Monday, April 20, 2015

गुरु रहस्य सिद्धि साधना-


              



                गुरु रहस्य सिद्धि साधना-

ऐंकार ह्रीमकार श्रींमकार गूडार्थ महाविभूत्या
ओमकार       मर्म     प्रतिपादिनीभ्याम
नमो   नमः   श्रीगुरु        पादुकभ्याम

गुरु चरणों की बात तो अलग ही जबकि गुरु पादुकाओं में ही कई-कई रहस्य छुपे होते हैं,|  और उन रहस्यों को शिष्य अपनी साधना से अपने समर्पण से उजागर कर ही लेते हैं ऐंसा ही एक अद्भुत साधना रहस्य | जो जीवन में अति आवश्यक हैं, गुरु तत्व के अनोखे रहस्यों को इस साधना के माध्यम से जाना जा सकता है, और इसके बाद मेरे ख्याल से अन्य साधना की आवश्यकता नहीं रह जाती | सदगुरुदेव के अवतरण दिवस पर क्यूँ न हम सभी शिष्य इस साधना के माध्यम से उनके श्री चरणों तक पहुँच सकें | और अपना एक साधना क्रम पूरा कर सकें इन्हीं विचारों के अन्तरगत ये साधना देने का मन बना है और चाहती हूँ कि आप सभी इस साधना क्रम को अपनाएँ |

भाइयो बहनों! किसी कारणवश यदि आप प्रातः इस साधना को नहीं कर पायें तो किसी भी गुरुवार के प्रातः ४ भी यानि ब्रह्म मुहूर्त में भी कर सकते हैं या २१ ता. को भी |

 प्रातः ५ से ७ के बीच स्नान आदि से विर्वृत्त होकर पीले वस्त्र धारण करके पीले हि आसन पर उत्तर दिशा कि ओर मुह करके बैठे एवं सामान्य गुरु पूजन व गौरी गणेश पूजन संपन्न करें तथा तट संकल्प बद्ध होकर गुरुदेव से गुरुतत्व रहस्य सिद्धि की प्रार्थना करें एवं गुरु रहस्य सिद्धि माला से निम्न मन्त्र की ५१ माला संपन्न करें | तदोपरांत कपूर से आरती करें व जप समर्पण करें | 
  
|| ॐ ऐं ह्रीं गुरुत्वै नमः ||

OM  ANG  HREEM  GURUTVE  NAMAH

स्नेही भाईयों व बहनों,
  यह साधना मेरी अनुभूत साधना है और मैं दावे से कह सकती हूँ इस साधना के बाद साधक को गुरु तत्व के रहस्योद्घाटन ना हो | यकीन न हो तो स्वयं करके देखें व लाभ उठायें |

रजनी निखिल

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अक्षय तृतीय की सुवर्ण गौरी साधना





नमो  शांत रूपं,  ब्रह्म रूद्र  महेशं |

निखिल रूप नित्यं शिवोऽह-शिवोऽहं ||


हे गुरुदेव स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ! आप शांत स्वरूप हैं, ब्रह्मा, विष्णु, और रूद्र के साक्षात् साकार चिन्तन हैं, आप का मोहक रूप नित्य मेरे ह्रदय में बसा रहे, और मेरे चिन्तन में शिव स्वरुप में रहें |


भाइयो बहनों,
सबसे पहले तो क्षमाप्रार्थी हूँ कि आपको मै इस अमावश्या पर कोई भी प्रयोग या साधना नहीं दे पाई, कारन मै स्वयं साधना में थी, और समयाभाव के कारण कुछ लिख नहीं पाई जबकि प्री प्लानिंग की थी, किन्तु लिखने का समय नहीं मिल पाया | सॉरी------ जबकि जानती हूँ आवश्यक था पर-------
अक्षय तृतीय एक विशिष्ट दिवस है और इसका तात्पर्य ही है अक्षय यानी जिसका क्षय न होना अर्थात समाप्त न होना.
तो क्यों ना हम कुछ ऐसा करें जिसका प्रभाव पूरी जिन्दगी रहे या जिसका प्रतिशत यदि साधक को ६० भी मिलता है तो २-५ वर्ष तो रहे |

