क्या ये सच है ??? बस
यही सोचता रहा उस रात ..... आखिर क्यूँ
उसी बात को मैं बार बार सोच रहा था
.
अब नींद भी नहीं आ रही
थी मुझे , पर क्यों??
बस अब नहीं समझ में आ
रहा है , अब तो कल मैं सदगुरुदेव से पूछ कर ही रहूँगा. दर असल में हुआ ये था की
नवरात्री का शिविर चल रहा था और उस दिन प्रथम सत्र में लगभग १२ बजे गुरुदेव ने
अचानक अपने प्रवचन के मध्य बताया की “ तुम लोगो से मेरे सम्बन्ध आज के नहीं हैं
बल्कि मैं पिछले २५ जन्मों से तुम्हारा गुरु हूँ” और बस तभी से ये बात मेरे दिमाग
के दरवाजे खटखटाने लगी और उसके बाद तो बस बैचेनी सी मेरे मन में समा गयी थी. और अब
प्रतीक्षा थी तो बस सदगुरुदेव से मुलाकात की.......
आखिरकार अष्टमी को उनसे
मुलाकात संभव हो पाई और वो भी खुद
उन्होंने ने ही बुलाया और सर पर चपत मारकर कहा – अब तेरे दिमाग में ये क्या नया
घूमने लगा , तू कभी अपने दिल दिमाग को आराम भी देगा.
जी आप ने ही तो कहा है
की शिष्य बनने के पहले साधक को जिज्ञासु होना चाहिए- मैंने आँखे झुका कर उत्तर
दिया.
हाँ बेटा ये सही बात है
और उससे भी ज्यादा जरुरी ये है की,चाहे गुरु सर्व समर्थ हो तब भी अपने मन के भाव
उनके चरणों में लिख कर या बोलकर व्यक्त करना ही चाहिए .
पर यदि उनसे मुलाकात
संभव नहीं हो तब ????
क्या तेरे पास
गुरुचित्र भी नहीं है, उसके सामने व्यक्त कर .
और यदि कभी गुरुचित्र
भी पास में न हो तब??
बेटा गुरु और शिष्य
प्रथक नहीं होते हैं. बल्कि वो दो देह औए एक प्राण ही होते हैं, भला आत्मिक रूप से
अलग अलग रहकर कोई कैसे शिष्य बन सकता है. जब गुरु के प्राणों से साधक के प्राण मिल
जाते हैं या एकाकार हो जाते हैं तभी तो वो साधक सच्चे अर्थों में शिष्य बन पाता
है. गुरु के प्राणों में उसके प्राण एक
तीव्र आकर्षण से जुड जाते हैं , और ये
जुड़ाव इतना तीव्र होता है की इसे विभक्त किया ही नहीं जा सकता .
और खुद ही सोच जब
आत्मिक रूप से दो प्राण एकाकार हो जाते हैं तब चाहे शिष्य कितने बार भी जन्म ले ले
, कही भी जन्म ले ले, गुरु अपने उस अंश को ढूँढ कर अपने पास बुला लेता है , ठीक
वैसे ही जैसे मैंने तुम सभी को खोज कर बुलाया है. पर ये इतना सहज नहीं होता है ,
क्योंकि तब वो शिष्य अपने संबंधों की
तीव्रता को महसूस नहीं कर पाता है और न ही उसे अपने जीवन का मूल चिंतन ही याद रहता
है , उसे तो बस अपने आस पास के स्वार्थलोलुप रिश्तों की ही याद रहती है और प्रेम
की सत्यता को तो वो समझ ही नहीं पाता. बस जिन्हें वो शुरू से देखता आया,वो रिश्ते
ही उसकी दृष्टि में सत्य होते हैं. पर जब शिष्य गुरु के प्राणों के तीव्र आकर्षण
से उनके श्री चरणों में पहुच जाता है तो गुरु उसे पूर्णत्व प्रदान कर ही देते हैं.
क्या मैं अपना पिछला
जीवन देख सकता हूँ ?
हाँ क्यूँ नहीं देख
सकता. पिछला जीवन तो कोई भी साधक देख सकता है , यदि वो
मदालसा साधना संपन्न कर ले तो ये
क्रिया सहज हो जाती है . इसी प्रकार पारदेश्वर के ऊपर त्राटक की
क्रिया कर साधक अपने विगत जीवन को देख सकता है.
पर मुझे वो सभी पूर्व
जन्म देखने हैं जिनमे मैं आपके श्री चरणों में था और आपके दिव्य साहचर्य से मेरे
जीवन सुवासित और पवित्र हुए थे .
क्या ये संभव है??
हाँ मेरे बेटे यदि
उपरोक्त साधनाओ को साधक लगातार करता रहता है तो निश्चय ही वो और ज्यादा जन्मों को
देख सकता है. पारद शिवलिंग पर त्राटक की क्रिया तो होनी ही चाहिए .
क्या मैं पिछले जीवन
में की गयी साधनाओ को इस जीवन से जोड़ सकता हूँ??
