Friday, September 21, 2012

SOOKSHMA SHAREER - KUCHH JIGYASAAYEN 2





Every material, living being or organism has got two forms present in this universe – physical and astral form. In the process of creation of universe, when particular thing is originated, its subtle form is also created. In other words, we can say that “all the living and non-living thing which we see with our eyes in the universe, its visible form is Sthool and invisible form is subtle/astral form. If out of five elements, proportion of any element is increased or decreased then its existence is transposed but the basic element does not change”. For example, ghee is left after fermentation of milk. But we cannot ignore the fact that curd, buttermilk or butter is present in that ghee in subtle form.
Human body is basically made up of five elements but if we think that what are basically these five elements i.e. water, air, fire, earth and sky? In the scientific terms, elements are basic component in all circumstances. Element is most minute form of any material which cannot be divided further by any physical or chemical process.
These elements are connected to each other. Element is energy in itself, quick revolution of magnetic energy of atom around itself is none but element but its speed is so fast that we can’t see by our physical eyes. Though there are present many elements in universe. But basically, till date science’s research has been confined to five elements only….and under the discussion on astral body, for now it is necessary to understand five elements first.
When we progress forward in sadhna after successively completing each stage , then we have various types of amazing and special experiences which are connected to incidents happening in inner and outer universe related to our seven bodies….But out of ignorance, we are not able to distinguish them. We leave that question either considering them as illusion or dream. Amazing thing is that all the spiritual experiences remain in our mind for small duration only. Then it gets accumulated in subconscious mind and disappears from conscious mind. There is fine layer present between subconscious mind and our conscious mind. It is related to seven bodies because during sadhna, with continuous pronunciation of mantra, it hits seven chakras and there is special type of vibration of Naad on chakras. With it, these seven bodies are also activated. This procedure goes on happening in very subtle form. We cannot even describe them because inner experiences have to be reviewed very finely then only we can try to understand it.And its confirmation can be done in company of Guru only. And this does not happen in one go. Efforts have to be put in continuously.
This description of astral body will be helpful when we will activate our astral body and review its experience.
Now we are going to discuss about the point which is very abstruse and difficult. But after even being difficult, I will try to make you understand in very easy manner.
We all know that physical body can be seen or touched but this is not the case with astral body. We can feel astral body through vibrations. As we can see physical body through our physical eyes, we can see astral body through inner eyes. This is possible through Yog Tantra practice. This procedure can be practised by through other mediums also. In previous article, we understood before the description of Sookshma that electron which we call as electric atoms are non-physical, electric atoms. And atomic energy is created from it. Astral body is created from these atoms which can be only felt.
Here let us see by one example that how astral body can be felt…….As the changes happen in environment like wind touches us and we feel it and can recognise that it is cool wind or hot. By this feeling, we come to this conclusion that something happened. In the similar manner, we attain the capability to recognise these electric atoms by continuous practice or special sadhna. And we can clearly feel that any astral body has arrived. In the next stages, we become capable to ascertain of which level, of which Lok, of which Mandal, astral body has come. Then, while doing practice and continuously crossing the stages, we can establish contact with it and become capable to exchange knowledge.
In these seven bodies, second one is Bhaav Shareer or Vaasna Shareer. It is neither physical nor subtle. Humans have got various feeling like laughing, weeping, affection, hate, love and irritation but we can’t see them in physical form but can feel them very strongly. Bhaav Shareer is expanded form of atomic or subtlest Praan Vaayu which we call as Vyom. We call Vyom as ether in normal language. Vyom is present everywhere. And the one that is subtle than Vyom is “Astral”. And our third body is Sookshma Shareer which we call in common language as Astral Body.
Till date, science has reached only up till Ether i.e. Vaccum.But only after fission of vacuum, one can attain Astral.
We can come directly to discussion on sadhna related to astral body, its practice, experiences or benefits but is very important to understand the meaning of astral body or what we understand by this word if we want to attain completeness in this genre. How far it is right to think that we can attain completeness in that subject without knowing background of that subject. To avoid this silly thing, I have made a small attempt to put forward this preliminary but rare abstruse information.
In the next article, I will try to put forward deeper aspects of astral body……I will take your leave now…
Nikhil Pranaam

