Saturday, July 9, 2011

IMPORTENCE OF MUDRAS

 पंचमकार  में से एक "मुद्रा"  के बारे में जितनी भ्रान्ति हैं  बहुत  कम लोग  ही समझ  ही पाते हैं कि क्या हैं ये?, क्यों इनका महत्त्व हैं ?, ओर क्या

क्या  किया जासकता हैं ?इनके बारे मेंजिन्होंने भी सदगुरुदेव द्वार रचित  “मन्त्र   रहस्य   ”पढ़ी  होगी जो की हमसभी के लिए अंत्यंत पवित्र ग्रन्थ हैं उसका  तो बार बार  पढना /अध्ययन होना  ही  चाहिए  हर बारआप एक  नए रहस्य से परिचित  होंगे .अनेको वर्ष पूर्व जब यह ग्रन्थ  मेरे पास आया तो सभी की तरह  मैंने भी  जितना समझ सकता  था अपनी क्षमतानुसार  अनुसार  पढ़ा , पर  जो प्रस्तावना   किताब के प्रारंभ  में दिया हैं सदगुरुदेव जी और   स्वामी प्रवाज्यनंद  जी के बारे में वह तो  आख खोल ही देता हैं की कैसे शिष्य होते हैं  शिष्यता  के क्या माप दंड हैं    ?और अनेक बाते ..

पर उसमें एक बात  बहुत  ही आश्चर्य जनक तथ्य  हैं   की पूज्य सदगुरुदेव जी ने अपनी सारी बात  केबल ओर केबल मुद्राओं के माध्यम से की.
 कैसे संभव हो सकता हैं ?
 कहा तो यह भी गया हैं की इनके माध्यम से मृत  व्यक्ति को भी प्राण दान  दिया जा सकता हैं .
साधनाओ को आप बिना मुद्रा के भी संपन्न कर सकते हैं पर  फिर कब आपको सफलता मिलेगी  यह तो .....

पर यदि आप उस साधना की मुद्रा जानते हैं तो  लगभग आप सफलता के दरवाजे तक  ही गए हैं ...
आखिर  ये हैं क्या?,

अपने हाँथ की अंगुली को अलग अलग ढंग  से मिलाना और  बिभिन्न ढंग  से दिखाना   या प्रदर्शित करना ही  मुद्रा कहलाता हैं यह पर एक तथ्य ओर भी समझने वाला हैं की योग  में की जाने वाली मुद्राये कुछ अलग हैं यहाँ पर हुम हाथों से प्रदर्शित करने वाली मुद्राओं के बारे में विचार कर रहे हैं .
ये तो जान लिया की कैसे यह बनती हैं पर  इनका  इतना महत्त्व क्यों हैं? इसके लिए हमें मानव जीवन की विशेताओं को जानना पड़ेगा, कब से वैज्ञानिक इस देह की विशेषताओं  के लिए खोज कर रहे हैं , यूं तो यह देह कहा जाता हैं की पाप  की गढ़री हैं , पर  तंत्र इस बात को स्वीकार नहीं करता हैं वह यह कहता हैं की यदि इश्वर खुद सम्पूर्णता  लिए हैं तो उसी से बनी /बनायीं गयी इस कृति  में भी पूर्णता होगी ही, बस देखने ओर महसूस करने की  क्षमता  होने चाहिए .
इस देह को काट पीट कर नहीं बल्कि" यत  पिंडे तत  ब्रह्माण्ड" के अर्थानुसार  इसमें सब कुछ हैं पर कैसे उस रहस्य   को समझे हम, इसके लिए तो तंत्र को समझना हिपड़ेगा, आत्मसात भी करना पड़ेगा .हाँथ की हर अंगुली अपने आप एक तत्व    पंच महाभूत   को प्रदर्शित करती हैं , जब दो या तीन अँगुलियों का योग  होता हैं कभी उनके अतिम सिरे  से  तो कभी उनके उद्गम स्थान से  तब एक  अद्भुत  विद्युत् प्रभाव बनता हैं  जो साधक को उसका अभिस्ट  प्रदान करने सहायक रहता  हैं .
 पर अँगुलियों में विद्युत् प्रभाव  कैसे हैं संभव
आप अपनी तर्जनी  अंगुली को  किसी भी व्यक्ति  जिसने दोनों आँखे बंद कर ली हो, उसके दोनों भौहों के मध्य रखे थोडा दूर बिना स्पर्श कराये मुश्किल  से कुछ  सेकंड  के अन्दर उस व्यक्ति को दर्द  होने लगेगा  उस स्थान पर . इसलिए क्योंकि किसी भी अन्य अंगुली की अपेक्षा तर्जनी में  ज्यादा विद्युत् प्रभाव रहता हैंइसी कारण  इस अंगुली से मंजन करना मना किया  जाता हैं   
हम में से  अनेक देवी  या शक्ति पूजा करते हैं  क्या आप जानते हैं की यदि जप समर्पण "योनी मुद्रा" के साथ किया जाये तो माँ जल्दी प्रसन्न होती हैं ओर इसे तो सीखना ही चाहिए , यह मुद्रा अनेक प्रकार से  बनायीं जाती हैं यह योनी मुद्रा आपको इन्टरनेट पर सर्च करने पर मिल जाएगी. पर इसके तीन चार प्रकार  मिलेंगे आपको   सभी एक समान हैं जिसे  जो अच्छा लगे वह उसे बनाए की कोशिश करे .  
सदगुरुदेव जी  ने तंत्रसाधना शिविरमें इतनी अधिक मुद्राओं के बारे में समझया  की साधक तो नोट नहीं कर पा रहे थे, उन्होंने अनेको देव देवताओ , देवियों ओर अनेक क्रम की साधनों  में उपयोगित  होने वाले मुद्राओं के बारे में बिस्तार से बतया, पर शिविर के अंतिम दिन  उन्होंने साधको  के प्रति अत्यधिक स्नेह के वशीभूत हो कर कहा की जो किसी साधना विशेष की मुद्रा नहीं समझ पा रहा हो,वैसे  तो यदि साधना  विशेष की मुद्राये मालूम हो तो  वह जरुर करे अन्यथा   ओर यदि साधक इन पांच मुद्राओं के कर लेता हैं किसी भी साधना  के पूर्व तो भी सफलता  प्राप्त होती हैं. ये पांच मुद्राये हैं ,


