Shatkarma has got very
high position in tantra. Unfortunately, due to the entry of few non-deserving
candidates in this field, this full genre has been seen with contempt due to
its wrong use by various people.
But now the time has
come to again give this genre place which it deserves.
Sadgurudev conducted
many prayogs belonging to this genre. At various times, He told the importance
of these genres. One of the article written by him titled “Maaran Mohan Jo
Jaane Wo Saara Brahmand Pichaade” (who know Maaran and Mohan (two of
shatkarmas) ,can leave all the universe behind) is legacy in itself. But it is
also true that using these prayogs to destroy someone’s life or to make it
cumbersome without any reason is not permitted. Tantra
prohibits it clearly because without any appropriate reason, doing them may
provide success but its consequences can be disastrous for sadhak .Because sadhak
has to definitely bear the results of karmas.
Tantra is
like one open electricity wire in which 1000 of volts of electricity is
flowing. If you trespassed your limits then be ready to face the
consequences…..Then you know tantra or not, it does not matter.
But on the
other hand tantra never teaches us to bow down or bear everything. Compared to
other genres, tantra more clearly specifies how to live each moment of life
with joy, at your own conditions and how to dedicate yourself at lotus feet of
Sadgurudev.
Tantra makes you courageous.
But all this cannot happen by just lighting deepaks, singing aartis and deeply
involving yourself in bhajan for some time. For it, one has to become sadhak.
Definitely it is more difficult to become sadhak. But the achievements always
have a strong base and your true wealth.
This is not
necessary that if you are in middle of anushthan, then you cannot do other prayogs.
In the middle of anushthan, without making any change in the sequence of
anushthan mantra, if you wish to do 1 or 2 day prayog after completion of
mantra jap you can do it.It does not create any obstacle in basic anushthan. To
add to that, success in small-2 prayogs increase your confidence multiple
times.
·
For
pleasing any displeased
·
For making
higher official favorable in office
·
Or
according to your circumstances. You can do this prayog for accomplishment of work
(as per the rules of society and morality) by doing Aakarshan Kriya on person.
Rules are as follows:-
·
On any
auspicious day, take one clean Bhoj patra in morning.
·
For ink,
you can mix little water in Gorochan and use it as ink.
·
Make this
yantra and write the name of person on whom Aakarshan (attraction) has to be
done, in middle of yantra where name has been written.
·
After
making this yantra, do its poojan with dhoop and deep.
·
Take some
ghee in one container and place this yantra on that ghee. This container has to
be kept in worship place.
·
After that
you have to chant this mantra 108 times. You have to do it for 7 days. There is
no need of any rosary.
Mantra:
AAKARSHAY MAHADEVI ……. MAM PRIYAM |
AIM TRIPURE DEV DEVESHI TUBHYAM
DAASYAAMI YACHITAM ||
Where there is blank
place in Mantra, pronounce the name or full name of that person as you wish.
In approximately 7 or
11 days, you should get your desired results. After completion of work, you can
immerse this container along with yantra in clean water.
This is one simple
prayog. When it is needed, one should definitely take benefit from it.
============================================================ तंत्र मे षट्कर्म को एक उच्च स्थान मिला हैं दुर्भाग्य वश कतिपय अनाधिकारियों केइस क्षेत्र मे प्रवेश के कारण यह पूरी विधा अनेको के द्वारा गलत उपयोग किये जाने के कारण लांछित सी हो गयी हैं .
पर अब समय हैं की
एक बार पुनः इस विधा का स्थान
वापिस इसे दिलाया
जाए .
सदगुरुदेव जी ने
तो इन विधाओ के अनेको प्रयोग
समपन्न कराये . अनेको बार इन विधाओ का महत्त्व बताया हैं .उनके
द्वारा लिखित एक लेख
जिसका शीर्षक “मारण
मोहन जो जाने वो सारा ब्रम्हांड
पिछाड़े “ अपने आप मे एक
मिसाल हैं .पर यह भी सच हैं की अकारण किसी
का जीवन नष्ट या
कठिन कर देने के लिए
इन प्रयोगों की अनुमति नही हैं .तंत्र इसका स्पस्ट
रूप से निषेध करता हैं क्योंकि
बिना उचित और सही कारण पर करने
पर सफलता मानलो
कभी मिल भी जाए पर उनके
परिणाम साधक के लिए .भयंकर हो सकते हैं
.क्योंकि कार्मिक परिणाम तो
साधक को भी सहन
करने ही होंगे .
