पिछले दो लेखो मे हमने
ये जाना की विज्ञान क्या है, विज्ञान की ज्ञानप्राप्ति के पीछे का चिंतन, विज्ञान
का मूल क्या है, प्रकृतिभेद और विज्ञान और तन्त्र का आपसमे क्या सबंध है और इन
विषयो की महत्ता किस प्रकार से है. इस शृंखला मे विज्ञान और उसके तन्त्र भेद पर
सामान्य प्रकाश डालना ही मुख्य उद्देश्य है, पूर्ण रूप से एक एक विज्ञान और उसके
तन्त्र भेद को समजने के लिए पूरा जीवन भी कम पड़ जाए, ये कोई दो दिन मे पूर्णता
प्राप्त करने की वस्तु नहीं है. रहस्य के प्रति आकर्षण होना मनुष्य का सामान्य
स्वभाव है, लेकिन उसे समजने के लिए जो समर्पण, ललक, धैर्य और कड़ी मेहनत की ज़रूरत
होती है उसके बारे मे सोच विचार कर के ही साधक अपने बारे मे खुद मंथन कर ले. आज के
युग मे सम्पूर्ण रूप से साधक का भी दोष नही है, जिनको इन विद्या का ज्ञान है वो
बताने को तैयार नहीं है और जिनको साधना का पहला अक्षर भी ज्ञात नही है उनके पीछे
हजारो लोग दौड के खड़े हो जाते है चने के जाड़ पर बिठाने के लिए. सिखने वाला मे इतनी
हिम्मत होनी चाहिए की वो दावा कर सके की वो विद्याप्राप्ति का अधिकारी है लेकिन
जिनके पास सिखने समजने के लिए जाए उसके पास कमसे कम ५० ग्राम तो ज्ञान हो, अंधी
दौड से पूर्णता का भ्रम मिल सकता है लेकिन पूर्णता नहीं. पूर्णता तो कड़ी महेनत
मात्र से मिलती है वो भी सद्गुरु से. खेर, विषयान्तर के लिए माफ़ी चाहूँगा, आज के
युग मे हमारी प्राचीन धरोहर की जो दुर्दशा सदगुरुदेव की आँखों ने देखि थि, वही वेदना
युक्त आँखे याद आजाती है तो रोक नही सकता.
इसी शृंखला मे कुछ महत्वपूर्ण विज्ञान और उनके तन्त्र भेद के बारे मे प्राथमिक चर्चा करेंगे, जैसे की काल व् क्षण, रस या रसायन, सूर्य, ध्वनि, पंच तत्व इत्यादि.
इसी शृंखला मे कुछ महत्वपूर्ण विज्ञान और उनके तन्त्र भेद के बारे मे प्राथमिक चर्चा करेंगे, जैसे की काल व् क्षण, रस या रसायन, सूर्य, ध्वनि, पंच तत्व इत्यादि.
इससे पहले हम ये जान ले
की जैसे विज्ञान के मूल मे सिद्धांत है उसी प्रकार तन्त्र के मूल मे ‘प्रक्रिया’
है. किसी भी प्रक्रिया को करने पर उसका एक निश्चित परिणाम प्राप्त होता है.
सिद्धांत और प्रक्रिया मे एक हल्का सा भेद है. जैसे की आपने कागज़ के टुकड़े को उसके
स्थान से हटाया. तो उसका सिद्धांत ये है की शक्ति लगाने पर आप उस चीज़ को अपने मूल
स्थान से हटा सकते है. लेकिन तन्त्र ये है की किस प्रक्रिया से इसे हटाया जाये.
हाथ से, पैर से, मुख से, फूंक मार के इत्यादि. तो तन्त्र की यही प्रक्रियाए मूल आधार
बनती है एक क्रम का, जो की उस सिद्धांत को एक विशेष माध्यम द्वारा ज्ञान रूप मे
अपने अंदर स्थापित कर देता है.
रस विज्ञान : (यहाँ हम पहले रस के
विज्ञान पक्ष से सबंधित चर्चा करेंगे और
बाद मे रस तन्त्र के पक्ष मे.)
इसी विज्ञान को पारद
विज्ञान रसायन विज्ञान या स्वर्ण विज्ञान भी कहा गया है. पारद शिव का वीर्य है.
शिव और शक्ति के संयोग से इस सृष्टि की विकास हुआ उसके मूल मे पारद ही मुख्य आधार
है. रस को चेतनावान कहा गया है, समस्त धातुओ मे ये एसी धातु है जिसमे चेतना है, मतलब
उसकी स्वयं के बोध का ज्ञान. यु उसे सजीव धातु भी कहा जा सकता है. मूल रूप ये एक
एसी धातु है जो की सभी धातु से भिन्न गुणधर्मो से युक्त है.
रस विज्ञान मे मुख्य
पुरातन विज्ञान सिद्धांत –
धातु मे निहित अशुद्धि
चेतना को कमज़ोर करती है, मतलब की आत्म बोध को कमज़ोर करती है
जिसमे चेतना है सिर्फ उसकी
आतंरिक क्षमता का विकास किया जा सकता है
चेतना से प्राप्त
क्षमता का विकास परिवर्तन को जन्म दे सकता है जिसमे परिवर्तन के प्रमाण का
आधार चेतना और निहित क्षमता के ऊपर होता
है.
