तंत्रोक्त पूजन प्रति दिन किया जाना चाहिए
या कम से कम पहले और आखिरी दिन तो अति आवश्यक है
है ना विशिष्ट
विधान.... क्योंकि शक्ति के साथ गुरु के पूजन का विधान भी तो है ना J गुरु जो शिव
स्वरुप हैं, और शक्ति, उर्जा- अर्थात शिव और शक्ति यानि गुरु की उर्जा प्राप्त
करने की साधना है ये, जो साधक या व्यक्ति इस साधना को न कर पायें वे इस महा पूजा
को अवश्य संपन्न करें, तो भी आप इस उर्जा को महसूस कर सकते हैं और मनइक्षित फल
प्राप्त कर सकते हैं |
इस महा
दिवस साधना के विशिष्ट नियम—
१-ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रिया के
बाद प्रथम दिवस स्थापना और तंत्रोक्त गुरु पूजन सम्पन्न करें |
२- ब्रहमचर्य का दृढ़ता से पालन करें, शारीरिक
शुद्धि के साथ मन और विचारों की शुद्धि भी आवश्यक है |
३- अनावश्यक वार्तालाप में अपनी उर्जा शक्ति
को नष्ट न करें, अतः अधिकाधिक मौन रखने का प्रयास अवश्य करें |
4- सात्विक भोजन, यदि वृत न रख सकें तो एक
समय भोजन करें .
एक विशेस बात उन व्यक्तियों के लिए जो साधना कर सकें, और व्यापार और
नौकरीपेशा हैं, वे भी इस महापूजा को सम्पन्न कर सकते हैं, सुबह और शाम का एक टाइम
निश्चित का पूजा और लघु मन्त्र जप कर भी इस साधना का लाभ उठा सकते हैं |
उपयुक्त
साधना सामग्री-
माँ भगवती का एक सुंदर चित्र, यदि तीनों स्वरुप यानि
महालक्ष्मी-महासरस्वती और महाकाली का चित्र मिल जाए तो अति उत्तम | लघु नारियल, आठ
सिद्धि फल, यदि आपके पास श्री यंत्र और
दक्षिणावर्ती शंख है तो, इन्हें भी
स्थापित करना है, या दुर्गा
यंत्र, महाकाली यंत्र, और एक महासरस्वती, या सरस्वती यंत्र, ये सब श्री यंत्र की अनुपस्तिथि में, और एक
रुद्राक्ष माला एक काली हक़ीक माला, और एक कमल गटटे की माला, एक ताम्बे का सर्प, और
शुकर दन्त भी हो जाये तो समस्त साधना सामग्री पूरी हो जाएगी, यदि नहीं भी है तो
कोई बात नहीं किन्तु आपमें से अनेक भाइयों के पास ये उपलब्ध हो सकता है |
एक विशेस
बात जिन लोगो के पास ये सामग्री नहीं है वे बिलकुल निराश न हों वे पूजा की दुकान
पर जो भी चीजें प्राप्त हों जाएँ उनसे भी साधना कर सकते हैं |
| शुद्ध घी का दीपक जो पूरे नौ दिन अखंड जलेगा, अगरबत्ती एक
बड़ा ताम्बे का पात्र जिसमें कलश स्थापन होगा पुष्प, अक्षत, पंचपात्र, शुद्ध घीं, दूध,
दहीं, शहद, शक्कर,सिन्दूर, कुमकुम, गंगा जल, केशर, रक्त चन्दन, नारियल, सुपारी, फल,
सिंगार सामग्री इत्यादि, जो पूजन की दूकान पर आसानी से प्राप्त हो जाया करती है,
नैवैद्ध, इसमें आप प्रति दिन खीर या हलुए का भोग लगा सकते हैं |
इस साधना में
प्रत्येक उपकरण एवं सामग्री की आवश्यकता महत्वपूर्ण है अतः पहले ही इनकी व्यवस्था
कर ली जाये तो साधना के समय निश्चिन्तता रहती है और आप बिना किसी संसय के साधना
में पूरे मन से संलग्न रहते हैं साधना में जहाँ शरीर की शुद्धि आवश्यक है वहीं मन
एवं आत्म शुद्धि भी अति आवश्यक है अतः प्रत्येक बात का ध्यान रखा जाये तो साधना के
सफलता में कोई संदेह नहीं होता है |
पूजा
विधान-
इस साधना में प्रथम दिवस माँ दुर्गा की स्थापना, गुरु पूजन,
कलश स्थापन आदि का विधान है, एवं छः दिवस के अलग विधान हैं जो कि दो-दो दिनों में
विभाजित हैं अष्टमी को हवं एवं नवमी को विसर्जन का प्रावधान है तो विधान अति सरल
भी हो जाता है |
