“अच्युताय
नमस्तुभ्यं गुरवे परमात्मने |
सर्वतंत्रस्वतंत्र
या चिद्घनानंदमूर्तये ||”
‘ॐ त्वमा वह
वहे वद वे गुरोर्चन धरै सह प्रियन्हर्षेतु’
हे अविनाशी परमात्मा
स्वतंत्र चैतन्य और आनंद मूर्ति स्वरुप गुरुदेव ! आपको नमस्कार है |
हे गुरुदेव ! आप सर्वज्ञ हैं , हम ईश्वर को नहीं
पहचानते, न हि उन्हें कभी देखा है, और आपके द्वारा हि उस प्रभु या ईष्ट के दर्शन
सहज और संभव है, मै अपना समर्पित कर आपका अर्चन पूजन कर पूर्णता प्राप्त करने का
आकांक्षी हूँ |
भाइयो बहनों !
इस श्लोक का भावार्थ आप समझ हि गए हैं यानि गुरु
हि वह व्यक्तित्व है जो अज्ञान के अंधकार से शिष्य को पार ले जाकर जीवन में ज्ञान
का प्रकाश देता है | गुरु हि हैं जो जीवन की बाधाओं के शिष्य को सचेत भी करते हैं
औरुनसे निकलने का मार्ग भी प्रसस्त करते हैं |
प्रिय स्नेही स्वजन ! आगामी वर्ष कि ढेरो शुभ
कामनाओं के साथ आपके लिए एक मह्त्वपूर्ण साधना -------
एक शिष्य का जीवन
गुरु से शुरू होकर गुरु पर ही समाप्त होता है तो क्यों न एस नव वर्ष की शुरुआत
गुरु साधना से ही की जाये | क्योंकि गुरु ही वह श्रोत जो शिष्य में आत्म उत्साह
प्रदान करता है क्रिया के साथ जाग्रति साधना कहलाती है और अभ्यास अपने आप को दृण
निश्चय के साथ उच्च स्तिथि में ले जाने की क्रिया है, जिससे वह अपना आत्म ज्ञान
प्राप्त कर सके गुरु व्यक्ति की शक्तियों को एक श्रंखला बद्ध रूप देता है जिससे
बिखरी हुई शक्तियां एक धारा में श्रेष्ठता के साथ बह सकें |
गुरु वह व्यक्ति नहीं है जिनके ऊपर अपनी आप
अपनी सारी समस्याओं एवं
कठिनाइयों का बोझ डाल सको, गुरु तो वह व्यक्तित्व है जो
आपको जीवन जीने का रचनात्मक, सुयोग्य और प्रभावकारी मार्ग दिखलाता है जिससे कि आप
में स्वयं को जानने कि प्रक्रिया प्रारम्भ हो सके |
जीवन में सही क्रिया क्या है? दूसरों के भाव
विचारों को किस प्रकार समझा जा सकता है यह जानने कि क्रिया के सम्बन्ध में जानकारी
देकर योग्य व्यक्ति बनाना हि गुरु का मूल उद्देश्य है |
स्नेही आत्मीयजन !
जीवन में दारिद्रय योग सबसे कष्ट दायक
होता है और इसे दूर कर जीवन को सहज बनाना हि हमारा प्रथम उद्देश्य होना चाहिए
क्योंकि उसके बाद हि जीवन में प्रत्येक क्रिया को किया जा सकता है | महर्षि
विश्वामित्र ने बड़े स्पष्ट रूप से स्वीकार्य किया है कि गुरु अपने आप में समस्त
ऐश्वर्य का अधिपति होता है, अतः गुरु साधना के माध्यम से समस्त ऐश्वर्या को
प्राप्त किया जा सकता है अतः मैंने नववर्ष के प्रारम्भ को गुरु साधना से हि
प्रारम्भ करने का विचार बनाया |
हो सकता है कि आपमें से से कैन व्यक्तियों के
पास यह साधना उपलब्ध हो कि किन्तु कैन ऐसे नए साधक हैं जिनके पास न हो, कभी कभी
ऐसा भी होता है कि हमारे पास साहित्य उपलब्ध होता है और हम उसका हम उपयोग नहीं कर
पाते| अतः इस साधना कि उपयोगिता बताते हुए यह कहना चाहती हूँ कि मात्र एक बार इस
प्रयोग को कर के देखें और अनुभूत करें..........
