Sadgurudev told about the
guardian of Siddh area that they are those Mahasiddhs who contribute to ensure
that Tantra is not used wrongly, this Vidya does not reach unsuitable persons
and capable and suitable sadhaks could be helped in attaining knowledge. Their
aim of life is only this that sadhaks doing sadhna in siddh area and siddhs
residing in these areas does not face any type of problem, they continuously
work towards it.I asked that but why they prefer this type of life, Why they
prefer this type of work instead of doing sadhna to develop their own spiritual
levels? Sadgurudev answered me and said that these guardians are not ordinary
sadhaks, rather only those who have won over their internal and external powers
are given this position. Generally it is not that somebody himself assumes as
Guardian. There is one hidden monastery in Himalaya which is under Divy Sthan
(divine place), through this monastery all siddh areas are controlled. After
the permission of ruler of this monastery only, position of guardian is given
to any siddh. For these, two ethical rules are followed. Sadhak should be
willing to do this type of work and he should have blessings and orders of his
Gurudev. In this manner, such siddhs dedicate their application. The chosen
person has to fulfil responsibility to make secure Siddh areas for fixed time
interval. After this time interval, they can continue with their own sadhna and
spiritual practice. But if any feeling of ego, craving or benefit arises in
sadhak on this position, then it is assumed that he has deviated from path and
rule is to boycott him. However, such cases has never happened .When I asked
about the duration then Sadgurudev answered that this duration can be of
1,11,21,51,101,201,501 years. Duration does not matter to these siddhs, for
them it is their opportunity to serve. It is medium to attain blessings of
Mahasiddhs and their affection towards their small brothers to help them. In
reality, such guardian sadhaks are adorable. They may be few hundred years old
but they fulfil this responsibility for hundreds of years without any ego. When
I asked how they fulfil such sensitive responsibility, Sadgurudev answered that
every siddh upon becoming guardian gets one particular procedure. Guardian of
every siddh area wears one lengthy white-coloured garment as dress and they do
not keep any sect-related sign with them. They do not make any Sadhan sign on
their body. The basic fact underlying all this is that any type of impulse or
selfish feeling does not arise in them. They are only directed to only contact
special siddhs and ruler of siddh areas and following their orders. Then
according to their directions they can help any sadhak or they manifest
themselves when some procedure is done according to Kalp. In this manner, they
continuously work.
Question arose in my
mind…..according to Kalpas? Sadgurudev probably read my mind and said further
that relating to every siddh areas there are various mantric and tantric
procedures and by doing such procedures all secrets of siddh world is attained
by sadhak. These may be rare material/article related to siddh area, any
chemical, any siddh stone, and siddh place or darshan benefit of siddhs. Group
of these definite mantric and tantric procedures of particular siddh area is
called Kalp. Such kalps exist in form of tantra scriptures or such Kalp secrets
are attained from other siddh places/monasteries or siddh ashrams. In shishya tradition, these Kalpas have been made safe after writing
them which are available even today with
many siddhs and hidden monasteries.( After searching in this field,
descriptions and prayogs are found related to siddh area near Shri Shail in
some Rasayan scriptures. Besides this, some prayogs of Girnari Kalp related to
Gir siddh areas are found in one ancient manuscript. Besides it, after getting
few pages of Girnar Kalp I had written them and Kalp of Arbuda goddess related
to Abu siddh area are safe in hands of Peethadheeshwar of Bhuvneshwari Peeth
Shri Maharaj.Description of siddh area nearby Kedarnath is found in Rudryaamal,
which is known by the name of Kedar Kalp. Its manuscript was in Kolkata;
presently this manuscript is kept safely in Nepal’s state library.Desription of
Arunachaleshwar Kalp related to siddh area of Arunachal Pradesh and
Kaamrooprahasya related to siddh area nearby Kamakhya is found from many siddhs
but now these are obsolete. The underlying facts or Kalp related to such areas
can be found upon searching. Every procedure mentioned in all these is precious
then diamond piece for sadhak. I will try to give full description upon this
subject).In such Kalpas, procedures are given relating to aavahan of siddhs.
Upon doing these procedures, siddh i.e. guardian of area are directly
manifested in front of sadhak and they guide the sadhak. Here it is about
guidance, not about help. Because it is discovery, it is test for sadhak, one
type of sadhna. Therefore sadhak gets guidance, but he has to help himself on
his own. But those sadhaks are very few who attain these types of secrets and
attain many types of siddhis easily.
After listening to all this,
my getting enthusiastic was quite natural. Then I asked Sadgurudev that who are
the god-goddess whose sadhna should be done by sadhak and how it should be done
in order to get assistance in search of such Kalps?
