Sunday, February 27, 2011

Sadhna Me Safalta- Sadhna Me Mann Kaise Lage




हमसभी जानते हैं की हम सभी जल्दी से सिद्धता चाहते हैं , साधनाओ  में परिपूर्णता सभी को चाहिए , सभी दिव्य  शक्तिया  हमारे वश में हो, पर कभी हमने ये सोचा हैं की  हमने अपने आप को साधने  के बारे में किसी से बात की कभी गुरुदेव जी से कहा की आप वो रास्ता बताओ जिसके माध्यम से में अपने आप को साध सकूँ,अगर में सही हूँ तो हम सभी ऐसे ही हैं, और तो और क्या बिना साधना के सिद्दियाँ  मिल सकती हैं,
अगर अभी कोई हमारे पास आके कहे की वहां पर  कोई बैठा हैं जो  एक दिन में सिद्ध बना देगा , तो हम मेंसे अधिकतर   क्या करेंगे ?? बताने की जरुरत नहीं हैं, क्योंकि हम व्यापार करते हैं पर यह जो हमने शिष्य  रूपी धोका देने की  ओट ली  हैं भला सदगुरुदेव जी से कैसे छुप सकती हैं.

 हमें सबसे पहले  ये साधना कोई सिद्ध करा दे फिर हम मानेगे ? क्या करें हमारे आज तक के जीवन की  कमाए ही ये हैं. पर साधना तो करनी ही पड़ेगी उन्हें  चाहे कितने भी जय कर लगा लो नाच लो ,गुरुदेव का घोष कर लो हम और आप धोका दे ही नहीं सकते,
 तो क्यों नहीं हम अपना मानस बना कर साधक बने शिष्यता  तो बहुत दूर  की बात हैं. 
चलो उनसे आशीर्वाद  भी ले लिया , मन्त्र भी ले लिया, उनके वरद हस्त से  दीक्षा भी प्राप्त कर ली, आसन भी सिद्ध हो गए पर मन ही नहीं लगा तो क्या किया, सारा मेहनत बेकार.बेमन से की गयी साधना क्या उतना फल देगी जो की हमारे मानस में हैं.पर जब बिना साधना के  सिद्धिया नहीं मिलेंगी  तो  चले  ध्यान दे, की कैसे करे साधना.

केबल मंत्र ले लिया ,यन्त्र सामने रख कर जप चालू कर देना साधना  नहीं हैं बल्कि  सारा जीवन ही एक साधना  हैं , हर पल एक  साधना हैं जिसने इसे समझ लिया  बस वो  नदी पार कर गया.और हमने  मात्र कुछ माला की ओर हमारे कर्त्तव्य की इतिश्री  हो गयी.

सदगुरुदेव जी के एक शिष्य से मैंने पूछा - की मन  जप में नहीं लगता हैं ओर बार बार घडी देखता हूँ की कितना समय हो गया  हैं,  क्या ऐसा हो सकता हैं की में साधना में डूब जाऊं ,

क्यों नहीं  ये हो सकता हैं .

पर कैसे  हो ये सब ???

कभी प्यार किया हैं .

मैंने कहा  भाई, मैंने भी सदगुरुदेव द्वारा  लिखित ये कहानी पढ़ी  हैं  जिसमें रावन द्वारा  एक व्यक्ति के प्रशन पूछे जाने पर  रावन बार बार यही उससे पूछते  हैं  आप ये सब न सुनाओ .आप तो बताओ कोई मन्त्र जिससे एक दम से मन लगने लगे.

आप अपनी साधना से वैसा ही स्नेह करो जो की आप अपने किसी भी सर्वाधिक स्नेही से करते हो , और मानो आप उसके पास ही बैठे हो , तब बताओ आपको समय का पता चलेगा .

नहीं ,ये बात तो सही हैं.

तो फिर सदगुरुदेव ओर अपनी साधना के साथ ऐसा क्यों नहीं  करते.

 पर ये हो कैसे ????

आपको स्नेह करना कौन सिखा सकता हैं ,ये तो आपके अंदर  हैं ही इश्वर का वरदान हैं ..

पर फिरभी कुछ तो बोले  इस विषय पर .

आपने सदगुरुदेव द्वारा लिखित  " फिर  दूर कहीं पायल खनकी "पढ़ी  हैं

 नहीं  ,यहाँ तक की कभी इस किताब को लेने का सोचा भी नहीं . 

 क्यों नहीं   ली  ये किताब..

अरे इसका साधना से  क्या लेना देना ,मुझे तो साधनात्मक ही  किताबे  ठीक लगती हैं .

