At the time of inception of universe, Tridev
(Trinity of Hindu Gods) in order to ensure smooth functioning of universe had
framed hidden solutions for each riddle/problem/curiosity………..In other words,
we can say that riddles were created so that those hidden solutions/creation
can occur in universe for first time and pave the way for writing novel
chapter. And these hidden creations are often addressed by us as answer to
question or key to lock. In intellectual terms, it has been termed as Tantra.
Tantra, one such scripture, which was established
as treasure of Hindu Religion in entire world. It paved the way for sadhna and
upasana by different padhatis (sects).Tantra had emerged before inception of
universe…..As it has been said above that answer to any question was
pre-decided or in other words , questions originated during course of
manifestation of answers.
Tantra scripture is primarily divided into two
categories Aagam and Nigam….Besides
it; it was also divided into categories like Yaamal, Daamar, and Uddish
etc. And to add to it, many sub-tantras
also got established. At such occasion, in ancient time itself, ancient sages,
saints, great Tantra Acharyas, before hand-written Manu Smritis had predicted
for Kalyuga that “In Kalyuga, no shastra except
Aagam and Nigam of Tantra will be left meaningful to resolve the complex
intricacies of life”
To live in Kalyuga, Tantra will be established as
one and only best path. For this reason, Tridev took birth as various avatars
in order to keep this genre of knowledge alive, which is getting obsolete. And
when the condition again become unsteady, Param Vandaniya Shri Nikhileshwaranand Ji took birth in
householder form of Dr. Narayan Dutt Shrimali
in order to revive and re-establish it and has again provided breath to this
genre…..I always remember one of his teaching that SAB
KAHE POTHAN KI DEKHI PAR MAIN KAHU AAKHAN KI DEKHI….( Knowledge is
not in books, rather it lies in our experiences)…..He not only stood up as
saviour of Mantra Tantra Yantra or Ittar science but also was creator of Mantra
Tantra Yantra in Kalyuga…..He has got innumerable aspects about which it can be
written here. But lack of space does not allow me to do so. He created living
scriptures and today also his chosen diamond pearls are distributing his
knowledge in selfish-less manner.
So all the scriptures which are available today,
are capable of maintaining the dignity of Tantra Shastra in today’s difficult
circumstances or in other words this era of negligence of religion………Quote of
Bhagwat Gita is completely fruitful when we try to understand the reason behind
manifestation of Sadgurudev Ji.
From ancient times, many sects have been
established in course of successive evolution of Tantra….Though seen from outer
context; all sects are worshipper of Shiv and Shakti only. Therefore all the
scriptures which were written are based on Shaktaagam and Shaivaagam only. Only
padhati differs, fruits of upasana remains same…..In other words, destination
has always remain the same i.e. merging with supreme Brahma but various paths
have been deployed. Human has always remain creative and this creativity has
inspired him to give rise to multiple sects……he always wish to attain state of
being unparalleled and this has been his inspiration power also. So some of
name of sects are as follows-
1.
Kaul Maarg, which has also been called Kul Maarg or Kaul Mat.
2.
Paashupat Maarg
3.
Laakul Maarg
4.
Kaalanal Maarg
5.
Kaalmukh Maarg
6.
Bhairav Sect
7.
Vaam Sect
8.
Kapaalik Sect
9.
Som sect
10.
Mahavrat Sect
11.
Jangam Sect
12
Kaarunik or Kaarunk Maarg
13.
Siddhant Maarg which has also been called Raudra Maarg
14.
Siddhant sect Shaiva Maarg.
15.
Rasheshwar Sect
16.
Nandikeshwar Sect
17.
Bhatt Maarg
Out of the above said Maargs, some paths were more
in vogue….meaning that numbers of followers following these paths were
more……but with passage of time, some one maarg was boycotted and sometimes the
other…..that’s why for getting recognition, new sects appeared as a result of
amalgamation of many sects…….some path resorted to be propagated in hidden manner,
which are now only carried out by Guru Tradition….
Question arises why at all need of so many sects
when one Maarg can yield desired results? But one aspect has always been worth
considering that best maarg out of all upasana maarg can be certified only when
you have resorted to all paths and experienced corresponding sadhna journey.
But then result of every person may vary. Because opinion differs with the
person…
Now second aspect can be that when ancient Tantra
acharyas mixed the Padhatis of sects then they would have found results to be
quick, very influential and timely too….
