हमसभी जानते हैं की हम सभी जल्दी से सिद्धता चाहते हैं , साधनाओ में परिपूर्णता सभी को चाहिए , सभी दिव्य शक्तिया हमारे वश में हो, पर कभी हमने ये सोचा हैं की हमने अपने आप को साधने के बारे में किसी से बात की कभी गुरुदेव जी से कहा की आप वो रास्ता बताओ जिसके माध्यम से में अपने आप को साध सकूँ,अगर में सही हूँ तो हम सभी ऐसे ही हैं, और तो और क्या बिना साधना के सिद्दियाँ मिल सकती हैं,
अगर अभी कोई हमारे पास आके कहे की वहां पर कोई बैठा हैं जो एक दिन में सिद्ध बना देगा , तो हम मेंसे अधिकतर क्या करेंगे ?? बताने की जरुरत नहीं हैं, क्योंकि हम व्यापार करते हैं पर यह जो हमने शिष्य रूपी धोका देने की ओट ली हैं भला सदगुरुदेव जी से कैसे छुप सकती हैं.
हमें सबसे पहले ये साधना कोई सिद्ध करा दे फिर हम मानेगे ? क्या करें हमारे आज तक के जीवन की कमाए ही ये हैं. पर साधना तो करनी ही पड़ेगी उन्हें चाहे कितने भी जय कर लगा लो नाच लो ,गुरुदेव का घोष कर लो हम और आप धोका दे ही नहीं सकते,
तो क्यों नहीं हम अपना मानस बना कर साधक बने शिष्यता तो बहुत दूर की बात हैं.
चलो उनसे आशीर्वाद भी ले लिया , मन्त्र भी ले लिया, उनके वरद हस्त से दीक्षा भी प्राप्त कर ली, आसन भी सिद्ध हो गए पर मन ही नहीं लगा तो क्या किया, सारा मेहनत बेकार.बेमन से की गयी साधना क्या उतना फल देगी जो की हमारे मानस में हैं.पर जब बिना साधना के सिद्धिया नहीं मिलेंगी तो चले ध्यान दे, की कैसे करे साधना.
केबल मंत्र ले लिया ,यन्त्र सामने रख कर जप चालू कर देना साधना नहीं हैं बल्कि सारा जीवन ही एक साधना हैं , हर पल एक साधना हैं जिसने इसे समझ लिया बस वो नदी पार कर गया.और हमने मात्र कुछ माला की ओर हमारे कर्त्तव्य की इतिश्री हो गयी.
सदगुरुदेव जी के एक शिष्य से मैंने पूछा - की मन जप में नहीं लगता हैं ओर बार बार घडी देखता हूँ की कितना समय हो गया हैं, क्या ऐसा हो सकता हैं की में साधना में डूब जाऊं ,
क्यों नहीं ये हो सकता हैं .
पर कैसे हो ये सब ???
कभी प्यार किया हैं .
मैंने कहा भाई, मैंने भी सदगुरुदेव द्वारा लिखित ये कहानी पढ़ी हैं जिसमें रावन द्वारा एक व्यक्ति के प्रशन पूछे जाने पर रावन बार बार यही उससे पूछते हैं आप ये सब न सुनाओ .आप तो बताओ कोई मन्त्र जिससे एक दम से मन लगने लगे.
आप अपनी साधना से वैसा ही स्नेह करो जो की आप अपने किसी भी सर्वाधिक स्नेही से करते हो , और मानो आप उसके पास ही बैठे हो , तब बताओ आपको समय का पता चलेगा .
नहीं ,ये बात तो सही हैं.
तो फिर सदगुरुदेव ओर अपनी साधना के साथ ऐसा क्यों नहीं करते.
पर ये हो कैसे ????
आपको स्नेह करना कौन सिखा सकता हैं ,ये तो आपके अंदर हैं ही इश्वर का वरदान हैं ..
पर फिरभी कुछ तो बोले इस विषय पर .
आपने सदगुरुदेव द्वारा लिखित " फिर दूर कहीं पायल खनकी "पढ़ी हैं
नहीं ,यहाँ तक की कभी इस किताब को लेने का सोचा भी नहीं .
क्यों नहीं ली ये किताब..
अरे इसका साधना से क्या लेना देना ,मुझे तो साधनात्मक ही किताबे ठीक लगती हैं .
फिर आप ले कर पढो इसे ,तब पता चलेगा , की साधना प्रारंभ करने से पहले क्या भाव भूमि साधना के लिए होनी चाहिए
अभी दिल्ली गुरुधाम से वापिस आते समय ये किताब मैंने ली ,रस्ते में पढ़ ता जा रहा था .
सदगुरुदेव जी कह रहे थे .. जब तुम कहते हो की मैंने प्रेम किया या कोई कह रही हैं की में प्रेम करती हूँ, दोनों ही असत्य उच्चारण कर रहे हैं.” कर रहे हैं “का मतलब ही हैं की कोई और भी हैं , और जहाँ कोई और हैं वहां प्रेम हो ही नहीं सकता . ये करने की नहीं, होने की क्रिया हैं,...
में तो पहला पेज ही पढ़ कर अवाक् सा रह गया .
आगे के पेजों मैं सदगुरुदेव , साधना कैसे करे, मन, ह्रदय को कैसे प्रेम मय और जीवन को साधनामय बनाये .ओर प्रेम तो केबल और केबल सदगुरुदेव जी से ही हो सकता हैं , अन्य किसी से तो हमारा सम्बन्ध ,वासनात्मक ही रहता हैं कम या ज्यादा ये बात अलग हैं . पर विशुद्ध प्रेम स्नेह तो केबल और केबल सदगुरुदेव से ही हो सकता हैं.