स्नेही स्वजन
 मैंने अभी कुछ दिन पहले एक अप्सरा यक्षिणी श्रृंखला प्रारम्भ की है जिसमें यह पता चलता है कि आप लोगों का रुझान किस ओर है अतः किसी भी वेशेष दिवस की दी जाने वाली साधनाओं को ध्यान में रखते हुए देना होगा क्योंकि तभी आप लोग साधनाओं कि ओर अग्रसर हों पायेंगे |

  अक्षय तृतीय वर्ष की साढ़े तीन मुहूर्तों मैं से एक पूर्ण मुहूर्त है जो पूर्ण सिद्धिप्रदायक है और अक्षय है जिसमें कि गयी चाहे साधनाएं हो या पुण्य कर्म हो या दान, ताप, जप आदि हों उनका कभी क्षय नहीं होता अर्थात उनके फल पूर्ण प्रभाव जीवन पर्यंत रहता है | किन्तु इसका अर्थ यह नहीं की हम कोई भी साधना एक हि बार करें |
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   इसी क्रम में अप्सरा यक्षिणी जैसी ही अद्भुत शक्ति जो महादेव कि शक्ति है और साथ ही साधक की सखी या प्रिया रूप में सिद्ध होने वाली शक्ति है और यह साधक को कोई हानि भी नहीं पहुंचा सकती जैसा कि आप लोगों का मत है |

  स्नेही स्वजन, प्रत्येक साधना के विशेषतः अप्सरा यक्षिणी, भूत प्रेत, चंडालिनी, शाकिनी, डाकिनी आदि के दो पक्ष होते हैं- एक वाम मार्गी व एक दक्षिण मार्गी | उसी अनुसार प्रतिफल प्रदान करती है, जिस मासिकता से, संकल्पबद्ध हो कर व जिस विधि से आप साधना करतें है |

 चूँकि इस बार कि अक्षय तृतीया २१ अप्रैल को आ रही है जो हमारे पूज्य गुरुदेव का अवतरण दिवस है और हम शिष्यों का प्रिय त्यौहार तो आप सब लोगों को उपहार स्वरुप दो साधनाएं –

1.     अक्षय तृतीया की सुवर्ण गौरी सिद्धि साधना
2.     समस्त गुरु भाइयों के लिए गुरु रहस्य सिद्धि साधना

 सुवर्ण गौरी सिद्धि साधना -

स्वर्ण गौरी शक्ति का सौभाग्य स्वरुप है | जो जीवन में अति आनंद, वैभव, अक्षय धन दात्री सोभाग्य प्रदात्री देवि है, इनकी सिद्धि के बाद जीवन में निरंतर उत्साह, सफलता तथा पारिवारिक सुख शान्ति अनुकूलता प्राप्त होते रहतें हैं |

 सुवर्ण गौरी साधना जीवन के रगिस्तान में अमृत कुंद के सामान है किन्तु एक बार सिद्ध हो जाने पर साधक के जीवन में प्रत्येक क्षण अपना प्रभाव देती रहती है | सुवर्ण गौरी अप्सरा कहीं जाती है इनका एक विशेष नाम शिव दूती भी है जो भगवान् शिव की कृपा एवं वर प्राप्त कर अपने सर्वांग स्वरुप में प्रिया है |

  महदेव की विशिष्ठ शक्तियों के सम्बन्ध में एक विशिष्ठ ग्रन्थ आनंद मंदाकिनी है जिसमे इस साधना के सम्बन्ध में पूर्णतः व प्रमाणिकता से विधि विधान के साथ लिखा गया है इस ग्रन्थ में सुवर्ण गौरी के सम्बन्ध में लिखा गया है कि जो साधक इसकी सोलह शक्तियों को सिद्ध कर लेता है वह संसार का सौभाग्यशाली व्यक्ति हो जाता है |
 इनके सोलह स्वरुप हैं