For example, disciple of any sect requesting for
Tantra knowledge from Guru of another sect.Guru always searches for able and
eligible disciples. Then how one Guru can ignore if he finds suitable
person…..After testing, Guru does Shaktipaat and carry out the Guru tradition
of that particular sect. And based on this knowledge, disciple creates a new
chapter….And such combination of principles of two sects have written a chapter
of a new sect…This is not necessary that all disciples did that. Only 1-2 in
thousands were able to write such history…
In this manner, I will try to present hidden
information about Tantra in next article again….
Nikhil
Pranaam
जब सृष्टि की उत्पत्ति हुई तब त्रिदेव ने सृष्टि के सुगम सञ्चालन के लिए प्रत्येक पहेली के समाधान की एक गुप्त रचना कर रखी है... या यु कहे की पहेली की रचना ही इसीलिए हुई की वो गुप्त रचना सृष्टि में प्रथम बार घटित हो कर एक अध्याय रचने के लिए तैयार हो सके. और इसि गुप्त रचना कों हम प्रश्न का उत्तर या ताले की कुंजी कह कर भी संबोधित करते है. और साक्षर पांडित्य शब्दों में इसे तंत्र की संज्ञा दी गई..
तंत्र, एक ऐसा
शास्त्र जो समस्त हिंदू धर्मं का विश्वकोष बन कर स्थापित हुआ. जहा विभिन्न
पद्धतियों से साधना और उपासना का मार्ग प्रशस्त हुआ. तंत्र की उत्पत्ति सृष्टि के
उत्पत्ति से पहले ही हो चुकी थी.. जेसा की उपरोक्त कथं में कहा है की किसी भि
प्रश्न का हल पहले से ही नियोजित है या दूसरे शब्दों में हल के प्रकटीकरण में ही
प्रश्न की उत्पत्ति हुई.
तंत्र शास्त्र
मुख्य रूप से आगम और निगम इन दो
श्रेणियों में विभाजित है... इन के आलावा यामल, डामर, उड्डिश आदि नामो के वर्ग में
भि विभाजित हुए और साथ ही साथ उपतंत्र भि स्थापित हुए. इस उपलक्ष में प्राचीन काल
में ही ऋषि मुनि महान तंत्राचार्यो ने हस्त लिखित मनु स्मृतियों में पूर्व से ही
काली काल के लिए भाविश्यित कर दिया था की “काली
काल में तंत्र की आगम निगमता के वैतिरिक्त अन्य कोई शास्त्र पर्याय स्वरूप शेष नहीं
रहेगा जीवन की विकटता से निपटने के लिए”
काली काल
अर्थात कलियुग में जीवित रहने के लिए तंत्र ही एकमेव श्रेष्ठ मार्ग स्थापित होगा
और इसी कारण विलुप्त होती इस विधा के जैसे अब तक त्रिदेवो ने विशेष नायक स्वरूप
अवतरित होकर इसकी काट संसार कों दी...और जब फिर स्थिति के विचल होते ही इसी के पुनः
संस्मरण और स्थापन के लिए परम वन्दनीय श्री निखिलेश्वरानंद
जी का अवतरण पूजनीय डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी के गृहस्थ रूप में
हुआ और उन्होंने पुनः इस विधा कों एक नया श्वास प्रदान किया है...उनकी एक सीख
हमेशा याद रहती है की सब कहे पोथन की देखि पर मै कहू
आखन की देखि... वे मंत्र तंत्र यन्त्र या इतर विज्ञान के ना केवल रक्षक
के रूप में खड़े हुए अपितु वे इस काली काल के मंत्र तंत्र यन्त्र के सृष्टा भि
हुए... उनके अनगिनत पक्ष है जिस पर यहाँ लिखा जा सकता बस जगह कम पड़ती जायेगी. उन्होंने जीवित जागृत ग्रन्थो का निर्माण किया
और आज भी ऐसे तराशे हुए हीरक खंड उस ताजगी कों निस्वार्थ भाव से उस ज्ञान गंगा कों
वितरित करते जा रहे है...
तो जो भि
ग्रन्थ आज उपलब्ध है वे आज की विकट परिस्थिति या यु कहू की धर्मग्लानी के इस काल
में भी तंत्र शास्त्र का गौरव अक्षुण्ण बनाये रखने में समर्थ है... भगवदगीता का
कथन पूर्ण रूपें सार्थक होता है जब हम सदगुरुदेव जी के अवतरण के कारण कों समझने की
चेष्ठा करते है.