फिर आप ले कर पढो इसे ,तब पता चलेगा , की साधना प्रारंभ करने से पहले  क्या  भाव भूमि साधना  के लिए होनी चाहिए

अभी दिल्ली गुरुधाम से वापिस आते समय  ये किताब मैंने ली ,रस्ते में पढ़ ता जा रहा था .

सदगुरुदेव जी कह रहे थे .. जब तुम कहते हो की मैंने प्रेम किया  या कोई कह रही हैं की में प्रेम करती हूँ, दोनों ही असत्य उच्चारण  कर रहे हैं.” कर रहे हैं “का मतलब  ही हैं की कोई और भी हैं , और जहाँ  कोई और हैं वहां प्रेम हो ही नहीं सकता . ये करने की नहीं, होने  की क्रिया  हैं,...

में तो पहला  पेज   ही पढ़ कर अवाक्  सा  रह   गया . 

आगे के  पेजों मैं  सदगुरुदेव , साधना  कैसे करे, मन, ह्रदय को कैसे    प्रेम मय और जीवन को साधनामय  बनाये .ओर प्रेम तो केबल और केबल सदगुरुदेव जी से ही हो सकता हैं , अन्य किसी से तो  हमारा सम्बन्ध ,वासनात्मक   ही रहता  हैं कम या ज्यादा   ये बात अलग  हैं . पर विशुद्ध   प्रेम  स्नेह तो केबल और केबल सदगुरुदेव  से ही हो सकता हैं.

आप सभी इस अद्भुत किताब को  पढ़े, ओर सम्पूर्ण प्रेम मय सदगुरुदेव भगवान् को तो प्रेम मय स्नेहमय बनके ही  ह्रदय  मैं स्थपित किया जा सकता हैं ,

 तो प्रिय  गुरु भाइयो  /बहिनों  हम जब भी साधना  करे ये निश्चय ही मन कर चले की हम अपने सदगुरुदेव जी की जीवंत उपस्थिति मैं ही  उनके समक्ष  साधना कररहे हैं , वही हमारे   इष्ट हैं , वही श्याम वही राम ,  जब हर पल सदगुरुदेव जी के स्नेह में जीवन डूबने लगेगा , उनकी उपस्थिति का भान होने लगेगा , तब जीवन पूर्ण रूप से साधना मय हो जायेगा , तब हमें साधना करनी पड़ेगी नहीं, अपने आप  हो जाएगी , तब बार बार समय नहीं देखना  पड़ेगा , बल्कि  समय ही स्थिर सा हो जायेगा , मन को दबोचना नहीं पड़ेगा बल्कि मन उनके ही रंग मैं रंग जायेगा.

शब्द कम पड़ रहे  हैं, पर मैं  ह्रदय के विषय को शब्दों मैं कैसे समेट सकता हूँ.  इस तथ्य की व्याख्या वे ही कर सकते हैं मैं नहीं ....

आप सभी  ही नहीं बल्कि आपके  जीवन का हर क्षण  क्षण  पूज्य पाद सदगुरुदेव जी के  स्नेह से आपूरित हो ........