·        अमृताकर्षणिका

·        AMRITAKARSHNIKA

·        रूपाकर्षणिका

·        RUPAKARSHNIKA

·        सर्वासाधिनी

·        SARVASADHINI

·        अनंगकुसुम

·       ANANGKUSUMA

·        सर्वदुखविमोचिनी

·        SARVDUKHVIMOCHINI

·        सर्वसिद्धिप्रदा

·        SARVSIDDHIPRADA

·        सर्वकामप्रदा

·        SARVKAAMPRADA

·        सर्वविघ्ननिवारणी

·        SARVVIGHNANIVARINI

·        सर्वस्तम्भनकारिणी

·        SARVSTAMBHANKARINI

·        सर्वसंपत्तिपूर्णी

·        SARVSAMPATTIPURNI

·        चित्ताकर्षणिका

·        CHITTAKARSHNIKA

·        कामेश्वरी

·        KAAMESHWARI

·        सर्वमंत्रमयी

·        SARVMANTRAMAYI

·        सर्वानन्दमयी

·        SARVANANDMAYI

·        सर्वेशी

·        SARVESHI

·        सर्ववाशिनी

·        SARVVASHINI


विधि-  व सामग्री -- पीले वस्त्र पीला आसन , घी का दीपक अष्ट गंध, पीले ही पुष्प, नैवैद्ध हेतु लड्डू केवड़ा मिश्रित जल ताम्र पात्र, अक्षत यानी बिना टूटे चावल इत्र, और सुगंधित अगरबत्ती  | साथ ही सोलह सुपारी जो सोः शक्तियों को अर्पित की जाएगी , ये साधना रात्री कालीन है १० बजे के बाद स्नानादि से निवृत्त होकर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठ
 जाएँ तथा गुरु गौरी एवगणेश पूजन संपन्न करें तथा संकल्प लेकर एक माला गुरु मन्त्र की अवश्य करें,
तत्पश्चात हाथो में पुष्प और चावल लेकर सुवर्ण गौरी का आवाहन और स्वागत करें . आवाहन के बाद इस स्वागत मन्त्र का पांच बार उच्चारण जोर से करें इसके बाद यदि
 आपके पास कोई भी स्वर्ण का आभूषण हो तो उसे एक कटोरी में धोकर रखें तथा उपरोक्त मन्त्र से सोलह
 शक्तियों का पूजन पुष्प केवडा मिश्रित जल और अक्षत से करें | इसके बाद मिटटी के सात दिए जो घी के होंगे प्रज्वलित करें व  की ७ माला जप करें मूल मन्त्र की  ७ माला मन्त्र जप करें | ये मन्त्र जप रुद्राक्ष या पीले हकीक, या हल्दी माला से करें | प्रत्येक माला के बाद केवड़ा मिश्रित जल से निम्न संकल्प लेना है
       " त्रेलोक्यमोहने चक्रे इमा: प्रकट स्वर्ण गौरी " . इस साधना के बाद साधक वहीँ पर भूमि शयन करें 



स्वागत मन्त्र-
गौरी दर्शनमिच्छन्ति देवाः स्वामीष्टसिद्धये |
तस्ये ते परमेशायै स्वागतं स्वागतं च ते ||
कृतार्थेनुग्रहितोऽस्मि सकलं जीवितं मम |
आगता देवि देवेशि सुस्वागत]मिदं पुनः ||

GAURI  DARSHANMICHANTI  DEVAH  SWAMISTSIDDHYE
TASYE  TE  PARMESHAAYE  SWAGATAM SWAGATAM  CH TE
KRITARTHENUGRAHITOSMI  SAKALAN  JIVITAM  MAM
AAGATA  DEVI  DEVESHI  SUSWAGATMIDAM  PUNAH
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ॐ सुवर्ण गौरी अमृताकर्षणिका पूजयामि नमः |
ॐ सुवर्ण गौरी रूपाकर्षणिका पूजयामि नमः |
ॐ सुवर्ण गौरी सर्वासाधिनी पूजयामि नमः |

OM  SUVARN  GAURI  AMRITAKARSHNIKA  PUJYAMI  NAMH
OM  SUVARN  GAURI  RUPAKARSHNIKA  PUJYAMI  NAMH
OM  SUVARN  GAURI  SARVASADHINI  PUJYAMI  NAMH

                --------------------------क्रमशः


सुवर्ण गौरी मन्त्र –

युं क्षं ह्रीं सुवर्ण गौरी सर्वान्कामान्देही यं कुं ह्रीं युं नमः ||

YUM  KSHAM HREEM  SUVARN  GAURI  SARVANKAMANDEHI  YAM  KUM HREEM  YUM  NAMAH

इस प्रकार साधना सम्पन्न होने पर साधक को कभी-कभी क्रम के दौरान हि अनुभूतियाँ होने लगती हैं | 
चूँकि अक्षय तृतीय है अतः एक ही दिन क प्रयोग है ----- अब साधना सम्पन्न करें साधन संपन्न बनें यही सदगुरुदेव से प्रार्थना है | 

