भारतीय तंत्र साधना जिन तीन प्रमुख स्तंभों पर खड़ी हैं उसमे से एक यन्त्र भी हैं ,सामन्यतः इस ओर साधको का रुझान कम ही रहता हैं कि इस विज्ञानं के बारे मे जानने ............ पर यह भी बात सही हैं कि साधक इस विज्ञानं से निर्मित अनेको यन्त्र से तो आज परिचित हुआ हैं या हो रहा हैं पर अनेको दुर्लभ यन्त्र विधान उसके सामने अभी तक नही आ पाए हैं , जबकि यह यन्त्र विज्ञानं भी अपने अन्य दो स्तंभ भी से भी कोई कमतर नही कहा जा सकता हैं .अत्यत उच्च कोटि के ज्ञान से युक्त हैं यह परम विज्ञानं भी .जो सीमातीत कहा जा सकता हैं .
साधारणतः यन्त्र एक ज्यामितीय आकृति कही जा सकती हैं जो कि अपने आप मे सबंधित देव शक्ति का निवास स्थान उसके उपशक्ति और सहयोगी शक्तियों के साथ रेखा चित्र के माध्यम से दिखाया गया हैं . और यह अपने आप मे बहुत ही महत्वपूर्ण हैं .
“यम “ धातु से बने या उत्पन्न इस शब्द का अर्थ ग्रह होता हैं .
कुछ विद्वान का यह भी कहना रहा हैं कि जिसकी पूजा की जा सके वह यन्त्र हैं .
एक अत्यंत ही उच्च कोटि का तंत्र ग्रन्थ “कुलार्णव तंत्र” कहता हैं कि ..
यम भूतादि सर्वेभ्यो भ्येभ्योपी कुलेश्वरी |
त्रायते सत् त श्चेव तस्माद यंत्र् मितिरितम ||
अर्थात यम और समस्त प्राणियों तथा समस्त प्रकार के भयों से त्राण करता हैं ,हे कुलेश्वर !सर्वथा त्राण करने के कारण से ही यह यंत्र ,यह नाम दिया जाता हैं ..
काम क्रोधादि दोशोत्य सर्वद:खानि यंत्रणा म |
यंत्र मित्याहुरेत्स्मिन देव प्रणित : पूजित ||
काम क्रोधादि दोष के समस्त दुखों का नियंत्रण करने से यन्त्र यानम नाम कहा जाता हैं , इस प्रकार पूजित देव तुरंत ही प्रसन्न हो जाते हैं .
अंक विज्ञानं का अपना ही एक आधार हैं जो सम्भातः आज भी अपने पुनरोत्थान की बाँट जोह रहा हैं , आधुनिक युग मे पाश्चात्य हस्तरेखाविद कीरो ने इस अंक विज्ञानं का सर्वाधिक उपयोग भविष्य फल देने मे किया और अनेको सूत्रों को हमारे सामने भी रखा पर अनेको गुप्त कुंजिया गुप्त ही रह गयी , क्योंकि ब्रम्हांड मे संयोग नाम की कोई चीज हैं ही नही , सम्पूर्ण विश्व एक गुप्त पर अलौकिक अज्ञात नियमबद्ध गतिशील हैं .. हमारे प्राचीन आचार्यों के द्वारा मन : और आत्म शक्ति के माध्यम से जो स्व अन्तः शरीर से जो कि बाह्य ब्रम्हांड का ही एक सत्य प्रतिरूप हैं जो भी खोजे की गयी थी आज आधुनिक विज्ञानं वही सत्य को बाह्य्गत ब्रम्हांड मे खोज खोज कर अपनी सहमति अब देने लगा हैं . और सभी विज्ञानं एक दूसरे से सबंधित हैं . क्योंकि इन्हें अलग नही किया जा सकता हैं अगर हम इनका आपस मे कोई सबंध ना खोज कर पाय अतो यह हमारी न्युयता ही होगी इसमें विज्ञानं का कोई दोष नही ... नही हमारे ऋषियों की प्रज्ञा का ...