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All  of us want to get siddhita early and everyone want to get completeness in sadhana as early as possible , and all of us wanted to have control on all the divine powers. But ever we thought that, ever we  want to have control on our self ?,neither we ask to Gurudev ji  that plz  show me the way  , through that I can get  siddhita on self. If I am true we all are like that ,even many of us want siddhitta even without doing any sadhana.
If someone came  to us and said  there is someone, who can give you siddhita in one day, what many of us  will do ? need not to discuss, since we do only business, we take refuge  in the name of shishyata. But how can this    hide from Sadgurudev ji  eyes.
We first get siddhi than we will  believe. what we can do since this is our whole life earning, but we have to do sadhana whether make so much “jai kara” or dance in the name of Sadgurudev  but can we hide our realty  in his eyes. Than why not we  do sadhan as a sadhak , being a shishy a very long  distant thingsEven if we took diksha , took mantra, have asan siddhi , but still not having willingness to do sadhana , than what will be the outcome. if we does sadhana with lesser heart than it will not serve the purpose and not able to produce the result as we needed.
When we know that without full heart sadhana will not produce  the desired result than why not try to learn how to do the sadhana …
Take a mantra and start mantra jap in front of the yantra is only  not a sadhana but whole life is it self a sadhana, each moment passing by is a sadhana, those who understand this, can easily cross the path ,and we do some mantra jap and think that our sadhana is complete, and our responsibility is over.
Once I had ask to a shishy of Sadgurudev ji – I am not able to make my minds as it should be in sadhana ,I watch the clock from little time interval that what time has been passed, is there any way through that I can fully absorbs in sadhana.???
Why not , this can happen.
But  how can this be  possible.???
Have you ever been in love.?
I replied. Bhai, I also read this story written by Sadgurudev ji , in that Ravan asked to  a person this question in reply to his queries, so please do not again  repeat the story. Tell me some mantra through that, suddenly my wondering mind  became  concentrate only on sadhana.
Than do sadhana as  if you are sitting with your most beloved one  ,than  can  you think about that time passing by.
 Yes this is true.
Than ,why not do the same things with Sadgurudev and your own sadhana.??
But how this can possible???
Who can teach you how to love your Sadgurudev ,this is already is inside you, is a gift of god to every one.
Tell me something about on this subject.
Have you ever read Sadgurudev ji written book “phir door kahin payal khanki”
No, not even thought to buy that .
Why not have that book??
What it has relation with  sadhana, I like most  the sadhana related books.
Than  purchase it and read it, than you will able to know what is the pre mental  condition  to have /start a sadhana one must have.
Recently I purchase d this book and start reading while returning
Sadgurudev ji  written  in that—when you  said I love you , or she says that she loves you , both are speaking wrong (not true). Till that the action of  doing or did is there, at least love does not there. It is not the things of doing it is a things of being. since doing means there is some one else, but in love only one exists.
 I just still , reading only the preface theses lines ..
In  coming pages ,Sadgurudev written about how to do sadhana, mind ,heart how can be  filled with joy and love, true and real love can only be possible with  Sadgurudev ji, and our relation with other generally stand on some desire  hidden or outer  as the case may be , but true love can be happened with Sadgurudev only.
All of you  must read this book  once , and than  easily can understand how  the  Sadgurudev  Bhagvaan can be   sthapit inside your heart.
So my dear brother /sister, whenever we sit for sadhana, always have in our heart  that we are doing  this sadhana is in Sadgurudev  divine presence . he is our isht, he is our krishn ,and Ram , when each passing moment is filled with divinity of Sadgurudev presence, than  filled with joy, whole life completely  be a sadhana.    Than we do not need to do sadhana, sadhana will automatically be done. Than we do not continue to watch the time, time will be stand still there. Should not control the man (mind),but mind itself absorbs in  Sadgurudev ji.
 Running out of word, how can I can justified the  subject dealing with Sadgurudev ji’s love, he and he only can define  that  I am not…….
All of you and your life each moments  be filled with Sadgurudev ji divine love, and sadhanamay  ho…….
smile
****ANURAG SINGH****

