गुरुदेव कल फिर मेरे साथ वही घटना घटित हुयी है , आखिर मेरा क्या दोष है? पूर्ण मनोयोग से मैं पिछले कई वर्षों से ये साधना कर रहा हूँ पर जब भी मैं सफलता के निकट पहुचता हूँ , हर बार बस वही घटना घटित हो जाती है. आखिर किन कर्मों का फल मैं भुगत रहा हूँ? क्या कमी है मेरी साधना में.
शिवमेश भाई सदगुरुदेव के चरणों से लिपट कर रोते हुए कह रहे थे. ना तो उनकी सिसकियाँ बंद हो रही थी और न ही उनका प्रलाप.
मैं दरवाजे पर खड़ा था और गुरुदेव ने मुझे पानी का गिलास लेकर भीतर बुलाया था. मैं पानी का गिलास लेकर जब भीतर पंहुचा तो ये आवाज मेरे कानों में पड़ी. वे रोते हुए कह रहे थे – हे गुरुदेव न तो कभी मैं विषय वासनाओं का चिंतन ही करता हूँ और न ही कभी कोई तामसिक आहार का सेवन ही मैंने किया है, मैं स्वयं पाकी (खुद भोजन बनाकर खाने वाला) हूँ , तो जब ऐसी कोई गलती मैंने की ही नहीं तब साधना के मध्य कामुक चिंतन और स्वप्नदोष कैसे संभव है???? और जब भी मैं साधना के अंतिम चरण की और अग्रसर होता हूँ ये क्रम घटित होने लगता है.
पिछले १७ वर्षों से मैं इस स्वप्न को साकार करने में लगा हूँ और हर बार माँ ललिताम्बा का प्रत्यक्षीकरण बस स्वप्न ही बन के रह जाता है. ब्रह्माण्ड स्तम्भन, ब्रह्माण्ड भेदन और अष्टादश सिद्धियाँ तो मेरा सपना ही रह जाएँगी. अब मुझे इस जीवन से कोई मोह नहीं है,मैं इस शरीर को नष्ट कर देना चाहता हूँ.....
बच्चों के जैसे बाते न करो- सदगुरुदेव ने डपटते हुए कहा .
तुम जिस सफलता को पाना चाहते हो उसके लिए साधक अपना जीवन लगा देते हैं . क्या ब्रहमांड भेदन इतना सहज विषय है की बस उठे और हाथ बढाकर उसे वृक्ष से तोड़ लिया. अरे जब सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की क्रियाओं में ही आपका हस्तक्षेप हो जाये तो भला बाकी क्या रह जाता है .
तो फिर मैं क्या करूं ??
अच्छा बताओ मानव जीवन के चार पुरुषार्थ कौन कौन से हैं- सदगुरुदेव ने पूछा.
जी धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष .
ठीक, पर क्या तुम्हे पता है की मोक्ष का अर्थ मृत्यु कदापि नहीं होता . वास्तव में मोक्ष को लेकर भ्रांतियों के शिकार हैं सभी. मोक्ष तो समस्त इच्छाओं के पूर्ण होने पर पूर्ण तृप्त होने की क्रिया है जहाँ पर कोई वासना, कोई चाह शेष न रह जाये. पर हम तो भ्रम जाल में फँसे हुए हैं. और मनुष्य जब साधक बनकर पूर्णत्व अर्थात मोक्ष के मार्ग पर बढ़ता है तो उसकी अपनी सहचरी ये प्रकृति उस परम लक्ष्य तक पहुचने के पहले उसे भली भांति परख लेती है. और तुम्हे पता है ये परीक्षा कहाँ होती है ??
जी मुझे नहीं पता ...
देखो हमारी सभी शक्तियाँ और हमारी कमजोरियां हमारे भीतर ही होती है , हैं ना.
जी बिलकुल है .
