Thursday, October 27, 2011

mahakali sadhana to know about nearer future


स्नातक शिक्षा के मध्यकाल के दिनों मे एक ब्राम्हण परिवार के साथ रहता था. वैसे परिवार मे तो कोई था नहीं एक दादी थि जिनकी उम्र करीबन ७० के आसपास रही होगी जो ज्यादातर अकेली रहती थि उस घर मे. उनके पुत्र व् पुत्रवधु दोनों ही व्यवसाय मे व्यस्त रहते थे और ज्यादातर शहर मे अपने दूसरे मकान मे ही रहते थे बस खाना खाने आ जाया करते थे कभी कभी. दादी का मकान बड़ा था. शुरुआतमे जाते ही उन्होंने पूछ लिया था किस खानदान से हो? मेने कहा दादी मे क्षत्रिय हू. अच्छा हम ब्राम्हण हे तो तुम्हे भी उसी प्रकार रहना होगा यहाँ सात्विक अन्न के अलावा कुछ नहीं चलेगा. मेने कहा जी ठीक है. आगे कहा की क्षत्रिय हो तो माता को तो मानते ही होगे. मेने कहा जी मानता हू. उन्होंने कहा की हमारी इष्ट महाकाली है. मुझे ज़रा आश्चर्य हुआ क्यों की उस तरफ ब्राम्हण की इष्ट महाकाली हो ऐसा संभव नही होता है. उन्होंने बात आगे बढ़ाई... कई साल पहले जब हमारे पुरखे यहाँ रहने आए थे तो महाकाली की मूर्ति ज़मीन मे से निकली थि और सभी को प्रत्यक्ष दर्शन दिए थे. माँ ने खुद ही कहा था की मे तुम्हारे वंश की इष्ट हू और तब से हमारे वंश मे से कोई भी यहाँ आता हे तो उस मूर्ति को देखते ही उन्हें महाकाली के प्रत्यक्ष दर्शन होते थे. लेकिन कुछ साल पहले यह सीलसिला बंद हो गया. मेने कहा की क्या आपने उनके दर्शन किये हे प्रत्यक्ष...? उनका जूरियो वाला चेहरा चमचमा उठा. आँखों मे चमक आ गयी और एक मोहक मुस्कान के साथ कहा की हाँ कई बार. आज भी माँ प्रत्यक्ष दर्शन देती रहती है. मेने कहा की क्या आप कोई जाप वगेरा करती हे क्या? उन्होंने कहा की नहीं माता का वरदान है की जब भी उन्हें याद करे वो किसी न किसी रूप मे आ जाती है. इसी के साथ उन्होंने अपने मंदिर वाले कमरे की और इशारा कर दिया. मेने कहा क्या मे जा के देख सकता हू? उन्होंने कहा की ज़रूर इसमें पूछने वाली क्या बात है. घर के अंदर ही छोटासा मंदिर था. तिन चार शुद्ध घी के दीपक जल रहे था साथ ही साथ लोहबान धुप की खुशबू मन मे श्रद्धा का संचार कर रही थि. पीतल की वह छोटी सी मूर्ति थि एक उँगल जितनी लेकिन इतना तेज जर रहा था उस मूर्ति से की बस नज़र हट ही नहीं रही थि. बहोत ही मुश्किल से अपने आप पर नियंत्रण कर के आंसूओ को रोका की पता नहीं दादी क्या सोचेंगी. कुछ दिनों मे ही मेरी इच्छा दक्षिणा साधना करने की हुई. दादी के पास जाके कहा की दादी अगर आप अन्यथा ना ले तो क्या मे मंदिर मे बैठ कर मंत्रजाप कर सकता हू रात को? उन्होंने बड़ी प्रसन्नता के साथ स्वीकृति दे दी. एक रात मंत्रजाप करने के बाद दूसरे दिन दादी ने कहा की कल तो तू सुबह तक बैठा रहा था मंदिर मे माँ का बड़ा भक्त लगता हे और निश्चल भाव से हसने लगी. उनकी हसी मे मेने भी अपनी हसी पूरी तो वह अचानक गंभीर हो गई और बोली आज से मंदिर की जिम्मेदारी तेरी. धुप तुजे ही लगाना है ( उनके घर के ६ कमरों के साथ साथ गलियारे मे धुप करने मे भी आधा घंटे का समय लगता था) और आरती भी तू ही करेगा अब से. मेने खुशी से उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार किया. रात को मेरी साधना चलती थि. और यु ही वो धीरे धीरे मुझसे खुलने लगी. इन्ही दिनों मुझे काम के सिलसिलेमे ४ महीने के लिए मुंबई जाना था. मेने कहा दादी मुंबई जा रहा हू ४ महीनो मे लौटूंगा. मेरी तरफ उन्होंने अजीब ढंग से देखा और मुझे ले कर मंदिर मे चली गयी. वे खुद भी बैठी मुझे भी बिठाया थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा की माँ कह रही हे की तू कुछ ही दिनों मे वापिस आ जाएगा. मेने कुछ कहा नहीं लेकिन मन अविश्वास विश्वास मे डौल रहा था. क्यों की मेरा चुनाव कार्य लक्षि था और मेरे लिए किसी भी प्रकार से बिच मे लौटना संभव नहीं था. लेकिन जब मुंबई से १५ दिन मे ही लौट के आना पड़ा तो.... खेर इसी तरह समय समय पर वे कई बार मेरी बीमारी कब ठीक होगी या मुझे कैसे और कहा काम मिलेगा या मुझे कब कहा जाना पड़ेगा; नाना प्रकार की भविष्य से सबंधित तथ्य कई बार वो बताती जो की एक दम शटिक ही उतरती. मेने उनसे कहा भी की आप ये कैसे कर लेती है तो वे हमेशा कहती की काल से ऊपर भी महाकाल की जो शक्ति है वो महाकाली है तो क्या काल को जाना नहीं जा सकता... धीरे धीरे तंत्र के क्षेत्र मे मुझे समज आया की महाकाली तो काल को अपनी भृकुटी से भी नियंत्रित कर दे. और कालज्ञान के साधको के लिए महाकाली की साधना अत्यधिक महत्वपूर्ण है. महाकाली सबंधित पूर्ण काल ज्ञान के लिए कई विधान प्रचलित है जो की बहोत ही जटिल व् गुढ़ है. लेकिन निकटत्तम भविष्य को जानने के लिए एक सामान्य विधान इस रूप से है जो की व्यक्ति को भविष्य के ज़रोखे मे जांक कर देखने के लिए शक्ति प्रदान करता है

