हमारे प्राचीन आचार्यो ने मनुष्यों
के लाभार्थ अपने जीवन को समर्पित किया था और विज्ञान के क्षेत्र में कई प्रकार की
विशेष शोध कार्य अपने जीवन काल में किये थे. इसके पीछे उनका उद्देश्य था की सर्व
मनुष्य सुखी तथा सम्प्पन जीवन जिए और रोग, शोक कष्ट आदि से मुक्ति को प्राप्त करे.
चिकित्सा विज्ञान में श्रुशुत आदि महासिद्धो ने अपना योग्यदान जिस प्रकार से दिया
है वह अपने आप में अद्वितीय है. मनुष्य को रोग से मुक्ति के लिए आयुर्विज्ञान तथा
चिकित्सा आज से सेकडो वर्ष पूर्व भी अपने आप में श्रेष्ठ थी, लेकिन काल क्रम में
उसका ग्रास हुआ. आज बहुत औषद और जड़ी का नाम मात्र पढने या सुनने को मिल जाता है
लेकिन इसके सन्दर्भ में कोई भी विशेष जानकारी नहीं मिल पाती. ज्ञान की अवलेहना का
यह परिणाम अत्यधिक गंभीर हुआ और हम रोग ग्रस्त होते गए, शोकमय जीवन बिताने के लिए
बाध्य हो गए. इसी चिकित्सा विज्ञानं का एक तंत्र पक्ष भी था जिसे चिकित्सातंत्र
कहा गया है, जिसके अंतर्गत रोगी को रोगमुक्ति के लिए चिकित्साविज्ञानं के सिद्धांत
तथा तंत्र की दिव्य शक्ति दोनों के समन्वय से प्रयत्न किया जाता था. वस्तुतः यहाँ
पर यह समजना ज़रुरी है की व्यक्ति के स्थूल शरीर के साथ अन्य शरीर भी जुड़े हुए होते
है तथा यह शरीर मात्र द्रश्य अवयव के अलावा सूक्ष्म अवयव पर भी कार्यशील है, जेसे
की मन तथा प्राण. भले ही ये द्रश्य रूप में नहीं है लेकिन शरीर में रोग के समय
शरीर के ऐसे सूक्ष्म भागो पर भी क्षति पहोचाती है. उदहारण के लिए रोग के समय में
मन पर से नियंत्रण हट जाता है तथा मानसिक स्थिति बदल जाती है. इसका अर्थ है की मन
पर भी रोग का अशर हुआ है. जब चिकित्सा ली जाती है तो वह शरीर के स्थूल अंगों पर
कार्य करती है लेकिन सूक्ष्म अंगों पर कार्य नहीं हो पता. इस लिए वह क्षति की
पूर्ति में बहोत ही अधिक समय लगता है.
तंत्र में चिकित्सा के सबंध में
विविध प्रयोग है, जिसके माध्यम से इस प्रकार की क्षति की पूर्ति तीव्र गति से की
जा सकती है. अगर औषध में किसी प्रकार से सूक्ष्म ऊर्जा का निर्माण किया जाए तब वह
सूक्ष्म उर्जा शरीर के उन भागो तक भी पहोच सकती है जिन भागो तक औषध नहीं पहोच
सकता. इस लिए इस प्रकार की चिकित्सा उत्तम है. अगर कोई चिकित्सक अपने औषधो को
मांत्रिक उर्जा से परिपूर्ण करता है और वह सामान्य औषद देता ही तब उन रोगी को जल्द
आराम मिलता है जिन्होंने मंत्र उर्जा से परिपूर्ण चिकित्सा ली है.