महर्षि विश्वामित्र द्वारा प्रणीत, सदगुरुदेव
द्वारा प्रदत्त, दुर्भाग्य को मिटाने वाली अखंड लक्ष्मी प्राप्ति साधना | यह साधना
मात्र तीन घंटे कि है जिसे कि इकत्तीस कि रात 11 बजे से शुरू करें |
या जो इकत्तीस कि रात को ना कर पाएं तो एक तारिक के प्रातः 5 बजे से प्रारम्भ करें|
साधना क्रम :-
सफ़ेद वस्त्र, सफ़ेद आसन, उत्तर दिशा, सामने
गुरु चित्र, सामग्री में- कुमकुम ,अक्षत (बिना टूटे चावल ), गंगा जल, केसर, पुष्प
(किसी भी तरह के), पंचपात्र, घी का दीपक जो साधना क्रम में अखंड जलेगा, कपूर,
अगरबत्ती, एक कटोरी |
साधक शुद्धता से स्नान कर सफ़ेद वस्त्र धारण कर
उत्तर कि ओर मुह कर बैठें | सामने बाजोट पर यदि गणपति विग्रह हो तो स्थापित कर
पूजन करें अथवा चावल कि धेरी पर एक सुपारी में कलावा बांधा कर गणपति के रूप में
पूजन संपन्न करें | तत्पश्चात पंचोपचार गुरु पूजन संपन्न करें | और चार माला गुरु
मंत्र कि करें अब अपने स्वयं के शरीर को गुरु का हि शरीर मानते हुए अपने आपको गुरु
में लीं करते हुए आज्ञा चक्र में “परमतत्व गुरु” स्थापन करें |
परमतत्व गुरु स्थापन –
ऐं ह्रीं श्रीं
अम्रताम्भोनिधये नमः| रत्ना-द्विपाय नम: | संतान्वाटीकाय नम: | हरिचंदन-वाटिकायै
नम: | पारिजात-वाटिकायै नम: | पुष्पराग-प्रकाराय नम: |गोमेद-रत्नप्रकाराय नम: |
वज्ररत्न्प्रकाराय नम: | मुक्ता-रत्न्प्रकाराय नम: | माणिक्य-रत्नाप्रकाराय नम: |
सहेस्त्र स्तम्भ प्रकाराय नम: | आनंद वपिकाय नम: | बालातपोद्धाराय नम: |
महाश्रिंगार-पारिखाय नम: | चिंतामणि-गृहराजाय नम: | उत्तर द्वाराय नम: | पूर्व
द्वाराय नम: | दक्षिण द्वाराय नम: | पश्चिम द्वाराय नम: | नाना-वृक्ष-महोद्ध्य्नाय
नम: | कल्प वृक्ष-वाटिकायै नम: | मंदार वाटिकायै नम: | कदम्ब-वन वाटिकायै नम: |
पद्मराग-रत्न प्राकाराय नम: | माणिक्य-मण्डपाय नम: | अमृत-वपिकायै नम: | विमर्श- वपिकायै
नम: | चन्द्रीकोद्राराय नम: | महा-पद्माटव्यै नम: | पुर्वाम्नाय नम: |
दक्षिणा-म्नाय नम: | पस्चिम्माम्नाय नम: | उत्तर-द्वाराय नम: | महा-सिंहासनाय नम:
| विश्नुमयैक-पञ्च-पादाय नम: | ईश्वर-मयैक पञ्च पादाय नम: | हंस-तूल-महोपधानाय नम:
| महाविभानिकायै नम: | श्री परम तत्वाय गुरुभ्यो नम: |
Aim
hreem shreem amritaambhonidhye namh .
Ratn-dwipaay namh .
santaan-vatikaayai namh . paarijaat
vatikayai namh . puspraag-prakaaraay namh. Gomed ratn –praakaaraay namh.
Vajra ratn praakaaraay namh. mukta
–ratn-praakaaraay namh. Manikya –ratn praakaaraay namh. Sehestra stambh
praakaaraay namh. Anand-vapikayai namh.
Balatpoddhaaraay namh.
Mahashringaar-paarikhaayai
namh. Chintamani – grihraajaay
namh. Uttardwaraay namh. Purv-dwaraay namh. Dakshin dwaraay namh. Paschim
dwaraay namh .
nana-vriksh-mahodhyaanaay namh.
Kalp vriksh-vatikaayai namh. Mandaar vaatikaayai namh. Kadamb-van vatikaayai namh.
Padmraag-ratn praakaaray namh. Manikya
–mandpaay namh. Amrit-vapikaayai
namh. Vimrsh-vaapikaayai namh . chandrikodraay namh. Mahaa-padmatvyaai namh. Purvamnaay namh. Dakshina-mnaay namh. Paschimmaamnaay
namh. Uttar-dwaraay namh. Maha-sinhaasnaay namh.
Vishnumyaik-punch-paadaay namh. Eshwar-mayaik punch paadaay namh. Hans-tul-mahopdhaanaay namh. Mahaavibhanikayai namh. Shree param tatvaay
gurubhyo namh.
