Friends……
Sadhna world
is world of secrets, where there is ignorance there are secrets and where
knowledge is attained; there that secret does not remain the subject of
curiosity rather it gets established in the form of necessary procedure. But
where one procedure ends, from there onwards, other procedure starts. And
that’s why sequence of these secrets remains intact and increases our thirst of
attaining knowledge. For this reason secrets are infinite and knowledge too. If
you blow your mouth in front of few months old small ignorant kid, then it will
be great secret for him. His eyes are filled with amazement that how it is
possible. But as he grows, he gets knowledge of procedure related to this fact
then it does not remain secret for him.
Same thing
applies to sadhna world too. After hearing, listening or reading about the
facts related to any sadhna and results, we feel astonished that how it is
possible. But till the time we do not know about the basic procedure behind it,
then it will remain merely as subject of curiosity. When we come to know about
that basic secret, then we definitely get success. Here success means attaining
full success not merely attaining experience. Every mantra which has been
pronounced by mouth definitely creates some form of energy and that energy
gives definite results. That’s why it has been said that every mantra has a
definite effect. But there is difference between getting the results and being
completely successful.
In last few
days, the facts which have been put forward relating to Apsara Yakshini
seminar, the motive behind it is that the person who has got intense desire,
thirst and hunger to do sadhna get to know those basic procedures. And there
are various misconceptions also relating to Apsara and Yakshini sadhnas and
this subject has always seen with curiosity point of view. But these basic
secrets never come in light.
Sadgurudev has
said many times about Apsara Yakshini sadhna that this sadhna is very difficult
and very easy too. And those who would have participated in apsara
and yakshini sadhna at the time of Sadgurudev they would know that before
sadhna, Sadgurudev used to make them do several type of procedures which were
hidden aspects related to those sadhnas. Therefore these facts do not have any
substance that Sadgurudev has never said that there are hidden keys of sadhnas
or something like it.Rather it happens like this that we never try
to know that’s why they are hidden. When Columbus started his discovery then
whether there can be human other than one’s own state was secret for everyone
.This was because nobody tried to know about these secrets. But Sadgurudev from time to time has always put forward various
facts in front of disciples. Such type of hidden secrets and necessary facts
are safe in hands of some of the yogi, saints and our elder Sanyasi Guru
Brothers and sisters which will be discussed in seminar. Side by side,
hidden yantra and their use will also be discussed in detail. Here I would like
to put some necessary facts regarding Yakshini Sadhna which can be known only
through experience and which has remained secret up till now.
Importance of Aakash
(Sky) element
Maha
Rishi Kanaad has put forward several facts relating to five elements and atoms.
He said that in composition of creature, five elements are mainly prominent and
based on their relative proportion outer body is categorized. Human beings have
the best composition because it has all five elements present inside it and
human itself can change the composition of atom formed by combination of them
You all know
about five elements .These are Earth, Fire, Water, Air and Aakash (Sky) element.
Earth gives support to fire element. At first instance any body is present only
in form of fire and as it goes on solidifying, it gets transformed into earthen
form. This element has got fire embedded inside it.More the fire is given to
this element, more its form will be transformed and there will be change in its
density and fluidity. This means that it will be transformed into water
element. After transformation, fire element still remains since change takes
place only in composition, basic elements remain unchanged. This water element
under the impact of fire element makes it airy. Meaning that it is transformed
into air.
However the
main element which has got all elements embedded within it, which is present
everywhere, which provide base for all these to work that is Aakash element.
Any element may or may not exist in universe but Aakash element is always
present definitely since from origin of fire to creation of body and all
successive transformation takes place in sky only.
That’s why it
is best among all the elements.
But
what is its relation with Apsara and Yakshini Sadhna?
Friends, it is
very important to know one thing about various Loks that when we do sadhna of
that lok or its related creature then what is medium of contact between us and
them. We say that apsara and Yakshini comes near us due to our sadhna power but
how the energy of our mantra reaches them? Which is the thing through which all
the procedure works?
