Tuesday, December 14, 2010

Surya VigYan, Paarad Tantra and Vashikaran




पदार्थ परिवर्तन कितना अच्छा लगता है ना सुनकर, एक पदार्थ का दूसरे पदार्थ में रूपांतरण. सदियों से इस विषय को समझने की सीखने की पर,ये सिर्फ पढ़ने और सुनने में ही सहज लगता है ये विषय इतना सरल है नहीं और ना ही इस विषय के रहस्य ही इतने सहज प्राप्य है की जिनका ज्ञान पाकर हम इस दिव्य विषय में पारंगतता हासिल कर सके. एक बात मैं आपको बता दूँ सदगुरूदेव ने इस विषय को न सिर्फ जन सामान्य के लिए सरल रूप में प्रस्तुत किया अपितु विषय की गोपनीयता को भी सूत्रबद्ध रूप में सभी शिष्यों के समक्ष रख कर इस दुष्प्राप्य विषय को समझने और सीखने में सहज कर दिया. ‘सूत रहस्यम’ एक ऐसा ही ग्रन्थ है जिसमे मैंने सूर्य विज्ञानं और पारद तंत्र के अत्यधिक गोपनीय रहस्यों को सदगुरूदेव के द्वारा प्राप्त कर लिखा है. उसी ग्रन्थ में से कुछ विधियों और रहस्यों को क्रमशः ‘तंत्र-कौमुदी’ के इन पन्नों पर प्रति अंक हम देते रहेंगे. इस बार का ये लेख उसी की कड़ी है.
   १९७१ में विज्ञानं ने ९२ अणुओ की खोज की और बताया की ब्रह्माण्ड में इतने ही अणु हैं इससे ज्यादा नहीं, १९८७ में पुनः घोषणा की गयी की १0३  अणु होते हैं. मतलब समझे आप, अरे नहीं समझे , अरे विज्ञानं की गिनती बदलती रहती है समयानुसार क्यूंकि उसकी रहस्यों का खोज केंद्र बहिर्गत होता है और इसी कारण आज भी वो सम्पूर्ण १४७ अणुओं को नहीं खोज पाया  पर अध्यात्म का खोज केंद्र होता है अन्तःगत. और सहस्त्राब्दियों पहले ही सिद्धाश्रम ने ये स्पष्ट कर दिया था की १४७ अणु होते है, और ये समस्त अणु उपस्थित होते हैं सूर्य की रश्मियों में. सूर्य की वे रश्मियाँ जिनका परोक्ष रूप से रंग श्वेत दृष्टिगोचर होता है वस्तुतः वे ७ अलग अलग रंगों से युक्त होती है तथा जिनका संयुक्त रूप सफ़ेद ही दिखाई देगा. बैंगनी, जामुनी,नीला,हरा, पीला,नारंगी और लाल ये सात रंग होते हैं इन किरणों के. वेदों में सूर्य को ७ अश्वो के रथ पर आरोहण करते हुए बताया है तो उसका बहुत ही गूढ़ अर्थ है. अर्थात सूर्य विज्ञानं को यदि समझना हो तो पहले उसकी ७ वर्णीय किरणों को समझना होगा. प्रत्येक किरण २१ अणुओं के गुणों से युक्त होती है, इस प्रकार ७X२१=१४७ हो गए ना. प्रत्येक अणु का अपना गुण होता है.     
  समग्र सृष्टि इन्ही १४७ अणुओं से निर्मित है , चाहे कम हो या ज्यादा पर है इसी से निर्मित, जैसे एक कागज २१ अणुओ से निर्मित है तो स्वर्ण ९७ अणुओ से निर्मित है, इस प्रकार अणुओं की संख्या प्रत्येक वस्तु या प्राणी में भिन्न भिन्न होगी. और सूर्य विज्ञानं का मूल ही ये है की यदि उन अणुओं को उनके गुणों को समझ लिया जाये तो पदार्थ का रूपांतरण सहज हो जायेगा. प्रत्येक अणु का अपना गुण है, अर्थात १४७ अणुओं के अपने अपने गुण हैं जिन्हें समझने के बाद निर्माण और रूपांतरण की क्रिया