तब क्या तुम्हे ये नहीं पता की शास्त्र क्या कहते हैं. शास्त्र का ही उद्घोष है “ यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे” अर्थात जो कुछ हमारे भीतर है वही इस बाह्यागत ब्रह्माण्ड में दिखाई पड़ता है. और जिस प्रकार प्रकृति की सुंदरता हमें बाहरी रूप से दिखती है उसी प्रकार उसकी न्यूनता और सामर्थ्य हमारे भीतर ही होता है . और तुम खुद ही सोचो जो हमारे भीतर होगा उसे किसी अन्य की अपेक्षा हमारे कमजोर पक्ष की कही ज्यादा जानकारी होगी. परन्तु प्रकृति का परिक्षण व्यक्ति विशेष के लिए भिन्न भिन्न प्रकार का होता है . सामान्य मानव को उसकी दमित वासनाओं में उलझा कर वो लक्ष्य के बारे में सोचने का समय ही नहीं देती और एक आम इंसान अपने लालच का मटका भरते भरते ही इस जीवन से चला जाता है. परन्तु जब कोई अपनी नियति को प्राप्त करने की और कदम बढाता है तो उसे सबसे पहले इसी प्रकृति का विरोध झेलना पड़ता है.
भला ऐसा क्यों??
क्योंकि जब आप अपनी नियति अपने अस्तित्व को प्राप्त करने की और अग्रसर होते हो तो उसका अर्थ होता है पूर्णता को प्राप्त कर लेना, क्यूंकि विराटता सिर्फ श्री कृष्ण में ही नहीं बल्कि प्रत्येक मनुष्य में निवास करती है. और अपने अस्तित्व को जान लेने का अर्थ ही होता है अपनी विराटता को समझ लेना.तब ऐसा क्या है जो हम संभव नहीं कर सकते , ऐसा क्या है जो हमारी इच्छा मात्र से हमें प्राप्त नहीं हो सकता तब प्रकृति आपकी सहचरी बनती है न की स्वामी, परन्तु तब भी वो विराट मानव प्रकृति के नियमों की अवहेलना नहीं करता , क्योंकि विराट भाव मिलने का दूसरा अर्थ पूर्ण विवेक की प्राप्ति भी तो होता है . परन्तु ये इतना सहज नहीं होता, क्योंकि जन्म के साथ ही मानव प्रकृति के चक्र में फँस जाता है. या ये कह लो की हमारे जन्म के पहले ही प्रकृति को ज्ञात होता है की हम क्या बनेंगे. तब उसके लिए तो रास्ता आसान हो जाता है .
वो कैसे ??
क्योंकि हमारा जीवन प्रकृति की उन्ही शक्तियों में से एक नवग्रहों के अधीन हैं . और ये नवग्रह ही उन चारो पुरुषार्थों के प्रतिनिधि हैं. और सामान्य ज्योतिष इन बातों को नहीं समझ सकता . इसके लिए ही तो जीवन में सद्गुरु की आवश्यकता होती है.
वे ही बता सकते हैं की कौन सा ग्रह तुम्हारे लिए प्रतिकूल है और कौन सा अनुकूल. पर धर्म पथ पर या मोक्ष के मार्ग में जो सबसे बड़ा व्यवधान होता है वो होता है काम भाव का अति आवेग , वो भी साधना के दिनों में और हद तो तब होती है जब वो आवेग साधनात्मक इष्ट , समबन्धित देवी देवता और यहाँ तक की गुरु के प्रति भी हो जाता जाता है . और यही पर साधक के बस में कुछ नहीं होता. जहाँ जीवन में आर्थिक या अध्यात्मिक उन्नति का परिचायक शनि होता है , वहीं पर उसकी दमित काम भावना, कुत्सित या सुप्त विचार, साधनाओं में व्यवधान के रूप में कामुक चिंतन, स्वप्न दोष, आसन पर बैठने की क्षमता में न्यूनता,चित्त की बैचेनी और आसन स्खलन आदि का प्रतिनिधित्व शुक्र ग्रह करता है , शुक्र स्त्री ग्रह है, सौंदर्य और प्रेम का प्रतीक है पर