Thursday, May 3, 2012

AAVAHAN-27


गन्धर्वलोक शब्द सुनते ही एक क्षण के लिए ह्रदय प्रसन्न हो उठागन्धर्व तथा उनके लोक के बारेमें कई तंत्र ग्रंथो में मुझे विवरण मिला थालेकिन कभी सोचा नहीं था की इस लोक को इस प्रकार देखूंगा भीवस्तुतः मेने जो छवि अपने मन में बनायीं थी यह लोक उससे बहोत ही भिन्न थासम्मोहन से भरपूर मुस्कान के साथ वह गन्धर्वकन्या मुझे विस्मत देख कर आगे कहती है मेरा नाम हेमऋता हैसायद तुम्हे इतनाविसमय इस लिए हो रहा है की तुम यहाँ पर पहली बार आए होमें समझ गया की यह देवकन्या मन के भावो को किताब की तरह पढ़ लेती हैउसने अपनी बात आगे जारी रखी की तुमने यहाँ पर कुछ पृथ्वी लोक के निवासियों को भी देखा हैवो लोग इस लोक में आते रहते हैअब तक में थोडा संभल चूका थामेने बीचमे ही पूछ लिया लेकिन में खुद अपनी मर्ज़ी से यहाँ नहीं आया हूमें यहाँ पर केसे पंहुचावो सुंदरी हौले से हसी और कहा की तुम्हारी साधना सेजो अभ्यास तुम कर रहे थे उसीसे तुम यहाँ पहोचे होमेने कहा लेकिन मेरा कोई चिंतन इस लोक पर आने का नहीं थाउसने कहा की अभी नहीं होगा लेकिन कभी न कभी तो रहा ही होगा और वैसे भी जब योग तंत्र की साधना होती है तब अभ्यास के मध्य जो अनुभव होते है वह साधक के हाथ में नहीं होतासाधक के हाथ में सिर्फ प्रक्रिया को अपनाना होता है.” एक और बात मुझे समज में आई की यह कन्या पृथ्वी लोक में प्रचलित योग तंत्र की साधना के बारे में ज्ञान रखती हैमेने पूछा की आखिर यह अनुभव फिर होते कैसे हैउसने कहा की इसका उत्तर बहोत ही विस्तार में हैइसके लिए ये जानना ज़रुरी है की आखिर मनुष्य में ऐसा क्या होता है की सभी योनी उसकी तरफ आकर्षित हो सकती हैमेने कहा की सच हैआखिर क्यों ऐसा होता है की कोई सामान्य मनुष्य से उच्चलोक तथा उच्चवर्ण रखने वाले दूसरे लोक के प्राणी भी साधना के माध्यम से उसके संपर्क में आ सकते हैमुझे भी यह प्रश्न कई समय से हैउसने कहा की भले ही सौंदर्य या विलास में देव योनी को मनुष्य योनी से श्रेष्ठ कहा जाता है जिसमे इंद्रगन्धर्वविद्याधरीनाग या अन्य लोक तथा उसके निवासी सामिल है लेकिन मनुष्य की संरचना किस इस प्रकार से होती है की उनमे जो अणु तथा तत्वों का जो संयोजन है उस के आधार पर वह किसी भी श्रेष्ठ योनी के गुणों को विशेष प्रक्रियाओ के माध्यम से प्राप्त कर सकता है इस प्रकार वह एक से ज्यादा या अनंत गुणों को प्राप्त कर सकता हैयह प्रक्रियाओ को ही साधना कहा गया हैयह विशेषता मात्र मनुष्य योनी में ही है इस लिए साधना के लिए मनुष्य शरीर को धारण करना श्रेष्ठ होता हैदूसरे लोक तथा जगत के व्यक्ति अपने शरीर में मूल तत्वों को घटा बढ़ा सकते है लेकिन उसमे परिवर्तन संभव नहीं होता हैजेसे की पृथ्वी तत्व की मात्र को बढ़ा कर यहाँ के निवासी पृथ्वीलोक के विशेष मनुष्यों के सामने प्रकट होते है या फिर माया लोक के निवासी अग्नि तत्व में जल और पृथ्वी तत्व को मिला कर इच्छित रूप धारण कर सकते है लेकिन वह ना तो स्थायी होता है ना ही उससे आगे कोई और गुणों को धारण किया जा सकता हैइसके अलावासामान्य मनुष्य की द्रष्टि सिर्फ बाह्य सुंदरता तथा विलास की तरफ होती हैजब की देवयोनी में दैहिक सौंदर्य तथा भोगी विलास एक सामान्य बात हैमनुष्यों में से कुछ मनुष्य जब अपनी गति श्रेष्ठता की और यानी की साधना पथ पर बढाता है तब निश्चय ही वह देवगणो से श्रेष्ठ बनने की प्रक्रिया की और अग्रसर होता हैउसकी आतंरिक सौन्दर्यता खिल जाती है तथा उसमे आतंरिक अशुद्धिया दूर होती हैयह आतंरिक सौंदर्य देव योनी में भी प्राप्त करना दुस्कर होता हैश्रेष्ठ योनी मंत्रो के आधीन हो कर कार्य करती है और आज्ञा पालन करती है लेकिन मंत्र बद्ध होने के कारण ही वह अपने मूल गुणों को उजागर नहीं कर सकतीलेकिन कोई भी गण अपने मूल गुण में विशुद्धता को प्राप्त किये नहीं होता हैमूल तत्व पर ही आधारित होते है गुण जेसे की लोभइर्षादर्पघमंड इत्यादियह गुण किसी न किसी रूप में हमारे अंदर भी होते है लेकिन साधक के अंदर इन गुणों का धीरे धीरे नाश होता है इस लिए देववर्ग का आकर्षण सदैव ही इस प्रकार से मनुष्यलोक की तरफ रहता हैइस प्रकार जब कोई उच्चकोटि का साधक हो तो उसे इस लोक के किसी गन्धर्व की मदद से यहाँ प्रवेश मिल सकता है लेकिन तुम्हारा यहाँ पर आने इस प्रकार से नहीं हुआ हैतुम्हारे यहाँ आने का कारण है दूसरा लोक हैमेने पूछा कौनसा लोक?