सहज हो जाती है क्यूंकि ये क्रिया ब्रह्म क्रिया है संजीवन क्रिया है,इसके लिए साधक को सद्गुरु प्रदत्त ब्रह्म मंत्र का अपने मुख से उच्चारण करने का अभ्यास करना पड़ता है उस क्रिया में सिद्ध होना पड़ता है, और मैं आपको बता दूँ की मुख का अर्थ जिव्हा, कंठ, दांत,श्वास या आहार नली नहीं होता मुख का अर्थ होता है नाभि, जब मंत्र स्वाधिष्ठान का अर्थ ही होता है स्वयं का अधिष्ठान , भवन या घर जहा से मंत्र नाभि तक पहुचता है और नाभि तक पहुच कर समस्त वायु और उपस्थित अग्नि की ऊर्जा से तेजोमय होकर जीवन देता है पदार्थ या जीव को. और जिस भी साधक को ये मंत्र सिद्ध होता है वो नवीन सृष्टि का सृजन कर सकता है जीवन दान दे सकता है, भगवान कृष्ण ने अपने गुरु संदीपन ऋषि के पुत्र को, अभिमन्यू  पुत्र परीक्षित को ऐसे ही तो जीवन दिया था और १९८४ की अमरनाथ यात्रा में सदगुरूदेव द्वारा सुमित्रा को पुनः जीवन देने की घटना कौन भूल सकता है, प्रत्येक किरण जिनका अपना वर्ण या रंग होता है उनका स्वामी एक ब्रह्मऋषि होता है और होता है उनका अपना एक मंत्र,याद रखिये ये मंत्र २१-२१ विशेष अणुओं के गुणों से युक्त होते हैं और इन मन्त्रों के बीजाक्षरों का परस्पर सम्पुट पदार्थों के गुणधर्म या संयोजन के अनुसार किया जाता है जिसका ज्ञान साधक को सद्गुरु प्रदान कर देते है, तब साधक यदि स्वयं के शास्त्र रूप्नो का निर्माण करता है तो विभक्त कर लेता है उसी अनुरूप अपनी आत्मा को भी(इस विषय की गूढता तो आगे आने वाले अंको में स्पष्ट की जायेगी, क्यूंकि इसी विषय पर १००० पन्ने लिखे जा सकते हैं) ,पदार्थ तो प्रकृति में सदैव ही उपस्थित रहते हैं ये अलग बात है की वो दिखाई ना दे पर जब किसी भी शक्ति या उपादान के माध्यम से उनके घटक अणुओं का परस्पर योग कर दिया जाये तो वे प्रकट अवस्था में दिखने लगते हैं. एक सूर्य विज्ञानी या रस शास्त्र का ज्ञाता ये भली भांति जानता है की उसे कब किस अणु को पकड़ना है और कब उसका किसी और अणु से योग या विखंडन करना है,महत्वपूर्ण यही है की कब उन अणुओं को किस तरीके से विभक्त किया जाये और कैसे उनका योग कर किसी नवीन पदार्थ की प्राप्ति की जाये. और ये भी अत्यंत दुष्कर कार्य है , याद रखिये पढ़ने में कितना आसान लगता है न अणुओं को विभक्त कर उनका योग करना, पर ऐसा है नहीं क्यूंकि यदि सही तरीके से विखंडन या संलयन की क्रिया न हो पाए तो जो ऊर्जा मुक्त होती है वो अत्यधिक विनाशकारी होती है और कई सदियों तक अपने विनाश से मानव संस्कृति और जीवन को प्रभावित कर देती है, मुझे पता है हिरोशिमा और नागासाकी को आप भूले नहीं होंगे. खैर मैं आपको इतना बता दूँ की इन किरणों का योग या विखंडन करते समय २ महत्वपूर्ण उपादान होते हैं जिनका प्रयोग करने से सफलता मिलती है १. १४७ फलको से युक्त लेंस जिसमे से भिन्न भिन्न अणुओं से युक्त किरण ही गुजर सकती है और जिसको गति देकर