India has
always been vibrant foundation pillar in spread of Tantra. Tantra has spread
not only in India but also in China, Tibet, Egypt, Africa, Indonesia, Cambodia,
Pakistan and other nations. There is no medium better than Tantra to witness
abstruse secrets of universe from close on and understand them….well, this can
be realized by only those who can do in-depth analysis to find answers…When any
sadhak enters the Tantra world then map of his flight of imagination is
depicted in its subconscious mind. But he is pretty well aware of the fact that
there is no intermediate state in Tantra. It is this side or that side and game
over…
Shaakt
and Shaiva Tantra mentioned in Aagam and Nigam scriptures have been most
popular……Where Shaakt sadhnas have been related to worship of Shakti i.e. Aadya
Shakti , in the similar manner Shaiva sadhnas are related to worship of Lord Shiva.
In north India , during the spread of Tantra sadhnas “Vinashikha Tantra “ came in vogue for worship of Lord
Shiva .This tantra has also been termed as Vinashikhotara
in Aagam Tradition. It has also been called
Veenadhar form of Shiva.
Significance
of this Tantra, one of the 64 tantras mentioned in Nityshodashikaarnav
and Kulchudamani Tantra has been in Shaiva sadhnas. I fell necessary
to tell you that in ancient times, different Tantra Acharyas and scholars have
fixed their respective order and significance after self-studying these Manu
Smritis and it is based on their experience…..so there are as many opinions as
there are scholars…..
Speciality
of Vinashikha Tantra is due to worship of Shiva. It is related to worship of
that form of him which has been termed as Tumburu.
Priest named Hiranyadam has done the upasana of Bhole Shankar for attaining
Shiv Kaivalya…as a result of accomplishment, that special form of Aadi Dev
Shiva‘Tumburu’ manifested in front of Hiranyadam….his dhayan is something like
this in which he has four mouth. Each mouth has a special name-
1.
Shirshchhed
2.
Vinashikha
3.
Sammoh
4.
Niyottar
Each of
the infinite forms of Shiv Ji creates one Tantra chapter in themselves. As we
have read in starting lines of previous article that at the time of creation of
universe, conversation between destructor Shiv Shankar and Aadya Shakti Paramba
Shakti has been termed as Tantra and in this context, many tantras were created
for the infinite names and sub-names of Shiva and Shakti….For each portion of knowledge, one god and goddess were appointed to be ruler
which has got corresponding knowledge for the fulfilment of that special
desire. For the sake of convenience in subject of Tantra, they have been
categorised and control of various god and goddess and protection of their
secrets has been handed over to those Devi Shaktis…though all these Devi
shaktis are only partial form of Aadi Shiva Shakti.
Vinashikha
Tantra has also prevailed in Indonesia and Cambodia….however there have been
variation in worship pattern in various countries but desired aim has remain
same all throughout i.e. Manifestation
of four-mouthed lords of lord Mahadev…..four forms of Companions of
four-mouthed Mahadev are also worshipped….Jaya,
Vijaya, Jayanti and Aparaajita….
In
Tumburu sadhna, one special yantra is established….in which Tumburu i.e. Lord
Shiva is in middle and on all his four side his wives are present…From this
sadhna one attains three elements- Aatm element,
Vidya element and Shiva element.
Worship/upasana
is done by chanting beej mantra representing these elements. There is
combination of 5 beej mantra which are beej alphabets of Tumburu i.e. Shiva and
four goddesses.
Tumburu– Ksham
Jaya– Jam
Vijaya– Bham
Jayanti– Sam
Aparaajita–
Ham
Due to
absence of permission, its hidden procedure is revealed only to that sadhak who
has got orders or permission to do it. Hidden Tantra sadhnas have always been
given through Guru Tradition ….because they certainly cannot be for
everyone……because doing such sadhna requires a different type of
mentality…..Guru has to see whether his disciple has become capable to digest
abstruse truth or not. Upon verifying it, it is decided from vibrations
emerging from his mental condition that he has to be provided sadhna or not…As
I have told you Tantra is not a subject of play or to be taken lightly….it can
cause harm to life…Therefore these sadhnas are done only in Savdhaan Mudra .
In coming
article, I will discuss such interesting and abstruse facts…
Nikhil
Pranaam
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तंत्र के विस्तार में भारत भूमि सदेव आधारस्तंभ की भाँती दैदीप्यमान रही है.. तंत्र का विस्तार ना केवल भारत में अपितु चीन, तिब्बत, मिस्र, अफ्रीका, इंडोनेशिया, कम्बोडिया, पाकिस्तान और कइ देशो में हुआ... ब्रम्हांड के गुढ़ रहस्यों कों निकट से देख कर उसे समझने के लिए तंत्र के सामान कोई तोडिस माध्यम ही नहीं... खेर ये एहसास तो गहराई में उतर के देखने वाले कों ही मिल सकता है.. प्रत्येक साधक तंत्र जगत में जब प्रविष्ट होता है तो उसकी अपनी एक कल्पना की उड़ान का मानचित्र उसके अवचेतन मन में चित्रित होता है. परन्तु वो इस् तथ्य से भि भलीभांति परिचित होता है की तंत्र में कोई बिच की स्थिति नहीं या तो इस् पार या उस पार और खेल खत्म...