निश्चय ही जोड़ सकते हो.
पर एक बात याद रखो की पिछले जीवन को देखना और उसमे की गयी साधनाओ का इस जीवन से
योग करना ये दो अलग अलग बाते हैं. क्यूंकि
उन साधनाओं को इस जीवन से जोड़ने में जिस ऊर्जा और शक्ति की आवश्यकता होती है वो सामान्य रूप से एक नए साधक में नहीं
होती है.
तब ये कैसे हो सकता है?
यदि गुरु अपने तपः बल
से साधक को एक विशेष दीक्षा दे तो निश्चय ही ऐसा संभव हो जाता है , क्यूंकि चाहे
साधक ने कितने ही जीवन में साधनाएं की हो पर अत्यधिक कठिन होता है पिछले सात
जीवनों की शक्तियों को एकत्रित करना सम्पूर्ण चक्रों के जागरण के बगैर उनकी
चैतन्यता को प्राप्त किये बगैर ये संभव ही नहीं है , परन्तु जब सद्गुरु उसे ऐसी
विशेष दीक्षा दे दे और स्वयं के प्राणों का घर्षण कर शिष्य को वो मन्त्र प्रदान कर
दे तो साधक उस मन्त्र का पारद
शिवलिंग पर त्राटक करते हुए जितना ज्यादा जप
करता जायेगा उसे वो सब सामर्थ्यता धीरे धीरे प्राप्त होते जाती है फिर चाहे उस
शिष्य ने अपने पिछले जीवनों में किसी भी प्रकार की , कितनी भी साधनाएं की हो चाहे
वो किसी भी शक्ति की हो , वे सभी साधनाएं और उनका पूर्ण प्रभाव साधक को इसी जीवन
में प्राप्त हो ही जाता है और साधक उन सभी प्रक्रियाओं में पूर्ण रूपें पारंगत हो
जाता है. और सात जीवनों की यात्रा के बाद तो साधक की यात्रा इतनी सहज हो जाती है
की उस मन्त्र के अभ्यास से से वो और पीछे जाते जाता है और उन शक्तियों को क्रमशः
प्राप्त करते जाता है. और सद्गुरु हमेशा यही चाहते हैं की उनका शिष्य अपने
अस्तित्व को पूर्ण रूपें समझे और अपने लक्ष्य को प्राप्त करे. इससे ज्यादा गुरु को
और क्या चाहिए .
क्या मुझे वो दीक्षा
प्राप्त होने का सौभाग्य मिल पायेगा? इसे प्राप्त करने की पात्रता क्या है?
इसके पहले तीन ऐसी
दीक्षाएं हैं , जिन्हें प्राप्त कर साधक उससे सम्बंधित साधनाओं को पूर्णता के साथ
संपन्न करे तो निश्चय ही साधक को सद्गुरु उसके आग्रह पर ये अद्विय्तीय दीक्षा
प्रदान करते ही हैं और साथ ही साथ इससे जुड़े रहस्यों को उजागर भी कर देते
हैं.
सदगुरुदेव के आशीर्वाद
से मैंने उन तीनों दीक्षाओं को प्राप्त कर उनसे सम्बंधित साधनाएं भी संपन्न की और
तब मैंने गुरुदेव से उस अद्भुत दीक्षा और उससे सम्बंधित रहस्यों का ज्ञान प्रदान
करने के लिए प्रार्थना की. तब उन्होंने अत्यंत करुणा भाव से मुझे वो पूर्ण क्षमता
युक्त अद्भुत दीक्षा प्रदान की जिसे सिद्धाश्रम के योगियों के मध्य “सप्त जीवन सर्व देवत्व सर्व साधना
सिद्धि दीक्षा” के नाम से जाना जाता है.
बाद में मैंने उनके निर्देशानुसार साधनाओं को
क्रियाओं को संपन्न कर उन रहस्यों को समझ पाया जो मेरे पिछले जीवन से जुड़े हैं.और
आज मैं जो कुछ भी समझ पा रहा हूँ उसके मूल में यही रहस्य है. जीवन का सौभाग्य होता
है साधनाओं को संपन्न कर अपने पिछले जीवन को अपनी इन्ही आँखों से देख पाना,
क्यूंकि तभी तो हमें अपने इस जीवन के दुर्भाग्य का कारण ज्ञात हो पाता है.
क्या अब भी हम गिडगिडाकर ही जीवन जीते
रहेंगे. अब मर्जी है आपकी क्यूंकि जीवन है आपका.
Is this true????Only this I kept thinking that night….But
Why, I was thinking only this one point again & again?????Even, I was
restless, cannot make for the sleep…..But, not able to make Why????
Now, it’s enough, I will definitely ask Sadgurudev tomorrow
anyhow…
Actually what happened there was Navratri Encampment and on
the first day in first session approximate at 12:00 pm in the mid of the
session Gurudev suddenly told that the relations between You and Mine is not
from today, but we are bonded as a Shishya and a Guru from last 25 birth-cycles……&
that was the point which got stucked in my mind and I became so
curious….only, I was waiting for the moment I will meet Sadgurudev….