उससे मनोवांछित तत्वों के अणुओं का योग कराया जा सके और दूसरा “अणु सिद्धि मार्तंड गोलक” जिसको योगी अपने गले में धारण करते है और जिसके द्वारा बगैर लेंस के भी अणुओं को विभक्त या संलयित किया जा सकता है. इसका निर्माण ही अत्यंत दुष्कर है, और जिसे प्राप्त कर उन सप्त मन्त्रों को सहज ही सिद्ध किये जा सकते हैं जिन्हें सप्त ऋषि मंत्र कहा जाता है और जो की १४७ अणुओं को सिद्ध करने में प्रयोग किये जाते हैं. इस गुटिका और लेंस का निर्माण पारद के द्वारा ही होता है या ये कहना चाहिए की सूत के द्वारा होता है ऐसे सूत के द्वारा जिस पर २२ संस्कार हो चुके हो क्यूंकि १८ संस्कार के बाद पारद विपरीत गति करने लगता है अर्थात भस्म रूप से पुनः जीवित होता हुआ ठोस और द्रव्य की अवस्था में आने लगता है तथा २२वे में पूरी तरह पारदर्शी और सृजन क्षमता से युक्त हो जाता है , ऐसे पारद से ही अणु सिद्धि मार्तंड मंत्र का लोम विलोम प्रयोग कर इस प्रकार का गोलक और लेंस निर्मित किया जाता है. ये क्रिया अत्यंत दुष्कर और गोपनीय है.
   सूर्य तंत्र के अंतर्गत असाध्य तांत्रिक क्रियाओं को भी सरलता से संपन्न किया जा सकता है जैसे लक्ष्मी प्राप्ति के लिए आर्क भुवनेश्वरी की साधना का विधान है तो वशीकरण के लिए पुंजीभूत सूर्य वशीकरण मंत्र की साधना का, यहाँ मैं उसी वशीकरण प्रयोग को उल्लेखित कर रहा हूँ. जिसके द्वारा सभी नवग्रहों की शक्ति को अपने अनुकूल बनाते हुए लक्ष्मी तक का वशीकरण किया जा सकता है सामान्य मनुष्य की तो बात ही छोडिये और जो मुझे सदगुरूदेव ने इस ग्रन्थ के लिए बताया था और जिसका प्रयोग कर मैंने लाभ भी लिया.
रविवार की प्रातः से इस मंत्र का प्रयोग किया जाता है. दिशा पूर्व रहेगी, वस्त्र वा आसन सफ़ेद होंगे. सूर्योदय के पूर्व स्नान कर सूर्य को कुमकुम मिले जल का अर्पण कर उनकी पूजा करे और उनसे तथा सदगुरूदेव से पूर्ण सफलता की प्रार्थना करे. बाद में आसन पर बैठकर दैनिक साधना विधि के अनुसार गुरु पूजन कर धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित कर गुरु मंत्र की १६ माला करे रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र की ११ माला जप करें ये क्रिया अगले रविवार तक करनी है. इसके बाद जब भी इस मंत्र का प्रयोग करना हो तो अमुक की जगह साध्य पुरुष या स्त्री का नाम लेकर १०८ बार जप ३ दिनों तक करें. प्रभाव देखकर आप खुद आश्चर्य के सागर में डूब जायेंगे.
    ॐ नमो भगवते श्री सूर्याय ह्रीं सहस्र किरणाय ऐं अतुलबल पराक्रमाय नवग्रहदशदिक्पाल लक्ष्मीदेवताय धर्मकर्मसहिताय अमुकनाम नाथय  नाथय मोहय मोहय आकर्षय आकर्षय दासानुदासं कुरु कुरु वशं कुरु कुरु स्वाहा .
   ‘सूत रहस्यम” के पन्नों में उद्धृत ऐसे कई रहस्य जो की लगातार प्रत्येक अंक में खुलने को बेक़रार हैं , तो प्रतीक्षा कीजिये अगले अंक का किसी नवीन रहस्य के उद्घाटन के लिए.     