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I got delighted for a moment after hearing the word Gandharv Lok .I have heard about gandharvas and their lok in some of tantra scriptures but I have never thought that I would see it also in this manner. Actually, it was quite different from the image I have created in my mind. That Gandharv lady with her attractive smile, seeing me wonderstruck said “My name is Hemreeta .May be you are getting so much amazed since you have come here for the first time. I understood that this lady can read the feeling in the mind just like a book. He continued his talks that “You have also seen some residents of earth, they usually come to this lok”.I was little bit settled now. I asked her that I have not come here by my choice then how I have reached here? That beautiful lady laughed and told that “it is the result of your sadhna, the practice which you are doing”. I told that I was never thinking of coming to this world. She told may be it was not now but somewhere in the past it would have been and also when sadhna of Yog-Tantra is done, the experiences during the middle of practice are not in the hands of sadhak. Only following the process is in hands of sadhak. One more thing I understood that this lady has the knowledge about the Yog-Tantra sadhna prevalent on earth. I asked then how do these experiences happen? She told that answer to your question is a detailed one. For it, you must understand that what is so special about human being that every yoni can be attracted toward it.I said it is true .This question was also in my mind from some time that why the creatures of higher loks or the high category creatures of other lok come in contact with normal human being through the medium of sadhna? She told that it is right that Dev yoni can be called superior to manav yoni in terms of beauty or luxury in which Gandharv, Vidyadhari, Naag and other loks and their residents are included but composition of humans is in such a way that based on the combination of elements present inside, human can attain the virtues of any superior yoni through some especial processes. In this manner, he can attain more than one or even infinite virtues. These processes are only called sadhna. This speciality is only present in Human Beings. For this reason, it is always better to have a human body for sadhna purpose. The persons of other worlds or loks can increase or decrease the basic elements but the transformation is not possible. For example, by increasing earth element, the residents of this lok appears before some special persons of earth or the residents of Maya Lok can get desired form after combining water and earth element in fire element. However, neither it is stable nor they can attain any more virtues. Besides this, normal person is concerned towards outer beauty and luxury but physical beauty and luxurious life is common thing in Dev Yoni.When out of the human beings, some proceed on the path of sadhna, then definitely he advances forward on the process to become superior to Dev. His inner beauty blossoms and he gets rid of inner impurities. This attainment of inner beauty is difficult even for Dev yoni.Superior yoni works under the subordination of mantra and follow the orders but it cannot express the basic qualities since they are under the influence of mantras. However, none of the group has the complete purity in their basic virtues. The virtues are based on basic elements only. For example the virtues like greed, jealousy, ego etc. are also present in us in some form or the other. However, these virtues are destroyed gradually in sadhak. For this reason, Dev group is always attracted towards human beings. In the same way, if someone is a high-order sadhak, he can get entry into this lok with help of any Gandharv of this lok. But you have not come here in this manner. You have come here for some other reason, another lok. I asked which Lok?

   

                                                                                               
 ****NPRU****   
                                                           
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