In roots of
all these, Aakash element plays a role since it is present everywhere. That’s
why this element is present definitely in every lok. And energy formed due to
our sadhna procedure reach them through this Aakash element .And if we come in
contact with them, then it is through Aakash element.
Is it possible
that we directly call Apsara and Yakshini directly in Aakash element? If we
call them they have to come? Definitely, it is possible. But this can be done
through one procedure only. Because we have to make one indicator of Aakash element
through which we can coordinate with Aakash element and after this, if we do
Aavahan of anyone so that we can establish contact with them.
But how it is
possible?
We will
discuss this in coming article.
================================================ मित्रों...
साधना जगत रहस्यों का जगत है, जहा पर अज्ञानता होती है वहाँ पर रहस्य होता है और जहां वह ज्ञान प्राप्त हो जाता है वहाँ पर वह रहस्य कुतूहल का विषय नहीं रहता वरन एक आवश्यक प्रक्रिया के रूप में स्थापित हो जाता है. लेकिन जहां पे एक प्रक्रिया पूर्ण होती है वहीँ पर ही दूसरी प्रक्रिया शुरू हो जाती है और इसी लिए रहस्यों का यह सिलसिला बरकरार रहता है तथा हममे ज्ञान प्राप्ति की तृष्णा को बढाता ही जाता है. इसी लिए रहस्य भी अनंत है और ज्ञान भी. एक छोटे से अबोध बच्चे को को की मात्र कुछ महीने का है उसे अगर आप मुहं फुला कर दिखाए तो वो उसके लिए महा रहस्य होता है. उसके आँखों में आश्चर्य के भाव होते है की ऐसा केसे संभव है. लेकिन जेसे जेसे वह बड़ा होता है उसे इस तथ्य से सबंधित प्रक्रिया का ज्ञान हो जाता है तो फिर वह उसके लिए फिर वह कोई रहस्य नहीं रहता.
साधना जगत में भी ठीक ऐसा ही है. किसी भी साधना से सबंधित तथ्यों को के बारे में उसके परिणाम के बारे में हम सुन कर देख कर या पढ़ कर ये आश्चर्य करने लगते है की ऐसा केसे संभव है लेकिन जब तक उसकी मूल प्रक्रिया का हमें ज्ञान नहीं होगा तब तक ही मात्र वह एक कुतुहल का विषय बन कर रह जाता है. जब उस मूल रहस्य का हमें पता चल जाता है तो फिर सफलता निश्चित मिलती ही है. यहाँ पर सफलता का अर्थ पूर्ण सफलता को प्राप्त करने से है मात्र अनुभव प्राप्त करने से नहीं. हर एक मंत्र जिस का मुख से उच्चारण किया गया है वह किसी न किसी प्रकार की उर्जा का निर्माण निश्चित रूप से करता ही है और वह उर्जा एक निश्चित परिणाम देती है इस लिए कहा गया है की हर एक मंत्र का प्रभाव निश्चित रूप से होता ही है. लेकिन परिणाम प्राप्त करना और पूर्ण रूप से सफल होने में अंतर है.
विगत दिनों में जो तथ्य आपके सामने अप्सरा यक्षिणी सेमीनार के सबंध में रखे गए है उनका उद्देश्य यही है की उन मूल प्रक्रियाओ को वो व्यक्ति जान सके जिनमे इस साधना को करने की ललक हो, पिपासा हो तृष्णा हो. और अप्सरा तथा यक्षिणी साधनाओ के सबंध में विविध भ्रांतियां भी है तथा यह विषय हमेशा से कुतुहल की द्रष्टि से देखा जाता है. लेकिन इसके मूल रहस्य कभी प्रकाश में नहीं आते है.