और अंक विज्ञानं और यन्त्र विज्ञानं का आपसी समबन्ध बहुत ही प्राचीन हैं , जितने भी यंत्र सामान्य रूप से प्राप्त होते हैं उनमे अंक का प्रयोग किया ही जाता हैं अब यह प्रश्न सामने आता हैं की
क्या हमें इनके बारे मे जानना चाहिए..??
क्यों नही ..
क्योंकि अगर प्रारंभिक भाव भूमि और ज्ञान भूमि पर हम आरूढ़ ना हुए तो किसे हम उच्चतर आध्यात्मिक और अन्य विज्ञानों को आत्मसात करने के लिए योग्य हो पायएंगे .
वर्ग आकृति .......पृथ्वी का द्योतक हैं अतः जहाँ भी चार या चार से अ धिक् भुजाओं वाली आकृति दिखायी दी वह पृथ्वी तत्व का प्रतीक होती हैं .
जब भी कोई उर्ध्व मु खी त्रिकोण बनेगा जो कि शिव तत्व का प्रतीक हैं तो उसमे उपरी कोण जो होगा वह अग्नि तत्व का प्रतीक होगा क्योंकि अग्नि का स्वाभाव ही उर्ध्व मुखी हैं
और जब कहीं पर अ धोमुखी त्रिकोण होगा तो निम्न मुखी कोण हमेशा जल तत्व का प्रतीक होगा क्योंकि यह हमेशा नीचे कि ओर ही गति करता हैं .
जहाँ पर भी वृत्त बना पाया जाए यह वायु तत्व का प्रतीक होता हैं ,
“गौरी यामल तंत्र” स्पस्ट करता हैं की ..
यन्त्र का वर्गीकरण चार प्रकार से किया जा सकता है
· भू पृष्ठ
· कुर्म पृष्ठ
· पदम पृष्ठ
· मेरु पृष्ठ
साधक गण भली भांति परिचित हैं कि श्री यन्त्र को क्यों यन्त्र राज या सर्वोत् उच्च यन्त्र कहा जाता हैं क्योंकि पांचो तत्व तो हैं ही और समस्त अन्य यंत्रों मे पायी जा सकने वाली विलक्षणता और उछ्चता और समस्त देव शक्तियों का यह एक उच्च समन्वय कारी स्वरुप हैं .
श्री यन्त्र अनेको प्रकार के बन सकते हैं सदगुरुदेव जी ने स्पस्ट किया .हमारे सामने रखा की .
· मान्तंगीय श्री यन्त्र
· वाराही श्री यन्त्र
· नव निधि श्री यन्त्र
· कुर्म पृष्ठीय श्री यन्त्र
· पारद श्रीयंत्र
· मेरु पृष्ठीय श्री यन्त्र
· धरा पृष्ठीय श्री यन्त्र ....
इस तरह अनेको श्री यंत्रो के बारे मे उन्होंने हमारे सामने तथ्य रखे पर ..
आज कितनो के पास यह यन्त्र हैं या ...
इनसे सबंधित साहित्य या ....
निर्माण मे दक्षता या ....
सामान्य जन को उपलब्ध करा सकने की योग्यता ..
तो क्या यह सिर्फ शब्द बन कर यह सब रह गया हैं .. एक बार सोचना ही पड़ेगा कि अगर हम अभी भी नही चेते तो ........
क्योंकि नाम ही यह बता रहा हैं कि नव निधि श्री यन्त्र क्या दे सकता हैं ..
तो क्या मातन्गीय श्री यन्त्र विवाहिक सुख शांती नही प्रदान करेगा .
यदि हर यंत्र केबल एक जैसा ही गुण प्रदर्शित करे तब इन विभाजनो का क्या अर्थ रहा .....
यंत्रों मे जो भी अंक लिखे जाते हैं वह अपने आपमें अनेको रहस्यों से युक्त होते हैं ..और इन अंको को एक क्रम से लिखा भी जाता हैं ..ऐसा नही हैं कि पहले ४ लिख दिया फिर ८ लिखा और फिर १..ऐसा किया जाना उचित नही हैं बल्कि एक् क्रम से ही इनको लिखा जाना चहिये .भले ही इनके लिखे जाने वाले खाने अलग अलग दूर दूर क्यों न हो ..आखिर ऐसा क्यों तो ..यह भी एक रहस्य हैं ..जो आने वाले लेखो मे इस यन्त्र विज्ञानं से सबंध् मे स्पस्ट किया ही जाएगा ..
