नमो शांत रूपं, ब्रह्म रूद्र महेशं |
निखिल रूप नित्यं शिवोऽह-शिवोऽहं ||
हे गुरुदेव स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ! आप शांत
स्वरूप हैं, ब्रह्मा, विष्णु, और रूद्र के साक्षात् साकार चिन्तन हैं, आप का मोहक
रूप नित्य मेरे ह्रदय में बसा रहे, और मेरे चिन्तन में शिव स्वरुप में रहें |
भाइयो बहनों,
सबसे पहले तो क्षमाप्रार्थी हूँ कि आपको मै इस
अमावश्या पर कोई भी प्रयोग या साधना नहीं दे पाई, कारन मै स्वयं साधना में थी, और
समयाभाव के कारण कुछ लिख नहीं पाई जबकि प्री प्लानिंग की थी, किन्तु लिखने का समय
नहीं मिल पाया | सॉरी------ जबकि जानती हूँ आवश्यक था पर-------
अक्षय तृतीय एक विशिष्ट दिवस है और इसका
तात्पर्य ही है अक्षय यानी जिसका क्षय न होना अर्थात समाप्त न होना.
तो क्यों ना हम कुछ ऐसा करें जिसका प्रभाव पूरी
जिन्दगी रहे या जिसका प्रतिशत यदि साधक को ६० भी मिलता है तो २-५ वर्ष तो रहे |
स्नेही स्वजन
मैंने
अभी कुछ दिन पहले एक अप्सरा यक्षिणी श्रृंखला प्रारम्भ की है जिसमें यह पता चलता
है कि आप लोगों का रुझान किस ओर है अतः किसी भी वेशेष दिवस की दी जाने वाली
साधनाओं को ध्यान में रखते हुए देना होगा क्योंकि तभी आप लोग साधनाओं कि ओर अग्रसर
हों पायेंगे |
अक्षय
तृतीय वर्ष की साढ़े तीन मुहूर्तों मैं से एक पूर्ण मुहूर्त है जो पूर्ण
सिद्धिप्रदायक है और अक्षय है जिसमें कि गयी चाहे साधनाएं हो या पुण्य कर्म हो या
दान, ताप, जप आदि हों उनका कभी क्षय नहीं होता अर्थात उनके फल पूर्ण प्रभाव जीवन
पर्यंत रहता है | किन्तु इसका अर्थ यह नहीं की हम कोई भी साधना एक हि बार करें |
J
इसी
क्रम में अप्सरा यक्षिणी जैसी ही अद्भुत शक्ति जो महादेव कि शक्ति है और साथ ही
साधक की सखी या प्रिया रूप में सिद्ध होने वाली शक्ति है और यह साधक को कोई हानि
भी नहीं पहुंचा सकती जैसा कि आप लोगों का मत है |
स्नेही स्वजन, प्रत्येक साधना के विशेषतः अप्सरा यक्षिणी, भूत प्रेत,
चंडालिनी, शाकिनी, डाकिनी आदि के दो पक्ष होते हैं- एक वाम मार्गी व एक दक्षिण
मार्गी | उसी अनुसार प्रतिफल प्रदान करती है, जिस मासिकता से, संकल्पबद्ध हो कर व
जिस विधि से आप साधना करतें है |
चूँकि
इस बार कि अक्षय तृतीया २१ अप्रैल को आ रही है जो हमारे पूज्य गुरुदेव का अवतरण
दिवस है और हम शिष्यों का प्रिय त्यौहार तो आप सब लोगों को उपहार स्वरुप दो
साधनाएं –
1.
अक्षय तृतीया की सुवर्ण गौरी
सिद्धि साधना
2.