सदगुरुदेव ने अप्सरा यक्षिणी साधना के सबंध में कई बार कहा है की यह साधना बहोत ही कठिन है और यह साधना बहोत आसान भी है. और जिन्होंने सदगुरुदेव के समय में अप्सरा तथा यक्षिणी साधनाओ में भाग लिया होगा उन्हें ज्ञात होगा की साधना से पूर्व सदगुरुदेव कई प्रकार की प्रक्रियाए करवाते थे जो की उन साधनाओ से सबंधित गोपनीय पक्ष रहे है. इस लिए ये बात तथ्य हिन् है की सदगुरुदेव ने कभी ऐसा नहीं कहा की साधनाओ की गुप्त पूँजी है या ऐसा कुछ. वरन होता यह है की हम कभी जानने की कोशिश नहीं करते इस लिए वे गुप्त है. जब कोलंबस खोज के लिए निकला था तो अपने प्रदेश के अलावा किसी जगह मानव होंगे की नहीं यह एक रहस्य था सब के लिए. क्यों की किसी ने भी उन रहस्यों को जानने की कोशिश नहीं की थी, लेकिन सदगुरुदेव ने समय समय पर विविध तथ्यों को अपने शिष्यों के मध्य रखा ही है. इसे कई गुप्त रहस्य और आवश्यक तथ्य कई योगी साधू तथा हमारे वरिष्ठ सन्यासी भाई बहेनो के पास सुरक्षित है जिनके बारे में सेमीनार में चर्चा की जाएगी. साथ ही साथ में गुप्त यंत्रो तथा उनके उपयोग पर भी विस्तृत रूप से चर्चा की जाएगी. यहाँ पर में यक्षिणी साधना के सबंध में कुछ आवश्यक बाते आप सब के मध्य रखना चाहूँगा जो की अनुभवगम्य है तथा जो अब तक एक रहस्य मात्र रहे है.
आकाश तत्व का महत्त्व:
महाऋषि कणाद ने पञ्च तत्वों तथा अणुओ के बारे में कई तथ्य प्रकट किये है. उनका कथन है की जीव की संरचना में ५ तत्व ही मुख्य रूप से होते है जिनके प्रमाण के आधार पर उनके बाह्य शरीर का वर्गीकरण होता है. मनुष्य सर्वश्रेष्ठ संरचना इस लिए है क्यों की इसमें पांचो तत्व विद्यमान है तथा इन संयोजन से बनी हुई अणु की संरचना में बदलाव मनुष्य खुद ही कर सकता है.
पांच तत्व आप सब जानते ही है पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश तत्व.
पृथ्वी अग्नि तत्व को आसरा देती है, पहले कोई भी पिंड सिर्फ अग्नि के रूप में होता है तथा ठोस होते होते वह पृथ्वी रूप में परावर्तित होने लगता है. यही तत्व अपने अंदर अग्नि को समाहित किये हुवे रहता है. इसी तत्व को जितनी भी ज्यादा अग्नि दी जाए उसका उतना ही रूप परिवर्तन होने लगेगा तथा उसकी घनता, द्रव्यता में परावर्तित होती जायेगी. मतलब की उसका रूपांतरण जल तत्व में होने लगेगा. और रूपांतरण के बाद भी उसमे अग्नितत्व रहता ही है क्यों की संरचना में बदलाव होता है लेकिन उसके मूल तत्व में नहीं. इस लिए जब उस द्रव्य या जल तत्व पर अग्नि तत्व का प्रभाव होता है तब वह धीरे धीरे वायुवान बनाने लगता है. अर्थात की उसका रूपांतरण वायु में होने लगता है.
लेकिन इन सब को समाहित किये हुए जो मुख्य तत्व है जो की सर्व व्यापी है, जो इन सब को कार्य करने के लिए आधार भूमि देता है, वह आकाश तत्व है. पुरे ब्रम्हांड में चाहे दूसरे कोई तत्व हो न हो लेकिन आकाश तत्व निश्चित रूप से होता है क्यों की अग्नि की उत्पति से ले कर पिंड के निर्माण तथा उसके परिवर्तन से लेने तक जो भी घटनाये होती है वह आकाश में ही तो होती है.
इस लिए तत्वों में यह सर्वश्रेष्ठ है.
लेकिन इसका यक्षिणी या
अप्सरा साधना से क्या सबंध?
