जय सदगुरुदेव !
आप सभी को नवरात्री की हार्दिक शुभ
कामनाएं /\
यदि हम साधक हैं तो ये पर्व हमारे लिए
क्या हो सकता है ये बताने की आवश्यकता नहीं है वर्ना पूजा पाठ और भक्ति तो हमारी
संस्कृति के अंग हैं ही ....
ये दिवस आदि शक्ति के सम्पूर्ण
ब्रह्माण्ड में विस्तार हेतु निर्धारित है इस वक्त उनकी उर्जा अति घनी भूत होती है
और समय कोई भी साधक पूर्ण संकल्प और एकाग्रता के साथ माँ का आवाहन करता है तो वो
भी मजबूर हो जाती है आने हेतु अपने स्नेह और आशीर्वाद से अभिसिक्त करने हेतु क्या
आप जानते हैं कि जितना साधक अपने ईष्ट के लिए पागल होगा, आतुर होगा ईष्ट भी उतने
ही आकर्षित होंगे |
क्योंकि परा शक्तियां ज्यादा लालायित
होती हैं इस पंचभूत शरीर से जुड़ने हेतु--- अब परा शक्ति में फिर आदि शक्ति ही
क्यों न हों--- और जब बात आदि शक्ति की है तो क्यों न हम इस बार त्रिशक्ति का ही
आवाहन करें ---
विकल्प मिलेंगे बहुत मार्ग भटकाने के
लिए
संकल्प एक ही काफी है मंजिल तक जाने के
लिए
तो न हमें मार्ग भटकना है और न ही किसी अन्य विकल्प पर जाना है बस साधकत्व की ओर अग्रसर होना है ----- और शुरुआत यहीं से ---
माँ का सबसे तीव्रतम और तेजस्वी प्रयोग --
विधि:
उपरोक्त मंत्र के प्रतिदिन ५१
पाठ करने हैं, लाल आसन और सह्स्त्राक्षरी सिद्ध
चंडी प्रयोग
विनियोगः
ॐ
अस्य श्री परदेवी सूक्त माला मंत्रस्य मार्कंडेय मेधसौ ऋषिः गायत्रीयादि नाना विधि छंदासि, त्रिशक्ति रूपिणी चण्डिका देवता,
ऐं
बीजम्, हृीं शक्ति: क्लीं कीलकं, मम
चिंतित-सकल-मनोरथ-सिद्धयर्थे जपे (पाठे) विनियोगः
ऋष्यादिन्यास:
ॐ श्रीमार्कंडेयमेधसऋषिभ्यां नम: -
शिरसि
ॐ गायत्रीयादि नाना विधछन्दोभ्यो नम: - मुखे
ॐ त्रिशक्तिरूपिणी चण्डिकादेवतायै नम: - हृदये
ॐ ऐं बीजाय नम: - गुहेय
ॐ हृीं शक्तये नम: - पादयो
ॐ क्लीं कीलकाय नम: - नाभौ
ॐ मम चिंतितसकलमनोरथ सिद्धयर्थे
जपे विनियोगाय नम: सर्वाङगे
करन्यास:
ॐ ऐं अंगु"ठाभ्यां नम: A
ॐ हृीं तर्जनीभ्यां
नम: A
ॐ क्लीं
मध्यमाभ्यां नम: A
ॐ ऐं अनामिकाभ्यां नम: A
ॐ हृीं
कनिष्ठीकाभ्यां नम: A
ॐ क्लीं
करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:
हृदयादिन्यास:
ॐ ऐं हृदयाय नम: A
ॐ हृीं शिरसे
स्वाहाA
ॐ क्लीं
शिखायै वषट् A
ॐ ऐं कवचाय हुम् A
ॐ हृीं
नेत्रत्रयाय वौषट् A
ॐ क्लीं
अस्त्राय फट्
दिङ्न्यास:
ॐ ऐं प्राच्यै नम: A
ॐ हृीं आग्नेय्यै नम: A
ॐ क्लीं दक्षिणायै नम: A
ॐ ऐं नैॠत्यै नम: A
ॐ हृीं प्रतिच्यै
नम: A
ॐ क्लीं
उधार्वयै नम: A
ॐ हृीं क्लीं भूम्यै
नम: (आसन पर बैठे-बैठे सभी दिशाओ में हाथ घूमकर, उठकर नहीं)
ध्यान:
ॐ योगढ़यामरकार्यनिर्गतमहातेज: समुत्पत्तनी
भास्वत्पूर्णशशांक-चारुधवला
लीलोल्लसत्भ्रूलता
गौरी तुंगकुचद्या तदुपरी स्फूर्जत्प्रभामंडला
बंधुकारूणकाय कांतिविलसच्छ्रीचण्डिका सर्वत:
एवं ध्यात्वा मानसोपचारैश्च संपूज्य सूक्तं
पठेत्
ॐ
ऐं ह्रीं क्लीं हुं सैं हुं ह सौं
स्त्रौं जय जय महालक्ष्मी जगदाघ बीजे सूरासुरत्रिभुवननिदाने, दयाकारे