Saadhna Me Safalta- Aasan siddhi



बाइबल में  कहा गया हैं कि इच्छा तो  बहुत थी पर  शरीर ही कमजोर था, हम सभी साधना  करने के तो बहुत ही इच्छा रखतेहैं पर  मन स्थिर तो बहुत दूर   की बात हैं शरीर ही स्थिर हो  जाये  इतना ही प्रारंभिक स्तर  पर एक बहुत ऊँची  छलांग हैं, हम में से कुछ  आधा घंटा  तो कुछ  एक घंटे भी बैठ पाए  और बिलकुल  मूर्ति  रूप  के साथ तो १० से १५ मिनिट भी बहुत हैं . तब सफलता कैसे  हम चाह सकते हैं .
चाहे हम बात कितनी भी बड़ी बड़ी कर ले , पर सच्चाई तो हम सभी जानते हैं ही ,   
पर बिना इसके  कैसे  बढे अपनी मंजिल सदगुरुदेव जी के श्री चरणों की ओर,जब तक आसन सिद्धिता  न मिल पाए तब तक कैसे ये राह  कटे. सदगुरुदेव भगवान कहते  हैं  - जब तक आसन स्थिर  न हो  तब तक मन्त्र जप के ध्वनि तरंगे कैसे बनेगी, इष्ट तक  एक  तरंग दैधर्य  कैसे जाएगी , यही  तरंग का उत्सर्जन स्त्रोत  ही हिल दुल रहा हैं तो देव वर्ग कैसे हमारी बात समझ पायेगा . यह शरीर भी एक  अद्भुत रचना  हैं , सदियों से लोग इसके  रहस्य  को जानने के लिए  प्रयत्नशील रहे हैं  कुछ ने अन्तेर मार्ग  तो कुछ ने चीर फाड़ करके बहिर मार्ग अपनाया . मूल बात तो एक ही थी की सचमें कुछ इसके भीतर क्या  हैं  
जो अन्तर मार्ग के पथिक हैं  उनके पास तो उनकी लैब/प्रयोगशाला  सब कुछ ये शरीर ही हैं , बे न तो ज्यादा इसे  कठिनाए में डालते हैं नहीं इसे सुख सुविधा का आदि बना देते हैं , मध्यम मार्ग में धीरे धीरे आगे बढ़ते जाये  स्वयं ही रास्ता  सदगुरुदेव बनाते जाते हैं , बे पहले भी अंगुली पकडे थे अब भी हैं और कल भी रहेंगे , फरक सिर्फ इतना होगा की जिसकी देखने की आँखे होगी वो देख लेगा , और जिनकी नहीं वे......
तो इस शरीर को आकरण कष्ट  पहुचाना , आकारण  उपवास रखना आदि आप ही सोचिये जब सदगुरुदेव आपके शरीर में ह्रदय स्थल में हैं  कितना उचित हैं .  क्योंकि ये शरीर  उनकी  अद्भुत कृपा का आधार हैं .
   भाई ,क्या कोई ऐसा रास्ता  हैं जिसके माध्यम से में जितना  चाहू इतनी देर  आसन पर  स्थिर हो कर साधना  कर सकूँ  ??
क्यों नहीं सदगुरुदेव जी ने बताया तो हैं ,
नहीं भाई मुझे नहीं लगता  हैं बताया होगा , ओर होगा भी तो साधना शिविर में या अपने खास शिष्यों  को ही .
- अरे ऐसे कुछ भी नहीं  बोलिए .उनके लिए क्या  खास  क्या प्रिय सभी उन्ही के ही तो बच्चे हैं , भला  साधारण सांसारिक  पिता तो भेदभाव कर भी ले पर उन्हें  या वे ऐसा करेंगे ऐसा तो सपने भी सोचना , इस पथ पर निचे गिरने के सामान हैं.
तो बताओ न , क्या हैं  वह मंत्र..
अरे सदगुरुदेव जी ने  मन्त्र तंत्र यंत्र  विज्ञानं जन. ९८  में  दिया तो हैं  उस साधना को ..
कौन सी
"आत्मचेतना साधना "
नहीं हैं उसमे ,चाहे तो इंडेक्स देख लो .
अरे इंडेक्स के आलावा  भी कभी  अंदर देख ले , पेज  ५५ पर दी गए हैं .
इसका परिणाम  क्या होगा .
अरे दिया तो हैं उसमें सदगुरुदेव जी ने, धीरे धीरे सब होता  हैं ,वह चमत्कार पूर्ण नहीं बल्कि  ऐसी साधना  हैं जिसके मध्यम से  साधारण साधक भी  आधे घंटे से बढ़कर २/३ घंटे तक बिना किसी  परिश्रम /कठिनाई  के बैठ कर साधना  कर सकता हैं .
आप सभी गुरु भाइयों और बहिनों के लिए  इस साधना  के बारे  में यहाँ दे रहा हूँ  साधना  सामग्री आप जोधपुर गुरुधाम से प्राप्त कर  सकते हैं .
{ आत्मचेतना  यन्त्र प्राप्त कर ,रविवार के सुबह  को सफ़ेद वस्त्र पर रख कर ,पूर्व दिशा की ओर मुह करके, घी का दीपक लगाकर  बैठे साधक स्वयं भी सफ़ेद वस्त्रधारण कर  ओर सफ़ेद ही आसन  पर बैठ कर प्रतिदिन  ११ माला मंत्र  के हिसाब से ,आत्मचेतना माला से ,कमसे कम २१ दिन तो करे ही .अतिम दिन सारी  साधना सामग्री ,थोड़ी सी दक्षिणा  के साथ किसी  भी मंदिर में रख दे.
                                         मंत्र - ॐ ह्रीं सोSहं   ह्रीं   ॐ ||  
}
पर पैर भी तो दुखते हैं .
आसन कितना मोटा हैं ,
बस आसन ही हैं ओर क्या ..
अरे आसन  तो कम्बल का ओर मोटा सा होना चाहिए .
मोटा मतलब क्या में  कुछ कम्बल ओर  उसमें   मोड़ कर के  उपयोग करसकते हैं .???
क्यों नहीं ,जितना आप जमीं से ऊपर होंगे उतना ही आपकी  प्राण उर्जा क्षय होने से बचेगी .
ऐसा तो सोचा ही नहीं था.
ओर यही एक ओर कम्बल लेकर उसे  अपने प्रष्ट भाग  के निचे इस प्रकार लगाये  की  आपकी हिप आपके आसन से  कमसे कम २ इंच तो उपर रहे .
क्या ये , किया जा सकता हैं .
साधक का शरीर  सीधे भूमि में स्पर्श  नहीं होना चाहिए बस ओर क्या . 
पर एक गुरु भाई  तो आसन पर  बैठ ही नहीं पाते हैं, अब कुर्सी पर  बैठ कर तो करने पर लगता हैं उन्हें की उनका आसन गुरूजी से ऊपर हो गया  हैं इस कारण वे  साधना करने से ही  कतराते हैं .
चाहे हम  आकाश में बैठ कर भी साधना  करने लगे  तब भी  सदगुरुदेव  का स्थान  हमेशा  हमारे ऊपर ही होगा .
तो में उन्हें बता  दूं.
(हाँ यदि  वे अब भी साधना  से बचने का कोई ओर तरीका  न दूढ़ निकाले ) 
अरे भैय्या , होंगे वो  दुसरे गुरु जिनके  चेले शक्कर  बन गए ओर गुरु  गुड  ही बन कर  रह गए.
हम सभी चाहे करोड़ों  जन्म साधना  कर ले फिर भी  उनके दिव्यता  का एक अंश ले पाए संभव नहीं हैं .हम केबल उन श्री चरणों  में समर्पित  होकर विलीन हो सकते हैं बस...
||   तुव्दियम बस्तु  सदगुरुदेव तुभ्मेव  समर्पेत...........||


