किसी भी साधना को सिद्ध करने के उपरान्त वह कौन कौन सी आवश्यक क्रियाये है.जिसके माध्यम से सिद्ध की गयी साधना का सफल प्रयोग किया जा सके . यह गोपनीय विधान तीन आवश्यक क्रियाओं से युक्त हैं
संधान क्रिया साधना
प्रक्षेपण क्रिया साधना
लक्ष्य क्रिया साधना
और इन सभी के योग से बनी ...सिद्धि क्रिया .
इस “सिद्धि क्रिया” को जो इन तीनो क्रियाओं का सम्मलित स्वरुप हैं कैसे उपयोग में लिया जाए ?. पर अभी तो इन तीनो क्रियाओं को अलग अलग समझना ही होगा .
“ संधान क्रिया साधना” के रहस्य सामने आ ही चुके हैं और इस क्रिया को कैसे पूर्ण करना हैं वह भी रहस्य खुल ही चुका हैं अब इसी दिव्यतम सर्वथा आवश्यक क्रियाओं की श्रंखला में द्वितीय क्रिया “प्रक्षेपण क्रिया साधना “ के बारे में ..
संधान का मतलब निशाना साधने की क्रिया . पर प्रक्षेपण का तात्पर्य की कितने तीव्रता से उसे लक्ष्य पर...मतलब किस वेग से लक्ष्य पर छोड़ा जाए .अगर निशाना सही होने के बाद भी तीव्रता कम हुयी तो फल या कार्य की पूर्णता कैसे संभव हैं .
यहाँ तक कि लक्ष्मी प्रयोग भी . अगर इन तीन गोपनीय क्रियाओं से युक्त हैं तो वह कहीं ज्यादा सफल होगा .मानलो हमारे ऑफिस में हमारा जो उच्च अधिकारी हैं वह बे वजह जब तक हमारे सामने रहता हैं हम पर चिल्लाता हैं तो इतनी सी बात के लिए मारण प्रयोग का उपयोग तो उचित नही हैं ..तो कोई ऐसा प्रयोग तो तत्काल उसे शांत कर दे कहीं ज्यादा उपयोगी सिद्ध होगा तो इस तरह के शांति वाले प्रयोग आना चहिये . एक ऐसा ही प्रयोग हमने जो सदगुरुदेव प्रणित रहा हैं ब्लॉग पर दिया भी हैं कि जिसे सिद्ध करने कि कोई जरुरत नही हैं बिना सिद्ध किये यह प्रयोग किये जा सकते हैं .
तंत्र बाधा निवारण के...... पितृ वाधा निवारण के... जितने भी प्रयोग सदगुरुदेव जी ने दिए हैं सब के सब उन्होंने अपने प्राणों के घर्षण से दिये हैं .जिन्हें सिद्ध करना नही पड़ता बल्कि सीधे ही प्रयोग में लिए जा सकता हैं .
हर व्यक्ति जीवन में किसी न किसी अतृप्ति भाव को लेकर ही जीवन में चल रहा हैं . आप चाहते हैं कि रसेस्वरी मन्त्र आपके लिए पूर्ण सफलता दायक हो जाये तो ..भी इस प्रक्रिया का लाभ आप ले सकते हैं पारद को अग्नि स्थायी करना हैं तो सबंधित प्रक्रिया को तो सिद्ध कर लिया पर उपयोग कैसे करना हैं .
सदगुरुदेव जी ने एक सिद्धि पुरुष साधना भी इस हेतु मंत्र तंत्र यन्त्र विज्ञानं में दी हुयी रही हैं .जिसके यदि सवा लाख मंत्र जप कर लिए जाए तो जो भी साधना के इष्ट हैं साधक उनके प्रत्यक्ष दर्शन कर सकता हैं .साथ ही साथ आप और आपके परिवार को पूर्ण रक्षा भी प्राप्त होती हैं.