पारद
विज्ञान से सबंधित सेकडो लेख ग्रुप और ब्लॉग मे पहले से ही दिए जा चुके है अतः वही
तथ्यों को वापस यहाँ देने के लिए कोई चिंतन नहीं है, जिज्ञासु गुरु भाई बहेन इस
सबंध मे पुरानी लेखमालाओ को देख सकते है. यहाँ पर इस विषय के कुछ मूल तथ्यों को ही
सामने रख रहा हू. रस को चेतनावान कहा गया है, समस्त धातुओ मे ये एसी धातु है जिसमे
चेतना है. यहाँ पे विज्ञान का पहला सिद्धांत ये लागु होता है की धातु
मे निहित अशुद्धि चेतना को कमज़ोर करती है, मतलब की आत्म बोध को कमज़ोर करती है इसी
लिए उसे विशेष संस्कारो से शुद्ध करने का विधान है. इस विज्ञान से सबंधित दूसरा
सिद्धांत यह है की जिसमे चेतना है उसकी क्षमता का विकास भी किया जा सकता है. अगर
हम बीमार है तो धीरे धीरे हमारी चेतना कमज़ोर पड़ने लगती है. लेकिन अगर हम पूर्ण
स्वस्थ है, कोई दोष नहीं है तो फिर हम अपनी क्षमताओ का विकास कर सकते है ये बात आप
सब लोग जानते ही है. इस प्रकार पारद का विभ्भिन पदार्थो के साथ कई प्रकार से संयोग
करा कर उसकी क्षमताओ का विकास किया जाता है. तीसरे नियम के अंतर्गत पारद के ऊपर की
गयी प्रक्रियाओ से उसके परिवर्तन करने की शक्ति का प्रादुर्भाव होता है और उसी
क्रम मे उसकी परिवर्तन करने की शक्ति को वेध क्षमता के नामसे जाना जाता है जिसके ५
प्रकार है . (क्रमश:)
In last two posts we came to know
that what does science means, basic importance of generating science knowledge,
base of science, type of nature and relation in-between tantra & science,
and what does the importance they carry in the subject. The basic motto of this
series is to throw light on basic of sciences and their tantra differentiation.to understands one single science and the tantra
differentiation completely, the life may act less, this is not a two day
show. To be attracted toward mysteries
is basic human nature, but to understand that one needs devotion, passion,
patience and hard work after wondering all this sadhak can check them self and
decide. In this time duration, it’s not always sadhhak’s fault, those who have
knowledge of this science are not ready to speak on this subject at all and
those who do not knew any single thing about sadhana, thousands of people run
behind those with a crown in their hand to make them king. The learner should
have courage to put forward his right to have knowledge but one should go in front of those who do have at
least a bit knowledge of it, in the
blind race you may have illusion of completeness but not completeness itself. Completeness
could only be gain through hard work and that too from sadguru only. Anyways, I
apologizes for digress, in this era the plight of our nation’s teasure
knowledge which was seen by sadgurudev’s eyes, whenever those eyes comes in my
memory it is hard to stop feelings.
In this series, we’ll discuss about
basic concepts of some important sciences and their tantra differentiation.
Like kaal & kshan, ras or rasayan, surya, dhwani, pancha tatva etc.
Before this, we should know that the
way concept is the base of science; the base of tantra is ‘processes’. Any
process done will definitely give a kind of result. There is a light difference
between concepts and processes. For example you moved a piece of paper from its
place. So in this, the concept is you can move that thing from its original
place if a kind of power is applied. But tantra deals with the process which
can make it move. With hand, with foot, with mouth, with puff etc. So, these processes of
tantra act as a base of an order
which allows that particular concept to establish inside us in the form of
knowledge.
Ras Vigyan : (here first we will
discuss about science side of rasa and then tantra side of the same. )
This science has also been termed
as paarad vigyan, rasayan vigyan or swarn vigyan. Paarad is semen of the shiva.
Paarad is main base for the development of world when shiva and shakti gets
involves in merging. Ras is termed holder of conscious, in all metals, this is
the metal which have consciousness means it has knowledge of its own. This way
it is also termed as living metal. Actually, this is the only metal which owns
properties of all metals.
Basic ancient science concepts in
ras vigyan –
Impurity of the metal can feeble the
consciousness, means can cause weakness in self knowledge
Those who have consciousness could
only be developed internally
Power generated through
consciousness can give birth to the development in which quantity of
development depends on the consciousness and the Inherent ability.
Hundreds of articles related to the
parad has been given in the blog and group previously, thus, there is no need
of repeating those here again. Guru brother/sister who owns will to know brief
can go through old articles. Here I am sharing some basic facts related to the
subject. Only Rasa is called conscious among all metals. Here first concept of
the science is applicable that Impurity of the metal can cause weakness in
consciousness for that only there are purification samskaras. Relating this
science the second concept is those who have consciousness could only be
developed internally. If we are sick, then our consciousness becomes dull
gradually but if we are completely healthy than we can develop our abilities
this you people are aware of. This way parad is incorporate with various items
and development of the basic ability of paarad is increased. Under the third
rule with the processes done on the parad cause the development of the
abilities which can cause transformation and this way the transformation power
of the same is known as Vedha power which has five types.
****NPRU****
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