रजनी निखिल 


***NPRU***



Saturday, April 4, 2015

बजरंग साधना



                                           




जय श्रीराम,
श्री बजरंगी अष्ट सिद्धि और नौ निधियों के स्वामी कहे जाते है सब जानते है,

इन आठ योगिक शक्तियां या सिद्धियाँ अणिमा,महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्व, वशित्व हनुमानजी में सम्यक रूप से विद्यमान हैंइन सिद्धियों को भी हनुमानजी की साधना के माध्यम से हस्तगत किया जा सकता है, भाइयो बहनों! मै यहाँ पर साधना की बात कर रही हूँ पूजा पद्धति की नहीं, क्योंकि इन दोनों में अन्तर तो है ना | और मै सदैव आपको साधना की ओर ही धकेलने का प्रयास करुँगी क्योंकि पूजा तो सभी करते हैं किन्तु साधना के लिए बड़ी लगन हिम्मत और साथ ही पूर्ण विश्वास की आवश्यकता होती है और यही विश्वास आपके अन्दर जगाने का प्रयास है और ये सदैव रहेगा
श्री हनुमानजी तो रुद्रावतार हैं, तारसारोपनिषद के अनुसार—ॐ यो ह्व वै श्री परमात्मा नारायण: सा भगवान् मकारवाच्य: शिवस्वरूपो हनुमान भूर्भुव स्व: तस्मै वै नमो नमः |

अर्थात श्री हनुमान परब्रह्म नारायण शिव स्वरुप हैं, श्री शिव के ग्यारह रूद्र स्वरूपों में ग्यारहवें रूद्र श्री हनुमान हैं जो कि शत्रु संहारकर्ता, अति बलशाली और स्वेक्छा से कार्य करने वाले देव हैं | सबसे अहम् बात ये कि श्री बजरंग की मानस साधना, मूर्ती साधना, मान्त्रिक साधना और तांत्रिक साधना की जा सकती है |

अब कुछ विशेस नियम जो इस बार करने होंगे क्योंकि इस बार पूर्णिमा पर खग्रास चन्द्र ग्रहण है और इसमें किसी भी तरह की कोई क्रिया नहीं की जा सकती, सिर्फ संकल्प के साथ जप ही करना है और यही आपको करोणों गुना फल दे सकता है, किन्तु इसके लिए जप करना जरुरी है, हैं ना
तो स्नान करके लाल वस्त्र धारण करें और पूजन स्थान में ही एक तरफ उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएँ ,

हनुमानजनी सुनुर्वायुपुत्रो महाबल: |
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिंगक्षोऽमितविक्रम: ||

उदधिक्रमणश्चैव सीताशोक विनाशन: |
लक्षमणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा ||

एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत् ||

तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत् |
राजद्वारे गव्हरे च भयं नास्ति कदाचन ||

स्नेही स्वजन !
जय सद्गुरुदेव ,
आप सभी को हनुमान जयंती की पूर्व संध्या पर शुभकामनाएँ

चूँकि ग्रहण है ३:४७ से ग्रहण काल शुरू है जो कि ६:४७ तक रहेगा, इस समय तक आपको निरंतर जप करना है, और कोई भी क्रिया नहीं करना है नीचे दिए हुए नियम अन्य दिनों की साधना हेतु दिए हुए हैं अतः इस बात का ध्यान रखें |

आप अपने कार्य अनुसार संकल्प लें--- अपना गुरुपूजन मानसिक रूप से करें और साधना में प्रवृत्त हों ---


हनुमान साधना में शुद्धता का मुख्य रूप से ध्यान रखें, प्रत्येक कार्य में शुद्धता अनिवार्य है, जो भी नैवेद्य अर्पित करें व शुद्ध व घर का बना हि होना चाहिए |

हनुमान मूर्ति का लेपन तिल के तेल में मिले हुए सिन्दूर से किया जाना चाहिए |

हनुमान जी को केवल केसर के साथ घिसा हुआ लाल चन्दन लगना चाहिए|
प्रातः पूजन में नैवेद्य में गुड, नारियल का गोला व लड्डू, मध्याह्न में गुड, घी व गेहूं की रोटी अथवा मोती रोटी तथा रात्री में आम, अमरुद या फिर केले का उपयोग नैवेद्य के रूप में करना चाहिए |

