Wednesday, November 30, 2011

AAVAHAN-21 (SOHAM KRIYA)


जैसा की कहा गया है अनुलोम विलोम के ५ भेद है. पूरक और रेचक की प्रक्रिया तथा दोनों नथुनों से यह भेद का अस्तित्व है.

१ ) दाहिने नथुने से पूरक तथा बाएँ नथुने से रेचक

२ ) दाहिने नथुने से पूरक तथा उसी नथुने से रेचक

३ ) बाएँ नथुने से पूरक तथा दाहिने नथुने से रेचक  

४ ) बाएँ नथुने से पूरक तथा उसी नथुने से रेचक  

५ ) दोनों नथुनों से पूरक तथा रेचक की प्रक्रिया

प्रथम चार प्रक्रिया मे जब एक नथुने से पूरक करा जाए तब दूसरी तरफ के नथुने को अंगूठे से दबा दिया जाए उसके बाद कुम्भक कर के रेचक के समय भी दूसरी तरफ के नथुने को अंगूठे से दबा दिया जाए.

जब भी पूरक करे तब ‘सो’ का मन ही मन जाप करे, जितना साँस को खींचें का समय होता है, मंत्र का लय  भी उतना ही लंबा रखे. कुम्भक के समय जितना भी संभव हो आज्ञा चक्र पर आतंरिक रूप से ध्यान देते हुए सोऽहं मंत्र का जाप करे. रेचक करते समय सिर्फ ‘हं’ बीज का जाप करे.

इस तरह इस प्राणायाम के ५ प्रकार को १०-१० बार करे. यह प्रक्रिया २१ दिन तक नियमित रूप से करने पर आज्ञा चक्र पर एक पीला प्रकाश दिखाई देता है. इस प्रकाश मे अंदर उतरने पर सूक्ष्म जगत मे प्रवेश प्राप्त किया जा सकता है. इसके साथ ही साथ साधक को सोऽहं बीज का जितना भी यथा संभव हो जाप करते रहना चाहिए.

यह नाद की योग तांत्रिक प्रक्रिया का प्रथम चरण है. इसी के दूसरे चरण के लिए जो बीज मंत्र का जाप किया जाता है वह है ‘हंसः
यह बीज भी अपने आप मे एक अत्यधिक महत्वपूर्ण बीज है. जिसका उपयोग भी इसी प्राणायाम के साथ होता है. जब व्यक्ति सूक्ष्म जगत मे प्रवेश कर ले उसके बाद उसे इस दूसरे चरण की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए.

इस प्रक्रिया को अपनाने पर साधक का चित पूर्ण रूप से निर्मल हो जाता है. साथ ही साथ ह्रदय चक्र के चेतन होने से साधक अपने आप मे अत्यधिक क्षमतावान बन जाता है. किसी भी स्थान पर हो रही घटना को जानना उसके लिए संभव हो जाता है. ध्यान की स्थिति साधक के लिए सहज हो जाती है.

इस प्रक्रिया मे साधक को प्रथम प्रक्रिया की तरह ही जाप करना है, जब पूरक किया जाए तब ‘हं’ बीज का जाप करना है, जब कुम्भक करे तो ‘हंसः बीज का जाप करना है तथा जब रेचक करे तब ‘स’ बीज का जाप करना है. साथ ही साथ यथा संभव जितना भी हो सके इस मंत्र का जाप करते रहना चाहिए. इस प्रकार अनुलोम विलोम की पांचो प्रक्रियाओ को २०-२० बार करना चाहिए. यह २१ दिन का दूसरा चरण है.

इसके बाद इस प्रक्रिया का तीसरा चरण आता है. दिव्यात्मा ने जब इस प्रक्रिया का मंत्र मुझे बताया तब मे हक्काबक्का सा रह गया, एक बारगी विश्वास नहीं आया.

As it has been said, there are 5 types of anulom vilom. The different is based upon the breath taken from the nostril and poorak & rechak processes
1)    Breathe in from left nostril and breath out from right
2)    Breathe in from left nostril and breath out from the same
3)    Breathe in from right nostril and breath out from left
4)    Breathe in from right nostril and breath out from the same
5)    Breathe in and breathe out from both nostrils.

In first four process when breath in is done from the one nostril, the other nostril should be closed with thumb after that do the holding process and while breathing out from the one nostril, the other nostril should be closed with thumb.

When the process of breath in is done chant mantra “So” in the mind, the time duration of breathe in, the equal time should be used for stretching the chant of mantra. At the time of holding the air with concentration on agya chakra one should chant mantra “soham” mentally. While breathing out one should chant “ham”.

With this process, every 5 type of this pranayam should be done 10-10 times. This should be continuing till 21 days which results in a yellowish light on the agya chakra. Entering in this light is the passport of the sukshm jagat. With this sadhak should also keep on chanting “soham” mantra as much as possible.

This is first stage of the yog-tantrik process of Naad. For the next stage the mantra which is taken to use is “hansah”
This beej mantra is also one of the very important beej mantra which is also used with the same pranayam. When a person is eligible to enter in sukshm jagat he may go for second stage.

With application of this process the soul of the sadhak becomes pure. With this, the activeness of the Hriday Chakra makes sadhaka more eligible. To generate information of anything occurring at any place becomes possible. Position of Dhyana even becomes easier.

In this process also, sadhak is needed to chant the mantra like previous method only. While breathing in “Ham” mantra; at the time of holding “hamsah” mantra and while breathing out “sa” mantra should be chanted. With that one should keep on chanting this mantra as much as possible for them. This way 5 process of anulom vilom should be done 20-20 times. This is 21 days second stage.

After this, there is a third stage of the process. When Divyatma told me about this mantra, I was stuck and I did not come to believe it certainly.
 


                                                                                               
 ****NPRU****   

No comments:

Post a Comment