Janmjdukhvinashaaklingam
Tat PranmaamiSadashivlingam
There is no difference between Lord Shiva and Tantra. All the 64 tantras
have been originated from Lord Shiva. He is worshipped by all god and
goddesses. From ancient times, he has been worshipped as Isht in various
regions of the world. In fact, in highly abstruse form, his symbol in the form
of Shivling has been subject of worship in all important regions of the world.
And it has been said in various scriptures and Tantra sect regarding Shivling
that by worshipping Shivling, person becomes capable of attaining anything in
life. Moreover, worship of Lord Shiva is quickly fruitful too because he
listens to prayers of his devotee very quickly. Everyone is well aware of this
fact.
There are various types of Shivling told in Tantra scriptures. Out of
them, significance of Parad Shivling is the most since it is replica of Lord
Shiva’s sperm. Ras Vigyan and Ras Tantra i.e. Parad Vidya has been one of the
great vidyas of our country and it has also been called last tantra. Parad
Shivling has been major subject of worship in this Parad Tantra field. This
Shivling acts as agent of accomplishment and knowledge. If there is pure
Shivling prepared by fully tantric procedure then person definitely attains
various types of benefits. It has been approved by scriptures and even Ras
Acharyas hold such an opinion. Ancient and modern accomplished sadhak have
inarguably accepted the significance of this rare Shivling. According to
Tantra, when mercury is capable of saving persons from jaws of death then can
it not provide person riddance from our problems? Definitely, Ras Ling is all capable of
resolving problems of both Bhog and salvation. There are many tantric
procedures in vogue among Siddhs related to this Ras Ling. Procedure present here belongs to that set of
procedures and it is done on Parad Shivling. This procedure is very easy for
all sadhaks. In fact, this procedure can provide sadhak progress in both the
aspects. Accomplishment of work here does not mean any particular work rather
it is related to sadhak’s progress in life. If sadhak does not get appropriate
results even after hard-work, he is facing problem in business etc. or there is
problem in his home in one form or the other, then sadhak should do this
procedure. If there is any work of sadhak in which he is repeatedly facing
problem or work is struck, such obstacle is also resolved. In this manner, this
procedure is important for all sadhaks.
Sadhak should start this sadhna from any Monday. It can be done in
morning or after 9 P.M in the night.
Sadhak should take bath, wear yellow dress and sit on yellow aasan
facing North direction. Sadhak should spread yellow cloth in front of him and
establish Parad
Shivling on it. Sadhak should then perform Poojan of Sadgurudev and Shivling. In
poojan, yellow colour flowers should be offered and yellow coloured
sweets/fruits should be offered as Bhog. Sadhak can use any lamp of any oil.
After Poojan, sadhak should do tratak on Parad Shivling and chant 21
rounds of below mantra. Sadhak should use yellow agate or Rudraksh rosary for
chanting.
OM HREENG HOOM OM
After completion of chanting, sadhak has to offer 108 oblations of pure
ghee in fire. If sadhak can’t do this procedure at home, he can do it in ant
Shiva temple. Sadhak should use wood of Bilv tree as Samidha in oblation. It is
easily available. If it is not available in sufficient quantity then sadhak
should keep one piece of wood of Bilv tree along with wooden blocks of other
tress and perform oblation.
In this manner, this procedure is completed within one night. If sadhak
wants, he can repeat this procedure for 3 or 7 days. Sadhak gets success in his
future endeavours.
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गम् तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्
भगवान
शिव और तंत्र में कोई भेद ही कहाँ है. ६४ तन्त्रो की उत्पत्ति ही भगवान शिव से
मानी गई है. जो सभी देवताओं के भी जो आराध्य है वह भगवान शिव आदि काल से विश्व के
कई कई प्रदेशो में इष्ट रूप में पूजित रहे है, वस्तुतः अति गुढ़ रूप में उनका
प्रतिक चिन्ह शिवलिंग के स्वरुप में विश्व के सभी प्रमुख प्रदेश में उपासना का
विषय रहा है. और इसी शिवलिंग के संदभ में विविध ग्रन्थ एवं तंत्र मत्त में कहा गया
है की शिवलिंग की उपासना से व्यक्ति कुछ भी प्राप्त करने के लिए योग्य हो जाता है
तथा भगवान शिव की उपासना अति शीघ्र फल दायक भी है क्यों की भोलेनाथ अपने साधको की
पुकार को अति शीघ्र सुन लेते है यह तथ्य तो हर कोई जानता ही है.
