Lord Bhairav has got a special place in field of
Tantra. Lord Bhairav is a form of Shiva. Therefore, he contains all the
qualities of Shiva. Generally, due to primacy of Tama Bhaav, people become
afraid of this form of lord and ignore him, but it is not like this. Sadhna of
god and goddess having predominant Tama character can be done by Dakshin Maarg
too but due to their ignorance and sometimes out of selfishness, fraudulent persons
have ignored this fact and spread many misconceptions about Ugra God and Goddess.
Whenever we talk about Lord Bhairav then sadhak from very beginning sees him
with fear. Various types of thoughts starts occupying our mind that his sadhna
can be done only through Vaam Maarg and only by following the procedure of
meat, wine and sex, worship of this type of God/Goddess can be done. But this
is only a misconception since sadhna of any god or goddess can be done both by
Vaam and Dakshin Maarg. It depends upon Siddh Guru that on which path he leads
his disciple whereby he can attain success. This fact applies to Bhairav sadhna
too; Lord Bhairav sadhna can be done by both Vaam and Dakshin Maarg. Deadly and
dreadful form of Lord Bhairav is merely due to primacy of Tama Bhaav and that
too is not for sadhaks but for inner and outer enemies of sadhak. Lord Bhairav
has got many forms. There are 52 forms of him known in Tantra field. One of the
forms among them is of Maartand Bhairav, whose sadhna is said to be very
special sadhna. This sadhna is very intense and in very short time, it becomes possible
for sadhak to attain blessing of this form of Lord. Though complete sadhna
procedure of Maartand Bhairav is very extraordinary procedure which is Tamsik
one. But as it has been said above that sadhna of all forms of Lord Bhairav is
also done by Dakshin maarg and along with complete sadhna procedures, there are
present many small prayogs related to Dev in Tantra field. Prayog presented
here is prayog related to his basic mantra which activates valour and courage
inside sadhak .Along with it sadhak enemies gets paralysed and sadhak is
secured in many respects. This prayog may seem very ordinary but by doing this
one-day prayog, sadhak attains many qualities of manhood. Inner fear of sadhak
is destroyed and special qualities like courage and valour starts coming inside
him which is essential part of authoritative life of any person. From societal
point of view too, this type of prayog provides such qualities to sadhak which
can completely transform life of sadhak and can provide him a new place in
society by improving qualities of sadhak.
This prayog can be done by sadhak on any eighth day
of Krishn Paksha, amavasya, Tuesday or Saturday.
This prayog is done only in night. It is better if
it is done in any conscious place or Bhairav temple. If it is not possible, it
can be done in home too.
Sadhak should take bath, wear red dress and sit on
red aasan facing north direction. Sadhak should establish yantra or idol of
Lord Bhairav in front of him.
Sadhak should do Guru Poojan and after chanting
Guru Mantra, sadhak should do poojan of Bhairav Idol/Yantra. Sadhak should
offer Udad Bade or Kheer as Bhog. If flowers are being used, then red colour
flowers should be used. Sadhak should ignite Guggal Dhoop and oil-lamp should
be used.
After this, sadhak should chant 51 rounds of below
mantra by Rudraksh rosary.
OM HRYOOM THRIM
After completing mantra Jap, sadhak should pray to Lord Bhairav with
complete reverence. In this manner, this one –day prayog is completed. If
sadhak wants, sadhak can do this prayog for 5 days, 11 days or 21 days. Rosary
should not be immersed by sadhak. Sadhak can use rosary for this sadhna in
future.
