गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो
महेश्वरा,
गुरु हि
साक्षात् परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः|
भाइयों - बहनों हमारे जीवन
में गुरु का और गुरु दीक्षा का अत्यंत महत्व है, जिसे शायद कुछ समझ भी पाते हैं और
कुछ नहीं भी . जो समझ पाते हैं, वो इसके प्रति गंभीर हैं और इस प्रक्रिया को और
परम्परा को समझने की कोशिश कर रहें हैं . दरअसल आदि काल से ही गुरु का समाज में एक
महत्वपूर्ण स्थान है . पूर्व में गुरु दीक्षा सिर्फ उच्च कुलीन घराने में ही
प्रचलित थी, किन्तु कालांतर में धीरे-धीरे परम्पराएं बदलती चली गयी.... और
आवश्यकतानुसार गुरु को जन सामान्य के बीच आना ही पड़ा, क्योंकि सच में ज्ञान की
आवश्यकता जन सामान्य को ही थी, क्योंकि उनका अज्ञानतावश उनका शोषण हो रहा था, कभी
धर्म के नाम पर कभी जाति के नाम पर कबी वर्ग के नाम पर तो अन्य समस्याओं के नाम
पर. किन्तु जैसे गुरु द्वारा समाज में ज्ञान का प्रसारण होना प्रारम्भ हुआ कि
जागृति आती चली गयी और प्रत्येक क्षेत्र में समानता आती चली गयी...... हम सब
अत्यंत सौभाग्यशाली है कि हम गुरुदेव श्री निखिलेश्वरानंदजी महाराज की परम्परा से
जुड़े हैं या दिक्षित हैं.....
गुरु दीक्षा
अत्यंत महत्वपूर्ण क्रिया है सबसे बड़ी बात तो ये है, कि इस क्रिया का तात्पर्य है
गुरु के प्राणों से जुडना, गुरु की उर्जा का हमारे प्राणों में, मन में, रक्त के
कण-कण में स्थापित होना, ललाट पे अंगूठा टिकाने से या किसी के हाथ में श्री फल
देकर गुरु मानने से गुरु, या दीक्षा नहीं हो जाती, गुरु की एक अत्यंत गुढ़ क्रिया
है ये जिसे समझने में शायद कई जन्म लग जाते हैं......
भाइयो बहनों हम जब साधना
की बात करते हैं तो पहली क्रिया या साधना गुरु साधना ही होना चाहिए, क्योंकि, जब
तक गुरु मंत्र की, चाहे वो कोई भी क्यों न हो, उर्जा हमारे प्राणों में समाहित
होती है तब ही हमारा शरीर, और प्राण किसी अन्य शक्ति की उर्जा का संवहन करने योग्य
बन पाता है, पहले सदगुरुदेव दीक्षा के बाद ही किसी भी व्यक्ति को गुरु मन्त्र के
अनुष्ठान की आज्ञा दे देते थे और जिन्हें साधक बनना होता था या आगे भी साधना के
क्षेत्र में बढ़ना होता था वे अनुष्ठान के पश्चात ही अन्य साधना या दीक्षा हेतु आगे
बढ़ते थे.... क्योंकि कुछ लोग सिर्फ अपने तात्कालिक समस्याओं के समाधान हेतु ही आते
थे.
भाइयो बहनों अब
सदगुरुदेव की उपस्तिथि सर्व व्यापी होने के साथ ही प्रकृतिस्थ है, अतः हमें भी
प्रकृति में एकाकार होते हुए हि गुरुदेव की उर्जा को ग्रहण करना आना चाहिए..... जो
कि गुरु मन्त्र की साधना या अनुष्ठान के माध्यम से हि संभव है......