----------------------------------------------------------------------
प्रत्येक पदार्थ, प्राणी या जीवाणु के दो रूप इस् ब्रम्हांड में विद्यमान है - स्थूल और सूक्ष्म रूप. सृष्टि के सृजन कार्य में जहा वस्तु विशेष का स्थूल अर्थात दृश्यमान रूप में अवतरण होता है वही उसकी सूक्ष्म आवृत्ति की भी निर्मित होती है. अब हम इसे यु भी कह सकते है की “ब्रम्हांड में जो भी जीवित अजीवित वस्तु चक्षुओ के समक्ष पड़ती है उसका एक दृश्य अर्थात स्थूल और एक अदृश्य अर्थात सूक्ष्म रूप है, अगर पञ्च तत्वों में से किसी भी एक तत्त्व विशेष की मात्रा कों कम-ज्यादा किया जाए तो इनके अस्तित्व में विपर्यय हो जाता है किंतु मूल तत्व नहीं बदलता” जैसे दूध की विखंडन क्रिया होने पर अंत में घी शेष रहता है. पर हम इस तथ्य कों उपेक्षित नहीं कर सकते की उस दूध में दही, छाछ या मक्खन भी विद्यमान है सूक्ष्म रूप से.
मानवी देह का निर्माण पञ्च तत्वों से हुआ है परन्तु अगर हम सोचे तो ये पञ्च तत्व अर्थात जल, वायु, अग्नि, भू एवं आकाश तत्व मूलतः हे क्या ? वैज्ञानिक भाषा में कहे तो तत्व सभी परिस्थिति में एक मौलिक घटक हैं. तत्व किसी भी पदार्थ का सबसे सरल रूप है, जो किसी भी रासायनिक या भौतिक विधि द्वारा अविभाज्य है.
ये तत्व परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए है. तत्व अपने आप में एक उर्जा है, एक विद्युदणु की चुम्किया उर्जा का स्वयं के औती भौति तीव्र गति से चक्कर लगाता हुआ रूप ही पदार्थ या तत्त्व है परन्तु इसकी गति इतनी ज्यादा तीव्र होती है की हम चर्मचक्षुओ से नहीं देख पाते. वैसे तो ब्रम्हांड में अनेक तत्त्व विद्यमान है. पर मूलतः विज्ञान अभी तक केवल पञ्च तत्व पर ही शोध में कार्यरत रहा है.. और सूक्ष्म शरीर के विवेचन के अंतर्गत फ़िलहाल इन पञ्च तत्वों कों समझना पहले अनिवार्य है..
जब साधना में हम एक के बाद एक चरण पूर्ण करते हुए आगे बढते है तो हमें ना ना प्रकार के विचित्र विलक्षण अनुभव होते है जो हमारे सप्त देहो से सम्बन्धित इस अंतर एवं बाह्य ब्रम्हांड में घटित होने वाली घटनाओं से जुड़े हुए होते है..परन्तु अज्ञानतावश हम उन्हें भेद नहीं पाते. उन सवालों कों या तो भ्रमवश या स्वप्न समझ कर छोड़ देते है. और अचरज की बात ये होती हे की जितने भी आध्यात्मिक व साधनात्मक अनुभूतिया होती है वो थोड़े ही समय के लिए हमारे मानस पटल पर अंकित रहती है फिर वह अवचेतन मन में संचित हो कर मानस पटल से विलुप्त हो जाती है. अवचेतन मन और हमारे मानस पटल में एक हलकी सी धुंधली परत होती हे. सप्त देहो से इसीलिए क्यों की साधना करते हुए मंत्रो के सतत उच्चारण से प्रत्येक चक्रों पर आघात करते हुए एक विशिष्ट प्रकार का स्पंदन एवं नाद होने से चक्रों के साथ ही साथ इन सप्त देहो का भी चैतन्यिकरण होते जाता है. ये क्रिया अत्यंत ही सूक्ष्म रूप से घटित होती रहती है हम इसका अनुमोदन भी नहीं कर सकते. क्युकी आतंरिक अनुभूतियो कों बारीकी से गौर कर समीक्षा करनी पड़ती है तभी हम इसे समझने की चेष्ठा कर सकते है. और इसकी पुष्टि गुरु के सानिध्य में ही हो सकती है. और ये एक बार में हो जाये ऐसा नहीं ये सतत प्रयास करने की क्रिया है.
सूक्ष्म शरीर का ये विवेचन हमें सहायक होगा जब हम सूक्ष्म शरीर कों क्रियान्वित कर उसके अनुभव की समीक्षा करेंगे.
