वर्षों से लोग पारद के ऊपर परिश्रम कर रहे हैं. लाखो रुपयों का सोना खरीद खरीद कर जला डाला पर नतीजा वाही शून्य . वर्षो परिश्रम कर भस्म बनाई पर वो है की वेधन करने को ही तैयार नही … अब गलती किसकी है क्या क्रिया को दूषण दे. नही यह तो उचित नही होगा क्यूँ की यदि क्रिया ग़लत होती तो उसी क्रिया का प्रयोग कर जितने रस- सिद्ध हुए हैं उन्होंने सफलता कैसे प्राप्त करी.
असफलता के वसीभूत होकर साधक इस विज्ञानं को ही ग़लत बताने लगता है जबकि ऐसा नही है . इन्ही कारणों से इस विज्ञानं को गुरु के मार्गदर्शन में करने के लिए कहा गया है क्यूंकि शास्त्रों में सब कुछ तो नही लिखा गया है न.
तंत्र के अन्य भागो की तरह पारद तंत्र में भी ज्योतिष के द्वारा सही समय के चयन को महत्त्व पूर्ण मन गया है और उस पर शोध किया गया है . श्रेष्ट मुहूर्त में की गयी रस क्रिया सफल होती ही है . कुछ खास नक्षत्रों और कालों में की गयी क्रिया से रस सिद्धि की प्राप्ति होती है. जैसे हस्त नक्षत्र और स्वर्ण सिद्धि मुहूर्त, वेध क्रिया सिद्ध मुहूर्त, ऐसे ही चयनित सप्ताह के दिवसों में भी इन करियों को संपादित किया जाता है .
पारद कर्म में सफलता पाने के लिए कोमल दिवसों को चयनित कर क्रूर दिवस को त्याग दिया जाता है . इसी प्रकार जन्म कुंडली के द्वारा और हस्त परिक्षण कर यह भी देखा जाता है की साधक के ग्रह उसे रस कार्यों के लिए अनुकूलता देते हैं या नही , कही साधक दग्ध हस्त तो नही है , उसकी कुंडली में रस कार्यों की सफलता का योग है या नही.
इसके अतिरिक्त प्रत्येक संस्कार में मंत्रों का भी प्रयोग किया गया है जिससे पारद शक्ति संपन हो कर सफलता दे व वनस्पतियों की उर्जा और मंत्रों की उर्जा से संपन होकर रसेन्द्र बन सके .
जैसे की पारद की नापुन्शाकता , उसकी शंद्ता को दूर करने के लिए उसका संस्कार करते समय निम्न मंत्र का प्रयोग किया जाता है :
नमस्ते विश्व रुपये वैश्वनार्सू मुर्तये
नमस्ते जल रुपये सुत्रतं वपुषे नमः .
यस्मिन सर्वे लिंग देहा ओत प्रोत व्यवस्थिता
नमः पराजय स्वरुपये नमो व्याकृत मुर्तये.
नमः परत्व स्वरुपये नमस्ते ब्रह्म मुर्तये
नमस्ते सर्व रुपये सर्व लक्श्यतं मुर्तये .
इसी प्रकार प्रत्येक संस्कार व पारद के पक्ष छेदन के मंत्र अलग अलग हैं जो की साधक को उसका अभिस्ठ देते हैं और काल ज्ञान व मंत्र ज्ञान के द्वारा रस क्रिया पूर्ण होती है तथा साधक को रस सिद्धि मिलती है .
तो आइये और सद्गुरु के चरणों में निवेदन करे और इन गोपनीय सूत्रों को प्राप्त करके सिद्धता की और कदम आगे करे .
****आरिफ****
आवर्त सारणी (Periodic Table) रासायनिक तत्वों को उनकी आणविक विशेषताओं के आधार पर एक सारणी (Table) के रूप में दर्शाने की एक व्यवस्था है। वर्तमान आवर्त सारणी में ११७ ज्ञात तत्व (Elements) सम्मिलित हैं। रूसी रसायन-शास्त्री मेन्देलेयेव ने करीब १४३ साल पहले अर्थात सन 1869 में आवर्त सारणी प्रस्तुत किया। उस सारणी में उसके बाद भी कई परिमार्जन भी हुए. आज उस सारणी का जो स्वरूप है उसके अनुसार ७९ वें पायदान पर सोना (गोल्ड) है तथा ८० वे पायदान पर पारद (मर्करी) है. यह सारणी तत्वों के आणविक गुणों के आधार पर तैयार की गई है. किस तत्व में कितने प्रोटोन है तथा उसका वजन (mass) कितना है आदि शुक्ष्म विश्लेषण के आधार पर १४३ वर्ष पहले यह सारणी तैयार की गई थी.
ReplyDeleteलेकिन भारत में हजारों साल पहले ग्रंथो में लिखा मिलता है की पारद से सोना बनाया जा सकता है. इस आधार पर हमें मानना होगा की हमारे ऋषियों को किसी भिन्न आयाम से तत्वो की आणविक संरचना ज्ञात थी. एसा माना जाता है की नालंदा के गुरु रसायन-शास्त्री नागार्जुन को पारद से सोने बनाने की विधी ज्ञात थी. लेकिन वह ज्ञान हमारे बीच से लुप्त हो गया है.
आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता है की पारद को सोने में परिवर्तित किया जा सकता है. आणविक त्वरक (Atomic Acceletor) या आणविक भट्टी (Nuclear Reactor) की मदत से पारद के अनु में से कुछ प्रोटोन घटा दिए जाए तो वह सोने में परिवर्तित हो जाएगा. यह प्रविधी महंगी है लेकिन संभव है यह आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता आया है.
विकसित मुलुक पारद को सोने में परिवर्तित करने की सस्ती प्रविधी पर निरंतर शोध करते आए है. क्या चीन तथा अमेरिका आदि विकसित मुलुको ने कृत्रिम रूप से सोना बनाने की सस्ती प्रविधी खोज ली है. पिछले दिनों जिस रफ़्तार से सोने के भावों में तेजी लाई गई उससे इस आशंका को बल मिलता है.
विश्व में सोने की सबसे ज्यादा खपत भारत में है. सोना अपने आप में अनुत्पादनशील निवेश है. अमेरिकी सिर्फ आभूषण के लिए सोना खरीद सकते है. अमेरिकी कानून के तहत निवेश के लिए स्थूल रूप (बिस्कुट या चक्की) के रूप में सोना रखना गैर-कानूनी है.
एक अमीर मुलुक ने सोने के निवेश पर बन्देज लगा रखा है लेकिन भारत में लोगो की सोने की भूख बढती जा रही है. लोग अपनी गाढ़ी कमाई को सोने में परिवर्तित कर रहे है. आज भारत एक ग्राम भी सोना उत्पादन नहीं करता लेकिन विश्व का सबसे बड़ा खरीददार बना हुआ है.
जिस दिन कृत्रिम स्वर्ण बनाने की प्रविधी का राज खुलेगा उस दिन सोना मिट्टी हो जाएगा. हमारी सरकार स्वर्ण पर रोक क्यों नहीं लगाती? हमारे स्वर्ण-पागलपन को ठीक करने के लिए समाज सुधारक क्यों नहीं आंदोलन करते है?
हमारे पास पूंजी के अभाव में स्कुल नहीं है, सडके नहीं है, ट्रेने नहीं है. हमारी पूंजी सोने में फंसी है. जिस दिन वह पूंजी मुक्त होगी हम फिर से सोने की चिड़िया बन जाएगे.