प्रवीन के शब्द मेरे कानो में हथोड़े की तरह पड़े, और में तुरंत खड़ा हो गया, वो अपनी ही धुन में बेखबर मुझे बराबर बताता जा रहा था, एक दम सटीक वर्णन भावना के बारे में ही था. बीच बीच में उस सुंदरी को याद करते करते उसकी आँखे कही शून्य में खो जाती थी. मेरे और प्रवीन के बीच में भाई जेसा सम्बन्ध था, अतः मेने उसे बताया की में उससे परिचित हु तो वो तब रुका और अपनी बडबड़ाहट बंध कर मुझे पागलो की तरह देखने लगा, पूरी बात तो में उसे बता नहीं पाया. वो भी कुछ सोचता हुआ वापिस चला गया. पुरे दिन में यही सोचता रहा की हो न हो ये संयोग मात्र ही था. एसा कभी हो सकता हे की शुक्ष्म जगत से कोई...नहीं नहीं ये मात्र संयोग हे, मगर फिर भी क्या खूबसूरत संयोग हे. रात को आवाहन की क्रिया शुरू करके जेसे ही प्रवेश किया सूक्ष्म जगत में तुरंत ही वह सामने प्रकट हो गयी अपनी मोहक मुस्कान के साथ...उसे देख के मुझे दिल में इतनी ख़ुशी हो रही थी के जेसे में उससे सालो से बिछुड़ा हुआ हु. और उसके गुलाब जेसे होंठ खुले और धीरे से बोली ...क्यों अब तो मानते हो न....सबकुछ सामने ही तो था मगर फिर भी मन का तर्क यु ही थोड़े ही मिटता हे. मेने उसे जवाब दिया की नहीं, आत्माओ की शक्तियों के बारे में में भली भांति परिचित हु, तुमने जरुर कोई संयोग का निर्माण किया हे...तो मुझे उलाहने के स्वर में बोली की तो फिर में क्या करू...मेने कहा की अगर तुम सही में अपना स्थूल रूप ले सकती तो फिर तुम मुझे दिखाई देती, मेरे मित्र को क्यों?...
तब वह मेरी आँखों में आँखे डाल के मेरे पास आके बोली..क्यों मुझे देखने की इतनी जल्दी हे ??? और एक मुस्कराहट के साथ वो ताकने लगी मेरे चहरे पर...मेरा मन पता नहीं क्या आडोलन विडोलन में पड गया की में उसकी बात का कुछ जवाब न दे पाया...तुरंत ही में अपनी प्रक्रिया बंध करके लौट आया स्थूल जगत में...छत पे जाके बेठा, आसमान की और तकते हुवे पता नहीं कितनी देर बेठा रहा में यही सोचते हुवे की आखिर क्या उसने जो कहा वो सच था..क्या में उसकी और आकर्षित हो रहा हु...पर मेरा लक्ष्य तो तंत्र हे..ये सब संभव नहीं हे...पर दिलसे तो में कमज़ोर हो ही चूका था...बस, कुछ बात हम जान बुज के स्वीकार नहीं करना चाहते हे, मेरी दसा भी उस दिन कुछ वेसी ही थी. पर न जाने क्यों मेरे मानस पट पर बार बार उसका ही चेहरा घूम जाता था. और रहा नहीं जाता था उसे देखे बिना....मगर क्या...अभी तो सिर्फ २ दिन ही तो हुए हे..में ये सब क्या सोच रहा हु...महादेव, ये क्या हो रहा हे. पूरी रात में सो नहीं पाया. दुसरे दिन एक एक पल काटना मुश्किल हो गया था, इंतज़ार रात का था की कब आवाहन करू...पर अब मेरा जोश आवाहन की और कम, किसी और चीज़ तरफ ज्यादा हो रहा था. रात घिरी और में प्रवेश कर गया शुक्ष्म जगत में. सामने वही बेठी थी जेसे मेरे इंतज़ार में. उसने अभिवादन के साथ स्वागत किया मेरा. जेसे कोई अपना बहोत करीबी हमे दुखी देख के प्यार से समजता हे, उसने भी कुछ यूँ ही प्यार से मेरी तरफ देख के बोली "क्यों भाग रहे हो इतना...खुदसे की कट रहे हो...नियति को स्वीकार करो...प्रकृति को समजो और उसकी दी हुयी उपलब्धियों को स्वीकार करो"...वो मेरी मनः स्थिति से पूर्ण वाकेफ थी. मेने कहा सायद में तुम्हारा साथ न दे पाउ, मेरा लक्ष्य कुछ और हे, वो मेरे पास आके सट के बेठ गयी, और कहा नियति का काम नियति पर छोडो. तुम आजको पहचानो. में हु और तुम हो, इस क्षण की उपलब्धि को देखो, और में हु तुम्हारे साथ, में तुम्हारा साथ कभी नहीं छोडूंगी, मेने उसकी आँखों में ताका, वहा मुझे दुनिया का सब्जे ज्यादा प्यार उमड़ता हुआ सा दिखाई दिया और उसके आलिंगन में जेसे मुझे पूरी दुनिया ही मिल गयी थी. और उस दिन के बाद न जाने में किस और जा रहा था पर जेसे दुनिया का चेहरा ही बदल गया था. कई बार वो दिखाई दी मुझे उसके स्थूल शरीर में भी और में बस उसकी यादो में ही खोया रहता था. मेरे लिए दुनिया का मतलब सिर्फ और सिर्फ मेरे और उसके दर्मिया ही था. और उन दिनों, उसके सहयोग से क्या क्या नहीं समजा में आवाहन की उपलब्धियों के बारे में.