प्रस्तुत मंत्र अपने आप में स्वयं
सिद्ध है. जब भी किसी भी प्रकार का कोई भी औषध लेना हो तब निचे दिए गए मंत्र को
१०८ बार औषधि को हाथ में रख कर जाप कर ले. ये जाप मन में भी किया जा सकता है तथा
इसमें कोई माला, यन्त्र, दिशा वस्त्र आदिकी ज़रूरत नहीं है. इस प्रकार ये प्रयोग
बहोत ही सहज है. इस प्रयोग को अगर रोगी खुद न कर सके तो कोई भी यह प्रयोग कर औषधि
को रोगी को दे सकता है, इसके अलावा चिकित्सक भी यह प्रयोग सम्प्पन कर अपने रोगियो
को औषधि दे सकता है. निश्चित रूप से औषध की कार्यक्षमता को बढ़ा कर इस प्रकार का
मन्त्रउर्जा से पूरित औषध जल्द ही आराम देता है तथा उन अद्रश्य अवयवों की क्षतियो
की भी पूर्ति करता है जो की सामन्य औषध नहीं कर सकता है. इस प्रयोग को हर बार औषधि
लेते समय करना चाहिए तथा मन्त्र जाप के बाद औषधि लेनी चाहिए.
मन्त्र : ॐ ह्रीं धन्वंतरि आरोग्य सिद्धिं ह्रीं नमः
Our ancient sages devoted their whole
life for the betterment of the mankind and made many type of the research works
in the field of science during their life time. The motto behind their task was
that all humans stays happy and live prosperous life and become free from
diseases, troubles and pains. In the field of treatment or medical science the
way shurushut and other mahasiddha contributed is remarkable. Before centuries also, the science of
ayurveda and medical was great for human being to get rid from diseases, but it
got affected time while. Today, many medicines and herbs are just known or
heard by their names and there is no other special information is available in
this regards. Neglecting such divine knowledge resulted in very serious results
and we became diseased, we became forced one to live life with sorrow. This
Chikitsa science or ancient medical science was also having its tantra branch
which used to be called as ChikitsaTantra; under which, efforts used to be done
co-operatively with concepts of the medical science and divine power of the
tantra to make the patient relief from the disease. Here, we need to understand
that many bodies are attached with the main body or Sthool Sharir and this body
is active not only with visible parts but with invisible parts also, for
example Man (mind) and Praana. Though they are not visible but disease in the
body affects those parts too. For example, when one is diseased, control over
mind is lost and mental state becomes changed from the normal. This means that
affect of the disease has also been seen on mind. When treatment is taken, that
works on the visible body parts but repair work on the other parts not become
possible. Thus, to overcome that remained deficiency takes long time to
recover.
In tantra, there are lots of various rituals related to treatment, with
the help of same such deficiency of the treatment could be fulfilled. If with
any method creation of the micro energy is made in the medicine that way that
micro energy can reach to the body parts where medicine could not reach. This
way, this type of treatment is great. If any practitioner make medicine filled
with mantra energy and normal medicine is given to another than the patient
will get relief more quickly whom medicine filled with mantra energy has been
given.
The given mantra is Swayam Siddha. When any kind of medicine is needed
to be taken, one should have medicine in hand and then chant following mantra
108 times. This mantra chanting could also be done in mind and there is no specific
process are needed like rosary, yantra, direction, cloths etc. this way, the
given prayog is very easy. If this prayog could not be done by patient than
anyone can do this process on medicine and can give it to the patient. For
sure, by increasing healing capacity of the medicine, such medicine filled with
mantra power gives better and quick results and also recovers the deficiencies
on the invisible parts which could not be done by normal medicines. This prayog
should be done every time while taking the medicine and after mantra chanting
one should take the medicine.
Mantra : Om Hreem Dhanvantari
Aarogya Siddhim Hreem Namah
****NPRU****
fir to yese bahut se mantra hoge jo swaym sidh ho or japne ke liye kisi v tarh ki badhyta nahi hogi. agr ho sake to unke bare me v jankri de.
ReplyDeletebahut hi achchha mantra hai.hum sabhi gurubhaiyon/gurubehno ke liye to mahatvapoorn hai hi,saath hi un dr.,vaidhya,alternativemedicines ke practishner ke liye bhi param aavashyak hai.koti koti naman arif bhaiyya aapko iss divya gyaan ko pradaan karne ke liye.jai sadgurudev.
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