आगम निगम शास्त्रों
में वणिर्त शाक्त और शैव तंत्र अत्यंत प्रचलित रहे है.. शाक्त साधनाए जिस प्रकार
शक्ति रूपा अर्थात आद्य शक्ति आराधना से संबंधित रही है वैसे ही शैव साधनाए शिव जी
के आराधना से संबंधित रही है. उत्तरी भारत में शैव तंत्र साधनाओ में प्रचलन में शिव उपासना के लिए “विणाशिखा तंत्र”प्रचलन में आया. आगम परंपरा में इस तन्त्र कों विणाशिखोत्तरा की संज्ञा भी दी है. इसे शिव का
वीणाधर रूप भि कहा गया है..
नित्यशोडषीकार्णव
और कुलचुडामनी तंत्र में वर्णित ६४
तन्त्रो में स्थान प्राप्त इस तंत्र की महत्ता शैव साधनाओ में रही है. मै यहाँ
बताना जरुरी समझती हू की प्राच्य काल में विविध तन्त्राचार्यो और अध्येताओ ने इन
मनु स्म्रितियों से स्व अध्ययन पश्चात इनके क्रमो और महत्ता कों अपने अपने
अनुभावों के आधार पर निरधारित किया है.. सो जितने साक्षर उतने भिन्न मत...
विणाशिखा तंत्र की
विशिष्टता शिव जी की उपासना से है, उनके उस स्वरूप की उपासना है जिसे तुम्बुरु नाम से संज्ञित किया गया. हिरण्यदम
नामक पंडित ने इसे भोले शंकर की उपासना शिवकैवल्य प्राप्ति हेतु की थी.. सिद्धि के
फल स्वरूप हिरण्यदम कों आदि देव शिव के उस विलक्षण रूप ‘तुम्बरू’ के दर्शन हुए..
उनका ध्यान कुछ इस् प्रकार से है जिसमे उनके चार मुख है. प्रत्येक मुख का एक विशेष
नाम है –
१. शिरश्छेद
२. विणाशिखा
३. सम्मोह
४. नियोत्तर
शिव जी के अनंत रूप
अपने आप में एक तंत्र अध्याय रचते है. जैसा की हमने विगत लेख में आरंभिक पंक्तियों
में पढ़ा था की सृष्टि की रचना में संहार करता अनादी शिव शंकर और आद्या शक्ति
पराम्बा के संवाद कों तंत्र की संज्ञा दी है और इसी सन्दर्भ में शिव और शक्ति के
अनंत नामो उपनामो पर तंत्र बने.. प्रत्येक ज्ञान खंड के एक अधिष्ठात्री देवी किवां
देवता नियुक्त हुए जो उस विशिष्ट अभीष्ट की पूर्ति हेतु उसका ज्ञान अपने आप में
समेटे हुए है. तंत्र विषय में सुगमता हेतु उसका वर्गीकरण कर विभिन्न देवी देवता के
नियंत्रण और उसकी गुप्तता का संरक्षण उन्ही दैवी शक्तियों कों सौप दिया गया..
हालांकि ये सभी दैवी शक्ति या आदि शिव शक्ति का ही अंशरूप है.
विणाशिका तंत्र
इंडोनेशिया एवं कम्बोडिया में भी प्रचलित रहा है... तथापि अलग अलग देशो में इनकी उपासना पद्धति
में निश्चित ही अंतर रहा है परन्तु अभीष्ट चौमुखी देवो के देव महादेव के दर्शन ही
रहा.. चौमुखी महादेव की संगिनीयो के चौ रूप भी पूजे जाते है.. जया, विजया, जयंती और अपराजिता ...
तुम्बुरु साधना में एक विशिष्ट यन्त्र स्थापित
किया जाता है.. जिसमे तुम्बुरु अर्थात शिव मध्य में स्थापित होकर चारो ओर उनके चौ
रूपों की वामांगियां विराजमान होती है.. इस साधना से तीन तत्वों की प्राप्ति होती
है – आत्म तत्त्व; विद्या तत्व; शिव तत्व
इन्ही तत्वों का
प्रतिनिधित्व बीज मंत्रो के उच्चारण से इनकी आराधना उपासना की जाती है. ५ बीज मंत्रो का समागम होता है जो तुम्बुरु
अर्थात शिव और चार देवियों के बीज मातृका है.
तुम्बुरु – क्षं (ksham)
जया – जं (Jam)
विजया – भं (Bham)
जयंती – सं (Sam)
अपराजिता – हं (Ham)
अनुमति ना होने के
कारण आगे की इनकी गुप्त विधि केवल उसी साधक के समक्ष खुलती है जिसे इसे करने की
आज्ञा या अनुमति प्राप्त हो.. गुह्यतम तंत्र साधनाए केवल गुरुमुखी परंपरा से ही दी
जाती आ रही है.. क्युकी ये निश्चित ही सभी के लिए नहीं हो सकती.. क्युकी एसी साधनाओ
कों करने की मानसिकता ही बहुत अलग होती है.. गुरु कों भि देखना होता है की अभी
मेरा शिष्य उस गुढ़ सत्य कों पचाने के योग्य बना है के नहीं, ये देख परख कर ही उसकी
मानस स्थिति मानस में उठने वाली तरंगों से ये निर्धारित होता है की उसे उस साधना
कों देना हे के नहीं.. जेसा की मेने कहा की तंत्र कोई खेल या मजाक का विषय नहीं..
जीवन पर भि बन आ सकती हे.. इसीलिए सावधान मुद्रा में ही एसी साधनाए संपन्न की जा
सकती है..
अगले लेख में कुछ एसे
ही रोचक एवं गुढ़ तथ्यों के साथ पुनः आपसे मानसिक वार्ता करुँगी...
निखिल प्रणाम
****सुवर्णा निखिल****
****NPRU****
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