तभी तक जब तक उसकी शक्ति संतुलित है . परन्तु ९७% व्यक्तियों की कुंडली में ऐसा नहीं होता है . वे शनि,मंगल अथवा राहू केतु की शक्ति को तो मानते हैं और उसका समाधान करने का भी प्रयत्न करते हैं पर शुक्र को तो गिनती में ही नहीं रखते , अरे बारहवाँ भाव मोक्ष का तो है पर यदि उसमे शुक्र की पूर्ण संतुलित अंशों में निरापद उपस्थिति हो जाये तो ये सोने में सुहागा ही होगा. अब हर कुंडली में तो ये नहीं हो सकता परन्तु यदि शुक्र को प्रयासपूर्वक व्यक्ति संतुलित कर ले तो निश्चय व्यक्ति को इसके सकारात्मक परिणाम मिलते ही हैं. यथा साधना में पूर्ण सफलता,प्रबल आकर्षण क्षमता,ऐश्वर्य, विशुद्ध प्रेम की प्राप्ति और सबसे बड़ा काम भाव पर विजय,यदि सामान्य रूप से एक आम व्यक्ति भी इस साधना को संपन्न कर लेता है तो उसे भी अद्विय्तीय सुंदरता,पूर्ण ऐश्वर्य और विशुद्ध प्रेम की प्राप्ति होती ही है.यदि कोई स्त्री या पुरुष अपने आप को कुरूप मानता हो या सौंदर्य में वृद्धि करना चाहता हो तो ये एक अद्भुत प्रभावकारी साधना है. और तंत्र अपनी कमियों को स्वीकार कर विजय प्राप्त करने की ही क्रिया है, ना की उसका दमन करने की. तुम भोजन में सात्विकता बरत सकते हो पर तुम्हारे शरीर, तुम्हारे चिंतन का जो प्रतिनिधित्व कर रहा है उसके लिए तुमने क्या किया? क्या कभी ये सोचा है ? तुम अकेले नहीं ८०% साधक इसी बाधा में फस कर सफलता से कोसो दूर रहते हैं.
आपने मेरी आँखे खोल दी- शिवमेश जी सदगुरुदेव के चरणों में गिर पड़े .
अब आप बताइए मैं इस क्रिया को कैसे संपन्न करूँ.
देखो शिवमेश हो सकता है की हमें लगता हो की हमारे जन्मचक्र में ग्रह अनुकूल बैठा है पर वास्तव में ऐसा नहीं होता है . आज जो जन्मकुंडली का स्वरुप समाज में प्रचलित है वही मतभेद में घिरा हुआ है ,किसे जन्म समय मानें यही स्पष्ट नहीं है तो कुंडली का सही निर्माण और विवेचना कैसे संभव होगी.और मानव के जीवन में सिर्फ इस जीवन का नहीं बल्कि पिछले जीवनों का भी प्रभाव रहता है क्योंकि ये तो एक श्रृंखला है जो उत्पत्ति से अभी तक चली आ रही है. हो सकता है की आज तुम्हारा शुक्र अनुकूल हो पर विगत किसी जीवन में तुम उसकी प्रतिकूलता से पीड़ित रहे हो तब ऐसी दशा में उसका साधनात्मक परिहार कर लेना कही ज्यादा बेहतर रहता है . ऐसे में वो तुम्हारी साधना में बाधा भी नहीं बनेगा उलटे तुम्हे अनुकूलता देकर तुम्हारे अभीष्ट को भी दिलवाएगा. प्रत्येक साधक को अपने जीवन में इस साधना को एक बार अवश्य कर लेना चाहिए और हो सके तो अपने साधना जीवन के प्रारंभ में ही ऐसा कर लेने पर कही ज्यादा अनुकूलता होती है . और इस साधना को कोई भी कर सकता है , ये विचार करने की कोई आवशयकता नहीं की हमारी कुंडली में शुक्र या अन्य ग्रहों की क्या स्थिति है.
इतना कहकर सदगुरुदेव ने इस साधना का विधान उन्हें बता दिया , और उन्हें प्रणाम और श्रृद्धा अर्पित कर शिवमेश वह से प्रसन्न मन से चले गए.
गुरुदेव अब ये पानी ?????
अब इसकी कोई जरुरत नहीं –सदगुरुदेव ने मेरी तरफ देखकर मुस्कुराकर कहा .