मानलो तंत्र वाधा का प्रयोग किया जा रहा हैं तो इसमें हवन आपको नही करना हैं बल्कि इस प्रयोग से राइ को अभिमत्रित(१०८ बार इस मंत्र का जप करके अभिमंत्रित कर ) घर के बाहर विखेर दे यह क्रिया तीन दिन कर ले फिर आपके घर पर कोई भी प्रयोग नही हो गा .यह प्रयोग एक बार ही किया जाता हैं . और यदि कोई हर वर्ष कर ले तो कई गुना और प्रभाव देख सकता हैं
इस प्रयोग को “सिद्धाश्रम देव लक्ष्मी प्रयोग “ या “गुप्त षोडशी प्रयोग “ भी कहते हैं .क्योंकि यह तीन बीज से संयुक्त मंत्र आपने आप में दिव्यता लिए हुए हैं .यही नही इस प्रयोग को सफलता पूर्वक करने से यदि साधक चाहे कि उसके द्वारा किये जा रहे अन्य प्रयोग में कोई विघन वाधा ना करे या साधना काल में न आये तब भी यही प्रयोग की शक्ति काम में आती हैं .
इस प्रयोग को सम्पन करने पर जो लक्ष्मी का घर आगमन होगा वह स्थिर होगी... चंचला नही . क्योंकि यहं मंत्र श्री और गुप्त षोडशी से संयुक्त हैं .और सिद्धाश्रम लक्ष्मी युक्त हैं .
मंत्र : ह्रीं क्लीं हसौ:
Mantra: hreem kaleem hasouh.
ह्रीं – महा सरस्वती का बीज मन्त्र हैं .
क्लीं - महाकाली का बीज मंत्र हैं
हसो: -यह राज राजेश्वरी का बीज मंत्र हैं. सदगुरुदेव द्वारा विस्तृत व्याख्या एक शिविर में की गयी थी की किस तरह से “ह्रीं “ बीज मंत्र अकेला ही महाकाली , महालक्ष्मी और महा सरस्वती तीनो का बीज मन्त्र हैं .
आवश्यक विधान:
· एक बार में आसनस्थ होने पर ११ माला मंत्र जप करना हैं
· इस मन्त्र की कुल ३०० माला मंत्र जप करना हैं
कुल ९ दिन में पूरा मंत्र जप करना हैं
· ब्रह्मचर्य आदि नियमों की कोई आवश्यकता नही ..(फिर भी कर सके तो उचित रहता ही हैं )
· जितने दिन घर से बाहर रहे हैं(यदि साधना काल में और बाहर खाना आदि खाना पड़ा हो तो ) उतने दिन गुणित ३ माला हर दिन के हिसाब से नवार्ण मन्त्र की कर ली जाए तो त्रि दोष नही लगता हैं .
· वस्त्र और आसन लाल होना चाहिये .
· किसी भी माला से केबल तुलसी की माला को छोड़ कर जप कर सकते हैं.
· दिशा पूर्व या उत्तर रहे तो उत्तम हैं
· किसी विशेष समय की अनिवार्यता मन्त्र जप काल में नही हैं
· यदि इसी समय संधान क्रिया के मंत्र जप भी किये जा रहे हैं तो जैसे ही उस दिन का संधान क्रिया का मन्त्र जप समाप्त हो तत्काल इस क्रिया का मन्त्र जप किया जा सकता हैं .
. इस तरह से यह दूसरी आवश्यक क्रिया कैसे सम्पन्न करना हैं ,यह रहस्य आपके सामने हैं आप इस क्रिया को सफलता पूर्वक सम्पन्न कर सकते हैं .सरल हैं ...इस तरह आप इस सिद्धि दायक आवश्यक गोपनीय विधान कि दूसरी महत्वपूर्ण क्रिया आपके सामने हैं .
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After succeeding sadhna(siddh some sadhna),
which are the necessary procedures(Kriyaaye)?, through which we can use that
succeeded sadhna(siddh sadhna)? This secret Process consist of three
procedures:
संधान क्रिया साधना(SANDHAAN
KRIYA SADHNA)
प्रक्षेपण क्रिया साधना(PRAKSHEPAN
KRIYA SADHNA)
लक्ष्य क्रिया साधना(LAKSHYA KRIYA SADHNA)
And the result of all these is…….SIDDHI KRIYA……
The “SIDDHI KRIYA” which is the combined form
of the above three Kriyaa’s. How to use this? But, first we have to understand
each of these three kriyaa’s separately….