Bible says that  will is strong but flesh is weak . like every one every sadhak wants to do successful in every sadhana he wanted to do , but when he starts  his sadhana he find that he is unable to sit for little longer , this creates a sense of depression why it is so, and the situation will be worsen when the condition of  sitting  still perfectly demanded. What he should do. In the beginning level , sitting perfectly still is  a long way, but  at least sit for the duration we want is a big and major goal .
Even we talk big and big , but the truth we all knew that already.
But how we can proceed to  our manzil /goal to  reach Sadgurudev divine lotus feet. And till that aasan siddhi is not achieved  ,how that way can be crossed, Sadgurudev  ji used to tell that till  aasan siddhita not achieved and sitting still condition absorbs  how can  vibration of  mantra jap can be created/generated. and how that wavelength  reach to the mantra jap isht. When the sources of the vibration  is moving /not stationery how can daiv varga listen our  voice /mantra jap .this human body is a miraculous things , from the time immoral people are doing their best to learn the peculiarity or specialty of this  body. Some go through  INTER (inner) way , some through dissection of body outer way, path may be different but  the aim was /is the same. what is  The basic root of the secrets of this body.
Those who are follower of  inner way , from them everything Is this / his body  .you can say  lab, is this/his body. they already knew that , they should not tortured  this body and also not made fully addicted to  luxury, they already knew that  the middle path is the best path till a certain heighten is achieved. just start moving on the middle path and slowly and slowly Sadgurudev himself comes to you take your finger  in his divine hand ,  he already hold your finger in the past , is still and will be in future too. The only difference Is that those who have eye to see that will see that ,and those who have not such eyes…
Without ant valid and true cause , punishing your own body through  upvas (fasting) and other way, when Sadgurudev himself  reside in your body , how  can this be  justified is it not hurting him though the instrument  is different , think for a minute, since this body is a base for his blessing to stand.
Bhai , is there any way , through which I can sit on aasan any longer as I wanted to.?
Why not Sadgurudev ji already mentioned that ,
No I do not think that , and may if  it happens than in sadhana shivir or in his very close shishya..
 Not to tell like this , what is special what is  ordinary for him we all are his child , and it may possible that even a worldly father can  make difference ,but for thinking like that about  poojya sadguru bhagvaan  is greatest sin.
 Than tell what is that mantra ..
Oh, sadgurudev ji already  written in MANTRA TANTRA YANTRA VIGYAN  Jan 98 issue.
Which sadhana???
AATAMCHETNA SADHANA
No such a sadhana in that , check your self  not mentioned in index.
Oh sometime check in  the mag. On page 55 that has been given.
What will be sadhana outcome…
Sadgurudev already mentioned  in that, slowly and slowly things starts gaining ground. This is not a miraculous sadhana , but through this ,any sadhak can  easily increase his sitting from half an hour to 2/3 hours very easily.
I am here providing sadhana details for  you mine guru brother and sister, off course for sadhana material you have to contact directly  to  jodhpur guru dham.
have aatmchetana yantra  and place  on white cloth , on Sunday morning  ,after wearing white cloth and facing east , chant  11 round of rosary with aatmchetna mala , daily for at least 21 days incontinue and after completing the sadhana ,place the sadhana material in any temple with little offering as a money.
Mantra-  om  hreem  soham hreem  om || 
}
But feet also aching??
How much thick  is your aasan?
Just a aasan , what else ..
Aasan should be of woolen kambal and  should be thicker  thick .
Thick means can I add some more woolen kambal   to that ??
Why not, as much as  your body is above on the floor so much your energy  loss is minimized.
Never think this way..
Take a woolen kambal and fold that way  and place under your  hip in such a way that , hip should lies at least 2 inch above on the  floor.
Is this permissible.?
Sadhak’s  body should not touch  directly to the floor that’s all, that keep in mind.
But one guru bhai, not able to sit on the floor , and doing sadhana on sitting on chair ,it seems to him that his aasan is higher  than guruji ‘s aasan, that’s why they avoid to do sadhana.
Whether we can /are able to sit  in above the sky  , than too Sadgurudev  has much higher  to us, always s keep this in mind.
May in inform him.
Why not, till they can discover any more excuses not to do sadhana..
Dear one , they are others gurus’ shishyas who became sugar compare to their guru (reach higher than his guru ). but for us,
even we take millions of birth  and do sadhana, but not able to touch Sadgurudev ji’s divinity a single percent, what we can , only  offer our self in his divine lotus feet…..
|| oh Sadgurudev ,this is all  yours and all  these ,is offered to your divine holy lotus feet ||
 ****ANURAG SINGH****