अभी तो प्रारंभिक परिचय ही होगा इन अंको का ...
अंक १ विश्व का प्रतीक है मतलब ब्रम्ह का ..आत्मा का
२ अंक मानव शरीर मे स्थित आंतरिक विश्व का और बाह्य्गत विश्व यह सारे विश्व का प्रतीक हैं .
३ अंक तीन गुण सत रज और तम के प्रतीक हैं.
४ अंक निश्चय ही चार पुरुषार्थो ..धर्म अर्थ काम मोक्ष के प्रतीक हैं
५ अंक पञ्च महा भूत का प्रतीक हैं
६ अंक जो काम क्रोध लोभ आदि षड रिपु हैं उनका प्रतीक हैं.
७ जो सात प्रकार कि व्याह्र्तिया प्रतीक हैं.
८ अष्टमा प्रकृति का प्रतीक हैं .
९ नव निधि का प्रतीक हैं .
१० अनंत तत्व क्योंकि १ और ० मे सब कुछ समाया हुआ हैं . का प्रतीक हैं
११ एकादश इन्द्रियों का प्रतीक हैं.
१२ चौदह भुवनो का प्रतीक हैं .
यन्त्र विज्ञानं से सबंध मे अनेको उच्चस्तरीय रहस्य आपके सामने आते जायंगे ही..... जैसे ही इस बारे मे समय मिलता जायेगा ...और ....पूर्ण आशा हैं कि आप इस विज्ञानं के इन तथ्यों को आत्मसात करेंगे भी ..ज्ञान् तत्व से आप कब तक दूर रह सकेंगे खास कर तब जब श्री सदगुरुदेव को शास्त्र “केबलम ज्ञानमूर्ति “ के नाम से संबोधित करते हैं .. और हम और आप सदगुरुदेव के ही प्राण अंश हैं तब ....
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Three important pillars on which Indian
tantra sadhna is based , one among them is Yantra.Generally,sadhaks are less
inclined to know about this science..........But it is also true that sadhak
have been introduced or getting introduced to various yantras formed by
this science. But still, so many amazing and rare yantra processes have not
come in front of us. However, this yantra science can't be considered inferior
to other two pillars. It is full of high order knowledge and it is a divine
science which can be called limitless.
Generally , yantra can be
called an enlightened pattern which is
residing place of powers of deva , and in it, sub-powers and assisting powers
of devas are depicted by the means of geometrical shapes.
This is very important in itself.
Having origin or made from “Yama”,
it means Grah.
Several scholars say that whatever can be worshipped, that is Yantra.
A very high order tantra scripture
“Kularnav Tantra” says that
यम भूतादि सर्वेभ्यो भ्येभ्योपी कुलेश्वरी |
त्रायते सत् त श्चेव तस्माद यंत्र् मितिरितम ||
Yam Bhootadi Sarvobhyo Bhyebhoopi Kuleshwari |
Traayte Sat T Schev TasmaadYantra matiritim ||
Meaning which saves from Yama,
whole creatures and all type of fears. He Kuleshwar, it always saves us, that’s
why yantra name is given to it.
काम क्रोधादि दोशोत्य सर्वद:खानि यंत्रणा म |
यंत्र मित्याहुरेत्स्मिन देव प्रणित : पूजित ||
Kaam Krodhaadi Doshotya Sarvadah Khaani Yantrana Ma |
Yantra MityaHuretisman Dev Pranitah Poojit ||
Which controls the pain caused due
to evils of Kaam and anger, it is calledyantra. In this way worshipped gods are
pleased immediately.
Numerology has got its own base
which possibly, even today is waiting to flourishagain.