दंड , शंख ,मत्स्य,अभय और ह्रदय मुद्रा
आप इन मुद्राओं के बारे में पूज्य सदगुरुदेव जी द्वारा  रचित "तंत्र के गोपनीय रहस्य " नाम की cd  जरुर  सुने ..सदगुरुदेव भगवान् ने काफी विस्तार से इन रहस्यों के हमारे सामने  रखा हैं  उसमें दिए सूत्रों का पालन करे ओर सफलता प्राप्त करे
ये तो उपरोक्त दी गयी मुद्राये साधना  से पहले मात्र २/२ मिनिट ही करनी हैं , हमेशा ऐसा हो यह कोई आवश्यक  चीज नहीं हैं  कभी कभी साधना  के दौरान भी दोनों हाँथ से या एक हाँथ से भी मुद्रा लगातार प्रदर्शित करना पड़ती हैं.
उपरोक्त पांच मुद्राओं  को हर दिन करे  तो बहुत अच्छा हैं पर यदि २१ दिन की साधना  हो तो पहले ,११ वे २१ वे दिन तो जरुर करे.
आपने ब्लॉग में काफी उच्चस्तरीय  मुद्राओं के बारे में पढ़ा हैं ओर आगे जैसे भी संभव होता हैं अनेक ऐसी देव दुर्लभ मुद्राओं के बारे  में  जानकारी आपको दी जाएगी.  
आप किसी भी वरिष्ट गुरु भाई /बहिन से  इन्हें सीख लेहम सब यहाँ कोशिश में हैं की  आपके लिए विडियो /फोटो ग्राफ के  साथ इन्हें वेबसाइट पर   प्रदर्शित किया जाये ...
 फिर कभी अन्य मुद्राओं के बारेमें अनेक ज्ञात अज्ञात  तथ्य  जानेगे जैसे की हाँथ में तीर्थ की स्थिति कहाँकहाँ ?
ओर  कौन से  होती हैं,?
क्या इनके माध्यम से कोई भी रोग दूर किया जा सकता हैं?, 
क्या केबल मुद्रा के माध्यम से व्यक्ति  की  अद्रश्य जगत की चीजें भी देख सकता हैं ?
..ऐसे अनेको प्रशन  के  उत्तर आने वाली इस विषय से सम्बंधित   बाते  किसी भविष्य  की पोस्ट पर
आज के लिए बस इतना ही ..क्रमशः