Saturday, February 26, 2011

Safety in Alchemy




प्रिय मित्रों ,
इतना कुछ alchemy  science  के बारे  में  लिखा जा रहा हैं  इस ब्लॉग के माध्यम से, पर हमेशा की तरह  किसी भी  विज्ञानं  के आधार भूत सावधानिया नहीं भूलना चाहिए , इस लिए  इस पोस्ट को हिंदी में अनुवादित करके आपके समक्ष  पुनः  यह  रखा जा रहा हैं.

1.   ये विज्ञानं या इसकी क्रियाये हमेशा किसी भी कुशल मार्ग दर्शक / विशेषज्ञ  के  निर्देशन में ही की जाना चाहिए , अन्यथा  थोड़ी सी असावधानी  आपके  जीवन के लिए  खतरा भी हो सकती  हैं .
2.   किसी भी तरह से पारे या पारा  का भक्क्ष्ण  नहीं करे क्योंकि ये बेहद धातक  जहरीला पदार्थ हैं ,सबसे पहले  पारे को संस्कारित करके  एक स्टार तक लाना पड़ता हैं जिसे पारद  कहते हैं ,और फिर उसे बीज जारित पारद भस्म  को केबल पाने गुरु के मार्ग निर्देशन में  कब और कितन ओर कैसे खाना  हैं . करना चाहिए, किसी भी हालत में आप  ये कोशिश स्वयं करे, इसे हमेशा ध्यान रखे ही.
3.   यहाँ इस ग्रुप /ब्लॉग  तो इस दिव्य विज्ञानं  के बारे में अवगत ओर परिचित करा रहा हैं .बिना किसी  भी कुशल निर्देशन  के इसको करना धातक  हो सकता हैं .
4.   सिद्ध पारद का मतलब , वह पारा जो की शुद्ध  हो ,अर्थात  पुर्णतः  अशुद्धियाँ  रहित हो, और आप  निम्लिखित सावधानी तो हमेशा पालन करे ही.
.

कृपया  बारम्बार ये ध्यान रखे की mercury  या पारा के शुद्धिकरण से सम्बंधित  कोई भी प्रक्रिया  में ,जब  तक आपको इस बारे में  अत्याधिक  अनुभव हो गया हो ओर सम्बंधित सारे उपकरण हो , आपको आगे नहीं बढ़ना चाहिए .पारा कोई रसोई घर में काम आने वाली वस्तु  नहीं हैं . खुले हांथो से मतलब सीधे ,बिना  दस्ताने पहने इसे स्पर्श करें , आपको ये मजाक  में  लगेगा  परन्तु धीरे धीरे  ये इकठ्ठा  हो कर एक हानिकारक स्तर तक पहुच जायेगा .यदि ये कहीं गिर गया हैं तो इसे तत्काल इकठ्ठा कर ले  यदि इसकी थोड़ी सी मात्रा गिरी हैं तो इसे स्पंज  के माध्यम से इकठ्ठा कर  सकते हैं.
किसी भी जल से भरे  जार में ,ऐसा  पारा को इकठ्ठा करके जो की  उपयोगमें नहीं हो सकता हैं ,इकठ्ठा कर ले  ,अच्छे से  जार को बंद करके एक तरफ रख ले और इसे  सिंक में फेकने की अपेक्षा किसी भी  स्क्रैप व्यापारी को  बेच सकते हैं .इसी तरह की प्रक्रिया  किसी भी टूटे हुए थर्मामीटर   के पारे  ओर कांच  के  बारे में भी कर  सकते हैं.ध्यान  रहे इसकी आंशिक  ठोस  जैसा दिखने के बाद भी ये विस्फोटक और  इसकी अद्रश्य  ध्रूम  बेहद हानि कारक होती हैं .