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सिद्ध क्षेत्र के संरक्षक के बारे में सदगुरुदेव ने बताया की यह वे महासिद्ध होते है जो तंत्र के दुरुपयोग या अयोग्य व्यक्ति तक यह विद्या ना पहोचे तथा योग्य और अधिकारी साधको तक विद्या प्राप्ति में मददरूप हो सके इस कार्य हेतु अपना योगदान देते है. उनके जीवन का उद्देश सिर्फ यही रहता है की सिद्ध क्षेत्र में साधनारत साधक तथा निवास करने वाले सिद्धो को किसी भी प्रकार की कोई समस्या ना आये, इस हेतु वह निरंतर गतिशील रहते है. मेने पूछा की लेकिन वह इस प्रकार की जीवन क्यों पसंद करते है, क्या वे साधना में गतिशील रह कर अपने आध्यात्मिक स्तर का विकास करने की वजाय ऐसा कार्य क्यों करना पसंद करते है? इसके उत्तर में सदगुरुदेव ने बताया की इसे संरक्षक कोई सामान्य साधक नहीं होते, वरन जिन्होंने आतंरिक शक्तियों तथा बाह्य शक्तियों पर पूर्ण विजय प्राप्त की हो उनको इस प्रकार के पद पर आरूढ़ किया जाता है. वस्तुतः ऐसा नहीं है की कोई भी अपने आप को संरक्षक बना दे. हिमालय में स्थित एक गुप्त मठ है, जो की दिव्य स्थान के अंतर्गत है, उस मठ के द्वारा सभी सिद्ध क्षेत्रो का नियंत्रण किया जाता है. उसी मठ के अधिष्ठात्र की अनुमति बाद ही संरक्षक का पद किसी सिद्ध को दिया जाता है. इसके लिए दो मर्यादा का पालन होता है, एक साधक स्वेच्छा से इस प्रकार के कार्य के लिए तैयार हो तथा उनके गुरु की आज्ञा तथा आशीर्वाद हो. इस प्रकार ऐसे कई सिद्ध अपने आवेदन का समर्पण करते है, योग्य व्यक्ति को नियत काल या समय के लिए सिद्ध क्षेत्रो की रक्षा का उत्तरदायित्व निर्वाह करना रहता है. इसके बाद वापस से वह अपने साधन तथा अभ्यास में गतिशील हो सकते है. हाँ, साधक को ऐसे पद पर रहने पर किसी भी प्रकार का दंभ, लालसा या लाभ की पिपासा जागृत होती है तो उसे पथभ्रष्ट माना जाता है तथा उसका बहिष्कार किया जाए ऐसा नियम है, हालाँकि ऐसा कभी हुआ नहीं. मेरे पूछने पर की यह अवधि कितनी होती है इसके उत्तर में सदगुरुदेव ने कहा की यह अवधि १, ११,२१, ५१, १०१, २०१, ५०१ साल की भी हो सकती है. उन सिद्धो के लिए अवधि का कोई महत्त्व नहीं है, उनके लिए यह सेवा का अवसर है. महासिद्धो की कृपा प्राप्ति का साधन है तथा अपने अनुजो की मदद करना स्नेह समर्पण है. वास्तव में ऐसे संरक्षक सिद्ध वन्दनीय होते है, आयु से भले ही वह खुद कई सो वर्ष के हो, दंभ रहीत, स्वभाव से निश्छल हो कर वह अपना उत्तरदायित्व सेंकडो सालो तक निभाते रहते है.
मेरे पूछने पर की वह इसका अत्यंत ही संवेदनशील उत्तरदायित्व का निर्वाह किस प्रकार करते है, सदगुरुदेव ने बताया की हर एक सिद्ध को संरक्षक बनने पर अपना क्रम मिलता है, सभी सिद्ध क्षेत्रो के संरक्षक एक लंबा सफ़ेद रंग का चोगा वस्त्र के रूप में धारण करते है, तथा अपने पास सम्प्रदाय जन्य कोई भी बाना या निशानी नहीं रखते है. किसी भी प्रकार के साधन निशान अपने शरीर पर नहीं बनाते है. इन सब के मूल में यही तथ्य मात्र है की किसी भी प्रकार से उनमे कोई भी उद्वेग ना आये या स्वार्थ जेसे भाव मानस में उत्प्पन हो ही नहीं. उसे मात्र विशेष सिद्धो से तथा नियत सिद्ध क्षेत्र के अधिष्ठात्र से ही संपर्क करने का तथा आज्ञा पालन का आदेश होता है तथा उनके निर्देशानिसार वह किसी भी साधक को मदद कर सकते है या फिर या फिर कल्पों के अनुसार क्रिया करने पर वह उपस्थित होते है. इस तरह वे निरंतर गतिशील रहते है.