इस प्रकार परमतत्व
गुरु को अपने आज्ञा चक्र में स्थापित करने के बाद एक पात्र में जल कुमकुम अक्षत और
पुष्प कि पंखुड़ियां लेकर गुरु कि द्वादश कलाओं को अर्ध दें
ऐं ह्रीं श्रीं कं भं तपिन्यै नम: |
(“ऐं
ह्रीं श्रीं क्लीं अं सूर्य मण्डलाय द्वादश्कलात्मने अर्घ्यपात्राय नम:”, प्रत्येक
मंत्र के बाद इस मंत्र से पात्र में रखे हुए कुमकुम मिश्रित जल से दुसरे पात्र में
अर्घ्य देने हैं )
ऐं ह्रीं श्रीं खं बं तापिन्यै नम:|
ऐं ह्रीं श्रीं गं फं धूम्रायै नम:|
ऐं ह्रीं
श्रीं घं पं विश्वायै नम:|
ऐं ह्रीं
श्रीं ड़ं नं बोधिन्यै नम:|
ऐं ह्रीं
श्रीं चं धं ज्वालिन्यै नम:|
ऐं ह्रीं
श्रीं छं दं शोषिण्यै नम:|
ऐं ह्रीं
श्रीं जं थं वरण्योये नम:|
ऐं ह्रीं
श्रीं झं तं आकर्षण्यै नम:|
ऐं ह्रीं
श्रीं ञं णं मयायै नम:|
ऐं ह्रीं
श्रीं टं ढं विवस्वत्यै नम:|
ऐं ह्रीं
श्रीं ठं डं हेम-प्रभायै नम:|
Aim hreem shreem kam bham tapinyai namh.
(“Aim hreem shreem kleem am sooryamandalaay dwaadashkalaatmane
arghpaatray namh”)
Aim hreem shreem kham bam taapinyai namh.
Aim hreem shreem gam fam dhoomraayai namh.
Aim hreem shreem gham pam vishvaayai namh.
Aim hreem shreem dam nam bodhinyai namh.
Aim hreem shreem cham dham jwaalinyai namh.
Aim hreem shreem chham dam shoshinyai namh.
Aim hreem shreem jam tham varnyoye namh.
Aim hreem shreem jham tam aakarshanyai namh.
Aim hreem shreem iyam
ndam namh.
Aim hreem shreem tam dham vivasvatyai namh.
Aim hreem shreem ttham dam hem- prabhayai namh.
उपरोक्त कला पूजन
में “ऐं ह्रीं श्रीं” लक्ष्मी के बीज मंत्र हैं अतः इस प्रकार ये लक्ष्मी के सभी
स्वरूप हमारे शरीर में समाहित हो जाते हैं |
कोई भी धन का सही उपयोग तभी जीवन में पूर्ण आनंद और
ऐश्वर्या देता है जब कि लक्ष्मी के साथ सुख, सम्मान, तुष्टि-पुष्टि, ओर संतोष भी
प्राप्त हो अतः सोलहकला पूजन विधान है | इसके लिए गुरु को अर्घ्य पात्र में जल,
अक्षत, पुष्प, कुमकुम लेकर समर्पित करें | पहले निम्न मंत्र से मूल समर्पण करें
फिर सोलह कलाओं के प्रत्येक मंत्र के साथ अर्घ्य पात्र में समर्पित करें |
ऐं ह्रीं
श्रीं सौं उं सोम-मण्डलाय षोडशी कलात्मने अर्घ्य पात्रामृताय नमः |
Aim hreem shreem
saum um som-mandalaay
shodashi kalaatmane arghya
paatraamritaay namah .
इस अर्घ्य को समर्पित करते समय उसका जल थोड़ा
थोड़ा करके सोलह बार ग्रहण करें, इसके बाद गुरु कि सोलह कलाओं का अर्घ्य पूजन करें
|
सोलह
कला पूजन –
ऐं
ह्रीं श्रीं अं अमृतायै नमः |
(ऐं ह्रीं श्रीं सौं उं सोम-मण्डलाय
षोडशी कालात्मने अर्घ्य पात्रामृताय नमः )
ऐं ह्रीं श्रीं आं मानदायै नमः |
ऐं ह्रीं श्रीं इं तुष्टयै नमः |
ऐं ह्रीं श्रीं ईं पुष्टयै नमः |
ऐं ह्रीं श्रीं उं प्रीत्यै नमः |
ऐं ह्रीं श्रीं ऊं रत्यै नमः |
ऐं ह्रीं श्रीं ॠं श्रीयै नमः |
ऐं ह्रीं श्रीं ऋृं क्रियायै नमः |
ऐं
ह्रीं श्रीं लृं सुधायै नमः |
ऐं
ह्रीं श्रीं लृं रात्रयै नमः |
ऐं ह्रीं श्रीं एं ज्योत्स्नायै नमः |
ऐं
ह्रीं श्रीं ऐं हैमवत्यै नमः |
ऐं
ह्रीं श्रीं ओं छायायै नमः |
ऐं ह्रीं श्रीं औं पूर्णीमायै नमः |
ऐं ह्रीं श्रीं अः विद्यायै नमः |
ऐं
ह्रीं श्रीं वः अमावस्यायै नमः |
Aim
hreem shreem am amritaayai
namah.