प्रतिपदा
पूजा एवं स्थापन- प्रथम दिवस साधक प्रातः ब्रहम मुहूर्त में उठकर स्नान आदि
से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारण करें पीला ही आसन होगा, साधना स्थान पर अपने
सामने लकड़ी के बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर मा दुर्गा का चित्र स्थापित करें,
उनके सामने बीच में दुर्गा यंत्र स्थापित करें | अपने बायीं
और भूमि पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाकर कलश स्थापित करें, अपने दांयी और एक बड़ा
शुद्ध घीं का दीपक स्थापित करें | अब पटटे पर ही गणपतिजी की स्थापना करें यदि
गणपति प्रतिमा न हों तो एक सुपारी में कलावा लपेटकर चावल की ढेरी पर गणेश की
स्थापना करें अब कलश और गणपति जी का पूजन कर साधना की पूर्ण सफलता एवं निर्विघ्नता
की प्रार्थना करें, अब दायें हाथ में जल अक्षत फूल सुपारी दूर्वा आदि लेकर संकल्प
लें—
“ॐ अद्धयेत्यादी मम शारदियार्चन
निमित्यार्थे घट स्थापन-कर्माहं करिष्ये”
“Om
addhyetyaadi mam shardiyaarchan nimityarthe ghat sthapan karmaham karishye”
और जल भूमि पर छोड़ दें अब गणपतिजी
का पूजन करें | इस दिन की स्थापना के बाद किसी भी विग्रह को बार बार हटाना, या
हिलाना नहीं है,इनकी पूजा कर,आवाहन करें, इनके सामने दूब चावल पुष्प, और कुमकुम
अर्पित करें |
अब मुख्य पूजा प्रारंभ होती है अपने दांयी और
अपने गुरु के चित्र का स्थापन करें एवं उनका तंत्रोक्त पूजन करें--
इस पूजन
में तंत्रोक्त गुरु पूजन का महत्व अत्यधिक है क्योंकि जो साधना में पूर्णता चाहते
हैं, सही अर्थों सिद्ध योगी बनने की इक्छा रखते हैं, जो सम्पूर्ण प्रकृति को यानि
आदि शक्ति को अपने अनुकूल बनाने की भावना रखते हैं, और तंत्र मार्ग में प्रवेश
चाहते हैं या तंत्र मार्ग पर बढन चाहते हैं, उनके लिए गुरु की तांत्रोक्त साधना या
पूजन अति आवश्यक है चूँकि शक्ति का आवाहन है ये विधान अतः इस पूजन की प्रधानता है
|
अब मुख्य दीपक प्रज्वलित करें उसका पूजन करें औरहाथ में
पुष्प लेकर माँ दुर्गा का आवाहन करें—
“ॐ आगच्छ वरदे देवी दैत्य दर्प
निसूद्नी,
पूजां
ग्रहांण सुमुखि त्रिपुरे शंकरप्रिये” ||
“Om
aagachchh varde devi daitya darp nisoodni,
Poojaam
grahaan sumukhi tripure shankarpriye” |
इसके बाद दुर्गा
चित्र और यंत्र की पूजा पीले वस्त्र, पीला यज्ञोपवीत, चन्दन, चावल पुष्प धुप दीप
नैवेद्ध सुपारी लॉन्ग इलायची पान आदि अर्पित कर संपन्न करें एवं हकीक माला से
निम्न मन्त्र ११ माला करें |
मन्त्र-
“ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः”
“Om
dum durgayai namah”
इसके बाद गुरुदेव को जप समर्पण कर जल आसन के नीचे छोड़कर उअथ
सकते हैं, यदि आप चाहें और समय हो तो दुर्गा सप्तशती का पाठ करें या कवच, अर्गला,
कीलक और कुंजिका स्तोत्र संपन्न कर फिर जप समर्पण करें | दिन में आप अपने अन्य
कार्य कर सकते हैं |
अब आगे के सरे पूजन रात्रि कालीन होंगे एवं दिन में गुरु पूजन
और सप्तशती आदि कर सकते हैं |
द्वतीया एवं तृतीया पूजन—
इस दिन आपको लाल वस्त्र और लाल ही
आसन उपयोग करना है
महालक्ष्मी पूजन- आवश्यक सामग्री-- श्रीयंत्र एवं शंख यदि
किसी के पास शंख न भी हो तो श्री यंत्र का भी पूजन कर सकते हैं | इसके लिए थोड़े
कुमकुम से रंगे चावल और पुष्प पंखुडियां पहले से रख लें |
