सदगुरुदेव अनेको बार कहते एक राजस्थानी कहावत हैं की "ऐ माई एसा पुत , जन दुश्मन होय हज़ार " मतलब हे माँ तुम एक ऐसे पुत्र को जन्म दो किसके कम से कम हज़ार शत्रु तो हो ही” . क्यों तुम्हारा तो कोइ शत्रु हैं नहीं ,क्योंकि शत्रु तो उसी का न होगा जो कुछ लीक से हट कर कर रहा होगा , अब केंचुए जैसे जीवन का कोई क्या शत्रु होगा ,
सच बात भी हैं आलोचना तो उसी की होगी न जो कुछ कर रहा होगा, जो मात्र आखें बंद कर बैठा हो कुछ कर ही न रहा हो वह तो सीधे ही परम हंस हो गया , जीवन में गति शीलता और कार्यशीलता की आवश्यकता हैं ,
आजके युग में सतोगुणी नहीं बल्कि रजो गुणी व्यक्तियों की आवश्यक ता हैं तभी तो इस साधना विधिया और इससे सम्बंधित कार्य को गति शीलता मिल सकेगी .
ठीक इसी तरह जीवन में हमारे कुछ उजाला आये , कुछ सदगुरुदेव के ज्ञान रूपी सूर्य का उदय हमारे मन में हो तब न जीवन की सार्थकता हैं, न की हम अपने जीवन में मात्र ही आलोचक न बने,कि अर्थ हो इस जीवन का , कि हर किसी पर चीखने चिल्लाने पहुँच गए , यह तो इस जीवन का अपमान हुआ न. यह कार्य तो दूसरों पर छोड़ दे,
कम से कम हमारे सदगुरुदेव का यह सपना तो न था, वह चाहते हैं की हम सभी दीपक से बढ़कर छोटे छोटे ज्ञान के सूर्य बने , न की जय कारा लगाने वाले एक भक्त .
परन्तु सच्चाई थोड़ी कडवी हैं पर एक बार निरपेक्ष दृष्टी से सोचे तो हम सभी को साधक बनने कि कोशिश करना चाहिए हैं / था पर हम हो गए एक भक्त ..
हमें सदगुरुदेव भगवान् ,आकाश कि अपरिमित विस्तार नापने के योग्य बनाना चाहते थे, पर हमने एक भक्त बनना ज्यादा पसंद किया
जीवन हैं तो शत्रुता होगी भी पर शत्रु का मतलब क्या हैं वह हो हमारे विरुद्ध खड़ा हैं ,केबल वह शत्रु हैं .... .न ...न .....बल्कि ऐसी सारी परिस्थतिया जो हमारे विपरीत हो , जो मार्ग में वाधा बन रही हो , भौतिक ही नहीं शारीरिक भी और साधनात्मक भी उन सभी का निराकरण हो सके ,
अंतर और बाह्य्गत दोनों कि विपरीत परिस्थतियाँ ही हमारी वास्तविक शत्रु हैं
फिर वह हमारी अत्यधिक बढ़ ती हुए काम वासना हो या फिर आसन पर स्थिर न बैठ पाना हो या फिर कोई शारीरिक रोग ही हो या फिर हमारे जीवन में आने वाला कोई दुर्घटना या फिर किसी अचानक धन हानि ये सभी भी तो शत्रु हैं ही.घर में सुख शांति न हो . ये भी तो उतनी ही घातक हमारी शत्रु हैं .
तो इन सबका निराकरण कैसे हो
क्या कोई उपाय हैं, अब सदगुरुदेव ने तो कोई क्षेत्र छोड़ा नहीं ,वे ही साधना जगत की सर्वोच्चता हैं अनंतता हैं , वही सब कुछ हैं, उन्ही की कृपा ही तो हैं यह प्रयोग जो आपके सामने प्रस्तुत हैं यह अत्यंत सरल प्रयोग को आप कभी भी जब आपको लगे की शत्रु तत्व के कारण आपकी प्रगति में वाधा आ रही हैं तो इस प्रयोग को कर ले .
शत्रु होना जरुरी हैं , पर उनसे हार मान जाना तो जरुरी नही हैं तभी तो जीवन कि पौरष ता हैं मैंने इतनी विधियाँ क्यों लिखाये
शत्रु दमन के लिए इस मंत्र को रोज २१ माला १ हफ्ते तक करे, सोम वार से शुरू करे माला रुद्राक्ष ,समय रात्रि काल मे १० बजे के बाद दिशा उत्तर / पूर्व वस्त्र स्वेत रहे.
रुं रुं रुं रुं रुं रुं रुं रुद्राय शत्रुदमनाय नमः
आज के लिए बस इतना
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Sadgurudev Bhagvaan many times used to say this rajsthani proverb that “ye meri mai aisa put jan ,dushman hoy hazaar “ means o mother become a mother of such a son that have at least thousand enemies” but our life is like earth worm so where is the enemy ?, since enemy will be to those one , who are doing something different.
Its true , that one ,the person will be a centre of criticisms , who is doing something special, not to that fellow who is sitting with closed eyes , he is already a paramhans.
Like that . our life will have rays of Sadgurudev bhagvaaan’s divine knowledge , than only our life has a purpose , its not good that we become only a criticizer, this is a accuse to life. leave this criticism too others.
At least that was not the dream of our Sadgurudev bhagvaan , he wants that all of us turn to small sun from a small Deepak., we should not be just a shishy who can say only “ jai Sadgurudev”
When there is life , then surely , some type of enemy will also, we have,. but whom we call a shatru ??? to that who stand against us , or our physical or financial or mental problem. Theses all above mentioned situation are our enemy.
intrernal and external both are the problem.
Like that we cannot sit longer in our aasan , or worried about ever increasing our sexual desire in sadhana kaal or physical illness or our near and dear one. Or any other type of accident. All theses are known as shtru./enemies.
Than how we can solve that is there any way to achieve that ,
Sadgurudev Bhagvaan did not leave any field on sadhana on that he not taught to all of us, since he is the param purush , ultimate in sadhana jagat., this is his blessing that are coming as this prayog. Do this prayog any time when you think shatru are creating problem.
Do jap this mantra for one week with a jap of 21 round of rosary for each 7 days. Start this prayog with Monday, facing uttar /purv direction and jap time will be after 10pm night. And not only aasan but the clothes of you should wear be white.
Mantra :
Rum rum rum rum rum rum rum rudraay shtrudamnaay namah ||
This is enough for today
****NPRU****
which mala to use
ReplyDeletearif bbhaiya , ek gurubhai ji rahul sharma from pune ne apko video mail ki hai mudra ke baare mein.. pls unko reply to karein wo blog ke member bhi hain...unki email id hai...
ReplyDeletersrahul1978@gmail.com