KaalichandivinayakohIn Kalyuga,
the gods and goddess who gets pleased very quickly and provide results, among
them name of goddess Kaali is known the most among sadhaks. Every sadhak after
doing upasana of Maa feels himself secured and full of affection in her feet.
Some sadhaks are fearful of the form of goddess but it is not like that. The
real form of Goddess is very sweet, how can one mother be ugly or fearful? This
is not possible at all rather her monstrous form is for our enemies, it may be
our internal enemies or external enemies. Therefore, it is not right to be
perplexed or avoid her sadhna. Shri Mahakaali, Shakti of Mahakaal is always
busy in process of destruction because this is that work by which creature
moves forward and enters novel area of life and attain novel knowledge. But
there are many forms of Maa which are complete and beneficial in themselves.
One of such forms of her is Trinayana.Actually Trinayana means having three
eyes, Surya (sun), Chandra (moon) and Agni (fire).This is also sign of her being
full of Trishakti i.e. Gyan(knowledge),Iccha(will) and Kriya(practical
activity).Besides this, it also exhibits Tri Bhaav here Sat, Raj and Tam. In
this manner, this form through Sat Bhaav does our internal purification, with
Tam Bhaav it destroys our external enemies and Raj Bhaav provides us happiness
and bliss in our materialistic life. Vidhaan of this form of goddess is
cumbersome and very difficult to execute and it is very difficult for normal
person to do it.Many hidden Vidhaans related to Goddess have been in vogue
owing to Guru Tradition. But Laghu (small) Prayogs are very rare. But still
some of such Laghu Prayog has existed continuously by Guru Tradition. Presented
prayog is one rare and very intense prayog in this series, which sadhak can complete
in one night only and can very quickly do self-progress. Sadhak attains
following benefits by sadhna prayog presented here.
Upon doing this sadhna, sadhak gets riddance from
his internal fear.
Sadhak gets security from all unknown apprehensions
and future problems.
Attraction develops on sadhak’s face and such
attraction also reflects in his voice, due to which his sphere of influence
increases.
Sadhak’s enemies get paralysed.
If sadhak does this prayog with full dedication
then definitely same night in the dreams he gets Darshan of Mahakaali.
Besides this, sadhak attains various types of
benefits in his daily life. Sadhak can himself experience these facts in his
life after doing sadhna.
Sadhak can do this prayog on eighth day of Krishna
Paksha of any month. If it is not possible, then sadhak can do it on any
Sunday’s night.8th September is 8th day of Krishna Paksha
of Bhadrapad month and Vidya and Mahavidya of this day are Kaali and Trinayana
respectively. Therefore, this day is best for this sadhna.
It is a
night-time prayog. Time should be after 11:00 P.M.
Oil-Lamp should be used in this sadhna and dhoop
should be of Lohbaan. In poojan, sadhak should offer Jaava flower of any red
flower.
If sadhak is
offering Bhog, then sadhak can offer any fruit as Bhog but it should not be
cut. Only complete fruit should be offered. Do not use any market sweet as
Bhog. One can offer homemade sweet as Bhog. Offer fruits and jaggary to lord
Hanuman and lord Bhairav. Any type of fruit can be offered to lord Mahakaal as
Bhog.
Sadhak can use Moonga rosary, rudraksh rosary or
black Hakeek rosary in whole mantra Jap of this sadhna.
First of all sadhak should take bath, wear red
clothes. After that, sadhak should sit on red aasan. Direction will be
north.
Sadhak should first of all do Guru Poojan and
Ganpati Poojan. After that, sadhak should do poojan of Lord Bhairav mentally.
After that, sadhak should recite Bhairav Mantra 21
times.
ombhramsarvkaarysiddhayebhairavaayphat
After mantra jaap, sadhak should do the poojan of
Lord Hanuman mentally and recite Hanuman mantra 21 times too.
Ham pawananandanaayphat
After that, sadhak should mentally pray to Lord
Mahakaal for success in sadhna and chant 1 rounds of below mantra
omjum sham mam mahaakaalaayghoraroopaaynamah
After that, sadhak should establish one idol of
pure Parad Kaali in front of him. If it is not possible then sadhak should
establish Mahakaali Yantra. Or sadhak should establish picture of Mahakaali.
This should be done by spreading red cloth in front.
After that
sadhak should do normal poojan of idol, yantra or picture and take permission
for Mantra jaap mentally.
Mantra omkreengkreengtrinayanekaalikekreengkreengphat
Sadhak should chant 51 rounds of this mantra.