आवाहन का उद्देश्य सिर्फ मृतआत्माओ को बुलाना मात्र नहीं हे. आवाहन अपने अन्दर आवाहन प्रकृति को धारण करना हे. आवाहन की सम्पूर्णता का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता. आवाहन की उपलब्धिया अनेको हे चाहे वह किसी भी जगत का भ्रमण हो,
या फिर दूर जगह पे सन्देश भेजना,
या फिर किसी को मोहित करना,
बिना किसीको बताये उसकी सहायता करवाना,
किसी दुष्ट को पीड़ा पहुँचके उसकी अकल ठीक करना,
विविध वर्ग की आत्माओ विविध ज्ञान प्राप्त करना,
पूर्वजो से मुलाकात,
या फिर किसी के भी गोपनीय इतिहास को जानना,
आत्माओ के द्वारा भविष्य जानना
अगर आवाहन में साधक आगे बढ़ता रहे तो वो देवता का आवाहन भी कर सकता हे. ये सबको तो मात्र प्रारंभिक उपलब्धिया गिनी जाती हे आवाहन में. आवाहन एक सम्पूर्ण कला हे, जिसमे मन्युष्य खुद की आत्मा को ही इतना सिद्ध कर लेता हे की आत्माओ की जो भी शक्ति हे और जो भी कार्य वे कर सके, वह खुद अकेला ही कर लेता हे. आत्मा की शक्ति मनुष्य से कई गुना ज्यादा होती हे मगर मनुष्य में भी आत्मा होती तो हे ही, बाहरी आत्माओ को सिद्ध करने के बाद मनुष्य खुद की आत्मा सिद्ध करले तो वो भी आत्मा की शक्ति से हरेक चीज़ संभव कर सकता हे. आवाहन के अत्यंत उच्चस्तरीय सिद्ध साधक कोई भी पदार्थ का निर्माण, अणु आवाहन से कर लेते हे. किसी भी जगह वायु या वर्षा का आवाहन कर के बारिश करा सकते हे, अग्नि का आवाहन कर के प्रलय की परिस्थिति का निर्माण कर देते हे.
क्यूँ की आवाहन का अर्थ सिर्फ आत्मा का आवाहन नहीं हे, आवाहन की प्रारभिक स्थिति आत्मा आवाहन हे, आवाहन तो अनंत हे.
और यु ही भावना के सहयोग से न जाने कितनी माहिती मिली मुझे आवाहन के बारे में. लेकिन सब से ज्यादा उपयोगी मुझे एक रहस्य प्राप्त हुवा " सहयोगी, या आत्म पुरुष",
जो की योग तंत्र की एक दुर्लभ साधना हे आवाहन के माध्यम से, सुना तो मेने भी था लेकिन आज क्रियात्मक रूप से जान पाउँगा .मेने पूछा " क्या हे वह और क्या किया जा सकता हे सहयोगी के माध्यम से? "
(क्रमशः)
तब वह मेरी आँखों में आँखे डाल के मेरे पास आके बोली..क्यों मुझे देखने की इतनी जल्दी हे ??? और एक मुस्कराहट के साथ वो ताकने लगी मेरे चहरे पर...मेरा मन पता नहीं क्या आडोलन विडोलन में पड गया की में उसकी बात का कुछ जवाब न दे पाया...तुरंत ही में अपनी प्रक्रिया बंध करके लौट आया स्थूल जगत में...छत पे जाके बेठा, आसमान की और तकते हुवे पता नहीं कितनी देर बेठा रहा में यही सोचते हुवे की आखिर क्या उसने जो कहा वो सच था..क्या में उसकी और आकर्षित हो रहा हु...पर मेरा लक्ष्य तो तंत्र हे..ये सब संभव नहीं हे...पर दिलसे तो में कमज़ोर हो ही चूका था...बस, कुछ बात हम जान बुज के स्वीकार नहीं करना चाहते हे, मेरी दसा भी उस दिन कुछ वेसी ही थी. पर न जाने क्यों मेरे मानस पट पर बार बार उसका ही चेहरा घूम जाता था. और रहा नहीं जाता था उसे देखे बिना....मगर क्या...अभी तो सिर्फ २ दिन ही तो हुए हे..में ये सब क्या सोच रहा हु...महादेव, ये क्या हो रहा हे. पूरी रात में सो नहीं पाया. दुसरे दिन एक एक पल काटना मुश्किल हो गया था, इंतज़ार रात का था की कब आवाहन करू...पर अब मेरा जोश आवाहन की और कम, किसी और चीज़ तरफ ज्यादा हो रहा था. रात घिरी और में प्रवेश कर गया शुक्ष्म जगत में. सामने वही बेठी थी जेसे मेरे इंतज़ार में. उसने अभिवादन के साथ स्वागत किया मेरा. जेसे कोई अपना बहोत करीबी हमे दुखी देख के प्यार से समजता हे, उसने भी कुछ यूँ ही प्यार से मेरी तरफ देख के बोली "क्यों भाग रहे हो इतना...खुदसे की कट रहे हो...नियति को स्वीकार करो...प्रकृति को समजो और उसकी दी हुयी उपलब्धियों को स्वीकार करो"...