समस्त गुरु भाइयों के लिए गुरु
रहस्य सिद्धि साधना
सुवर्ण
गौरी सिद्धि साधना -
स्वर्ण गौरी
शक्ति का सौभाग्य स्वरुप है | जो जीवन में अति आनंद, वैभव, अक्षय धन दात्री
सोभाग्य प्रदात्री देवि है, इनकी सिद्धि के बाद जीवन में निरंतर उत्साह, सफलता तथा
पारिवारिक सुख शान्ति अनुकूलता प्राप्त होते रहतें हैं |
सुवर्ण गौरी साधना जीवन के रगिस्तान में अमृत
कुंद के सामान है किन्तु एक बार सिद्ध हो जाने पर साधक के जीवन में प्रत्येक क्षण
अपना प्रभाव देती रहती है | सुवर्ण गौरी अप्सरा कहीं जाती है इनका एक विशेष नाम
शिव दूती भी है जो भगवान् शिव की कृपा एवं वर प्राप्त कर अपने सर्वांग स्वरुप में
प्रिया है |
महदेव की विशिष्ठ शक्तियों के सम्बन्ध में एक
विशिष्ठ ग्रन्थ आनंद मंदाकिनी है जिसमे इस साधना के सम्बन्ध में
पूर्णतः व प्रमाणिकता से विधि विधान के साथ लिखा गया है इस ग्रन्थ में सुवर्ण गौरी
के सम्बन्ध में लिखा गया है कि जो साधक इसकी सोलह शक्तियों को सिद्ध कर लेता है वह
संसार का सौभाग्यशाली व्यक्ति हो जाता है |
इनके सोलह स्वरुप हैं
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अमृताकर्षणिका
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AMRITAKARSHNIKA
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रूपाकर्षणिका
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RUPAKARSHNIKA
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सर्वासाधिनी
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SARVASADHINI
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अनंगकुसुम
· ANANGKUSUMA
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सर्वदुखविमोचिनी
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SARVDUKHVIMOCHINI
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सर्वसिद्धिप्रदा
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SARVSIDDHIPRADA
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सर्वकामप्रदा
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SARVKAAMPRADA
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सर्वविघ्ननिवारणी
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SARVVIGHNANIVARINI
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सर्वस्तम्भनकारिणी
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SARVSTAMBHANKARINI
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सर्वसंपत्तिपूर्णी
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SARVSAMPATTIPURNI
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चित्ताकर्षणिका
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CHITTAKARSHNIKA
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कामेश्वरी
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KAAMESHWARI
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सर्वमंत्रमयी
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SARVMANTRAMAYI
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सर्वानन्दमयी
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SARVANANDMAYI
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सर्वेशी
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SARVESHI
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सर्ववाशिनी
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SARVVASHINI
विधि- व सामग्री -- पीले वस्त्र पीला आसन , घी का दीपक अष्ट गंध, पीले ही पुष्प, नैवैद्ध हेतु लड्डू केवड़ा मिश्रित जल ताम्र पात्र, अक्षत यानी बिना टूटे चावल इत्र, और सुगंधित अगरबत्ती | साथ ही सोलह सुपारी जो सोः शक्तियों को अर्पित की जाएगी , ये साधना रात्री कालीन है १० बजे के बाद स्नानादि से निवृत्त होकर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठ
जाएँ तथा गुरु गौरी एवगणेश पूजन संपन्न करें तथा संकल्प लेकर एक माला गुरु मन्त्र की अवश्य करें,
तत्पश्चात हाथो में पुष्प और चावल लेकर सुवर्ण गौरी का आवाहन और स्वागत करें . आवाहन के बाद इस स्वागत मन्त्र का पांच बार उच्चारण जोर से करें इसके बाद यदि
आपके पास कोई भी स्वर्ण का आभूषण हो तो उसे एक कटोरी में धोकर रखें तथा उपरोक्त मन्त्र से सोलह
शक्तियों का पूजन पुष्प केवडा मिश्रित जल और अक्षत से करें | इसके बाद मिटटी के सात दिए जो घी के होंगे प्रज्वलित करें व की ७ माला जप करें मूल मन्त्र की ७ माला मन्त्र जप करें | ये मन्त्र जप रुद्राक्ष या पीले हकीक, या हल्दी माला से करें | प्रत्येक माला के बाद केवड़ा मिश्रित जल से निम्न संकल्प लेना है
" त्रेलोक्यमोहने चक्रे इमा: प्रकट स्वर्ण गौरी " . इस साधना के बाद साधक वहीँ पर भूमि शयन करें
स्वागत
मन्त्र-
गौरी
दर्शनमिच्छन्ति देवाः स्वामीष्टसिद्धये |
तस्ये ते
परमेशायै स्वागतं स्वागतं च ते ||
कृतार्थेनुग्रहितोऽस्मि
सकलं जीवितं मम |
आगता देवि
देवेशि सुस्वागत]मिदं पुनः ||
GAURI DARSHANMICHANTI DEVAH
SWAMISTSIDDHYE
TASYE TE
PARMESHAAYE SWAGATAM SWAGATAM CH TE
KRITARTHENUGRAHITOSMI SAKALAN
JIVITAM MAM
AAGATA DEVI DEVESHI SUSWAGATMIDAM
PUNAH
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ॐ सुवर्ण
गौरी अमृताकर्षणिका पूजयामि नमः |
ॐ सुवर्ण
गौरी रूपाकर्षणिका पूजयामि नमः |
ॐ सुवर्ण
गौरी सर्वासाधिनी पूजयामि नमः |
OM SUVARN GAURI AMRITAKARSHNIKA PUJYAMI
NAMH
OM SUVARN
GAURI RUPAKARSHNIKA PUJYAMI
NAMH
OM SUVARN
GAURI SARVASADHINI PUJYAMI
NAMH
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सुवर्ण गौरी मन्त्र –
युं क्षं
ह्रीं सुवर्ण गौरी सर्वान्कामान्देही यं कुं ह्रीं युं नमः ||
YUM KSHAM HREEM
SUVARN GAURI SARVANKAMANDEHI YAM
KUM HREEM YUM NAMAH
इस प्रकार साधना सम्पन्न होने पर साधक को कभी-कभी क्रम के दौरान हि अनुभूतियाँ होने लगती हैं |
चूँकि अक्षय तृतीय है अतः एक ही दिन क प्रयोग है ----- अब साधना सम्पन्न करें साधन संपन्न बनें यही सदगुरुदेव से प्रार्थना है |
रजनी निखिल
***NPRU***