अब असिड (ACID)  या अम्ल  के बारे में बात करते हैं .
हमेशा  अम्ल को पानी /जल में मिलाना चाहिए , कभी भी इसका उलटा यानि  जल को अम्ल में  मिलाये .
ऐसा क्यों ..
ऐसा इसलिए हैं की  पानी/जल  किसी भी तेज अम्ल के संपर्क में  आकर  बहुत की जल्दी से गरम हो कर  चारो तरफ उच्च्लने लगता हैं ,जिससे की किचेन में उपस्थित आप को  नुक्सान  हो सकते हैं

 तो इसलिए अम्ल /असिड को बहुत ही सावधानी से धीरे धीरे जल में मिलाना चाहिए.

यदि अम्ल /असिड  के बिना काम नहीं चल सकता हैं तो  अम्ल को पूर्ण सावधानी  से इस्तेमाल करे .अपने लिए face   visior  ( कारखाने में  उपयोग किये जाते ,चेहरा  को बचने वाला  उपकरण ) ,रबर के दस्ताने , प्लास्टिक या रबर के apron  का  उपयोग  करें ही , आप को ये सब  अजूबा लगेगा पर उससे तो अच्छा होगा यदि असावधानी से आपके चेहरा  जल जाये.

यदि आप hydrofluoric acid  /अम्ल  प्रयोग में लाते हैं तो  आपको  अत्याधिक सावधानी का पालन करना चाहिए  हीयदि यह आपकी त्वचा पर गिर जाये तो बहुत ही मुस्किल होगा इसका प्रभाव ख़त्म करना . और बेहद जव्लन  युक्त होगा .

इसी तरह से Glacial acetic acid's  इसकी ध्रूम /धुआं फेफड़ों  के अंदर के  tissue  cell  जला देता हैं , आप खुद ही सोच सकते हैं की  इसकी ध्रूमका  क्या परिणाम होगा.

ये केबल एक्स्ट्रा  स्ट्रोंग वेनेगर  ही नहीं होगाकिसी भीअसावधानी वश  साधारण से असिड आपकी त्वचा पर कभी गिर जाये तो घबराये नहीं  तल्कल उस  पर जहाँ ये गिरा हैं  ठंडा पानी  लगातार डाले
 यदि आप कोई  आधुनिक रसायन शास्त्र से सम्बंधित  हैं तो   कोई भीneutralising agent. बनाने  के बारे भी सोचे .सन ४० के दशक मैं एडिन्बर्घ  विश्वविद्यालय के  ORGANIC  CHEMEISTRY  के प्राध्यापकमहोदय  की आंखोंमें सल्फुरिक अम्ल गिर गया .केबल अपने छात्रों  को बताने के लिए  कितना neutralising agent  जरुरी होगा इसका असर समाप्त करने की लिए ,उन्होंने  अम्ल का  प्रभाव  तो असरहीन कर दिया पर  उन्हें अपनी आखं  भी खोनी पड़ी . ठन्डे जल का अपना   ही असर   ही होता हैं .
यदि फिर से अम्ल गिर गया हैं तो परेशान हो  अपने पास  एक विशेष प्रकार की मिटटी  बिना उपयोगी  की हुए  मिटटी जिसे kitti  litter  कहा जाता हैं रखे ,यदि आपके पास neutralising agent  हैं जैसे  bicarbonate of soda, या  चाक इसे आराम से गिरे हुए फर्श पर डाल दे . इसके बाद आप इसपर kitti  litter  डाल दे . जबताके ये पूरी तरह से अवशोषित  कर ले . रबर के दस्ताने पहिन कर , इसे अच्छे से साफ  करके  प्लास्टिक dust  bin  में डाल देइस पुरे मत्रिअल को प्लास्टिक के बैग में डाल कर  कहीं जमीं में दवा दे . फिर उस फर्श की जगह को अच्छी तरह से   पानी डाल डाल कर गीले कपडे / mop  से साफकर ले आसाह हैं की कोई भी ये ध्यान रखेगा की क्या अभी थोड़ी देर पहले हुआ था .
यदि आपको कभी असिड को मिलाना   पड़े ही तो , असिड  को  हमेशा पानी में ही मिलाना चाहिए के नियम का उल्लघन किया जा सकता हैं  . चेहरा को बचाने वाला  और दस्तानेउपकरण धारण करे. ठन्डे  पानी का नल को इतना तेज  से खोल दे की पानी उछले   नहीं  . धीरे धीरे बहुत कम मात्रा  अम्ल की  पानी  में मिलाये ., बहुत ही धीरे से . सावधानी से  , आप सुरक्षित  रहेंगे ही .
 अब में सोचता हूँ की आप ये सावधानी रखेंगे तो  आप  सुरक्षित  अपने प्रक्रिया  के दौरान  रहेंगे ही
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Dear brother,
Before replying to your question, first I want to make it clear on, certain points
1. Alchemy Science or Alchemical process and should be learned under the guidance and close supervision of an expert of this science otherwise it would become very danger for life.
2. One should not consumes/eat parad (parad ka bhakshan) since it’s a very toxic element .at first parad should be converted to samsakarit stage up to a level and be converted to Ash ( beej jarit parad ki bhasm) as per guru supervision . Only then, when and how much quantity is to be consumes is only prescribed by guru (A master).
3. The aim and objective of this Nikhil_Alchemy group`/blog is only to aware and introduction of this divine science .without proper supervision and carefulness all the process described in this book, here could turn to very harmful.
4. Siddh parad simply means that is not impure and should not be proved harmful /dengor to ones body.
Be carefull my dear brother.

