गृह दोष बाधा निवारण साधना
गुरु
सत्यम गुरुर्शास्त्रं, गुरुर्वेदो
गुरुर्गति |
गुरुमेव
महत् सर्व तस्मै श्री गुरुवे नमः ||
गुरु ही सत्य है, गुरु ही शास्त्र है, गुरु
ही वेद हैं और गुरु से ही गति प्राप्त हो सकती है, सही अर्थों में तो गुरु ही सब
कुछ होता है, इसलिए सभी सर्वप्रथम गुरुदेव को नमन है |
जय सदगुरुदेव
!
स्नेही स्वजन,
मनुष्य का जीवन निरंतर कम ही होता जा रहा
है, इसी में उसे अनेक या बड़े लक्ष्य को प्राप्त करना है और यदि इस लक्ष्य की
प्राप्ति में निरंतर बाधाएं, अडचने, कठिनाइयाँ आती रहें तो वह पूर्ण रूप से परगति
नहीं कर पाता और जीवन नीरस सा लगने लगता है |
पूरी मेहनत और ईमानदारी और लगन से भी कार्य करने
पर भी निरंतर असफलता और कभी निराशा का सामना करना पड़े तो जीवन
निरर्थक लगने लगता है, प्रत्येक कार्य बनते बनते बिगड़ जाना या घर में रोग, आर्थिक संकट, कोर्ट कचहरी, या अपमान कर्ज
आदि समस्याएं जब बढती ही जाए तो समझ लीजिये कि गृह दोष बाधा है, और यदि गृह बाधा
है तो तांत्रिक बाधा बड़ी सहजता से संपन्न हो जाती है, क्योंकि ग्रहों का चक्र
देखते हुए हि तंत्र क्रियाएं भी संपन्न की जाती हैं |
हमरे देश में ही नहीं बल्कि विश्व के सभी
देशों में प्राचीनकाल से हि ग्रहों की स्तिथि, गति और प्रभावों की गणना और अध्ययन
होता चला आया है और सभी इस बात को स्वीकार करते हैं कि मानव जीवन पर ग्रहों का
प्रभाव पड़ता ही है |
कुछ ग्रहों
का प्रभाव तो स्पष्ट देखा जा सकता है, जो प्रकृति पर दृष्टिगोचर है, उदाहरन स्वरुप
चंद्रमा जल का प्रतिनिधित्व करता है और समुद्र में ज्वारभाटा आना इसका प्रत्यक्ष
उदहारण है, और चूँकि मनुष्य के शरीर में अस्सी प्रतिशत जल की मात्रा होती है अतः चन्द्रमा के प्रभाव
से उसका उद्वेलन होना भी निश्चित ही है, मानसिक रोगियों पर पूर्णिमा के दिन ज्यादा
प्रभाव अनुभव होना, और कई तरह की घटनाओं का घटना चन्द्रम के प्रभाव को स्पष्ट करता
है | इसी तरह बाकी ग्रहों का भी प्रभाव मानव जीवन पर किसी न किसी तरह दृष्टिगोचर होता
ही है |
गृह अशुभ और शुभ प्रभाव देने में समर्थ हैं
| जीवन में संकटों का आना या अचानक प्रगति का होना इन्ही ग्रहों के प्रभाव का होना
है | इन ग्रहों के कुप्रभावों से बचने के
लिए शास्त्रानुसार दो प्रयोग दिये गए हैं, एक तो सम्बंधित गृह का मन्त्र जप या
दूसरा सम्बंधित गृह का रत्न या धारण करने का विधान |
किन्तु एक
विधान सदगुरुदेव जी ने बताया था साथ ही एक शिविर में हम लोगों को संपन्न भी करवाया
था | भाइयो बहनों सदगुरुदेव की अनेक विशेषताओं में एक विशेषता ये थी कि वे एक ही
साधना के कई पक्ष रख देते थे या अलग विधान भी बता देते थे अतः जो मेरा अनुभूत
प्रयोग है वो ये है---
विधान- ये
विधान नौ ग्रहों है इसे किसी भी अमावश्या से कर सकते हैं,अमावश्य के दिन यंत्रो का
पूजन कर लें और फिर किसी भी रविवार से प्रारम्भ का सकते हैं या शुक्ल पक्ष के रविवार से प्रारम्भ किया जा
सकता है, इस साधना में प्रत्येक गृह के अनुसार मन्त्र जप करने हैं, और वैसे ही
वस्त्र धारण करने हैं तथा दिशा, आसन भी तथानुसार होंगे इसलिए इसकी तैयारी भी दो
चार दिन पहले ही कर लेना चाहिए |
उपयुक्त सामग्री-
एक
नवग्रह यंत्र, नव रत्न माला/ या नवरत्न अंगूठी/ या नवरत्न लाकेट, साथ ही प्रत्येक
जप के लिए तदनुसार माला, वैसे दो या तीन माला तो जरुरी हैं ही साथ ही वस्त्र और