वो मेरी मनः स्थिति से पूर्ण वाकेफ थी. मेने कहा सायद में तुम्हारा साथ न दे पाउ, मेरा लक्ष्य कुछ और हे, वो मेरे पास आके सट के बेठ गयी, और कहा नियति का काम नियति पर छोडो. तुम आजको पहचानो. में हु और तुम हो, इस क्षण की उपलब्धि को देखो, और में हु तुम्हारे साथ, में तुम्हारा साथ कभी नहीं छोडूंगी, मेने उसकी आँखों में ताका, वहा मुझे दुनिया का सब्जे ज्यादा प्यार उमड़ता हुआ सा दिखाई दिया और उसके आलिंगन में जेसे मुझे पूरी दुनिया ही मिल गयी थी. और उस दिन के बाद न जाने में किस और जा रहा था पर जेसे दुनिया का चेहरा ही बदल गया था. कई बार वो दिखाई दी मुझे उसके स्थूल शरीर में भी और में बस उसकी यादो में ही खोया रहता था. मेरे लिए दुनिया का मतलब सिर्फ और सिर्फ मेरे और उसके दर्मिया ही था. और उन दिनों, उसके सहयोग से क्या क्या नहीं समजा में आवाहन की उपलब्धियों के बारे में.
आवाहन का उद्देश्य सिर्फ मृतआत्माओ को बुलाना मात्र नहीं हे. आवाहन अपने अन्दर आवाहन प्रकृति को धारण करना हे. आवाहन की सम्पूर्णता का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता. आवाहन की उपलब्धिया अनेको हे चाहे वह किसी भी जगत का भ्रमण हो,
या फिर दूर जगह पे सन्देश भेजना,
या फिर किसी को मोहित करना,
बिना किसीको बताये उसकी सहायता करवाना,
किसी दुष्ट को पीड़ा पहुँचके उसकी अकल ठीक करना,
विविध वर्ग की आत्माओ विविध ज्ञान प्राप्त करना,
पूर्वजो से मुलाकात,
या फिर किसी के भी गोपनीय इतिहास को जानना,
आत्माओ के द्वारा भविष्य जानना
अगर आवाहन में साधक आगे बढ़ता रहे तो वो देवता का आवाहन भी कर सकता हे. ये सबको तो मात्र प्रारंभिक उपलब्धिया गिनी जाती हे आवाहन में. आवाहन एक सम्पूर्ण कला हे, जिसमे मन्युष्य खुद की आत्मा को ही इतना सिद्ध कर लेता हे की आत्माओ की जो भी शक्ति हे और जो भी कार्य वे कर सके, वह खुद अकेला ही कर लेता हे. आत्मा की शक्ति मनुष्य से कई गुना ज्यादा होती हे मगर मनुष्य में भी आत्मा होती तो हे ही, बाहरी आत्माओ को सिद्ध करने के बाद मनुष्य खुद की आत्मा सिद्ध करले तो वो भी आत्मा की शक्ति से हरेक चीज़ संभव कर सकता हे. आवाहन के अत्यंत उच्चस्तरीय सिद्ध साधक कोई भी पदार्थ का निर्माण, अणु आवाहन से कर लेते हे. किसी भी जगह वायु या वर्षा का आवाहन कर के बारिश करा सकते हे, अग्नि का आवाहन कर के प्रलय की परिस्थिति का निर्माण कर देते हे.
क्यूँ की आवाहन का अर्थ सिर्फ आत्मा का आवाहन नहीं हे, आवाहन की प्रारभिक स्थिति आत्मा आवाहन हे, आवाहन तो अनंत हे.
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brothers why not writing the recent posts in english
ReplyDeleteBhai jai gurudev,we are checking our inbox after each moment for tantra kaumudi ''kaal gyan visheshank''and our heart beats are increasing.probably you taking examination of our patience orhow much attachment we have with tantra kaumudi.each day of the first week of feb.2011 was like a decade for us and today is the last day of the week so we are checking our inbox as quickly as much as possible.hai hamare pranpriy sadgurudev Nikhil ji==LAGAN TUMSE LAGA BETHE JO HOGA DEKHA JAYEGA TUMHE APNA BANA BETHE JO HOGA DEKHA JAYEGA.......JAI GURUDEV.
ReplyDeleteJay gurudev,
ReplyDeleteaapke blog padhake bahut aachchh laga ,
muje abhi tak tantra komudi ka koi aank mila nahi hai krupa karke muje aap ye niche likhe EMAIL ID pe bhej de.
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Jay gurudev,
ReplyDeleteaapke blog padhake bahut aachchh laga ,
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