plz point out and AGAIN and AGAIN read this massages. ....... ok
MERCURY. Beware of any process involving distillation of mercury unless you have had extensive training in such techniques and possess a fume hood and relevant equipment.
Mercury is no substance for the kitchen table chemist! Never handle it with bare hands. It may be fun but you'll absorb small amounts which accumulate until they reach harmful levels. Should you spill any, collect it immediately,you can absorb it in small quantities using a sponge. Squeeze the metal from the sponge into a jar
containing some water, cover, and set aside. Do not dispose off down the sink, try selling to a scrap dealer instead. Same applies with broken thermometers, sponge up any spillage and put the lot, along
with broken thermometer bits, into your water jar. Remember that despite its apparent solidity mercury is highly volatile and you can easily inhale the toxic fumes.
...........oh... ACIDS.
Never forget the old dictum inscribed on Enoch's
pillars (maybe) and in every sane textbook.
 ADD ACID TO WATER...NEVER WATER TO ACID!
Why? The water will heat up rapidly in contact with the denser acid and things will start spurting around your wife/mother's kitchen and all over YOU. And do add that acid very slowly to the water with full precautions.
Can't do without acids but handle them with care. Wear a full
face visor, (you can buy those as industrial face protectors), rubber gloves, and a plastic or rubber apron. You'll look odd but not half as much as you would with half your face burned off! If you must use
hydrofluoric acid be especially careful, this stuff can eat through glass. If it gets on your skin it is very difficult to remove completely and can cause severe ulceration. Glacial acetic acid's fumes are enough to spot preserve living tissue cells, imagine what it will do to the inner lining of your lungs if you inhale it.

It's not just extra strong vinegar. Should you accidentally splash any
acid on your bare skin don't panic, wash it away immediately with lots of cold running water. If you're a chem freak don't even think about preparing a neutralizing agent. The professor of inorganic chem. Is tryat the University of Edinburgh in the late 40's had a drop of sulphuric acid spurt into his eye. To show off to his students he calculated the relevant amount of neutralising agent required and washed the acid out.
He neutralised the acid O.K. but lost his bloody eye! Cold water, running fast O.K.?
If you spill the stuff once again don't panic. Keep a bag of kitty litter
around, unused naturally. If you've a neutralizing agent handy such as bicarbonate of soda, or even
ground chalk, scatter this liberally over the acid. No matter what you do you've ruined the floor already .Scatter kitty litter very liberally over the neutralized acid until it's all absorbed. Put on those rubber
gloves and carefully sweep the lot into a plastic dust pan. Pour into a plastic bag, and dump. Wash what's left off the floor area very thoroughly with a squeeze mop and lashings of water and hope
nobody notices the mess that's left. Blame it on the cat. If you must dispose of acid the acid to water rule can be suspended. Put on that visor and the gloves and get your cold water tap running fast, but not spraying around. Very carefully and slowly trickle small quantities of your acid into the water, be very .very slow and careful with this process and you'll be all right.
i know if u use this all tips so u safe dear in ur procedure. ......ok

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