आसन भी अलग होते हैं अतः उतने रंग के कपड़े खरीद लेने चाहिए, जो आसन पर बिछाकर काम
चल सकता है |
१- सूर्य
के लिए गुलाबी वस्त्र, आसन और स्फटिक माला | ११ माला
२- चन्द्र
के लिए सफ़ेद वस्त्र, आसन और मोती माला | ११ माला
३- मंगल
के लिए लाल वस्त्र, आसन और मूंगा माला | ११ माला
४- बुध
के लिए हरा वस्त्र, आसन और हरे हक़ीक माला | ११ माला
५- गुरु
के लिए पीले वस्त्र, आसन और पीली हक़ीक या हल्दी माला | ११ माला
६- शुक्र
के लिए सफ़ेद वस्त्र, आसन और स्फटिक माला , (पहले वाली माला और वस्त्र उपयोग कर
सकते हैं) | ११ माला
७- शनि
हेतु काले वस्त्र, आसन और काली हक़ीक माला | १८ माला
८- राहू
के लिए ------------------------------------------------ | १९ माला
९- केतु
के लिए ----------------------------------------------- | १९ माला
जप कालीन समय --
सूर्य जप साधना प्रातः ६ से ७ के बीच प्रारम्भ
करना है और दिशा पूर्व |
चन्द्र साधना हेतु रात में ९ से १० बजे के बीच,
दिशा पूर्व
मंगल बुध गुरु और शुक्र की प्रातः ९ से ११ के
बीच
मंगल के दक्षिण, बुध के लिए नैरित्य, गुरु के
लिए उत्तर शुक्र के लिए पश्चिम दिशा निर्धारित है |
शनि राहू केतु भी ११ बजे के पूर्व साधना हो जनि
चाहिए | शनि के लिए भी पश्चिम राहू केतु के लिए दक्षिण दिशा होगी |
ये साधना मूलतः अमावश्या से प्रारम्भ करनी है अमावश्या
के दिन दो पाटे पर एक सफ़ेद वस्त्र और दुसरे पर पीला वस्त्र बिछाकर अपने सामने
स्थापित करें, अब एक बड़ी स्टील, ताम्बे या कांसे की थाली लें अब नौ मिटटी के दिए जिसमे
आठ दीयों में तेल जो कोई भी हो सकता है, तथा एक में घी का दीपक लगावें | थाली में
कुमकुम से स्वास्तिक बनावें, और उस पर चावल की ढेरी बनाकर उस पर नवग्रह यंत्र को पहले पंचामृत से धोकर फिर गंगा जल से धो कर स्थापित
करें, ऐसे हि जो भी माला लाकेट या अंगूठी है उसे भी साफ कर यंत्र के ऊपर स्थापित
करें | तथा चारो तरफ आठ दिए तेल के और अपने सामने घी का दीपक प्रज्वलित करें तथा
सफ़ेद वस्त्र वाले पट्टे पर थाली स्थापित करें |
अब दुसरे पाटे पर चावल से स्वास्तिक बनावें और उस पर नवग्रहों की स्थापना
करें | ये प्रतीक मात्र होंगे | सामने भूमि पर कलश स्थापन करें और उसका पूजन कर गुरु,
गणेश पूजन सम्पन्न करें | तथा संकल्प लेकर नवग्रह का और यंत्र का पंचोपचार पूजन
करें |
‘ब्रह्ममुरारिस्त्रिपुरान्त्कारी भानु शशि भूमौ सुतबुधश्च गुरु शुक्र,
शनि राहू-केतवे मुन्था सहिताय सर्वे ग्रहा शान्तिकरा भवन्तु ||’
इस मन्त्र का रुद्राक्ष माला से एक माला मन्त्र
करें ---
स्नेही स्वजन ! J है ना अद्भुत प्रयोग........ इस तरह पूजन सम्पन्न
करने से आपका यंत्र और सारी मालायें नवग्रह
मन्त्र से चैतन्य हो जाएँगी और आप भी इस साधना हेतु तैयार हो जायेंगे--------
यदि पूर्ण विधि विधान और श्रद्धा पूर्वक इस
साधना को कोई भी संपन्न कर लेता है तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि उसे समस्त बाधाओं से
मुक्ति न मिले------
अब इसके बाद आप रविवार से इस साधन को प्रारम्भ
कर सकते हैं अपनी सुविधा नुसार-----
कुछ महत्वपूर्ण सावधानी---- जो कि प्रत्येक
साधना में बरतनी चाहिए , जैसे-
ब्रह्मचारी व्रत का दृढ़ता से पालन, भूमि शयन
पूर्ण शुद्ध और शाकाहारी भोजन व्यवस्था, और गुरु और मन्त्र के प्रति पूर्ण आस्था
रखते हुए साधना सम्पन्न करें और देखें चमत्कारी परिणाम--------
नव ग्रह एवं उनसे सम्बन्धित मन्त्र
१.
