Thursday, August 23, 2012

AAVAHAN - 34


I was still seeing that white-dressed Mahatma. Ocean of affection was flowing in his eyes; definitely he had attained a very high level in sadhna world. He had a little smile on his lips. He very affectionately started telling me the thing for which he came “My son, nothing can be attained in sadhna world by being sad like this. To see any siddh or siddh area, eligibility is must. You want to know about siddh area but it is not the subject of any entertainment. Making an attempt just out of curiosity only leads to failure since world of siddhs is different in itself. Here, every activity is carried out for a fixed work. Therefore, only curiosity is not enough. If sadhak makes an endeavour for attaining knowledge then definitely he attains company of Siddhs”.He slowly and gradually told all these thing stressing each and every word  but my mind was still not stable. Therefore, first question which I put forward in front of him was “who are you?”. He answered me with smile “I am the part of that Jagat Janni (Maa Jagdamba) just like as you are and as every particle of world is.Is any more introduction required now?”. His answer was adding to my misunderstanding and making me restless. I said but why have you come here and how do you know all this….He answered me before I could ask my question that you have to accept the fact that siddha world is different. Definitely, if any person makes a prayer then it becomes known to all Mahatmas in entire Siddh area because as the thought originates in mind, it is broadcasted in sky through medium of waves. As a result, high-order siddhs are able to know and hear these thoughts within moment. It is a normal thing for them. My mind got split into two parts. One mind was arguing that how can it be possible that one can listen to any prayer and after listening, one siddh comes to impart understanding regarding it.Another mind was saying that the truth has been revealed. I asked that ultimately what I should do. He said if sadhak has to experience consciousness in siddh area then get the blessings of Maa Jagdamba Durga. After it, sadhak definitely attains the capability to feel the consciousness of any particular place. This is not an ordinary accomplishment. Sadhak can decide on any known or unknown place too that whether there is any siddh area nearby or any siddh is doing sadhna nearby or not. May goddess Bhagwati bless you. After saying this, he gradually vanished and my consciousness came back in a moment. Then I felt that light fragrance has spread in room. This experience was as much extraordinary as it was uneasy too. I understood that Mantra sadhna of goddess Durga was an essential fact but why? How? Which Vidhi was to be followed? Siddh did not tell all these things. In this manner days were passing by but I was not able to decide that how worship of Goddess Durga should be done so as to get her blessings. Time was passing by and my uneasiness was transforming into fretfulness. I was not able to concentrate on any procedure. Then I remembered the thing told by siddh that if any prayer is made in siddh area, then siddh of that area definitely listen to it.However, this prayer should not be merely out of curiosity rather it should be for attaining knowledge. Then I not even stopped for one moment. Immediately I rushed to Siddh Gir area and prayed that please show me the way. I can attain that secret of sadhna world where I am struck up.