गुरु मन्त्र अनुष्ठान का सरल विधान
विधि:
आवश्यक सामग्री- पीला या सफ़ेद आसन,सफ़ेद या पीली
धोती, यदि हो तो गुरु चादर, गुरु चित्र, गुरु यंत्र,घी का दीपक, यदि आप सक्षम हैं
तो अखंड दीप जला सकते हैं अन्यथा साधना समय में जलता रहे, पूजन कि आवश्यक सामग्री
जैसे हल्दी कुमकुम चावल फूल आदि |
समयावधि—११ या २१
दिन, समय प्रातः काल या सांयकाल, आपकी सुविधानुसार | आप चाहें तो रात में भी कर
सकते हैं.... माला—रुद्राक्ष या स्फटिक |
घर के किसी एक कोने में
या पूजा घर हो तो अति उत्तम, दिशा उत्तर या पूर्व रखें सामने बाजोट पर पीला वस्त्र
बिछाकर, सुन्दर गुरु चित्र स्थापित करें उसके सामने ही यंत्र स्थापित करें और अपने
बांयी ओर यानि ईष्ट के दांयी ओर घी का दीपक प्रज्वलित कर धूप या अगरबत्ती जला लें,
कलश स्थापन कर उसका पूजन करें, फिर गणपति पूजन कर संकल्प लें, कि मैं गुरु साधना
को इतने दिनों में संपन्न करूँगा.... उम्मीद है आप सबको प्रारम्भिक पूजन विधान तो
आता ही होगा, अतः संकल्प भी आप चाहें तो संस्कृत में हि लें और साधना प्रारम्भ
करें......
सबसे पहले आसन पर
चित्त को एकाग्र कर बैठ जाएँ और गुरुमंत्र के बीज अक्षर को अपने सातो में चक्रों
में स्थापित करें अर्थात उन स्थानों पर ध्यान केंद्रित कर उस बीज का उच्चारण करें
.....
गुरु मन्त्र- ॐ परम
तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः |
बीजाक्षर - चक्र स्थान
प विशुद्ध चक्र
र आज्ञा चक्र
म अनाहत चक्र
त अनाहत चक्र
त्वा स्वाधिष्ठान चक्र
य मणिपुर चक्र
ना अनाहत चक्र
रा मणिपुर चक्र
य विशुद्ध चक्र
णा मूलाधार चक्र
य विशुद्ध चक्र
गु आज्ञा चक्र
रु आज्ञा चक्र
भ्यो मूलाधार
नमः अनाहतचक्र
इस प्रकार षट्चक्रों में गुरु बीज को
स्थापन कर न्यास और विनियोग करें----
विनियोग—ॐ अस्य गुरु मन्त्रस्य ब्रम्ह-विष्णु-महेश्वरा
ऋषय: गायत्री उष्णिक-अनुष्टुप छंदासी निखिलेश्वरा नन्द देवता ब्रह्म, शाकम्भरी
भीमा शक्तय:, ब्रह्मांड बीजानी, ॐ कीलकं अग्नि वायु सूर्या: तत्वानी मम् सकल कार्य
सिध्यर्थये मंत्र जपे विनियोगाय नमः
न्यास- ॐ ब्रह्म विष्णु
महेश्वर: ऋषिभ्यो नमः शिरसि , ॐ गायत्री-उष्णिक-अनुष्टुप छान्देभ्यो नमः मुखे | ॐ
निखिलेश्वरा नन्द देवताभ्यो नमः ह्रदि | ॐ ब्रहम शाकम्भरी भीमा शक्तये नमः दक्ष
स्तने | ॐ ब्रम्हांड बीजानी नमः वाम स्तने | ॐ ह्रीं कील्काए नमः नाभौ | ॐ अग्नि
वायु सूर्य-तत्वेभ्यो नमः नेत्रयो: | ॐ मम सकल कार्य सिद्ध्यर्थये मन्त्र जपे
विनियोगाय नमः- सर्वांगे |
अब आप तैयार हैं
गुरु मन्त्र अनुष्ठान हेतु-----
और अब आप अपनी
सुविधानुसार मन्त्र जप प्रारम्भ कर लें...... और गुरु अनुष्ठान यानी कि सवा लाख
मन्त्र जप करने के बाद आम की लकड़ी और घी कपूर और हवन सामग्री के द्वारा दशांस हवन
कर आरती संपन्न कर गुरुदेव से आशार्वाद लें |
भाइयो बहनों ये
पूर्ण प्रामाणिक गुरु अनुष्ठान का विधान है और जिसे संपन्न कर व्यक्ति अपने आप में
पूर्णता पा सकता है -----
तो बस शुरू हो जाइये
और अपने आपको तैयार करें अपने आपको साधनाओं के उच्च आयाम पर पहुचाने हेतु----
शुभकामनाओं सहित---
निखिल प्रणाम..
जय सदगुरुदेव..
**** रजनी निखिल ****
****NPRU****
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