Wednesday, June 29, 2011

AAVAHAN-12


संन्यासी की साँसे अभीभी फूली हुयी थी...योगिनी के अट्टाहास्य ने वातावरण मे चारो तरफ खौफ फेल गया...संन्यासी को देखते हुए योगिनी ने कहा, तुमको यहाँ पे आना ही था वर्ना मेरा पराकेशी साधना कैसे सिद्ध होता...मुझे ज़रूरत थी एक अक्षत कौमार्य युक्त पुरुष की, जिसके साथ मैथुन के बाद मेरी साधना पूर्ण हो जाएगी, अगर तुम अपनी मर्ज़ी से मुझे सहयोग दोगे तो सायद बच जाओगे नहीं तो मे अपना उदेश्य तो पूर्ण कर ही लुंगी साथ ही साथ तुम्हारी बलि भी दे दूंगी...योगिनी की सफ़ेद आँखे अब खुनी लाल हो चुकी थी...संन्यासी भय के मारे अंदर से कांप उठा. उसने इस प्रकार की साधनाओ के बारे मे सूना था, यौन मत एक अलग ही साधना पद्धति है. इस साधना के अंतर्गत साधक को अपनी साधना पूर्ति के लिए अक्षय यौवना नारी जिसका कौमार्य भंग न हुआ हो उसका साथ मंत्रजाप के बाद मैथुन करना अनिवार्य है, इसके विपरीत सधिकाओ को अक्षत कौमार्य युक्त पुरुष के साथ मैथुन करना अनिवार्य है. इसी मत के अंतर्गत पराकेशी साधना भी होती है जिसे सिद्ध करने के बाद एक एसी विशिष्ट सिद्धि प्राप्त कर लेता है जिससे उम्र का या काल का उस पर कोई प्रभाव नहीं होता है, ऐसे साधकोको अन्य लोक लोकान्तरो मे जाना सुलभ हो जाता है और पुरे ब्रम्हांड मे द्रष्टि मात्र से किसी को भी अपना गुलाम बनाया जा सकता है. संन्यासी को ये भी पता था की अधिकांश विवरणों मे जे जाना गया है की जिसके साथ मैथुन किया जाता है उसकी बलि हो जाती है. संन्यासी ने बचाव के लिए वीर आवाहन शुरू किया लेकिन एक क्षण मात्र मे योगिनी स्तम्भन व् किलन प्रयोग कर चुकी थी. सन्यासी अब कुछ भी प्रयोग नहीं कर सकता था क्यूँ की उसकी सारी सिद्धिया स्तंभित हो चुकी थी और वह क्षेत्र कीलित. संन्यासी के पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था, हिम्मत के साथ वह पद्मासन मे बैठ गया. योगिनी का चेहरा खिल उठा, उसने सोचा की संन्यासी तैयार हो गया है साधना मे सहयोग देने के लिए. लेकिन नहीं, संन्यासी के पास एक ओर रास्ता बचा हुआ था. उसने दिव्य मंत्र से स्वआवाहन किया और शावाशन मे लेट गया. योगिनी को कुछ समज नहीं आ रहा था की संन्यासी आखिर कर क्या रहा है किन्तु वह निश्चित थी अपने किलन प्रयोग के बाद. सब से पहले उसने अपनी प्राण ऊर्जा का विखंडन किया. और उसके बाद अपने स्थूल शरीर से उसने सूक्ष्म शरीर को अलग कर लिया. योगिनी अभीभी मुस्कुरा रही थी, वह संन्यासी के सूक्ष्म शरीर को देख सकती थी जो की रज्जतरज्जू से उसके स्थूल शरीर से जुड़ा हुआ था. योगिनी ने तारक तन्त्र का प्रयोग किया जिससे किसी को भी सूक्ष्म शरीर से अपने स्थूल शरीर मे वापस आने के लिए बाध्य होना पड़ता है. लेकिन सन्यासी ने कुछ और ही सोचा था, उसने अपने सूक्ष्म शरीर को निष्क्रिय कर दिया और सूक्ष्म शरीर से एक ओर शरीर को निकाल दिया जो की अब कारणशरीर था...
Sanyashi was still in heavy fear…after the laughter of yogini, the surrounding went scary…looking at sanyashi yogini told you were supposed to come here other else how I could accomplish my Parakeshi Sadhana… I was in need of a virgin man with whom I can proceed for Maithoon and thus my Sadhana will be complete. If you willingly give support, you may save yourself, or else however after accomplishing my task I will bow you as offering (Bali). White eyes of yogini now turned to blood red.... Sanyashi was shocked with fear. He heard about such sadhanas previously, Yaun Mat is a very different sadhana system. Under this category of sadhana, Sadhak requires young female who is virgin and it is required to undergo Maithoon process after mantra chanting, on other hand Sadhikas require to undergo Maithoon process with virgin male.Under this system there is Parakeshi Sadhana, which when accomplished, will give many special powers which includes no effect of time on the body, such sadhak may get easy entry in other worlds and to make anyone hypnotised serven in whole universe is just a child play. Sanyashi was also aware that in majority of the case, the one with whom Maithoon process is done, immediately applied for Bali. To save himself sanyashi started doing Veer Aavahan Prayog but within a moment Yogini were done with Stambhan and Keelan Prayog. Now, sanyashi was unable to do any Prayog because all the siddhis of him were flabbergasted because of stambhan and the place was kilit so no where he can move from the place. Now, sanyashi was having no other way, with courage he seated in lotus position. Yogini went happy; she thought that sanyashi is ready to give support in sadhana, But No.  Sanyashi was having one more way. He started Sva-aatma aavahan with Divya mantra and arranged himself in Shavasan position. Yogini was not able to understand what exactly sanyashi was doing but she was confident after Keelan Prayog. First of all, Sanyashi did Pran Vikhanadan process and after that he separated his Sukshm Sharir (astral body) from his main body. Yogini was still smiling; she was able to watch Sukshm Sharir of Sanyshi which was connected with his Physical body with RajjatRajju. Yogini started Taark Tantra prayog through which anyone is made to return in his physical body from sukshm Sharir. But sanyashi had thought something else, He inactivated his Sukshm Sharir and from Sukshm Sharir one more body was ooze out which was Sanyashi’s Kaaran Sharir...
****NPRU****

No comments:

Post a Comment