मैं अभी भी उस श्वेत वस्त्र धारी महात्मा को देख रहा था. उनकी आँखों में करुणा का सागर लहरा रहा था, निश्चय ही उन्होंने साधना जगत में उच्चतम स्तर की प्राप्ति की है. हलकी मुस्कान उनके अधरों पर थी. बड़े ही स्नेह के साथ उन्होंने मुझे वह बात बतानी शुरू की जिसके लिए वे उपस्थित हुवे थे. मेरे बच्चे, साधना जगत में इस प्रकार उदास होने पर कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है. किसी भी सिद्ध को देखना, सिद्ध क्षेत्र को देखने के लिए पात्रता का विकास करना ज़रुरी है. तुम सिद्ध क्षेत्र के बारे में जानना चाहते हो लेकिन यह कोई मनोरंजन का विषय नहीं है. मात्र कौतुहल भाव से अगर किसी भी प्रकार का प्रयास किया जाये तो सिर्फ असफलता ही हाथ लगती है, क्यों की सिद्धो का संसार अपने आप में अलग है, वहाँ पर कोई भी क्रिया एक निश्चित कार्य के लिए की जाती है. इस लिए सिर्फ जिज्ञासा भाव काफी नहीं है, अगर ज्ञान प्राप्ति के लिए साधक प्रयत्नशील होता है तो निश्चय ही उन्हें सिद्धो का साहचर्य प्राप्त होता है.उन्होंने धीरे धीरे एक एक शब्द पर वजन रखते हुवे अपनी बात कही. लेकिन मेरे मानस में अभी भी कुछ स्थिरता नहीं थी अतः मेरा प्रथम प्रश्न मेने उनके मध्य रखा आप कौन है?” उन्होंने अपने वाही स्मित के साथ मुझे जवाब दिया में उस जगतजननी का एक अंश हूँ, ठीक वैसे जेसे तुम हो और इस दुनिया का कण कण है. क्या इससे अधिक कोई परिचय अनिवार्य है?” मेरी असम्जता में बढ़ोतरी करने वाला उनका ये जवाब मुझे और व्यग्र कर रहा था. मेने कहा लेकिन आप यहाँ पर क्यों आये और आपको केसे पता चला की में ये सब...मेरा प्रश्न पूछने से पहले ही उनका उत्तर था की सिद्ध संसार अलग है यह बात तुम्हे स्वीकार करनी होगी, निश्चित रूप से अगर कोई व्यक्ति प्रार्थना करता है तो वह पुरे सिद्ध क्षेत्र में सभी महात्माओं को ज्ञात हो जाती है. क्यों की जो भी मानस में विचार उठता है, वह आकाश में तरंगों के माध्यम से प्रसारित हो जाता है, अतः उच्चकोटि के सिद्धजन उन विचारों को क्षण मात्र में जान लेते है सुन लेते है. उनके लिए यह एक सामान्य सी बात है. मेरा मानस अब दो भाग में विभाजित हो गया था, एक मन कह रहा था की ऐसा केसे हो सकता है की मात्र प्रार्थना करने पर वह सब सुन ले, और सुनने के बाद एक सिद्ध उसके बारे में समजाने के लिए आ जाये और दूसरी तरफ का मानस कह रहा था की जो सत्य है वह सामने है. मेने पूछा की मुझे आखिर क्या करना चाहिए. उन्होंने कहा साधक को अगर सिद्धक्षेत्र की चैतन्यता का अनुभव करना है तो उन्हें जगदम्बे दुर्गा का आशीर्वचन प्राप्त करो, इसके बाद निश्चित रूप से व्यक्ति में यह सामर्थ्य आ जाती है की वह स्थान विशेष की चैतन्यता का आभास करने लगे. यह कोई सामान्य घटना नहीं है, इससे साधक कोई भी ज्ञात अज्ञात स्थान पर भी यह निर्धारण कर सकता है की कोई सिद्ध क्षेत्र आस पास है या कोई सिद्ध साधनारत है या नहीं.  भगवती तुम्हारा कल्याण करे. इतना कह कर वे धीरे धीरे अंतर ध्यान हो गए और मेरी चेतना एक क्षण में ही लौट आई. तभी मेने अनुभव किया की कमरे में भीनी भीनी खुशबू छा गयी है. यह अनुभव जितना असाधारण था उतना ही असहज भी था. देवी दुर्गा की मंत्र साधना करना अनिवार्य तथ्य है यह समज में आया था लेकिन क्यों? किस प्रकार? किस विधि विधान से यह करना है, उसके बारे में सिद्ध ने कुछ भी नहीं बताया. इस प्रकार दिन निकलते जा रहे थे लेकिन कुछ भी निश्चय नहीं कर पा रहा था की आखिर किस प्रकार से देवी दुर्गा की साधना उपासना की जाये जिससे की उनके आशीर्वचन प्राप्त हो सके. समय निकलता जा रहा था और मेरी असहजता मेरा चिडचिडापन बन रही थी, किसी भी प्रकार से कोई क्रिया में मन नहीं लग रहा था. तभी सिद्ध की बात मुझे याद आई की सिद्ध क्षेत्र में अगर प्रार्थना की जाये तो उस क्षेत्र के सिद्ध उस प्रार्थना को सुनते ही है, लेकिन वह प्रार्थना कौतुहल के लिए ना हो ज्ञान प्राप्ति के लिए हो. फिर रुका नहीं में एक क्षण को भी, तुरंत से गिर सिद्ध क्षेत्र में जा कर नमन कर प्रार्थना करने लगा की मेरा मार्ग प्रसस्त हो. साधना जगत के उस रहस्य की में प्राप्ति कर पाऊं जहां पर में रुका हुआ हूँ.

****NPRU****

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