बाद में मैंने भी इस साधना को संपन्न कर इसके लाभ को प्राप्त किया और कई वर्षों बाद माँ कामाख्या पीठ में अचानक कालीदत्त शर्मा जी के यहाँ जब शिवमेश जी से मेरी मुलाकात हुयी तो उनका चेहरा सफलता के प्रकाश से जगमगा रहा था. मेरे पूछने पर उन्होंने बताया की हाँ सदगुरुदेव के यहाँ से लौटने के बाद उन्होंने इसी साधना को किया और इसके बाद उस साधना को संपन्न किया तो माँ ललिताम्बा की वो अद्भुत साधना पहली बार में ही सफलतापूर्वक संपन्न हो गयी , और मुझे वो सभी सिद्धियाँ प्राप्त हो गयी जिनके लिए कई वर्षों से मैं साधना कर रहा था . उन्होंने अपनी साधना शक्ति से कई अद्भुत कार्य भी करके मुझे दिखाए. सदगुरुदेव ने जो विधान बताया था वो मैं नीचे वर्णित कर रहा हूँ.
अनिवार्य सामग्री-सफ़ेद आसन व वस्त्र(साधक सफ़ेद धोती और सध्काएं सफ़ेद साडी का प्रयोग करे), ताम्र पत्र या रजत पत्र पर उत्कीर्ण चैतन्य और पूर्ण प्राण प्रतिष्ठित शुक्र यंत्र,सफ़ेद हकीक की माला, घृत दीपक,अक्षत , सफ़ेद पुष्प(मोगरा मिल सके तो अतिउत्तम),खीर आदि.
प्रातः काल स्नान कर सफ़ेद धोती धारण कर पूजा स्थल में बैठे और आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) दिशा की और मुह कर बैठे , पूर्व भी किया जा सकता है. सामने बाजोट पर सफ़ेद रेशमी वस्त्र बिछा ले और उस पर चावलों की ढेरी बनाकर उस पर शुक्र यंत्र की स्थापना कर ले . हाथ में जल लेकर शुक्र साधना में पूर्ण सफलता प्राप्ति के लिए सदगुरुदेव और भगवान गणपति से प्रार्थना करे. तत्पश्चात गुरु मंत्र की ४ और गणपति मन्त्र की १ माला संपन्न करे , इसके बाद शुक्र का ध्यान निम्न मन्त्र से करे. और इस ध्यान मन्त्र को ५ बार उच्चारित करना है.
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं ब्रहस्पतिम्.
सर्वशास्त्र प्रवक्तारम् भार्गवं प्रणमाम्यहम् ..
इसके बाद उस यंत्र को जल से स्नान करवा ले और अक्षत की ढेरी पर स्थापित कर उसका अक्षत,चन्दन की धूपबत्ती, घृत दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से पूजन करे.पूजन करते हुए
ॐ शुं शुक्राय नमः अक्षत समर्पयामी ,
ॐ शुं शुक्राय नमः पुष्पं समर्पयामी , धूपं समर्पयामी .....
आदि कहते हुए पूजन करे. तत्पश्चात निम्न मन्त्र की ५१ माला जप करे और ये क्रम १४ दिनों तक करना है जिस्सके साधना में पूर्ण सफलता की प्राप्ति हो और सभी लाभ मिल सके.
मन्त्र- ॐ स्त्रीम् श्रीं शुक्राय नमः
और प्रतिदिन जप के बाद मन्त्र के अंत में ‘स्वाहा’ लगाकर उपरोक्त मन्त्र के द्वारा सफ़ेद चन्दन बुरे की २१ आहुतियाँ डाले , ये नित्य प्रति का कर्म है ,जिसे १४ दिनों तक करना ही है ,इसके पश्चात जप पुनः एक माला गुरु मन्त्र की करके जप समर्पण कर आसन से उठ जाये.
अपने २४ वर्षों के साधनात्मक जीवन में मैं हजारों गुरुभाइयों और साधकों से मिला हूँ और उनमे से बहुतेरे को मैंने इन्ही समस्या से पीड़ित पाया है . और इसी कारण मैं सदगुरुदेव से प्रार्थना कर उस अद्विय्तीय साधना को आप सभी के समक्ष रखा है ये विधान अभी तक गुप्त रखा गया था. यदि आप इसे अपनाएंगे तो यकीन मानिये आपको कदापि निराश नहीं होना पड़ेगा. अब मर्जी आपकी है.