शिवलिंग
के विविध प्रकार तंत्र शास्त्रों में बताए गए है उनमे पारद शिवलिंग का महत्त्व सब
से अधिक है क्यों की यह शिव सत्व शिव की प्रतिकृति ही है. रस विज्ञान एवं रस तंत्र
अर्थात पारद विद्या हमारे देश की एक महान विद्या रही है जिसे तन्त्रो में भी अंतिम
तंत्र कहा गया है और इसी पारद तंत्र क्षेत्र की मुख्य उपासना तो पारद शिवलिंग ही
रहा है. यही शिवलिंग ही तो मुख्य सिद्धि एवं ज्ञान का कारक होता है. अगर पूर्ण
तंत्रोक्त विधान से निर्मित विशुद्ध शिवलिंग हो तो व्यक्ति को निश्चय ही कई प्रकार
के लाभ प्राप्त होते है यह शास्त्र सम्मत है तथा रसाचार्यो का भी यही मत्त है.
प्राचीन एवं अर्वाचीन सिद्धो ने इस दुर्लभ लिंग की महत्ता को निर्विवादित रूप से
स्वीकार किया है. तंत्र मत्त के अनुसार जो पारद व्यक्ति को मृत्यु के मुख के वापस
ले आने की सामर्थ्य रखता है क्या वह पारद हमें हमारी समस्याओ से मुक्ति नहीं दिला
सकता? निश्चय ही भोग तथा मोक्ष दोनों समस्याओ के निराकरण के लिए यह रस लिंग सर्व
समर्थ है. तथा इसी रस लिंग से सबंधित कई कई तांत्रिक विधान सिद्धों के मध्य
प्रचलित है. प्रस्तुत प्रयोग भी उसी क्रम का एक प्रयोग है जिसे पारद शिवलिंग पर सम्प्पन
किया जाता है. यह प्रयोग सभी साधको के लिए सहज है. वस्तुतः यह प्रयोग साधक को
दोनों पक्षों में उन्नति प्रदान कर सकता है. कार्य सिद्धि का अर्थ कोई एक विशेष
कार्य से न हो कर साधक के जीवन की प्रगति के सबंध में है. अगर साधक को परिश्रम
करने पर भी उचित परिणाम की प्राप्ति नहीं होती हो, व्यापार आदि में समस्या हो रही
हो, या फिर घर परिवार में किसी न किसी रूप से कोई समस्या बनी रहती हो तब यह प्रयोग
साधक को करना संपन्न करना चाहिए. अगर साधक
का कोई कार्य है जिसको बार बार करने में समस्या आ रही हो या अटक रहा हो तो उस बाधा
का भी निराकरण होता है. इस प्रकार यह प्रयोग सभी साधको के लिए महत्त्वपूर्ण है.
यह
साधन साधक किसी भी सोमवार के दिन करे. साधक यह साधना सुबह के समय या
रात्री में ९ बजे के बाद करे.
साधक
स्नान आदि से निवृत हो कर पीले वस्त्रों को धारण करे तथा पीले आसन पर बैठ जाए.
साधक
का मुख उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए. साधक को अपने सामने पीले रंग के वस्त्र पर पारद
शिवलिंग को स्थापित करे. साधक को
सदगुरुदेव एवं शिवलिंग का पूजन करना है, इस पूजन में साधक को पीले रंग के पुष्प को
समर्पित करना चाहिए तथा पीले रंग की मिठाई या फल का भोग लगाना चाहिए. दीपक तेल का
हो. साधक किसी भी तेल का प्रयोग कर सकता है.
पूजन
के बाद साधक पारदशिवलिंग पर त्राटक करते हुवे निम्न मन्त्र का २१ माला जाप करे. यह
जाप साधक पीले हकीक माला से या रुद्राक्ष की माला से सम्प्पन करे.
ॐ ह्रीं हूं ॐ
(OM
HREENG HOOM OM)
मन्त्र
जाप पूर्ण हो जाने पर साधक को शुद्ध घी से १०८ आहुति अग्नि में समर्पित करनी है.
साधक अगर घर पर यह क्रम न कर सके तो किसी शिव मंदिर में भी यह क्रिया कर सकता है.
इस प्रयोग में आहुति की समिधा में बिल्व वृक्ष की लकड़ी का प्रयोग करे यह आसानी से
उपलब्ध हो जाती है अगर पर्याप्त मात्र में यह उपलब्ध न हो पाए तो साधक को दूसरे
वृक्ष की लकडियों के साथ एक टुकड़ा बिल्व वृक्ष की लकड़ी का रख कर हवन सम्प्पन
करे.
इस
प्रकार एक ही रात्री में यह प्रयोग पूर्ण होता है. साधक अगर चाहे तो यही क्रम को ३
दिन या ७ दिन तक कर सकता है. साधक को भविष्य में अपने कार्यों में सफलता की
प्राप्ति होती है.
****NPRU****
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