अखंड मंडलाकारं व्यापितम येन चराचरम |
तदपदं दर्शितम येन तस्मै श्री गुरूवै नमः||
जय सदगुरुदेव,
स्नेही भाइयों बहनों,
पूजन
करना और साधना विधान दोनों एक अलग विधा हैं. पूजन मात्र आत्म संतुष्टि का एक साधना
मात्र है, और साधना जीवन को गति देने कि क्रिया. किन्तु ये एक दूसरे पूरक हैं एन
दोनों को अलग नहीं किया जा सकता. क्योंकि साधना के पूर्व व्यक्ति को अपने आप को
शुद्ध करना और उसमें भी बाह्य और आंतरिक शुद्धिकरण करना ही होता है जिससे कि हम उस
मन्त्र को धारण करने या हमारा अन्तःकरण उसे वहन कर सके..... और इसी कारण
प्रारम्भिक पूजन का विधान है ......
सबसे पहले
पवित्रीकरण-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वा गतोअपी वा
य: स्मरेत
पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यांतर: शुचि: |
इसके बाद पंचपात्र से
तीन बार जल पीना है और एक बार से हाथ धोना है.....
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा |
ॐ अमृतापिधानीमसि
स्वाहा |
ॐ सत्यं यश:
श्रीर्मयि श्री:श्रयतां स्वाहा |
ॐ नारायणाय नमः
कहकर हाथ धो लें
अब शिखा पर हाथ
रखकर मस्तिष्क में स्तिथ चिदरूपिणी महामाया दिव्य तेजस शक्ति का ध्यान करें जिससे
साधना में प्रवृत्त होने हेतु आवश्यक उर्जा प्राप्त हों सके---
चिदरूपिणि महामाये दिव्यतेज: समन्वितः |
तिष्ठ देवि !
शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे | |
न्यास-
बांये हाथ में
जल लेकर दाहिने हाथ कि पाँचों अँगुलियों से जल लेकर शरीर के विभिन्न अंगों से
स्पर्श करना है....
ॐ वाङगमे आस्येस्तु (मुख को )
ॐ नसोर्मे प्राणोंअस्तु (नासिका के
दोनों छिद्रों को )
ॐ अक्षोर्मे चक्षुरस्तु (दोनों नेत्रों को )
ॐ बाह्वोर्मे ओजोअस्तु (दोनों बाँहों को )
ॐ ऊवोर्र्मे ओजोअस्तु ( दोनों जंघाओं को )
ॐ अरिष्टानि अङगानि सन्तु....
पूरे शरीर पर जल छिड़क लें---
अब अपने आसन का पूजन
करें जल, कुंकुम, अक्षत से---
ॐ ह्रीं क्लीं आधारशक्तयै कमलासनाय नमः |
ॐ पृथ्वी ! त्वया
धृतालोका देवि ! त्वं विष्णुना धृता
त्वं च धारय माँ
देवि ! पवित्रं कुरु चासनम |
ॐ आधारशक्तये नमः, ॐ
कूर्मासनाय नमः, ॐ अनंतासनाय नमः |
अब दिग्बन्ध करें
यानि दसों दिशाओं का बंधन करना है,जिससे कि आपका मन्त्र सही देव तक पहुँच सके, अतः
इसके लिए चावल या जल अपने चारों ओर छिडकना है और बांई एड़ी से भूमि पर तीन बार आघात
करना है ....
अब भूमि
शुद्धि करना है जिसमें अपना दायाँ हाथ भूमि पर रखकर मन्त्र बोलना है---
ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्यधर्त्रीं |
पृथ्वी यच्छ
पृथ्वीं दृ (गुं) ह पृथ्वीं मा ही (गूं) सी:
अब ललाट पर
चन्दन, कुंकुम या भस्म का तिलक धारण करे....
कान्तिं लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलमं मम
ददातु चन्दनं
नित्यं सततं धारयाम्याहम ||
अब इसके
पश्चात आप संकल्प ले सकते हैं----
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमदभगवतो महापुरुसस्य विश्नोराज्ञया
प्रवर्तमानस्य अद्द्य: श्रीब्रह्मण: द्वतीय परार्धे श्वेतवाराह्कल्पे
वैवस्वतमनवन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भारतवर्षे,
अमुक क्षेत्रै, अमुक नगरे, विक्रम संवत्सरे, अमुक अयने, अमुक मासे, अमुक पक्षे
अमुक पुण्य तिथि, अमुक गोत्रोत्पन्नोहं अमुक देवता प्रीत्यर्थे यथा ज्ञानं, यथां
मिलितोपचारे, पूजनं करिष्ये तद्गतेन मन्त्र जप करिष्ये या हवि कर्म च करिष्ये..... और जल पृथ्वी पर छोड़ दें.....