तंत्र एक
हजारो वोल्ट की बिजली जिसमे प्रवाहित हो रही हैं उस
बिजली के खुले तार की तरह हैं अगर आपने
अपनी सीमा का उलघ्घन किया
तो फिर आप परिणाम आप सहन करने को
बाध्य हो जाए ..फिर आप
चाहे तंत्र ज्ञाता
हो या न हो इससे कोई
फर्क नही पड़ता हैं
पर
दूसरी ओर तंत्र आपको
गिडगिडाने वाला या सब
कुछ सहन करने वाला भी
नही बनने को कहता हैं जीवन के हर क्षण
को कैसे अपनी मस्ती मे , अपनी शर्तों पर और
अपने सदगुरुदेव के
श्री चरणों मे समर्पित
करा जाए यह भी तंत्र
कहीं और किसी भी विधा के
तुलना मे कहीं ज्यादा
स्पस्ट ता से सामने रखता हैं .
तंत्र आपको
पौरुषवान बनाता हैं . पर यह दिए
जला कर ,आरती गा कर , कुछ देर
भजन मे लीन हो कर तो नही हो सकता न .इसके लिए
साधक बनना ही पड़ेगा .निश्चय ही साधक
बनना कहीं जायदा कठिन
हैं .पर जो उपलब्धियाँ
होती हैं वह ठोस
आधार लिए होती
हैं और आपकी असली पूंजी
होती हैं .
यह कोई जरुरी नही हैं कि आप किसी अनुष्ठान मे हैं
तो अन्य प्रयोग नही कर सकते हैं किसी भी अनुष्ठान के मध्य मे यदि
उस अनुष्ठान के मंत्रो के क्रम मे कोई भी
परिवर्तम किये बिना ,मंत्र जप पूरा होने के
बाद एक या दो दिवसीय कोई प्रयोग
आप करना चाहते हैं तो
आप तो कर सकते हैं इससे मूल अनुष्ठान मे कोई भी वाधा नही आती है. साथ ही साथ छोटे छोटे
प्रयोगों मे सफलता मिलने
पर आप का आत्म
विश्वास भी कई कई गुणा
बढाता जाता हैं .
- किसी रूठे को मनाने के लिए
- ऑफिस मे उच्चाधिकारी को अनुकूल करने के लिए
- या आपकी परिस्थिति अनुसार किसी भी व्यक्ति को आकर्षण क्रिया मे कर अपने कार्य मे जो सामाजिक और मर्यादित नियमों के अनुकुल हो इस प्रयोग को कर सकते हैं .
नियम
इस प्रकार हैं .
- किसी भी शुभ दिन ,प्रातः काल एक साफ़ सुथरा भोज पत्र ले ले.
- स्याही के लिए आपको गोरोचन मे थोडा सा जल मिला कर स्याही जैसा बना ले इसका ही प्रयोग करना हैं .
- इस यंत्र का निर्माण करे और यंत्र के मध्य जहाँ नाम लिखा हैं वह जिस व्यक्ति का आकर्षण करना हैं उसका नाम लिखे .
- इस यंत्र को बनाने के बाद इसका पूजन धूप दीप से करना हैं .
- इस यन्त्र को किसी भी पात्र मे थोडा सा घी रख ले और उस घी ऊपर रख देना हैं और इस पात्र को पूजा स्थान मे ही रहने देना हैं
- इसके बाद आपको इस मंत्र का जप १०८ बार करना हैं .सात दिन तक आपको मंत्र जप करना हैं .कोई माला की आवश्यकता नही हैं .
मंत्र
:
आकर्षय महादेवि
............मम प्रियं |
ऐं त्रिपुरे देव देवेशि
तुभ्यम दास्यामि याचितं ||
AAKARSHAY MAHADEVI ……. MAM PRIYAM |
AIM
TRIPURE DEV DEVESHI TUBHYAM
DAASYAAMI YACHITAM ||
मंत्र मे
जहां रिक्त स्थान हैं वहां पर
उस व्यक्ति का नाम या पूरा नाम जो भी आप
चाहे उच्चारित करें .
लगभग ७ या
११ दिन मे आपको
मनो वांछित परिणाम प्राप्त
हो जाना चहिये .कार्य पूरा होने के बाद
आप इस पात्र को यन्त्र सहित को किसी भी
स्वच्छ जल मे प्रवाहित कर सकते हैं .
यह एक सरल
प्रयोग हैं इसको जब आवश्यकता हो
करके लाभ उठाना ही चाहिये
.
****NPRU****
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