किसीभी शुभदिन से यह साधना शुरू की जा सकती है. इसमें महाकाली का विग्रह या चित्र अपने सामने स्थापित करे और रात्री काल मे उसका सामान्य पूजन कर के निम्न मंत्र की २१ माला २१ दिन तक करे.

काली कंकाली प्रत्यक्ष क्रीं क्रीं क्रीं हूं

साधना काल मे लोहबान का धुप व् घी का दीपक जलते रहना चाहिए. यह जाप रुद्राक्ष या काली हकीक माला से किया जा सकता है. साधना के कुछ दिनों मे साधको को कई मधुर अनुभव हो सकते है.


While passing through my graduation, I used to live with a bramhin family. Rather there was no one in the family but only an old lady of around 70 years whom I used to call Dadi most of the time she used to remain alone in the house. Her son and daughter in law always used to remain busy in business and were living most of the time in their separate house far in the city sometimes they used to come for meal. The house of daadi was big. When I met first she asked instantly which cast do you belong to? I said I am from kshatriya family. Ok. We are bramhin and neither of the things accept pure vegetation will be approved here. I said all right. Further she told that you are kshatriya then you must be devoted to Maata (goddess). I answered yes. She further said that our Isht is Mahakaali. I felt a bit strange because at that side it was not so often to see bramhins who believe Mahakaali as their Ishta. She went ahead more in talk...before so many years when ancestry people came to this place at that time the idol of mahakaali came itself up from floor and everyone got her glimpse. Mother herself told ‘I am ishta of your family’ and since then whosoever from the family comes here, they get glimpse of mother. But before few years that stopped. I asked her “have goddess ever appeared before you?” her wrinkled face turned to glow. Eyes turned shinier and with a sweet smile she replied yes. Many times. Today even she gives her glimpses. I again asked ‘do you perform any mantra for that?’  She replied that no, mother blessed us that whenever we remember her she will come in either any form. With that she show me figure pointing at her temple room. I asked that should I allowed go in and see? She told me there is nothing to ask about. Temple was inside house only.  3-4 lamps of pure clarified butter were lighting brightly with that lohbaan dhoop was creating a devotional atmosphere. The brass idol of goddess was about 3 inch about but the aura and power was so much so that I was not able to remove my eyes from there. With a big effort I controlled my tears to roll away from my eyes wondering that what dadi will think. In few days my will wanted to do dakshinaa sadhana. I went to dadi and asked that if you don’t mind can I do mantra chanting during night in temple? She very willingly granted my request. When I did chantings for one night on the second night dadi told me yesterday you kept on sitting till early morning seems like a big devotee of the mother and she started laughing lovingly. I too started laughing with her but all of a sudden she stopped and turned to very serious face from today responsibility of the temple is yours. You will offer dhoop (to offer dhoop in 6 rooms and galleries of the house it used to take half an hour.) and aarati will also be done by you. Very willingly I accepted. In the night time, my sadhana used to go on. And slowly her new face came in front of me. In those days I was suppose to go to Bombay for four months. I said Dadi I am going to Mumbai and will return after 4 months. At that time she looked at me in mysterious way and she took me to temple. We both sat there after a short time she told me “mother is telling that you will come back in few days only”.  I didn’t responded but I was in between trust and no trust. Because there was no chance of coming me back in between as my selection was work oriented. But when I returned in 15 days from Mumbai I had to believe….anyways,  like this at many moments she used to predict about future which always used to be completely accurate like when I will be normal from my sickness or where I will get works or at what time I would be going where etc. I even asked her that how can you do that in reply she always used to say that more ahead then kaal; the shakti of mahakaal is mahakaali so cant we know about the kaal(future)?...

Slowly mahakaali can control the time even with her single eye gesture. And for the sadhak of kaal gyan, mahakaali sadhana is very important. Mahakaali related sadhana for to have complete knowledge of the times are there but those are complicated and secret in nature. But to know the nearer future a simple process is a follow which allow a person to see through the window of the future.

This sadhana could be started on any auspicious day. Establish picture or idol of mahakaali in front of you and in the night time do the poojan of the same. After that chant 21 rounds of the following mantra for 21 days

Kaali kankaali pratyaksh kreem kreem kreem hoom

During sadhana time lohbaan dhoop and lamp of the ghee should be kept lighting. Chanting could be done with rudraksha or black hakeek rosary.  In few days of sadhana, sadhak may have nice experiences.


   


                                                                                               
 ****NPRU****   

1 comment:

  1. jai gurudev,
    jis kaali haquik mala se kaal bhairaw sadhna aur aghor vashikaran sadhna hui hai, usi mala se kaali ka mantra ka jaap kar sakte hain? kyun ki teeno sadhna me kali haquik mala ka hi use karna hai. ya phir teeno sadhna ke liye alag alag maala use karna hai? kripaya batane ka kast karein.

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