सर्व-सर्वतेजो रूपिणी, महा महामहिमे-महा-महारूपिणी, महा महामाये महामयास्वरूपिणी
विरच्चिसंस्तेतु, विधिवरदे-चिदानन्दे, विष्णुदेहावृते, महामोहिनी
मधुकैटभजिघांसिनी,
नित्यवरदानतत्परे, महासुधाब्धीवासिनी महामहातेजोधारिणी सर्वाधारे
सर्वकारण कारणे, अचिन्तयरूपे, इन्द्रादी निखिलनिर्जरसेविते, सामगान गायिनी
पूर्णेद्रिंय कारिणी, विजये जयंति, अपराजिते, सर्वसुंदरी, रक्तांशुके सूर्यकोटि
संकाशे, चन्द्र कोटिसुशीतले, अग्निकोटी दहनशोले, यमकोटिक्रूरे, वायुकोटीवहनशोले,
ओंकारनादरुपिणी, निगमागम मार्गदायिनी, महिषासुर निर्दलिनी, धुम्रलोचन क्षयपरायणे,
चंडमुण्डादि शिरश्च्छेदिनी, रक्तबीजादी, रुधिरशोषिनी; रक्तपानप्रिय महायोगिनी, भूत
वैताल भैरवादि तुष्टि विधायिनी, शुम्भनिशुम्भ शिरच्छेदिनी, निखिलासुर खलखादिनी,
त्रिदशराज्यदायिनी, सर्वस्त्रीरत्नरुपिणी, दिव्यदेहे, निर्गुणे, सगुणे,
सदसद्रूपधारिणी, स्कन्दवरदे, भक्तत्राणतत्परे, वरे, वरदे, सहस्त्राक्षरे
अयुताक्षरे, सप्तकोटि चामुण्डारूपिणी, नवकोटि कात्यायनिस्वरुपे, अनेकशक्तयालक्ष्यालक्ष्य
स्वरूपे, इन्द्राणी, ब्रम्हाणी, रुद्राणी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, शिवदूती,
इशानि, भीमे, भ्रामरी, नारसिंहि, त्रयस्त्रिंशतंकोटि देवसेविते, अनंतकोटी, ब्रहमांडनायिके,
चतुरशीति, लक्षमुनिजन संस्तेतु, सप्तकोटि
मन्त्रस्वरूपे, महाकालरात्रि प्रकाशे, कलाकाष्ठदिरूपिणी, चतुर्दशभवन विभवकारिणी,
गरुणगामिनी’ क्रोंकार होंकर ह्रौंकार श्रींकार क्लौंकार जूंकार सौंकार ऐं क्लींकार कांकार ह्सौंकार नानाबीजकूट निर्मितशरीरे, नानाबीज मंत्रराज विराजते,
सकलसुन्दरिगण सेविते, चरणाविन्दे, श्रीमहात्रिपुरसुंदरी, कामेशदयिते, करणैक रस
कल्लोलिनी, कल्पवृक्षाध: स्थिते, चिंतामणी द्विपावस्थिते, मणिमंदिरनिवासे, चापनी,
खड्गिनी चक्रिणी, दण्डनी, शंखिनी, पद्मिनी, निखिल भैरवाराधिनी, समस्तयोगिनी,
परिवृते, कालिके, काली तारे, तरले, सुतारे, ज्वालामुखी, छिन्नमस्तिके, भुवनेश्वरी,
त्रिपुरे, लोकजननी, विष्णुवक्ष: स्थलालंकारिणी, अजिते, अमिते, अमराधिपे, अनूपचरिते
गर्भवासुद: खापहारिणी, मुक्तिक्षेत्राधिष्ठायिनी, शिवे, शांतिकुमारिरूपे,
देविसुक्त दशशताक्षरे, चैन्द्री, चामुण्डे, महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती
त्रयीविग्रहे! प्रसीद- प्रसीद, सर्वमनोरथान्, पूरय-पूरय, सर्वारिष्ट-विध्नांश्छेदय
छेदय, सर्वग्रहपीड़ा ज्वरग्रहभयं
विध्वंसय-विध्वंसय, सर्वत्र त्रिभुवन जीव जांत वशय-वशय, मोक्ष मार्गान्
दर्शय-दर्शय, ज्ञानमार्ग प्रकाशय-प्रकाशय, अज्ञानतमो नाशय-नाशय, धनधन्यादी वृद्धिं
कुरु-कुरु, सर्वकल्याणीनि! कल्पय-कल्पय, मां रक्ष रक्ष, सर्वपद्भ्यो निस्तारय- निस्तारय,
मम वज्रशरीरं साधाय- साधाय, ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
स्वाहा.
दक्षिण
दिशा और सरसों के तेल का दीपक, संकल्प के साथ जप करे
***निखिल
प्रणाम***
***रजनी
निखिल***
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