सदगुरुदेव जी ने अपने प्रवचनों में अनेक जीवन की विसंगतियों
पर हमारा ध्यान आकर्षित किया हैं और बताया हैं की कैसे
इनसे मुक्त हो कर हम अपना जीवन श्रेठ
बना सकते हैं इन्ही में
से एक हैं व्यक्ति का ऋण
युक्त होना और यह ऋण
भी अनेक प्रकार का हो सकता हैं जिसमे से
प्रमुख हैं.मात पितृ ऋण, पितर ऋण का, देव ऋण तो का, तो गुरु ऋण ऐसे ही
अनेको के बारे में शास्त्र
मार्गदर्शन करते हैं,,
हम यह
जानते हैं और समझते हैं की कर्म
रूपी चक्र से
बंधा हुआ यह संसार
चल रहा हैं ,, तो इस ऋण रूपी
शत्रु से छुटकारा हमें
कैसे प्राप्त हो क्योंकि ये
ऋण मानो एक रूकावट हैं
हमारी उन्नति का ,, सदगुरुदेव कहते हैं इन सभी ऋणों
में सर्वाधिक कठिन और
जीवन को नष्ट करने वाला हैं
"आर्थिक ऋण" यह न केबल लेने वाले
व्यक्ति को अगर वह न चूका
पा रहा हो तो व्यक्ति
को स्वतः तिल तिल कर मारता जाता
हैं अतः
सबसे पहले इस पर ही
ध्यान रखना चाहिए ..
ज्योतिष
ग्रथ व्यक्ति के जीवन में
आये हुए ऋण को
मंगल के माध्यम से या
मंगल की दोष पूर्ण स्थिति से बताते
हैं , और
सदगुरुदेव ने इसके बारे में
अनेको उदाहरण भी
हमारे सामने रखे हैं ..
“ऋण मोचक मंगल स्त्रोत” का पाठ यदि मंगल के
यंत्र के सामने कुछ दिन
तक लगातार किया जाए
तो अनुकूलता आती ही
हैं ..कितना जप रोज़ करना हैं उस
इ तो आप स्वयं ही
निर्धारण करे की १/२१/३१/५१/१०८ पाठ
किये जाना हैं यह आप
अपनी ऋण
की अवस्था देख कर
कितना किया जाना चाहिए
निर्धारित करें या
सिर्फ कुछ पाठ .. बस
इसी समस्या के निराकरण के लिए यहाँ पर
एक प्रयोग आपके सामने हैं ...इस यन्त्र
का निर्माण आप अष्ट गंध से करे, पूर्ण
पवित्रता के साथ . दिन स्वाभविक हैं की मंगल वार
ही होगा, और हमेशा
की तरह भोज पत्र
पर बनाना हैं .
मंगल के
प्रतीक लाल रंग के
वस्त्र पर इसे स्थापित
करना हैं और धुप
दीप से इसकी पूजन करना हैं
मंत्र:.
ॐ भौमाय नमः ||
आप कोई भी
वस्त्र धारण कर सकते हैं समय
कोई भी दिन या रात
में कर सकतेहैं दिशा
का भी कोई प्रतिबन्ध नहीं हैं . कम से कम एक माला
मत्र जप तो करना हैं
ही , इसके बाद इसे किसी भी
ताम्बे के ताबीज में धारण
कर ले और ऋण मोचन
स्त्रोत का पाठ अपनी क्षमता अनु सार
करते रहे निश्चय
ही आपको लाभ होगा , और हम
कोशिश करते हैं की इससे सम्बंधित कुछ और विधान आपके सामने रखे
क्योंकि यह ऋण मुक्तिता आज
एक बहुत बड़ा प्रश्न
बनती जा रही हैं
****************************************************************** Many times
Sadgurudev ji has raise
concern over the various
complexities of our life and
how to over come that
, to became or to lead a
successful life , in that complexity or weakness or problem
,whatever you can say one is “debt “ and
that may be of any
type , debt of
mother and father , debt of pitar , dev debt
or debt of guru ,
like that so many categories
mentioned in our shastras.
And we
all know that whole world
is running under the
wheel of karma. But how
we can be get rid of this
enemy or shtru “debt”. Since this is
one of the major obstruction in achieving progress of our life. Sadgurudev ji used to say that in between all type
of debt “ the financial one”
is very critical , if person
is suffering from that and not able
to repay than , what a misery he has to face , no one can easily understand. So
we should or the
person affected to this , must have very
care of this point,
Astrological
books says that this
happens because of bad position of mars
planet in affected person’s
horoscope. And Sadgurudev ji has given many example of that situation.
If any person recite daily the “rina mochan
mangal strot “ than surely he will
feel relief. What will be
the quantity , that
you should have
to decide. after considering
the seriousness of your problem.
Either one or 21/31/51/108
times would be
better.
To get relief here is one prayog.
Make
this yantra ,on
any Tuesday after observing all
the cleanness and taking
bath and in any bhojpatra
with ashtgandh . place
this yantra on red cloth and do poojan of this yantra
with dhup and deep , and do jap
minimum one mala or one round
of this mantra .
Mantra
Om
bhoumaAy namah
And
after that place
this yantra in any
tabeej made of copper and wear it
in your neck. And after that do
continuously chant the “rin
mochan strot “ regularly as you want ,
till you get relief.
In
coming any post , we will
try to post some
more prayog that will be helpful
in removing financial debt ,since this is becoming a great
problem nowadays.
****NPRU****
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ऋणमोचक मंगल स्तोत्र
ReplyDeleteमङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥१॥
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥२॥
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥३॥
एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥४॥
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥५॥
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥६॥
अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥७॥
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥८॥
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥९॥
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥१०॥
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥११॥
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥१२॥
इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्