तत्पश्चात गुरुपूजन
करें---
भाइयों
बहनों गुरु ध्यान अनेकों हैं अतः आप स्वयं चुन लें.......या
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा
गुरु ही साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे
नमः
अब आवाहन
करें.....
ॐ स्वरुपनिरूपण हेतवे श्री गुरवे नमः, ॐ स्वच्छप्रकाश-विमर्श-हेतवे
श्रीपरमगुरवे नमः | ॐ स्वात्माराम् पञ्जरविलीन तेजसे पार्मेष्ठी गुरुवे नमः |
अब गुरुदेव का
पंचोपचार पूजन संपन्न करें----
इसमें स्नान
वस्त्र तिलक अक्षत कुंकुम फूल धूप दीप और नैवेद्ध का प्रयोग होता है----
अब गणेश पूजन करें ---
हाथ में जल
अक्षत कुंकुम फूल लेकर (गणेश विग्रह या जो भी है गनेश के प्रतीक रूप में) सामने
प्रार्थना करें ---
ॐ गणानां त्वां गणपति (गूं) हवामहे प्रियाणां त्वां प्रियपति (गूं)
हवामहे निधिनाम त्वां निधिपति (गूं) हवामहे वसो मम |
आहमजानि गर्भधमा त्वामजासी गर्भधम |
ॐ गं गणपतये नमः ध्यानं
समर्पयामी |
आवाहन---
हे हेरम्ब! त्वमेह्येही अम्बिकात्रियम्बकत्मज |
सिद्धि
बुद्धिपते त्र्यक्ष लक्ष्यलाभपितु: पितु:
ॐ गं गणपतये नमः
आवाहयामि स्थापयामि नमः पूजयामि नमः |
गणपतिजी के विग्रह के
अभाव में एक गोल सुपारी में कलावा लपेटकर पात्र मे रखकर उनका पूजन भी कर सकते
हैं.....
अब क्षमा प्रार्थना
करें---
विनायक वरं देहि महात्मन मोदकप्रिय |
निर्विघ्न कुरु
मे देव सर्व कार्येशु सर्वदा ||
विशेषअर्ध्य---
एक पात्र में
जल चन्दन, अक्षत कुंकुम दूर्वा आदि लेकर अर्ध्य समर्पित करें,
निर्विघ्नंमस्तु निर्विघ्नंस्तू निर्विघ्नंमस्तु | ॐ तत् सद्
ब्रह्मार्पणमस्तु |
अनेन कृतेन पूजनेन
सिद्धिबुद्धिसहित: श्री गणाधिपति: प्रियान्तां ||
अब माँ का पूजन
करें---
माँ आदि
शक्ति के भी अनेक ध्यान हैं जो प्रचलित हैं....
किन्तु आप ऐसे करें...
सर्व मंगल
मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये
त्रयाम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ||
अब भैरव पूजन करें---
ॐ यो भूतानामधिपतिर्यास्मिन लोका अधिश्रिता: |
यऽईशे महाते
महांस्तेन गृह्णामी त्वामहम ||
ॐ
तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पांतदहनोपम् |
भैरवाय
नमस्तुभ्यंनुज्ञां दातुर्महसि ||
ॐ भं भैरवाय नमः |
अब आप किसी भी
साधना में प्रवृत्त होने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हैं....... प्रिय स्नेही भाइयो
बहनों मेरा कहना सिर्फ इतना है कि किसी भी कारण आपकी साधना का कोई भी पक्ष छूटना
नहीं चाहिए . चाहे फिर वह पूजा विधान ही क्यों ना हों .....
अभी नए जुड़े भाई बहनों के लिए विशेष ....
भाइयों बहनों ये सब कुछ सदगुरुदेव की यज्ञ विधान और दैनिक साधना विधि किताब में है, किन्तु शायद कई
ऐंसे भी हैं जिनके पास ये नहीं है अत: इस हेतु सभी के लिए..... J
निखिल प्रणाम
****RAJNI NIKHIL****
****NPRU****
thankyou rajni di, aapne wakai naye sadhko ke liye aapne bahut he important jaankari di hai, kripya aage bhi naye sadhko ke liye or aanya jankari dene ki kripa kare, taki wo bhi apni sadhnao mai saflta prapt kar sake.......
ReplyDeletethank you rajni di, aapne naye sadhko ke liye bahut hi important jankari di, kripya aage bhi naye sadhko ko sadhna ke niyam, saflta prapti hetu post preshit karne ki kripa kare.......
ReplyDeleteVery usefull for beginners
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