No matter how good it feels to hear changes, conversion of a substance in another substance. Since centuries had been went on this subject of learning to understand, it just feels comfortable in reading and hearing this matter but is not so simple nor the subject of the mystery is attainable so comfortable that by having knowledge about this and we will became scolar in it..Is is that easy? What does u think? let me tell you one thing, Sadgurudev not only publicly presented as simple but also formulated the privacy of the subject as before to put all pupils understand the rare subject and be comfortable in learning. 'Soot Rahasyam' is one such text in which I highly classified the secrets of the Sun science and Alchemy Tantra which i received by Sadgurudev. Some of the methods and secrets to the same texts respectively 'Tantra-Kaumudi' We will keep these pages per issue. This article is one of the link of the same this time.

In 1971, the 92 molecules were discovered in science and reported a similar molecule in the universe are no more than that, in 1987, the 115 molecules were re-announced. Did u get the meaning or you understand, Ohhh didnt understand,  varies over time because the number of science discovery center of his secrets is salient and hence still can not find that the entire 147 molecules is the spiritual center search. And millennia before it were made clear that the 147 Siddhashram molecules and all molecules that are present in the sun rays. Sun rays that their indirectly color white is visible fact they are equipped with 7 different colors and that joint will appear white. Purple, blue, green, yellow, violet, orange and red colors that are seven of these rays.7 Ashva chariot of the sun in the Vedas, the ascent is described then it is very esoteric meaning. If you understand the science that is before the sun rays to understand its 7 letter. Each beam 21 properties containing molecules, thus 7X21 = 147....Isnt it hnna? So each molecule has its own merits.

The whole universe is made up of 147 molecules, whether more or less based on this only, as if a paper is made from 21 molecules and gold by 97 molecules, thus the number of molecules will be different in each object or creature. If we understands the the Sun Science core, the molecules their properties will be easy and seamless conversion of the substance. Each molecule has its own merits, ie 147 molecules to understand their properties after the construction and conversion that is comfortable because every one have it's action animation divine action, for it provided Sadhguru seeker divine spells from your home have to practice to pronounce the mantra and has to be proven, and let me tell you the meaning of the mukh is  Jiwha, throat, teeth, mouth breathing or does not feed tube,actually it means ‘navel’,the meaning of the mantra swadhishtana is of the self-installation, building or home is where the mantra and reached to navel and through all the air and present glory of the energy of fire gives life’s substance or organism and the mantra that the seeker has proven he can create new creation can donate life, Lord Krishna, the son of his master stimulus sage, Abhimanyu son was tested and so life like that of 1984 Amarnath Yatra Sadgurudeo in the event to life to Sumitra. Who can forget this hnnnna? That each beam color is your character or his owner is and is a Brahmrishi their own spells, this spell 21-21 Remember the special properties of molecules are equipped with these Mantras
Beejaksharoan feature or combination of substances according to the cross Sampaut and which is provided to sadhak by his Sadguru  and turn that knowledge seeker, then you own scriptures Rupno seeker makes up the split takes the same suit your soul  the upcoming points of the subject will be clear, because this subject can be written over 1000 pages), the nature of matter always present in the live show he's not giving it is different when any power or mutual aid through the sum of their component molecules must be delivered to start appearing in the condition they appear.A Sun scientist or a scholar of Ras shastra when he knows very well how these molecules and how to catch her yoga or some other molecule to fragmentation, when the key is that which way the molecules to be done and how to split Let them do yoga a new material receipt. And it is also extremely difficult task, think how easy it is to read Remember not to split the molecules to their totals, but it is not the right way because you can not fission or fusion of the action so extreme that the energy is free is disastrous for many centuries and their destruction does influence human culture and life, I know you would not ve forgotten the Hiroshima and Nagasaki case. Are you? Well I shall tell you the sum of these rays or fission while 2 are an important factor that brings success to us.1.Aflao containing 147 different molecules containing the beam from which the lens can pass and speed by which the sum of her wishful elements molecules can be made and another "Anu siddhi Maartnde golok" which Yogi wear around your neck and by which without lenses or Sanalyith the molecules can be separated. The building itself is extremely difficult, and find that the seven Mantras can be proven that the comfortable mantra is called Sapta Rishi to prove that the 147 molecules are used. The pill and manufacture of mercury by itself is Lens or should say this is by cotton yarn by such rites have been over 22 are the values after 18 because mercury that is consumed by contrary motion seems to live again have been solid and liquid curve seems to come and 22 they completely transparent and generating capacity that consists of is, like mercury the molecule accomplishment Maartnde spells hair inverted using this type of eyeball and lens made is. The action is extremely difficult and confidential.