(Aim hreem
shreem saum um
som-mandalaay shodashi kalaatmane
arghya paatraamritaay namah . )
Aim
hreem shreem aam
maandaayai namah.
Aim
hreem shreem im
tushtayai namah.
Aim
hreem shreem eem
pushtayai namah.
Aim
hreem shreem um
preetyai namah.
Aim
hreem shreem oom ratyai namah.
Aim
hreem shreem rim(ऋं) shriyai namah.
Aim
hreem shreem rim kriyayai
namah.
Aim
hreem shreem lrim sudhayai namah.
Aim
hreem shreem lrim ratryai namah.
Aim
hreem shreem aim jyotsnayai
namah.
Aim
hreem shreem aim haimvatyai
namah.
Aim
hreem shreem om chayayai
namah.
Aim
hreem shreem aum purnimayai
namah.
Aim
hreem shreem ah vidyayai namah.
Aim
hreem shreem vah amavasyayai
namah.
इसके बाद गुरु के मूल मंत्र का जाप करें “ॐ परम तत्वाय
नारायणाये नमः “ (om param tatvaye narayanaye namah )इस मंत्र कि एक माला फेरें या जो
आपका गुरु मंत्र है उसकी माला करें | अब अपने सामने किसी पात्र में दीपक और कपूर
जलाएं | फिर अपने शारीर में हि गुरु को समाहित मानकर बेठे हि बेठे समर्पण और
आमंत्रण आरती करें |
पूर्ण
सिद्ध आरती
अत्र
सर्वानन्द – मय व्यन्दव - चक्रे परब्रह्म - स्वरूपणी परापर - शक्ति - श्रीमहा –
गुरु देव – समस्त – चक्र – नायके – सम्वित्ती – रूप – चक्र नायाकाधिष्ठिते
त्रैलोक्यमोहन – सर्वाशपरी – पुरख – सर्वसंक्षोभकारक – सर्वसौ – भाग्यादायक –
सर्वार्थसाधक – सर्वरक्षाकर – सर्वरोगहर – सर्वासिद्धीप्रद – सर्वानन्दरय – चक्र –
समुन्मीलित – समस्त – प्रकट – गुप्त – गुप्ततर – सम्प्रदाय – कुल – कौलिनी – निगम –
रहस्यातिरहस्य – परापर रहस्य – समस्त – योगिनी – परिवृत – श्रीपुरेशी –
त्रिपुरसुन्दरी – त्रिपुर – वासिनी – त्रिपुरा – श्रीत्रिपुरमालिनी –
त्रिपुरसिद्धा – त्रिपुराम्बा – तत्तच्चक्रनायिका – वन्दित – चरण – कमल – श्रीमहा –
गुरु – नित्यदेव – सर्वचक्रेश्वर – सर्वमंत्रेश्वर – सर्वविद्येश्वर –
सर्वपिठेश्वर – त्रलोक्यमोहिनी – जगादुप्तत्ति – गुरु – सर्वचाक्रमय तन्चक्र –
नायका – सहिताः स – मुद्रा, स – सिद्धयः, सायुधाः, स – वाहनाः, स – परिवाराः,
सर्वो-पचारे: श्री परमतत्वाय गुरु परापराय
– सपर्यया पुजितास्तर्पिता: सन्तु |
इसके बाद हाँथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें-
श्रीनाथादी
गुरु – त्रयं गण – पति पीठ त्रयं भैरव सिद्धोध बटुक – त्रयं पद युग्म दूती क्रमं
मंडलम वीरानष्ट – चतुष्क – षष्टि – नवकं वीरावली – पंचकं, श्रीमन्मालिनी –
मंत्रराज – सहितं वन्दे गुरोर्मंडलम |
स्नेही भाइयों
बहनों इस प्रकार यह पूर्ण लक्ष्मी साधना केवल एक बार किसी भी अमावस्या को या किसी
भी रात्री को या दीपावली को संपन्न करने से
पूर्ण लक्ष्मी सिद्धि प्राप्त होती है |
इस नव वर्ष की
शुरुआत इस महत्वपूर्ण साधना से करें और पूर्ण आनंद ओर सुख, समृद्धि को प्राप्त
करें, इसी अकांक्षा के साथ नव वर्ष कि शुभकामनाएं |
निखिल प्रणाम,
रजनी
निखिल
***NPRU***
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