अब भगवती दुर्गा के महालक्ष्मी स्वरुप का ध्यान करें---
“अरुणकमलसंस्था
तद्रज: पुन्जवर्णा,
करकमल
घ्रतेश्वा भितियुग्माम्बुजा च |
मणिकटक विचित्रालंक्रताकत्मजालैः,
सकल
भुवनमाता सन्वतम श्री: श्रियै नमः”||
“Urunkamalsanstha tadrajah punjavarna,
Karkamal ghrateshwa bhitiyugmaambuja cha |
Manikatak vichitraalankritakatmajaalaih,
Sakal bhuvanmata sanvatam shreeh shriyae namah”||
ध्यान सम्पन्न कर
महालक्ष्मी की स्थापना कर कुमकुम, चावल, पुष्प केशर, धुप दीप नैवैद्ध,पान, सुपारी
लौंग, इलाइची आदि से पूजन करें और कमल-गट्टे की माला से निम्न मन्त्र की ११ माला
मन्त्र जप करें |
मन्त्र-
“ॐ
श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” |
“Om
shreem hreem kleem shreem mahalakshamyainamah”
|
मन्त्र जप के बाद जो पुष्प पंखुडियां और कुमकुम रंगे चावल
हैं उनसे श्री सूक्त के सोलह श्लोक के पाठ करते हुए अक्षत और पुष्प श्री यंत्र और
शंख पर चढाते जाएँ |
यही क्रम द्वितीय को भी दोहराएँ | एवं इस दूसरे दिन की पूजा
के पश्चात् आरती अवश्य सम्पन्न करें |
चतुर्थी
और पंचमी का पूजन—
ये दोनों दिवस माँ दुर्गा की दूसरी महा शक्ति महासरस्वती के
हैं | ये साधना अति आवश्यक है क्योंकि महा सरस्वती तत्व गुण प्रधान शक्ति हैं इनसे
ही विचार, विवेक, बुद्धि, ज्ञान विज्ञान आदि की श्रोत हैं इनसे ही साधक में
कार्य-शक्ति, इच्छा-शक्ति, और ज्ञान शक्ति का श्रोत खुलता है अतः भगवती के इस
स्वरुप की साधना अवश्यक है |
इस दिन गणपति पूजन कर सरस्वती यंत्र की स्थापना करें व इनका
पूजन अष्टगंध,श्वेत पुष्प, दूध, सुपारी, से करे |
अब देवी का ध्यान करें |
“ऐमम्बितमे नदीतमे देविममे सरस्वति |
अप्रशस्त
इव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नस्कृघि” ||
“Emambike naditame
devimame
sarswati |
Aprashast
eva smasmi prashastimamba naskrghi” ||
अब दाएं हाथ में जल लेकर संकल्प करें |
अपने सामने अब यंत्र स्थापित कर चन्दन से सामने ‘ह्रीं’
लिखें व सरस्वति चित्र भी स्थापित करें | तदोपरांत अष्ट सिद्धिफल लेकर सरस्वती के
आठ स्वरूपों का ध्यान करते अपने सामने यंत्र के आगे एक पंक्ति में स्थापित करें,
पहले एक सिद्धिफल लेकर देवी के निम्न स्वरूपों का उच्चारण करते हुए क्रमशः स्थापित
करें |
वाग्वादिनी
स्वाहा | (vagvadini
swaha)
चित्रेश्वरी
स्वाहा | (chitreshwari swaha)
एं कुलजे
स्वाहा | (eng kulje swaha)
अन्तरिक्ष
सरस्वति स्वाहा | (antriksha sarswati swaha)
घट
सरस्वति स्वाहा
| (ghat sarswati swaha)
नील
सरस्वती स्वाहा
| (neel sarswati swaha)
किणि किणि
सरस्वति स्वाहा| (kini kini saeswati swaha)
कीर्तीश्वरि
सरस्वति स्वाहा | keertishwari sarswati
swaha)
इस प्रकार इन आठ सरस्वति की स्थापना करें व प्रत्येक के
सामने एक-एक सुपारी तथा पुष्प अर्पित करें |
अब अपने आसन पर ही खड़े होकर ग्यारह बार प्रदक्षिणा करें फिर
सरस्वती बीज मन्त्र की ग्यारह माला जप करें |
“ॐ ह्रीं
एंग ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः”
“Om
hreem eng hreem om sarswatyai namah”
यहाँ ध्यान रखें की ग्यारह माला करना आवश्यक है व
ग्यारह माला जप होने के पश्चात ही आसन छोड़ें|