The
secrets of संधान क्रिया साधना(SANDHAAN KRIYA SADHNA) had already come in
front of you all and how to do that procedure, the secret of that also has
opened…….Now, in this divine series of necessary procedures, the second
procedure(kriya) is ……. प्रक्षेपण क्रिया साधना (PRAKSHEPAN
KRIYA SADHNA)
The sandhaan means the process of
firing at the goal…..but prakshepan means how speedily the bullet is moving at
the goal…..in other words, with how much force the bullet is fired….If the
bullet has fired at the right point but its speed or force is less….then, how
it will be fruitful or how we will succeed in our work……
If our Laxmi Paryog consists of these
three secret procedures, then, it will succeed with more result….suppose in our
office, if some high officer always shout on us without any reason….then, for this type of
small problems, the use of maaran paryog is not right or appropriate…..so, at
that time, the paryog which can change his behavior or remove his angriness to coolness instantly
will be more beneficial for us …..so, we should know this type of peaceful
paryogs in which we can mould the angriness of others ……This type of paryog
which we have received from our sadgurudev has already given in the blog..we
can use these type of paryogs without
siddh them…there is no requirement to siddh them…….
The paryogs for removal of tantra
baadha, Pitra Baadha…….the paryogs which has been given by the sadgurudev,
these all are given by him through the power of his Praans only….we do not have
to siddh them. Instead we can use them directly…..
Every person of this world is moving with
the feeling of unsatisfaction in his life……if you want that raseshwari mantra
should be fully fruitful to you…then, also you can take the benefit of this
process…..if we want to do mercury(paarad)Agni
Sthaai ,then, even if we have siddh that process but we don’t know how
to use that?
Sadgurudev has also given the one “SIDDHI PURUSH SADHNA” in the mantra
tantra yantra vigyaan, if someone do the 1.25 mantra , then, sadhak can get the
darshan of the isht of the sadhna. At the same time, you and your family get
the full security……..
Suppose, we are doing the procedure of
tantra baddha, then, for this we do not have to do the havan. Instead, we have
to mantraized the Raai (do 108 times of mantra jaap and mantraized it) with
this paryog and throw it outside our house…..If we do this paryog continuously
for three days, then, no paryog can be done in your house. This paryog should
be done once and if someone do it every year ,then, one can see its effect with
more degree……
This paryog or process is also called
“Siddhashram Dev Laxmi Paryog” or “Gupt Shodashi Paryog ” . Because it is a
combination of three beej mantra, contain divinity in it…..By doing
successfully this paryog, if sadhak want that no obstracle should come in other
paryogs or during sadhna time, then, also the shakti(power) of this paryog
works for us.
After doing this paryog, the arrival of
laxmi in our homes will be stable….not the unstability of laxmi will be there
because this mantra is a combination of shree and secret Shodashi and
containing siddhashram laxmi….
मंत्र : ह्रीं क्लीं हसौ:
Mantra: hreem
kaleem hasouh.
ह्रीं – (Beej
mantra of mahasaraswati)
क्लीं - (Beej mantra of
mahakaali)
हसो:
-(Beej mantra of raaj raajeshwari). Sadgurudev has given the definition in one of the shivir
that how alone “HREEM”
is the beej mantra of all the three mahakaali, mahalaxmi and mahasaraswati .
Necessary
Procedure:
.In one seating, 11 malas has to be
done.
.Total 300 malas of this mantra has to
be done.
Mantra jaap should be done in total 9
days.
.The necessary requirement of
following of Brahmcharya etc rules is not there(but, it will be good if u
follow that).
. If someone leaves out of house(if
outside food has been eaten during sadhna period), then,for that much days *3
maala of Navaarn mantra should be done,so that, we could be saved from tri
dosh.
.Clothes and Aasan should be red.
.Jaap can be done from any maala
except tulsi maala.
.Direction north or east will be best.
.The necessary of following some
special time during mantra jaap is not there.
.If the mantra jaap of sandhaan kriya
is also being done at the same time, then, after doing mantra jaap of sandhaan
kriya of that day, we can continue the mantra jaap of this process also.
.In this way, how to do the second
necessary procedure, this secret is in front of u. You can do this procedure
successfully, it is simple…..In this way, the second important procedure of the
necessary secret process is in front of all of u.
****NPRU****
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