Tuesday, November 25, 2008

कच्छप श्री यंत्र के गूढ़ रहस्य

वो यन्त्र जो भौतिक समृद्धि और ऐश्वर्या का प्रतिक मन जाता है और जो सर्व विध मनोकामना की पूर्ति करता है निश्चित ही सिर्फ़ श्रीयंत्र ही हो सकता है.हजारो लाखो वर्षों से सम्पनता का प्रतिक यही रहा है.
कभी सदगुरुदेव ने बताया था की जहा लक्ष्मी साधना से प्राप्त धन उनके चांचल्य गुणों के कारन सहज ही नही पास में रुकता और उसे स्थाई करने के लिए उसका अबद्धिकरण आवश्यक होता है वही श्रीविद्या या श्रीयंत्र से प्राप्त धन और ऐश्वर्या न सिर्फ़ वरदायक होते हैं अपितु शुभता के साथ स्थाई भी होते हैं .
आख़िर क्या है श्रीयंत्र की ज्यामितीय संरचना में जो की आज भी अबूझ पहेली बनकर विदेशी शोधकर्ताओं के सामने राखी हुयी है.यह तो नितांत सत्य है की इसके प्रत्येक रेखा में कई कई शक्तियां जो की जीवन को श्रेष्टता देती हैं आबद्ध हैं.
और जब इस यन्त्र राज के साथ श्री सूक्त का सम्बन्ध हो जाता है तो फिर आभाव को तो समाप्त होना ही है.
पर इसके विभिन् भेड़ों में से प्रत्येक भेद एक अलग प्रभाव से युक्त है. सदगुरुदेव ने बताया था की प्रत्येक राष्ट्र की भौतिक व अध्यात्मिक उन्नति के सूत्रों का अंकन किसी आकृति के रूप में कर दिया जाता था और उस रहस्य को समझ कर तदनुरूप क्रिया करने पर वे सूत्र साकार हो जाते हैं और ऐश्वर्या की प्राप्ति होती ही है.हमारे राष्ट्र की सर्वांगीं उन्नति के गुह्य सूत्रों का अंकन श्रीयंत्र के रूप में किया गया है.यह तो हम सभी जानते हैं की श्रीयंत्र की साधना से सफलता की प्राप्ति होती है.पर श्रीयंत्र का सबसे बड़ा रहस्य तो यह है की उसमे पारस , सिद्ध सूत और स्वर्ण निर्माण के सूत्र हैं जो ज्यामितीय रूप में अंकित हैं और वही श्री सूक्त उन क्रियाओं का शाब्दिक रूप से अंकन है. और सदगुरुदेव ने स्वर्नातान्त्रम, स्वर्णसिद्धि, अल्चेमी तंत्र में इसका उल्लेख भी किया है.श्री यन्त्र का सुमेरु कच्छप भेद के ऊपर तनिक विचार करेंगे तो आप को स्वयं ही समझ में आ जाएगा की वो रहस्य क्या है बस आपने रस्विज्ञान का थोड़ा अभ्यास किया हो ...... अरे भाई कच्छप सुमेरु यन्त्र की आकृति कैसी होती है ?
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अरे नीचे एक कच्छप होता है,उसके ऊपर सुमेरु आकर में यन्त्र जो उस कच्छप की पीठ पर अवस्थित होता है .और उस सुमेरु के सर्वोच्च बिन्दु में ऐश्वर्यदात्री लक्ष्मी अवस्थित हैं.रस तंत्र में कच्छप यन्त्र का बहुत महत्व पूर्ण स्थान है,जिसके द्वारा शिव वीर्य की शक्ति राज से क्रिया करी जाती है मतलब गंधक जारण कराया जाता है और तब पारद रसेन्द्र पथ पर अग्रसर होता है.इसी क्रम में दिव्या वनस्पतियों या सिद्ध तत्वों से क्रिया कराकर पारद को सिद्ध सुता और स्वर्ण में परिवर्तित किया जाता है और यह सब होता है इसी कच्छप श्रीयंत्र में.
जिसमे यन्त्र भूमि के नीचे होता है जो की नीचे से पानी में हल्का सा डूबा रहता है.और उस यन्त्र के ऊपर अजस्र या निश्चित मात्र में अग्नि का प्रयोग किया जाता है,और यही अग्नि जिसका प्रतिक उर्ध्वमुखी त्रिकोण है उस कच्छप जो की भूमि में छुपा हुआ है पर अवस्थित रहता है .अब जब उस अग्नि के द्वारा उस यन्त्र में सिद्ध रस का मंथन होता है तो उस अग्नि रुपी पर्वत के शीर्ष पर लक्ष्मी को उपस्थित होना ही पड़ता है.और अपने वरदान से साधक को उसका अभिस्थ फल देना ही पड़ता है।


****आरिफ*****

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