सायंकाल में १ पाठ दुर्गा सप्तशती का संपन्न करें व पांचवे
दिन भी यही क्रम रहेगा |
षष्ठी-सप्तमी
पूजा विधान--
यह
दोनों दिन दुर्गा के तीसरे महास्वरूप, महाकाली का होता है | इन दो दिनों में माँ
महाकाली अपने प्रचंड रूप में विद्यमान रहती हैं व साधकों को पूर्ण आशीर्वाद,
सामर्थ्य, रक्षा, व शक्ति प्रदान करती हैं |
षष्ठी
के दिन प्रातः दैनिक पूजन में गणपति पूजन, गुरु पूजन, एवं दुर्गा पाठ सामान्य रूप
से ही करें व काली पूजन रात्री में संपन्न करें |
इस
पूजन में लाल वस्त्र धारण करने हेतु, इसके अतिरिक्त रक्त चन्दन, लाल पुष्प, ताम्र
पात्र, ताम्बे का छोटा सर्प, महाकाली यंत्र आवश्यक है | रात्री का प्रथम प्रहर के बाद (१० से ११ के बीच) होने के पश्चात पूजन
आरम्भ करें | गुरु चरणों में ध्यान कर महाकाली की स्तुति करें |
अब
यंत्र को ताम्र पात्र में रख कर सर्वप्रथम घी से स्नान करायें फिर दुग्ध धारा से
फिर अंत में जल धारा से स्नान करा कर साफ़ कपडे से पोंछ कर “ॐ ह्रीं कालिकायोगपीठात्मने नमः” बोल कर पूष्प आसन पर स्थापित कर
रक्त चन्दन यंत्र पर लगायें तथा पुष्प अर्पित करें |अब प्रत्येक दिशा में काली का
ध्यान कर एक-एक पुष्प अवश्य फेंके
इसके
पश्चात साधक काली बीज मन्त्र की पांच माला जप करे, पहली चार माला नमस्कार मुद्रा
में तथा आखिरी माला मुट्ठि बाँध कर शौर्य मुद्रा में संपन्न करें | माला करते समय
कदापि विचलित ना हों |
बीज
मन्त्र-
|| ॐ
क्रीं कालिके स्वाहा ||
“Om kreem kaalike swaha”
तदोपरांत
माँ महाकाली की आरती कपूर से संपन्न करें तथा यंत्र को पूजा स्थान में एक जगह
स्थापित कर दें |
अष्टमी –
यज्ञकी
अग्नि प्रज्वलित कर, सभी देवी देवताओं का ध्यान करें, गुरु मन्त्र की १०8 आहुतियाँ घीं से दे, तदोपरांत नवार्ण मन्त्र का जप करते हुए तिल
और जौ की घी के साथ १०००, या ५०० या १०८ आहुतियाँ दें | इसके पश्चात दुर्गा
सप्तशती के चौथे अध्याय के प्रत्येक मन्त्र का जप करते हुए, प्रत्येक मन्त्र के
अंत में स्वाहा बोल कर आहुति दें, आहुति के समय यग्य कुंड में सामग्री को समर्पण
भाव से अर्पित करें |
इसके
पश्चात यज्ञ स्थान में ही दुर्गा की आरती संपन्न करें, ग्यारह दीपक वाली आरती
श्रेष्ठ मानी गयी है
नवमी विधान-
नवमी
का दिन केवल समर्पण दिवस है, इस दिन सभी शोक, दुःख, पीड़ा समर्पित करें | इस हेतु
साधक स्नान कर, पीले वस्त्र धारण कर नवार्ण मन्त्र का तीन माला जप करें तथा पूरे आठ दिन में जो भी
सामग्री, यंत्र तथा माला को छोड़ कर बाकी सभी को किसी भी श्रेष्ठ नदी, सरोवर अथवा
पीपल के वृक्ष के नीचे समर्पित करें |इस दिन १, ३,५,७,या ९ जो भी संभव है कन्या को
भोजन करायें व परिवार के बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करें
नवार्ण
मन्त्र-
| “ऐं
ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चै” ||
“eng
hreeng kleeng chaamundaayai vicchai”
ये साधना पूर्ण विधान से संपन्न करने से साधक को अपने
अभीष्ट की प्राप्ति होती ही है, और इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है,
सदगुरुदेव प्रदत्त इस साधना को सम्पन्न करें और इसके श्रेष्ठ फल को स्वयं अनुभव
करें क्योंकि जब तक हम स्वयम किसी कार्य या क्रिया करें नहीं उसके बारे में कुछ भी
कहना संभव नहीं ---
****RAJNI
NIKHIL****
***** N P R U *****