Sadhak can take rest after 21 rosaries but sadhak should not leave aasan.
After finishing mantra jaap, sadhak should do the
Jap Samarpan to goddess by Yoni Mudra.
In this manner,
after completion of prayog sadhak can accept the fruits and sweet offered as
Bhog and can give it to family members.
Sadhak should establish the picture/yantra/idol
etc. on that cloth in worship place. Rosary should not be immersed. This rosary
can be used throughout the life for doing this prayog
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कालीचंडीविनायको: कलियुग में जो देवी देवता अत्यधिक तीव्रता से प्रसन्न हो कर फल प्रदान करते है उनमे देवी काली का नाम अत्यधिक तो तंत्र साधको के मध्य प्रचलित है ही. माँ की उपासना कर हर साधक अपने आप को उनके चरणों में अत्यधिक सुरक्षित और स्नेह से परिपूर्ण ही प्राप्त करता है. देवी के स्वरुप से कई साधक भय खाते है जब की ऐसा नहीं है, देवी का वास्तविक स्वरुप तो अत्यधिक मधुर है, एक माँ कभी कुरूपा या भयावह कैसे हो सकती है? यह संभव ही नहीं है, वरन उनका विकराल स्वरुप तो हमारे शत्रुओ के लिए है वह चाहे बाह्यगत शत्रु हो चाहे आंतरीक शत्रु हो. इस लिए इनकी साधना से गभराना या कतराना किसी भी प्रकार से योग्य नहीं है. महाकाल की शक्ति श्री महाकाली सदैव ही संहार के क्रम में संलग्न रहती है क्यों की यही तो वह कार्य है जिससे जिव की गति आगे बढती है तथा वह जीवन के नुत क्षेत्र में प्रवेश कर नए ज्ञान को प्राप्त करता है. लेकिन माँ के तो अनेको स्वरुप है जो की सभी अपने आप में पूर्ण और कल्याणमय है. उनका ऐसा ही एक स्वरुप है त्रिनयना काली, दरअसल त्रिनयना का अर्थ है तिन नेत्रो से युक्त, सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि. यही उनके त्रिशक्ति युक्त अर्थात ज्ञान, इच्छा तथा क्रिया युक्त होने का भी संकेत है, इसके अलावा यह त्रि भाव सत, रज और तम को भी प्रदर्शित करता है. इस प्रकार यह रूप सत भाव के माध्यम से हमारी आतंरिक शुद्धि करता है, तमभाव से बाह्यगत शत्रुका नाश करता है तथा रज भाव हमारी भौतिक जीवन में सुख और आनंद की प्राप्ति करता है. देवी के इस स्वरुप के विधान कठिन और वह अत्यधिक दुस्कर है तथा उसका सामान्य जन से संपन्न होना अत्यधिक मुश्किल है. गुरुमुखी प्रथा से देवी से सबंधित कई गुप्त विधान भी प्रचलन में रहे. लेकिन लघु प्रयोग तो दुर्लभ ही कहे जा सकते है. फिर भी गुरुपरंपरा से ऐसे कुछ लघु प्रयोग का अस्तित्व बराबर बना रहा. प्रस्तुत प्रयोग इसी कड़ी का एक दुर्लभ और अत्यधिक तीव्र प्रयोग है, जिसे एक रात्रि में ही सम्प्पन कर साधक अत्यधिक तीव्रता के साथ स्व उन्नति कर सकता है. प्रस्तुत साधना प्रयोग से साधक को निम्न लाभों की प्राप्ति होती है,
इस साधना को करने पर साधक को अपने आतंरिक भय में मुक्ति लाभ
होता है
साधक को सभी अज्ञात आशंकाओ से तथा आने वाली विपदा से रक्षण
मिलता है
साधक के चहरे पर आकर्षण का विकास होता है तथा ऐसा आकर्षण उसकी
वाणी में भी व्याप्त होने लगता है जिसके कारण साधक का प्रभाव क्षेत्र बढ़ जाता है
साधक के शत्रुओ की गति का स्तम्भन होता है
अगर साधक पूर्ण श्रद्धा के साथ इस प्रयोग को सम्प्पन करता है
तो निश्चय ही उसी रात्री में स्वप्न में उसे महाकाली के दर्शन सुलभ हो जाते है.
इसके अलावा भी साधक के रोजिंदा जीवन में कई प्रकार से लाभों की
प्राप्ति होती है, साधक स्वयं ही साधना करने के पश्च्यात अपने जीवन में इन तथ्यों
का अनुभव कर सकता है.
