Tuesday, September 28, 2021

ऑनलाइन कार्यशाला (workshop)

 



जय सद्गुरू देव

स्नेही स्वजन !

 

बहुत समय से बस एक ही मेसेज आ रहें हैं, कि हमने ये साधना की, इतने समय से कर रहे हैं किन्तु सफ़लता नहीं मिल रही है, अतः ये सब अब छोड़ कर कुछ दूसरा करे ....

कुछ तो समय की बरबादी कह कर भी साधना छोड़ बैठे....

स्वाभाविक है.... मैने भी ध्यान नहीं दिया... कारण. अनेक प्रकार के गुरू जी अभी छाये हुये हैं तो....

क्षमा कीजिए किन्तु बात कड़वी किन्तु सत्य है.... जानती हूँ इस फ़िर तिलमिलाहट होगी और कुछ उल्टे सीधे लिखें भी...

 

कोई बात नहीं...

अपने उन अनुज स्नेही साधक के लिये ये भी स्वीकार्य है

किन्तु अब इसे समझिये

जब तक गुरुदेव थे तब उन्होने साधको को दीक्षा के माध्यम से साधना का बीज हमारे भीतर स्थापित कर दिया करते थे और साधक को मात्र 75% मेहनत करना पड़ता था, और साधना सिद्ध कर लेते थे...

किन्तु वर्तमान समय में ऐसा कोई गुरु या ऐसा कोई सिद्ध साधक दिखाई ही देता जो व्यक्ति को साधना के पन्थ पे अग्रसर कर सके और उनके मार्ग मे आने वाली प्रत्येक बाधा को दूर कर सके. ....

किन्तु क्या मतलब ये कि किसी को साधना करने के बारे सोचना ही नहीं चाहिए ?

क्या हम आज भी उन कठिन साधनाओं को कर सकते हैं जिनका वर्णन गुरु देव जी ने और अनेक ग्रन्थो मे प्राप्त होता है ?

क्या आज भी महाविद्या सिद्ध होती हैं ?

क्या आज भी अप्सरा यक्षिणी साधना के रहस्य प्राप्त हो सकते हैं ?

क्या आज भी वो सिद्ध आश्रम जिसका वर्णन किया गया है उसके दर्शन की सम्भावना है ?

क्या आज भी सद्गुरू देव आपके मार्गदर्शन हेतु निखिल स्वरूप मे आ सकते हैं ?

क्या आज भी ? क्या आज भी ?

 

हैं ना ऐसे प्रश्न जिनके उत्तर मिलते तो हैं किन्तु स्पष्ट नहीं .....

तो अब हम सीखेन्गे प्रयास भी करेंगे और सफ़लता प्राप्त भी करेंगे... इसी गुरुवार से on line आप आ सकते हैं मेरे साथ googal meet पर साधना सफ़लता के विशिष्ट सूत्रो के साथ ....

इसके लिए आपको मात्र मेरी classएवं चेनल *गुप्त सिद्धि रहस्य* से जुड़ना होगा....

व्यापार नहीं है अतः वो लोग बिल्कुल न जुडे कृपया

जो सच में साधना करना चाहते हैं और जिन्हें सफ़लता चाहिए वे ही.......

पाँच तत्वों क्षिति, जल, तेज, वायु और आकाश के अपने अपने गुण हैं। इनको तन्मात्रा कहते हैं। इन तन्मात्राओं का अनुभव हमें पांच ज्ञानेंद्रियों से होता है। पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं कान, त्वचा, आंख, जिह्वा और नाक

पृथ्वी में पांच गुण हैं।

शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध ( प्रमुख गुण- गन्ध)

जल में चार गुण हैं

शब्द, स्पर्श, रूप, रस (प्रमुख गुण- रस)

अग्नि(तेज) में तीन गुण हैं

शब्द, स्पर्श, रूप (प्रमुख गुण- रूप)

वायु में 2 दो गुण हैं

शब्द, स्पर्श (प्रमुख गुण- स्पर्श)

आकाश में एक गुण है।

शब्द (यही प्रमुख गुण भी है)

 

इन सबकी उत्पत्ति ॐ ब्रम्ह से हुई है।

पाँच कर्मेन्द्रियां हैं

हाथ, पैर, मुँह, गुदा, लिंग

पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और मन (सन्कल्प, विकल्प) मिलाकर कुल 11 इन्द्रियाँ है। ये सांख्य दर्शन कहता है।

भगवान कृष्ण ने कहा है "मैं दर्शनों में सर्वश्रेष्ठ सांख्य दर्शन हूँ।"

यही 11 इन्द्रियों का खेल मनुष्य बच्चों के खिलौने की तरह खेलता रहता है।

विषयों से इन्द्रियों का राग (Attachment) ना रहे तभी वे अंतर्मुखी होंगी। Attachment बना रहेगा तो सुख के साथ दुःख भी आएगा ही।

अष्टांग योग में इनको अंतर्मुखी करने को प्रत्याहार कहा गया है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम के बाद प्रत्याहार आता है।

ऐसा होने से मनुष्य योग शरीर प्राप्त करता है। तब निष्काम कर्म होता है।

योगस्थ कुरु कर्माणि- गीता

योग की स्थिति में रहते हुए कर्म करो। तब कर्मफल नहीं बनेगा।

इसके लिए साधना अनिवार्य है। योग आवश्यक है।

निखिल प्रणाम

 

*कृष्णं वन्दे जगत गुरुं*

*रजनी निखिल*

214rajni@gmail.com

 

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