तंत्र
अनुगमनता में प्राचीन काल से विभिन्न संप्रदायों की स्थापना की.. हालाँकि बाह्य
परिप्रेक्ष्यता से देखे तो सभी सम्प्रदाय शिव शक्ति के ही उपासक है.. इसलिए जितने
शास्त्र लिखे गए वे शाक्तागम और शैवागम पर ही निर्धारित है. केवल पद्धति अलग होती
है परन्तु उपासना फल एक सा ही होता है... अर्थात गंतव्य सदा से एक ही रहा है उस
ब्रम्ह का साक्षात्कार परन्तु मार्ग विभिन्न रहे है. मनुष्य सदा से सर्जनशील रहा
है और वही रचनात्मकता उसे एक से दो, दो से तीन संप्रदायों कों रचित करने के लिए
प्रेरित करती रही.. वह सदा से अद्वितीयता कों प्राप्त करना चाहता रहा है और यही
उसकी प्रेरक शक्ति भि रही है. तो यहाँ में संप्रदायों के यथासम्भव प्राप्त विभिन्न
नाम कुछ इस प्रकार से है –
१. कौल मार्ग जिसे कुल मार्ग कौल मत भि कहा जाता
है.
२. पाशुपत मार्ग
३. लाकुल मार्ग
४. कालानल मार्ग
५. कालमुख मार्ग
६. भैरव मत
७. वाम मत
८. कापालिक मत
९. सोम मत
१०.
महाव्रत मत
११.
जंगम मत
१२.
कारुणिक या कारुंक
मार्ग
१३.
सिद्धांत मार्ग जिसे रौद्र मार्ग भी कहा गया है
१४.
सिद्धांत मत शैव मार्ग
१५.
रासेश्वर मत
१६.
नंदिकेश्वर मत
१७.
भट्ट मार्ग
उपरोक्त
मार्गो में से कुछ मार्ग बहुत ही प्रचालित रहे.. मतलब की उस मार्ग कों अनुगमन करने
वाले साधक की तादाद ज्यादा रही... परन्तु काल के फेर में कभी कोई मार्ग बहिष्कृत
होता तो कभी कोई.. इसी के चलते मान्यता प्राप्ति हेतु बहुत से मतों का मिश्रण होकर
नए मतों का अवतरण भि होता गया.. कुछ मार्ग बहुत ही गुप्त रूप से अवलंबित होने लगे
थे. जो केवल गुरुमुखी परम्परा में ही चलते है अब...
प्रश्न ये
उद्भवित होता है की इतने विविध मत मार्ग क्यों?
जब एक ही मार्ग से अभीष्ट की प्राप्ति हो सकती है. लेकिन एक पक्ष विचारणीय
बिंदु यही रहा है की उपासना मार्ग में सबसे श्रेष्ठ मार्ग तभी प्रमाणित हो सकता है
जब आपने सभी मार्गो कों अवलंबित कर प्रत्येक साधना यात्रा कों अनुभूत किया हो.. और
उसी के आधार पर इसका निष्कर्ष संभव है. परन्तु फिर प्रत्येक का निष्कर्ष भिन्न हो
सकता है. क्युकी व्यक्ति भिन्न तो मत भी भिन्न...
अब दूसरा पक्ष
कुछ इस प्रकार से हो सकता है की प्राचीन तंत्राचार्यो ने जब संप्रदायों की
पद्धतियों कों मिश्रित किया तो उसके परिणाम तीव्र एवं अत्यंत प्राभावी मिले और समय
अनुरूप भि...
जैसे किसी
सम्प्रदाय के गुरु के पास अगर दूसरे सम्प्रदाय के शिष्य ने तंत्र ज्ञान की याचना
की. सुपात्र शिष्य कों गुरु स्वयं ढूढते
है तो मिलने पर नाकारा कैसे जा सकता है.. परीक्षित होने पर गुरु उसे शक्तिपात कर
उस सम्प्रदाय की गुरु परंपरा कों निर्वाहित करते है. और उसी ज्ञान के आधार पर
शिष्य एक नविन अध्याय रचते है.. और दो संप्रदायों का उनके सिद्धांतों का कुछ इसी
तारह मेल एक नए सम्प्रदाय के अध्याय कों जन्म देता रहा..यहाँ जरुरी नहीं की सभी
शिष्यों से यह होता रहता हज़ारो में से इक्का दुक्का ही इस इतिहास के रचयिता बने...
इसी प्रकार
तंत्र की गुह्य से गुह्य जानकारी कों पुनः अगले लेख में प्रस्तुत करने के प्रयास
जरुर करती रहूंगी सो आज यही विराम देती हू,,,,,,,
निखिल प्रणाम
****सुवर्णा निखिल****
****NPRU****
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