आप सभी इस अद्भुत किताब को पढ़े, ओर सम्पूर्ण प्रेम मय सदगुरुदेव भगवान् को तो प्रेम मय स्नेहमय बनके ही ह्रदय मैं स्थपित किया जा सकता हैं ,
तो प्रिय गुरु भाइयो /बहिनों हम जब भी साधना करे ये निश्चय ही मन कर चले की हम अपने सदगुरुदेव जी की जीवंत उपस्थिति मैं ही उनके समक्ष साधना कररहे हैं , वही हमारे इष्ट हैं , वही श्याम वही राम , जब हर पल सदगुरुदेव जी के स्नेह में जीवन डूबने लगेगा , उनकी उपस्थिति का भान होने लगेगा , तब जीवन पूर्ण रूप से साधना मय हो जायेगा , तब हमें साधना करनी पड़ेगी नहीं, अपने आप हो जाएगी , तब बार बार समय नहीं देखना पड़ेगा , बल्कि समय ही स्थिर सा हो जायेगा , मन को दबोचना नहीं पड़ेगा बल्कि मन उनके ही रंग मैं रंग जायेगा.
शब्द कम पड़ रहे हैं, पर मैं ह्रदय के विषय को शब्दों मैं कैसे समेट सकता हूँ. इस तथ्य की व्याख्या वे ही कर सकते हैं मैं नहीं ....
आप सभी ही नहीं बल्कि आपके जीवन का हर क्षण क्षण पूज्य पाद सदगुरुदेव जी के स्नेह से आपूरित हो ........
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All of us want to get siddhita early and everyone want to get completeness in sadhana as early as possible , and all of us wanted to have control on all the divine powers. But ever we thought that, ever we want to have control on our self ?,neither we ask to Gurudev ji that plz show me the way , through that I can get siddhita on self. If I am true we all are like that ,even many of us want siddhitta even without doing any sadhana.
If someone came to us and said there is someone, who can give you siddhita in one day, what many of us will do ? need not to discuss, since we do only business, we take refuge in the name of shishyata. But how can this hide from Sadgurudev ji eyes.
We first get siddhi than we will believe. what we can do since this is our whole life earning, but we have to do sadhana whether make so much “jai kara” or dance in the name of Sadgurudev but can we hide our realty in his eyes. Than why not we do sadhan as a sadhak , being a shishy a very long distant things. Even if we took diksha , took mantra, have asan siddhi , but still not having willingness to do sadhana , than what will be the outcome. if we does sadhana with lesser heart than it will not serve the purpose and not able to produce the result as we needed.
When we know that without full heart sadhana will not produce the desired result than why not try to learn how to do the sadhana …
Take a mantra and start mantra jap in front of the yantra is only not a sadhana but whole life is it self a sadhana, each moment passing by is a sadhana, those who understand this, can easily cross the path ,and we do some mantra jap and think that our sadhana is complete, and our responsibility is over.
Once I had ask to a shishy of Sadgurudev ji – I am not able to make my minds as it should be in sadhana ,I watch the clock from little time interval that what time has been passed, is there any way through that I can fully absorbs in sadhana.???
Why not , this can happen.
But how can this be possible.???
Have you ever been in love.?
I replied. Bhai, I also read this story written by Sadgurudev ji , in that Ravan asked to a person this question in reply to his queries, so please do not again repeat the story. Tell me some mantra through that, suddenly my wondering mind became concentrate only on sadhana.
Than do sadhana as if you are sitting with your most beloved one ,than can you think about that time passing by.
Yes this is true.
Than ,why not do the same things with Sadgurudev and your own sadhana.??
But how this can possible???
Who can teach you how to love your Sadgurudev ,this is already is inside you, is a gift of god to every one.
Tell me something about on this subject.
Have you ever read Sadgurudev ji written book “phir door kahin payal khanki”
No, not even thought to buy that .
Why not have that book??
What it has relation with sadhana, I like most the sadhana related books.
Than purchase it and read it, than you will able to know what is the pre mental condition to have /start a sadhana one must have.
Recently I purchase d this book and start reading while returning
Sadgurudev ji written in that—when you said I love you , or she says that she loves you , both are speaking wrong (not true). Till that the action of doing or did is there, at least love does not there. It is not the things of doing it is a things of being. since doing means there is some one else, but in love only one exists.
I just still , reading only the preface theses lines ..
In coming pages ,Sadgurudev written about how to do sadhana, mind ,heart how can be filled with joy and love, true and real love can only be possible with Sadgurudev ji, and our relation with other generally stand on some desire hidden or outer as the case may be , but true love can be happened with Sadgurudev only.
All of you must read this book once , and than easily can understand how the Sadgurudev Bhagvaan can be sthapit inside your heart.
So my dear brother /sister, whenever we sit for sadhana, always have in our heart that we are doing this sadhana is in Sadgurudev divine presence . he is our isht, he is our krishn ,and Ram , when each passing moment is filled with divinity of Sadgurudev presence, than filled with joy, whole life completely be a sadhana. Than we do not need to do sadhana, sadhana will automatically be done. Than we do not continue to watch the time, time will be stand still there. Should not control the man (mind),but mind itself absorbs in Sadgurudev ji.
Running out of word, how can I can justified the subject dealing with Sadgurudev ji’s love, he and he only can define that I am not…….
All of you and your life each moments be filled with Sadgurudev ji divine love, and sadhanamay ho…….
smile
****ANURAG SINGH****
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