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                                                                                mudra
Mudra in “panch makar”a highly confusing word, most of the people not able to understand what is the  real meaning of that ?, why these are so much importance ?
What can be done through that ? those who read “Mantra Rahasy “ written by Sadgurudev ji ( this is the book must read by every shishy or who wanted to know about mantra and tantra) every time you will get new insight , and some more mystery will open to you .many years ago when I found this book , try to understand as much I could at that time. Most important thing is the preface  that around Sadgurudev and swami pravajyanand ji,  unfolded a new dimension of shishy dharma. How a shishy could work and may responsibility and other things.
One of the more interesting thing is that  Sadgurudev  talked to swami ji with mudra only.
 How that could be possible?
 It has been said that  though mudra   life  will be given to dead people. You can do sadhana without mudra , but when you will get success in that this….
If you know the mudra of that specific sadhana than you are just nearer to the door of success.
 So What  is this mudra /it stands for.?
 Through various way the finger of both hand  joining and showing is known as mudra , here one difference  is that  the mudra in yog is quite different in mudra in tantra.
 Now You knew what is mudra , but  why these are so much important?, to know the answer of this question one must understand the divinity of this body, means mysteriousness of this body. scientist  are working day and night to reveal the mystery but still a long road to go.  In general sense it has been said that  this body is noting  but  a bundle of  sins. But tantra never accept  that  it says  if god is complete  than this body is his creation  that also  be complete,  only  thing to research  the way  to feel and understands the divinity.
 Through dissection  one can not understand the meaning or divinity of this body, according to “yat pinde tat bramhaand” everything is init how we can understand this, for that we must understand the tantra, and understand the deep hidden meaning of that. Each finger of the hand represent one of the basic maha tatav i.e. panch mahabhut. When two or more finger join through a specific way a  electricity energy formed, that provide the sadhak to his aim/achievement.
 How we  understand that there is electricity  lies in finger.?
 If you  place your  index finger  very close to the point  between the eyebrow who have already closed his both eye, within a few  second the person start pain in his  head specially  the point  between the eye brow. since compare to other finger index finger has more electricity  power. That is the reason why doing  teeth wash/ manjan is   not  done by this finger, who do this ,always  have problem in his teeth.
 Many of us  doing sadhana /pooja of various devi  or shakti  do you know that if after the jap  you should offer /samarpan of your jap through “ yoni mudra”  ,divine mother bless you early. And became happy. One must know how to do that . various ways of making  yoni mudra , search in  internet you will find two three ways , each are equal, which ever you like  practice that.
In “Tantra Sadhana Shivir” Sadgurudev  has taught and describe  so many mudra that for sadhak ,it  was very difficult to memorize  and use them,  Sadgurudev describe in details various mudra  used in different, different devi devta , with full description and practical. But on the last days of shivir understanding each sadhak ‘s problem though his divine love he said  that  if any one follow only theses five mudra in any sadhana starting time  for just 2/3 minute  he need not require to  do other  mudra, but if sadhak knew about specific mudra for that sadhana it would d be much better.
 Theses are
Dand , shankh,hrdya,  abhay , matsy
 You can listen in audio  c d “ tantra ke gopniy rahsy” In that Sadgurudev  describe in details about theses mudra’s ,  follow  the various  rules  and get the success in sadhana.
 You have to show theses five mudra just for 2/2 minute ,  but it is not always necessary things, sometimes in sadhana time you have to show continuous  mudra through other hand.
 If you show theses five mudra every day  , its would be good ,  if not possible  than showing on them on 1st . 11th and 21 th days also serves the purpose.
You have already read about so many higher level mudra in blog, as soon as possible , we are continuous updating  about you  on this topic.
 Those five  mudra you can learn from any  senior guru brother, here we are  doing our best  to  make photographs or video of that and upload on our website.
 In any coming post we will discuss
what are  the position of various teerth?,
 where are they reside?
 Is there any way by which we can   remove illness from that ?
 is it possible that only showing the mudra one can see the astral world?
Like so many  question ‘s answer we will explore in any coming post.
 For today this is enough ….. in continuous.. 
****NPRU****

3 comments:

  1. Dear Arifji
    when the next ank of Tantra kumudi is going to be released

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  2. Dear Arifji
    when the next issue of Tantra Kaumudi is going to be released ?

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  3. Sir, what is the general mudra for chanting Guru Mantra or performing any Guru Sadhanas?
    Which mudra is most preferable for that?

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