मित्रों, लोक लोकान्तरो के बारे में एक बात यहाँ जानना ज़रुरी है. की अगर हम किसी अन्य लोक या उससे सबंधित जिव की साधना करते है तब हमारा तथा उनके संपर्क का माध्यम सूत्र क्या होता है. हम कहते है की यक्षिणी या अप्सरा मंत्र बल से हमारे पास आ जाती तो वह मंत्र की ऊर्जा उन तक पहोचाती केसे है? ऐसा कोन सा तथ्य है जिसके माध्यम से यह सारी प्रक्रिया काम करती है?
इन सब के मूल में आकाशतत्व है. क्यों की आकाशतत्व सर्व व्यापी है इस लिए सभी लोक लोकान्तरो में यह तत्व निश्चित रूप से उपस्थित है. तथा हमारी साधना प्रक्रिया से निर्मित ऊर्जा उन तक पहोचाती है तो आकाशतत्व के माध्यम से ही. और अगर हमारा संपर्क उनसे होता है तो वो भी आकाश्तत्व के माध्यम से ही.
क्या ऐसा संभव है की फिर आकाश तत्व को में सीधे ही हम अप्सरा तथा यक्षिणी को आवाज़ दे? हम उनको बुलाये तो उनको आना पड़े? निश्चित रूप से ऐसा संभव है. लेकिन इसके लिए भी तो कोई प्रक्रिया है. क्यों की हमें आकाश तत्व का एक ऐसा प्रतिक बनाना होगा जिसके माध्यम से हम आकाशतत्व के साथ अपना सामजस्य स्थापित कर सके और उसके बाद उसमे किसी का भी आवाहन किया जाए तो उसके साथ भी हमारा संपर्क स्थापित हो सके.
मित्रों, लोक लोकान्तरो के बारे में एक बात यहाँ जानना ज़रुरी है. की अगर हम किसी अन्य लोक या उससे सबंधित जिव की साधना करते है तब हमारा तथा उनके संपर्क का माध्यम सूत्र क्या होता है. हम कहते है की यक्षिणी या अप्सरा मंत्र बल से हमारे पास आ जाती तो वह मंत्र की ऊर्जा उन तक पहोचाती केसे है? ऐसा कोन सा तथ्य है जिसके माध्यम से यह सारी प्रक्रिया काम करती है?
इन सब के मूल में आकाशतत्व है. क्यों की आकाशतत्व सर्व व्यापी है इस लिए सभी लोक लोकान्तरो में यह तत्व निश्चित रूप से उपस्थित है. तथा हमारी साधना प्रक्रिया से निर्मित ऊर्जा उन तक पहोचाती है तो आकाशतत्व के माध्यम से ही. और अगर हमारा संपर्क उनसे होता है तो वो भी आकाश्तत्व के माध्यम से ही.
क्या ऐसा संभव है की फिर आकाश तत्व को में सीधे ही हम अप्सरा तथा यक्षिणी को आवाज़ दे? हम उनको बुलाये तो उनको आना पड़े? निश्चित रूप से ऐसा संभव है. लेकिन इसके लिए भी तो कोई प्रक्रिया है. क्यों की हमें आकाश तत्व का एक ऐसा प्रतिक बनाना होगा जिसके माध्यम से हम आकाशतत्व के साथ अपना सामजस्य स्थापित कर सके और उसके बाद उसमे किसी का भी आवाहन किया जाए तो उसके साथ भी हमारा संपर्क स्थापित हो सके.
मगर यह केसे होता है?
इस पर चर्चा करेंगे आने
वाले लेख में…………
****RAGHUNATH NIKHIL****
****NPRU****
****NPRU****
भाई जी
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी गई हैं |अगली पोस्ट कि भी प्रतीक्षा हैं |
जय सदगुरुदेव
Great bhai.. ek se ek ashcharyjanak rahasy bhre pade hain tantra me:).. waiting for the next post.. sadhuwad
ReplyDeleteGreat bhai.. ek se ek ashcharyjanak rahasy bhre pade hain tantra me:).. waiting for the next post.. sadhuwad
ReplyDeletegreat and rare article. Jai gurudev bhagawan!!!
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