साधक यह प्रयोग किसी भी महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी को कर
सकता है अगर यह संभव न हो तो साधक किसी भी रविवार की रात्रि में यह प्रयोग संपन्न
करे. तारिख ८ सितम्बर को भाद्रपद कृष्ण
अष्टमी है तथा इस दिन की विद्या काली और महा विद्या त्रिनयना है अतः यह दिन इस
साधना के लिए उत्तम है.
यह प्रयोग रात्रिकालीन है, समय ११ बजे के बाद का रहे.
इस साधना में दीपक तेल का रहे तथा धुप लोहबान का हो. पूजन में
साधक को जावापुष्प को या कोई भी लाल पुष्प को समर्पित करना चाहिए.
साधक अगर भोज लगा रहा है तो साधक को कोई भी फल भोग में लगा
सकता है लेकिन उसे काटना नहीं है. फल पूरा होना चाहिए. बाजार से निर्मित कोई भी
मिठाई आदि भोग में उपयोग ना करे, घर पे निर्मित मिठाई आदि समर्पित की जा सकती है.
हनुमान तथा भैरव को भी फल या और गुड समर्पित करे. भगवान महाकाल को भी किसी भी फल
का भोग लगाया जा सकता है.
इस साधना के समस्त मन्त्रजाप में साधक मूंगामाला रुद्राक्षमाला
या काले हकीक की माला का प्रयोग कर सकता है.
साधक सर्व प्रथम स्नान आदि से निवृत हो कर, लालवस्त्रों को
धारण करे. इसके बाद साधक लाल आसान पर बैठ जाए. साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ होना
चाहिए.
साधक सर्व प्रथम गुरुपूजन, गणेश पूजन सम्प्पन करे. इसके बाद
साधक भगवान भैरव का मानसिक पूजन करे.
उसके बाद साधक भैरव मंत्र का २१ बार उच्चारण करे
‘ॐ भ्रं सर्व कार्य सिद्धये भैरवाय फट्’
(om bhram sarv kaary siddhaye
bhairavaay phat)
मंत्र जाप के बाद साधक भगवान हनुमान का भी मानसिक पूजन करे तथा
हनुमान मंत्र का भी २१ बार उच्चारण करे
‘हं पवननन्दनाय फट्’
(Ham pawananandanaay phat)
इसके बाद साधक भगवान महकाल से मानसिक रूप से साधना में सफलता
के लिए प्रार्थना करे तथा निम्न मंत्र की एक माला मंत्र जाप करे
ॐ जुँ शं मं महाकालाय घोररूपाय नमः
(om jum sham mam mahaakaalaay
ghoraroopaay namah)
इसके बाद साधक अपने सामने विशुद्ध पारदकाली का विग्रह स्थापित
करे. अगर यह संभव न हो तो साधक महाकाली यन्त्र स्थापित करे. या फिर साधक महाकाली
का चित्र स्थापित कर दे. यह स्थापना अपने सामने लाल वस्त्र बिछा कर करनी चाहिए.
इसके बाद साधक विग्रह, यन्त्र या चित्र का सामन्य पूजन संम्पन
करे तथा मंत्र जाप के लिए मानसिक अनुमति की प्राप्त करे.
मन्त्र – ॐ क्रीं क्रीं त्रिनयने कालिके क्रीं क्रीं फट्
(om kreeng kreeng trinayane kaalike
kreeng kreeng phat)
साधक को इस मंत्र की ५१ माला जाप करना है. साधक २१ माला के बाद
विश्राम ले सकता है लेकिन साधक को आसान नहीं छोडना चाहिए.
मंत्र जाप सम्प्पन होने पर साधक को योनी मुद्रा के साथ देवी को जप समर्पण करना चाहिए.
इस प्रकार यह प्रयोग पूर्ण होने पर साधक भोग में लगाए गए फल
तथा मिठाई आदि को स्वयं ग्रहण कर सकता है तथा परिवारजनो को भी खिला सकता है.
साधक चित्र/यन्त्र/विग्रह आदि पूजा स्थान में उसी वस्त्र पर
स्थापित कर दे. माला का विसर्जन नहीं करना है, यह प्रयोग करने के लिए इस माला का
जीवन भर उपयोग किया जा सकता है.
****NPRU****
thanks bhaiya for this great sadhna
ReplyDeletethanks bhaiya for this great sadhna
ReplyDeleteplz dont open GUPT PUJA-PATH.its danjorous...some mantra so cofidential..so plz leave it.
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