At last, on Ashtami day, I was able to meet Sadgurudev &
that too he called me up & patted on my head saying –(All the conversation
was between me & Gurudev)
Gurudev - now
what new is running in my head & can you give rest to your heart &
mind???
Me - Gurudev, you
only told that a devotee should have the ability to be curious – I answered by
lowering my eyes down….
Gurudev -Yes, My
son this is very much true, but the more important thing is no matter the Guru
is wholesole,still express the emotions either in written or oral in his
feets…
Me – But, what if
meeting is not possible???
Gurudev - Don’t
you have any of the Guru Picture with you? Do express in front of his
picture...
Me – But, what if
Guru Picture is also not with you???
Gurudev – My Son, Guru and Shishya are not separate, they
are two bodies but one soul….You only tell, how departed from the soul, one can
be able to act as a Shishya…..When the devotees get attached with the soul of
the Guru, then only a devotee is able to become a true Shishya…The soul of the
Shishya gets attached with the Guru soul with great attraction & this
attraction is so much bonded that it cannot be departed….
& now you only think when the two different life becomes
one through the soul, then no matter the Shishya takes infinite birth he will
be identified by his Guru from anywhere and will be called near to him just as
I have called all of you…..But, this is not so easy, because at this time the
Shishya cannot realize the intensity of the relations and neither he is able to
recollect the main base of his life…He is just carried away with the relations
which are near to him and is unaware of the fat of true love because he
believes only those relations which he had seen since his childhood and grown
up with them….But, as soon as he devotes himself into the guidance of the Guru,
the Guru provides him the completeness of the life….
Me – Can I
experience my previous birth???
Gurudev - Yes,
why not???Any devotee can see this if he performs – Madalsa Sadhna, this
act will become easy….Simliarly, by performing Tratak Kriya on Pardeshwar will also help in experiencing of his previous birth….
Me – But, I
want to experience all my previous birth in which I was devoted to you and my
life got blessed under your shelter…..Is this possible???
Gurudev - Yes,
my Son, if you will practice the above Sadhna regularly, you will able to feel
the experience of more & more previous birth life…. & yes Tratak Kriya on Pardeshwar is must…
Me – Can I get
connected with the previous devotions also in this life???
Gurudev -Yes, you
can definitely do it but do remember to experience previous birth and to connect
the devotions with this life are totally different from each other because to
connect those devotions from that life to this life requires too much energy
and power and a new devotee does not contains that much of amount….
Me – Then, how is
this possible???
Gurudev - If
the Guru by recollecting all his devotional power and energy gives a special
convocation (Deeksha) to the Shishya, it becomes possible…because no matter a
devotee has worked so hard for the devotions but to recollect the last 7 births
energy and to activate the whole chakras & auras without the activations of
these energy is very much difficult….But, when the Guru gives such a special
convocation and keep his all his life on sake for the Shishya and gives that
mantra & when the Shishya performs that Mantra on Parad Shivling by the
Tratak Kriya he is able to become capable enough to recollect & experience
all those energy & powers which he conducted or performed in his previous
births & becomes expert in all these processes….& after the 7 births
this journey becomes so easy that the devotee can go back to as many life and
acquire as much energy and power he can & Sadgurudev always wants this only
that his Shishya understand the motto of his existence and achieve his target
and aim…..
Me – Will I be
blessed with this convocation & how can I make myself eligible for the
same???
Gurudev -Before
this convocation, the devotee needs to acquire 3 other convocations by which he
can perform any act in a complete manner and when he accomplished this thing,
the Sadgurudev not only provides the most special convocations on request of
the devotee but also explore the many hidden secrets related to all these acts…
With the blessings of the Sadgurudev performed all the 3
convocations and accomplished all the other devotions also & then I
requested Sadgurudev to provide me the special secrets of that devotions and
then the Sadgurudev with all his love and blessings told the most special
convocation which is known as – “Sapt
Jeevan Sarv Devatv Sarv Sadhna Siddhi Deeksha” in the camp of the devotes of the Siddhashram…
Later on, in guidance of the Sadgurudev I performed all
those devotions and was able to understand all those hidden secrets which were
connected with my previous births and today also, if I am able to understand
all the other aspects are just because of the fact which lies in base of all
these acts…..
This is only the blessings and a good fortune to see, know
and learn about the past and previous birth life as because only after this we
are able to understand about all the misshapennings of this present life…
we can devote our
lives in Sadgurudev holy feets…..Still, you want to live on others mercy????
Well, the decision is yours as the life belongs to you….
****NPRU****
for our facebook group-http://www.facebook.com/groups/194963320549920/
Aape jeevan ke anubhav aur sadhneyan dono adivtiya hoti hain. Thanks Jai Gurudev
ReplyDeleteCAN YOU PEOPLE PROVIDE MAHA SIDDH GUTIKA........?
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