मेरे मानस में प्रश्न आया ...कल्पों के
अनुसार? सदगुरुदेव ने सायद मन ही मन मेरी बात को भांप गए तथा अपनी बात आगे बढाते
हुवे कहा की सभी सिद्ध क्षेत्रो से सबंधित विविध तांत्रिक मांत्रिक प्रक्रियाए
होती है, तथा एसी प्रक्रियाओ को करने पर सिद्ध जगत के सभी रहस्य साधक को प्राप्त
हो जाते है, चाहे वह सिद्ध क्षेत्र से सबंधित दुर्लभ पदार्थ या सामग्री हो,
रस-रसायन हो, सिद्ध पत्थर हो, सिद्ध स्थान हो, या सिद्धो के दर्शन लाभ हो. एक
क्षेत्र के यही निश्चित तांत्रिक मांत्रिक प्रक्रियाओ के समूह को कल्प कहा जाता
है, ऐसे कई कल्प तंत्र ग्रंथो के रूप में विद्यमान है या फिर दूसरे सिद्ध स्थान या
मठ तथा सिद्ध आश्रमो में गुरु मुखी प्रणाली से ऐसे कल्प रहस्य की प्राप्ति होती
थी. शिष्य परंपरा में ऐसे कई कल्पों को लिख कर सुरक्षित कर दिया है जो की कई
सिद्धो के पास तथा गप्त मठो में आज भी मिल सकते है. ( इस क्षेत्र में खोज करने पर
कुछ रसायन ग्रंथो में श्रीशैल के आस पास के सिद्द क्षेत्र से सबंधित कई प्रयोग तथा
विवरण प्राप्त होते है, इसके अलावा गिर सिद्ध क्षेत्र से सबंधित गिरनरी कल्प के
कुछ प्रयोग एक प्राचीन पांडुलिपि में देखने को मिले थे, इसके अलावा गिरनार कल्प के
कुछ पन्ने प्राप्त होने पर उसे लिख लिया था तथा आबू सिद्ध क्षेत्र से सबंधित अर्बुदा
देवी का कल्प भुवनेश्वरी पीठ के पीठाधीश्वर श्री महाराज जी के पास सुरक्षित था. केदारनाथ
के आस पास के सिद्ध क्षेत्र से सबंधित रुद्रयामल में विवरण मिलता है, जो की केदार
कल्प के नाम से वर्णित है, इसकी भी पाण्डुलिपि कलकत्ता में थी, वर्त्तमान में इसकी
पांडुलिपि नेपाल के राजकीय पुस्तकालय में सुरक्षित है. अरुणाचल प्रदेश के सिद्ध
क्षेत्र से सबंधित अरुणाचलेश्वर कल्प तथा कामाख्या के आस पास के सिद्ध क्षेत्र से
सबंधित कामरूपरहस्य का विवरण कई सिद्धो से मिलता है लेकिन अब यह अप्राप्य है. ऐसे
सभी क्षेत्र से सबंधित कोई न कोई आधारभूत तथ्य या कल्प खोज करने पर मिल सकते है. निश्चित
रूप से इन सब में वर्णित एक एक प्रक्रियाए हीरक खंड से भी ज्यादा मूल्यवान है साधक
के लिए, इस विषय ऊपर कभी पूर्ण विवरण देने का प्रयास करूँगा ) ऐसे ही कल्पों में
सिद्धो के आवाहन की प्रक्रियाए दी होती है, यह प्रक्रियाए करने पर सिद्ध अर्थात
क्षेत्र संरक्षक साधक के सामने प्रत्यक्ष प्रकट होते है तथा साधक का मार्गदर्शन
करता है, बात सिर्फ मार्गदर्शन की है, सहायता की नहीं. क्योंकि यह तो खोज है, साधक
की कसोटी है, एक प्रकार की साधना ही तो है. इस लिए साधक को मार्गदर्शन मिलता है,
सहायता तो उसे खुद ही अपनी करनी पड़ेगी. लेकिन कोई विरले साधक ही होते है जो इस
प्रकार के पूर्ण रहस्यों की प्राप्ति कर लेते है तथा कई प्रकार की सिद्धियों को
सहज प्राप्त कर लेते है.
ये सब सुन कर दिल में उत्साह का संचार होना
स्वाभाविक ही है फिर मेने सदगुरुदेव से पूछा की साधक को ऐसे कल्पों की खोज में
सहायता मिले उसके लिए किस प्रकार और किस देवी देवता से सबंधित साधना उपासना करनी
चाहिए?
****NPRU****
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