Under the Surya Tantra unworkable Tantric actions also can be easily performed as to achieve Lakshmi the legislation of the process of Arc Bhubaneswari,for hypnotising the punjibhut sun to Vashikaran mantra sadhana, here I am specifying similar use.Through which the Nine planets power making their friendly for us and the Lakshmi vashikaran can also happen.leave the common man spell and what ever Sadgurudeo taught me from these texts and to which I use and got advantages.


So from Sunday morning the mantra chanting can be started.Direction should be towards east and shall be white clothing or asan posture. Take bath and Get read before sunrise and offer the water mixed with kumkum before sunrise to sun and should worship them and ask them to make offerings and pray for success from Sadgurudev. After sitting on the asana daily meditation and worship the Sadgurudev in accordance with law to worship the sun, offer the sweets i.e. navedya and guru mantra should be done by rudraksha rosary beads for 16(beads malas) chanting, then following mantra 11 malas to make it to till next Sunday's action. Then if you want to use this mantra whenever feasible instead of a certain man or woman by name 108 times chanting to 3 days. Hmmmm isn’t it good! Now you will see urself immersed in an ocean of surprise effect.

Om namo bhagwate shri suryaay hreem sahastra kirnaaya aim atulbal 
parakramaaya navgrah dashdikpaal lakshmidevtaaya 
dharmakarmasahitaaya amuknaam naathay naathay mohay mohay 
aakarshay aakarshay daasanudaas kuru kuru vasham kuru kuru swaha.


 "Soot Rahasyam”quoted in the pages of many secrets who constantly are impatient to open up in each issue infront u,so my dear reader just wait and watch the next issue for the opening of a new mystery.





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****ARIF KHAN****

5 comments:

  1. dear & dears
    If we do this sadhna for ourself then..... we have to speak 'mam' in place of 'amuknam' is it right or i have to speak myNAME
    Rahul

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  2. Dear brother , you are right, your name is better . since that is already mentioned in the prayog regarding mentioning name .smile

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  3. Respected,

    Please tell the meaning of this Surya Mantra in Hindi. Tell me what is meaning of "naathay naathay" in this mantra.

    If I want to chant this mantra not for me but other such "Saroj" became under the "Munish".

    Can I chant it as

    Om namo bhagwate shri suryaay hreem sahastra kirnaaya aim atulbal
    parakramaaya navgrah dashdikpaal lakshmidevtaaya
    dharmakarmasahitaaya Saroj Munish ke naathay naathay mohay mohay
    aakarshay aakarshay daasanudaas kuru kuru vasham kuru kuru swaha.

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  4. raDear Guru Bhai,

    Could you please tell me if we have to use any specific Yantra and Mala for this apart from Rudraksha Mala for Guru Mantra. I checked with Jodhpur Gurudham today but could not get any related information.

    Thanks alot for posting this.
    JaiGurudev
    Sharan

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