अब हम उस बिंदु पर चर्चा करने जा रहे है जो अत्यंत गुढ़ और जटिल है. परन्तु जटिल होने पश्चात भी इसे बहुत सरल रूप में समझाने का मै प्रयास करुँगी.
हम सभी जिज्ञासु जानते है की स्थूल शरीर कों देखा या छुआ जा सकता है परन्तु सूक्ष्म शरीर कों नहीं. सूक्ष्म शरीर कों हम तरंगों से महसूस कर सकते है. जिस प्रकार स्थूल देह हम सभी अपने चर्मचक्षुओ से देख सकते है सो सूक्ष्म शरीर कों अंतर चक्षुओ से देखा जा  सकता है. ये योग तंत्र के अभ्यास के माध्यम से संभव है. वैसे तो इस क्रिया का अभ्यास और भी माध्यमो से किया जा सकता है. पिछले लेख में हमने सूक्ष्म की व्याख्या के पूर्व समझा था की इलेक्ट्रोण जिसे हम विद्युदणू कहते है वे अभौतिक है विद्युत कण है. और उनसे आणविक अर्थात एटमिक उर्जा का निर्माण होता है. सूक्ष्म शरीर इन अणुओ से ही निर्मित है जिनकी मात्र अनुभूति ही की जा सकती है..
यहाँ एक उदाहरण से समझते है की सूक्ष्म शरीर की अनुभूति किस प्रकार से की जा सकती है.. जिस प्रकार वातावरण में बदल होते है जैसे हवा अगर हमें छू कर निकल जाती हे तो हमें एहसास होता है या हम पहिचान सकते है की ये ठंडी हवा है या गर्म. उस एहसास के द्वारा हम इस नतीजे पर पहुचते है की कुछ हलचल हुई. ठीक उसी प्रकार सतत अभ्यास या साधना विशेष से हमें इन विद्युदणुओ कों पहिचानने की क्षमता आने लगती है. और हम साफ़ साफ़ एहसास कर पाते है की किसी सूक्ष्म शरीर का आगमन हुआ है. फिर आग्रिम चरणों में हम ये भी तय करने में सक्षम होते है की ये किस स्तर का, किस लोक, किस मंडल का सूक्ष्म शरीर विचरण करते हुए आ पंहुचा है. फिर अभ्यास करते हुए निरंतर पड़ावो कों पार करते हुए हम आगे इनसे संपर्क स्थापित कर ज्ञान का आदान प्रदान करने में भी सक्षम होने लगते है.
इन सप्त देहो में दूसरा भाव शरीर या वासना शरीर है. ये स्थूल भी नहीं और सूक्ष्म भी नहीं. मनुष्य अनेक भावो कों लिए हुए है जैसे हसना, रोना, राग, द्वेष, प्रेम, जुगुप्सा परन्तु इन्हें हम देख तो नहीं सकते स्थूल रूप में परन्तु सशक्त रूप से महसूस कर सकते है. भाव शरीर एटमिक या सूक्ष्मतम प्राणवायु का विस्तीर्ण रूप है जिसे व्योम कहते है, व्योम कों सामान्य भाषा में ईथर भी कहते है. व्योम सार्वभौम है. और व्योम से भी सूक्ष्म है “एस्ट्रल”. और हमारा तीसरा शरीर है सूक्ष्म शरीर या जिसे सामान्य भाषा में हम एस्ट्रल बॉडी कहते है. इसीलिए ये भाव शरीर से भी सूक्ष्म है. 
अभी तक विज्ञानं इर्थर अर्थात वेक्यूम तक पहुच पाया है परन्तु वेक्यूम की विखंडन क्रिया करने पर ही एस्ट्रल कों पाया जा सकता है.
सूक्ष्म शरीर से संबंधित साधना, अभ्यास, अनुभव या लाभों पर सीधे चर्चा पर आया जा सकता था लेकिन सूक्ष्म शरीर हम किसे कहते है या हम इस शब्द से क्या समझते है ये जानना अतिआवश्यक है अगर हम इस विधा में परिपूर्णता पाने का विचार रखते है तो. किसी विषय की पाश्र्व भूमि जाने बिना उसमे पूर्णता अर्जित करने का विचार कहा तक योग्य है. इसी अट्टाहास हेतु ये प्राथमिक परन्तु दुर्लभ गुढ़ जानकारी आपके समक्ष रखने का एक छोटा सा प्रयास मैंने किया है.
अगले लेख में सूक्ष्म शरीर के और गेहेन पक्षों कों सामने लाने का प्रयास करुँगी..आज यही विराम देती हूँ...
निखिल प्रणाम

****सुवर्णा निखिल****
****NPRU****

No comments:

Post a Comment