इस साधना में महत्वपूर्ण है कि घी में भीगी हुई अथवा पांच बत्तियों का ही दीपक जलना चाहिए |

हनुमान साधना में अनिवार्य है कि साधक ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करे व जो नैवेद्य श्री हनुमान को अर्पित हो उसी का ग्रहण साधक को करना है |

मन्त्र जप हनुमान कि मूर्ती के नेत्रों की ओर देख कर करना है व अनिवार्य है कि मन्त्र जप उच्चारण के साथ अर्थात बोल कर, आवाज़ के साथ करना है |

श्री हनुमान का अनुष्ठान स्वकल्याण, स्वशक्ति की भावना से ही करना चाहिए | अनिष्ट की इच्छा से अनुष्ठान करना गलत है |
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श्री हनुमान सेवा, पूजा व समर्पण के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, अतः साधकों को सेवा द्वारा फल प्राप्ति कि इच्छा रखनी चाहिए, पूजन में पूर्ण श्रद्धा व समर्पण का भाव होना चाहिए |

तो निश्चित कीजिये कि आप इसमें से कौन सी विधि चुने और किस कार्य हेतु करना है, बिलकुल सरल विधान है

अलग-अलग कार्यों हेतु अलग-अलग मन्त्रों का विधान है, कम से कम पांच माला मंत्र जप पूर्ण शुद्ध मन से अवश्य करें |

सर्व प्रथम तो साधक एक माला बीज मन्त्र का जप करे –
हनुमान बीज मन्त्र –

|| ॐ हुं हुं हसौं हस्फ्रौं हुं हुं हनुमते नमः ||

Aim hum hum hasaum hasfraum hum hum hanumate namah



अब अपने कार्य के अनुरूप मन्त्र जप करें –


1. कार्य सिद्धि के लिए—
निम्न मन्त्र हेतु संकल्प करके निम्न मन्त्र का पूरे तीन घंटे या डेढ़-डेढ़ घंटे में दोनों साधनाओं के मन्त्र को कर सकते हैं .

ॐ नमो भगवते सर्व ग्रहान् भूतभविष्यवर्तमानान् दूरस्थ समीपस्थान् छिन्दी छिन्दी भिन्दी भिन्दी सर्व काल दुष्टबुद्धिनुच्चाटयोच्चाटय परबलान् क्षोभय क्षोभय मम सर्व कार्याणि साधय साधय | ॐ नमो हनुमते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं फट् | देहि ॐ शिव सिद्धिं, ॐ ह्रां ॐ ह्रीं ॐ ह्रूं ॐ ह्रें ॐ ह्रौं ॐ ह्रः स्वाहा ||

Aum namo bhagavate sarv grahaan bhootbhavishyavartmaanaan doorasth sameepsthaan chindi chindi bhindi bhindi sarv kaal dushtbuddhinucchaatayocchaataya parbalaan kshobhay kshobhay mam sarv kaaryaani saadhay saadhay . aum namo hanumate aum hraam hreem hroom fat . dehi aum shiv siddhim, aim hraam aum hreem aum hroom aum hrem aum hraum aum hrah swaha



2. सर्व विघ्न निवारण हेतु--

ॐ नमो हनुमते परकृतयंत्रमन्त्रपराहंकारभूतप्रेत पिशाच परदृष्टिसर्वविघ्नमार्जनहेतु विद्यासर्वोग्रभयान् निवारय निवारय वध वध लुंण्ठ पच पच विलुंच विलुंच किलि किलि किलि सर्वयकुञ्त्राणि दुष्टवाचं ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रूं फट् स्वाहा |

Aum namo hanumate parkritayantramantraparaahamakaarbhootpret pishaach pardrishtisarvavighnamaarjanahetu vidyaasarvograbhayaan nivaaray nivaaray vadh vadh lunth pach pach vilunch vilunch kili kili sarvaykuntraani dushtavaacham aum hreem hreem hroom fat swaha .


आप सब इस समय का सदुपयोग करें और अपने जीवन को निष्कंटक बनाएं इसी शुभकामना के साथ |

रजनी निखिल

***NPRU***