In modern times western palmist Keero made the maximum use of numerology in
giving future predictions and he put forward many principles in front of us,
but still so many hidden keys remainshidden. There is nothing called
coincidence in universe, entire world is functional based on the hidden, divine
and unknown rules. Discoveries which were made by our
ancient saints through powers of mind and soul( which are part of inner body (
which is a true copy of outer universe only)) are now agreed upon by modern
science today by searching the truth in outer universe. All sciences are
interconnected because they can’ be separated. If we are unable to establish
any relationship between them we are only to be blamed neither the science nor
the intelligence of our saints.
Relation between Yantra science and
numerology is very ancient. Numbers are used in all yantras which are available
normally .Now the question arises that
Whether we should learn about it?
Why Not?
Because If we are unable to
establish ourselves on preliminary emotional and knowledge platform, then how
we will become capable of imbibing high order spiritual and other sciences?
Square
Shape…….signifies Earth. Therefore whenever you see a geometrical shape with
four or more than four lines, it is indicator of earth element.
Whenever any upward facing triangle is formed (which indicates
Shiva element), then the upper angle in it will signify
Agni (Fire) element because nature of fire is always to rise up.
And wherever there is downward facing triangle then, the lower angle in it will signify water element because
tendency of water is to flow downwards.
Whenever you see a circle, it signifies Air
element.
“Gouri
Yaamal Tantra” describes that..
Yantra can becategorised in four
ways
Bhu Prishtha
Kurm Prishtha
Padam Prishtha
Meru Prishtha
Sadhaks are fully aware of thefact
that why Shri Yantra is called king of Yantras or supreme
Yantra Because not only five elements are present in it, but it also is highly
combined form, combining speciality found in entire different yantras with the
powers of every deva.
Sadgurudevji has explained that
various types of Shri Yantra can be formed like…
Matangeey Shri Yantra
Vaarahi Shri Yantra
Nav Nidhi Shri Yantra
Kurm Prishtay Shri Yantra
ParadShri Yantra
Meru Prishtay Shri Yantra
Dhara Prishtay Shri
Yantra
Like this, he put forward many
facts about various Shri Yantras but….
How many of us have this yantra
today or…….
The associated literature or …..
Competence in manufacturing them
or….
Ability to make them available
among common public…..
So have they remained just as words
only…………………..we have to think at least once that if we do not wake up from
slumber then…..
Because name itself is telling us
what Nav Nidhi Shri Yantra can provide us…..
Will Matangeey Shri yantra not
provide happy married life…
If all yantras exhibit one type of
qualities only then what is the point in these divisions…..
Numbers written in yantras contains
various secrets within them …and these numbers are written in a particular
sequence…..It’s not like first you write 4then 8 and then 1….this is not correct,
they should be written in a sequence. This has to be done despite the boxes to
fill them are wide apart. Why it is like this……..this is also a secret which
will be clarified in coming articles associated with this Yantra Science.
Now only preliminary introduction
will be provided about the numbers
1
is the indicator of world meaning of Brahma…of soul
2
is the indicator of inner world present in human
body and outer world is indicator of entire
world
3
indicates SAT, RAJ and TAM qualities.
4
definitely indicateDharma (religion), Artha (Money),
Kaama (Sex) and Moksha (Salvation).
5
is the indicator of 5 panch Maha bhut (basic
fivegreat element )
6
indicate 6 enemies like anger, greed, kaam etc.
7
is indicator of 7 Vyahatis.
8
is indicator of Ashtma Nature.
9
indicates Nav Nidhi
10
indicates infinite element because everything is
contained within 1 and 0.
11indicate11 senses.
12
indicates 14 Bhuvans
Many high
level secrets related to Yantra science will come in front of you all…… as and
when we get time….and …..we hope that you all will imbibe all the facts related
with this science…..For how long you can remain away from knowledge element especially when shastras address Sadgurudev
as “Kevalam GyanMurti” ( Only Idol of
knowledge)…..and when we all are part of
Sadgurudev…..
****NPRU****
for our facebook group-http://www.facebook.com/groups/194963320549920/
PLZ CHECK : - http://www.nikhil-alchemy2.com/
saath me pic v dalni chaheye the sir aapko jada aache se yantro ke aakar ke bare me samj me aata
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