सूर्य : ॐ ह्रां ह्रीं सः |
२.
चन्द्रमा : ॐ घौं सौं औं सः |
३.
मंगल : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रां सः |
४.
बुध : ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रां सः |
५.
गुरु : ॐ औं औं औं सः |
६.
शुक्र : ॐ ह्रौं ह्रीं सः |
७.
शनि : ॐ शौं शौं सः |
८.
रहू : ॐ छौं छां छौं सः |
९.
केतु : ॐ फौं फां फौं सः |
प्रत्येक
दिन प्रत्येक गृह के मन्त्र जप के बाद निम्न स्त्रोत के पांच पाठ अति आवश्यक हैं |
विनियोग :
ॐ अस्य जगन्मंगल्कारक ग्रह कवचस्य
श्री भैरव ऋषि: अनुष्टुप् छन्द : |
श्री सूर्यादि ग्रहाः देवता | सर्व
कामार्थ संसिद्धिये पाठे विनियोगः |
पार्वत्युवाच :
श्री शान ! सर्व शास्त्रज्ञ
देव्ताधीश्वर प्रभो |
अक्षयं कवचं दिव्यं ग्रहादि-दैवतं
विभो ||
पुरा संसुचितम गुह्यां
सुभ्त्ताक्षय-कारकम् |
कृपा मयि त्वास्ते चेत् कथय् श्री
महेश्वर ||
शिव उवाच :
श्रृणु देवि प्रियतमे ! कवचं देव
दुर्लभम् |
यद्धृत्वा देवता : सर्वे अमरा:
स्युर्वरानेन |
तव प्रीति वशाद् वच्मि न देयं यस्य कस्यंचित् |
ग्रह
कवच स्तोत्र :
ॐ ह्रां ह्रीं सः मे शिरः पातु श्री सूर्य ग्रह पति : |
ॐ घौं सौं औं में मुखं पातु श्री चन्द्रो ग्रह राजकः |
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रां सः करो पातु ग्रह सेनापतिः कुज: |
पायादंशं ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रां सः पादौ ज्ञो नृपबालक: |
ॐ औं औं औं सः कटिं पातु पायादमरपूजित: |
ॐ ह्रौं ह्रीं सः दैत्य पूज्यो हृदयं परिरक्षतु |
ॐ शौं शौं सः पातु नाभिं मे ग्रह प्रेष्य: शनैश्चर: |
ॐ छौं छां छौं सः कंठ देशम श्री राहुर्देवमर्दकः |
ॐ फौं फां फौं सः शिखी पातु सर्वांगमभीतोऽवतु |
ग्रहाश्चैते भोग देहा नित्यास्तु स्फुटित ग्रहाः |
एतदशांश संभूताः पान्तु नित्यं तु दुर्जनात् |
अक्षयं कवचं पुण्यं सुर्यादी गृह दैवतं |
पठेद् वा पाठयेद् वापी धारयेद् यो जनः शुचिः |
सा सिद्धिं प्राप्नुयादिष्टां दुर्लभां त्रिदशस्तुयाम् |
तव स्नेह वशादुक्तं जगन्मंगल कारकम् गृह
यंत्रान्वितं कृत्वाभिष्टमक्षयमाप्नुयात् |
तो हो
जाइये तैयार एक महत्वपूर्ण साधना हेतु------
निखिल प्रणाम
रजनी निखिल
***NPRU***
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