तंत्र क्षेत्र में भगवान भैरव का एक विशेष ही स्थान है. भगवान भैरव शिव के ही स्वरुप है इस लिए उनमे शिव प्रेरित सभी गुण का समावेश है ही. तमस भाव की प्रधानता से प्रायः ही लोग भगवान के इस रूप से भय खा कर उनकी उपेक्षा कर बैठते है, जब की ऐसा बिलकुल नहीं है. तमस प्रधान देवी तथा देवताओं की भी दक्षिणमार्ग से साधना हो सकती है लेकिन अज्ञानता वश और कई बार स्वार्थवश कई ढोंग और पाखण्ड को बढ़ावा देने वाले व्यक्तियो ने यह तथ्य को नकार कर समाज में उग्र देवी देवताओं के सबंध में विविध भ्रान्ति फेला दी है. भगवान भैरव की साधना की जब भी बात आती है तो साधक शुरू में ही भय की द्रष्टि से उसे देखने लगता है. तरह तरह से मन में विचार प्रसारित होने लगते है की वाम पंथ से ही उनकी साधना की जा सकती है तथा मांस मदिरा मैथुन जेसे क्रम के माध्यम से ही इस प्रकार के देवी देवता की उपासना संभव हो सकती है, जब की यह तथ्य मात्र भ्रम ही है. क्यों की किसी भी देवी देवता की साधना दक्षिण तथा वाम दोनों पंथ से होती है, यह सिद्धगुरु पर आधारित होता है की वह अपने शिष्य को किस प्रकार से किस मार्ग से साधना क्षेत्र में अग्रसर करे जिससे की उसे पूर्ण सफलता की प्राप्ती हो सकती है. यही तथ्य भैरव साधना के सबंध में भी है, भगवान भैरव की साधना भी वाम तथा दक्षिण दोनों पंथ से हो सकती है. भगवान भैरव का जो विकराल और भयप्रद स्वरुप ही वह तो मात्र उनके तमस भाव की प्रधानता के कारण है, और वह भी साधको के लिए नहीं वरन साधक के आतंरिक तथा बाह्य शत्रुओ के लिए है. भगवान भैरव के भी कई स्वरुप है, तंत्र में तो उनके ५२ स्वरुप प्रचलित है ही. उन्ही में से एक स्वरुप है मार्तंड भैरव, जिनकी साधना अत्यधिक विलक्षण साधना कही जाती है क्योंकि इनकी साधना तीव्र है तथा अल्प समय में ही साधक को भगवान के इस स्वरुप की कृपा प्राप्त होना संभव हो जाता है. यूँ तो प्रचलित मार्तंड भैरव पूर्ण साधना क्रम अत्यधिक विलक्षण क्रम है जो की तामसिक क्रम है लेकिन जैसा की ऊपर कहा गया है की भगवान भैरव के भी सभी स्वरुप की साधना दक्षिण मार्ग से भी होती है, तथा पूर्ण क्रम के साथ साथ तंत्र क्षेत्र में देव से सबंधित कई लघु प्रयोग भी निहित है. इसी क्रम में प्रस्तुत प्रयोग उनके मूल मन्त्र से सबंधित प्रयोग है जो की साधक के अंदर के शौर्य तथा वीर भाव को जागृत करता है. इसके साथ ही साथ साधक के शत्रुओ का भी स्तम्भन होता है तथा साधक की कई प्रकार से रक्षा होती है. भलेही दिखने में यह प्रयोग सामान्य लगे लेकिन एक दिन के इस प्रयोग से साधक कई प्रकार के पौरुष गुणों से युक्त हो सकता है, साधक के आतंरिक भय का शमन होने लगता है तथा शौर्य और पराक्रम जेसे विशेष गुणों का उसमे संचार होने लगता है, जो की निश्चय ही किसी भी व्यक्ति के एक अधिकार पूर्ण जीवन का आवश्यक अंग है, सामाजिक द्रष्टि से भी इस प्रकार के प्रयोग साधक को ऐसे गुणों की प्राप्ति करवाता है जो की आगे चल कर साधक का पूरा जीवन ही बदल सकता है तथा साधक की प्रतिभा को उभार कर समाज में एक नया ही स्थान दिला सकता है.
यह प्रयोग
साधक किसी भी कृष्णपक्ष की अष्टमी, अमावस्या, मंगलवार या शनिवार को भी कर सकता है.
यह प्रयोग
रात्री में ही किया जाता है. साधक अगर कोई चैतन्य स्थान में या भैरव मंदिर में यह
प्रयोग करे तो उत्तम है. अगर यह संभव न हो तो इस प्रयोग को घर पे भी सम्प्पन किया
जा सकता है.
साधक
स्नान आदि से निवृत हो कर लाल वस्त्रों को धारण करे तथा उत्तर की तरफ मुख कर लाल
आसान पर बैठ जाए. साधक को अपने सामने भगवान भैरव का यंत्र या विग्रह स्थापित करना
चाहिए.
साधक को
गुरुपूजन तथा गुरुमन्त्र का जाप कर भैरव विग्रह/यंत्र का पूजन करना चाहिए. साधक
भोग के लिए उडद के बड़े या खीर का प्रयोग करे. अगर साधक पुष्प का उपयोग कर रहा है
तो पुष्प लाल रंग के हो. साधक गुग्गल का धुप प्रज्वलित करे तथा दीपक तेल का लगाना
चाहिए.
इसके बाद
साधक निम्न मंत्र की ५१ माला रुद्राक्ष माला से जाप करे.
ॐ
ह्र्युं ठिृं
(OM
HRYOOM THRIM)
मन्त्रजप
पूर्ण होने पर साधक भगवान भैरव को पूर्ण श्रद्धा के साथ प्रणाम करे. इस प्रकार यह
एक दिवसीय प्रयोग पूर्ण होता है. साधक चाहे तो इसी प्रयोग को ५ दिन ११ दिन या २१
दिन भी कर सकता है. माला का विसर्जन साधक को नहीं करना है. साधक माला का उपयोग इस
साधना हेतु भविष्य में भी कर सकता है.
****NPRU****
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