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Shivmesh Brother - Gurudev, yesterday also, the same incident happened with me…..What’s my fault???? I am performing this act whole heartedly from so many years, but the moment I reach near to the success, each time the same incident happens…..For what reason, I am suffering for this…..Where I am lacking in my devotion ????
Shivmesh brother was crying in front of Sadgurudev….Neither his sobbing stopped nor he stopped crying…
I was standing on the main door as Sadgurudev has called me up with a glass of water….When I was about to enter in the room, I heard this conversation….He was yelling with tears in his eyes that
Shivmesh Brother -Sadgurudev I am never engaged in the materialistic things nor I have ate any Non-vegetarian food, I myself cook the pure vegetarian food….When I have not done any mistake, then how the indecent feelings and Nocturnal Emission (Swapnadosh) are possible????? And whenever I reach at the last point of my devotion, this happens…..
From last 17 years, I am trying my best to achieve my this dream and every time it becomes just a dream to feel the experience of Maa Lalitamba…..I think all the acts like Brahmand Stambhan, Brahmand Bhedan and Ashtadash Siddhi will become only dream of mine…..I am no more interested in my life and I want to end this life….
Sadgurudev – Don’t act childish….You want to achieve that success for which the devotees give their whole life…. & what do you think that Brahmand Bhedan is such an easy subject that you just raise your hand and it will come like a fruit from the tree…..When the interference occurs in the work of the Universe activities, then what next remains????
Shivmesh Brother - Then what will I do???
Sadgurudev – Ok, now tell me what are the four main “Purusharth”????
Shivmesh Brother -These are Dharma, Arth, Kaam & Moksh
Sadgurudev – That’s right….but do you know that the Moksh does not at all related with Death….Eventually, many people are confused between Death and Enlightenment……Moksh is related with the complete satisfaction of the total desires of a person where no desires left….but we all are stucked in illusions and when a simple man turns into a devotee and walks on the path of completeness i.e. enlightenment then his basic nature verifies him before achieving his main aim and target….and do you know, where this exam happens ????
Shivmesh Brother -No, I don’t know this…
Sadgurudev – Look, all our unconscious powers and weakness lies in ourselves, right???
Shivmesh Brother -Yes, that’s true…
Sadgurudev – Then you must not be aware what are mythological and holy books says….They states that “Yat Pinde Tat Brahmande”….that means whatever lies inside us is visible in this Universe and similarly we see the beauty of nature from outside, the vacuum and capabilities lies inside us….And you only think, the things which lies inside us, we will be more able to understand the loops and holes rather than any outsider….But, remember this examination of the Nature differs for each person….A normal person gets engaged in the materialistic things and he is not able to focus on the aim and then the person pass away all his whole life in filling his greed and dies….But, when a person fights against all the odds to acquire his destiny he has to face all the difficult tasks of this nature….
Shivmesh Brother - But why this happens???
Sadgurudev – Because whenever you tries to accomplish your identity from your destiny it means you are very near to accomplish the completeness because the vastness not only exists in Shri Krishna but in every person & to understand the complete identity means to know the vastness of our selves….Then what is it which stops us to make it possible just as we desire….What is it that even when the nature becomes friendly not the master, still that vastness of the person cannot avoid the rules of the nature & that is because the experience of this vastness is another meaning of acquiring complete knowledge and sense of yourself…..But, this is not so much easy because a human gets entangled in the basic human nature as soon as he gets life or you can say before our birth the nature is well aware what we will be in future and the way becomes easy for the person…
Shivmesh Brother - But how???
Sadgurudev – Because our life is in under the supervision of the almighty powers of one of the Nine ruling planets and these ruling planets are the representatives of the four “Purusharths” & the normal astrology cannot explain these aspects….For this, you have to be in guidance of Sadgurudev….Only, he can tell which planet is in favor and which is against his work….but, the main obstacle in the path of Moksh or Dharma is the intense feeling of all the lecherous things and that too in the devotion time and the limit crossed when this feeling gets increased for the devotional God & Goddess and even for the Guru also……and this point is not under the control of the devotee where the Saturn (Shani) rules the financial and dedicational aspects as well as Venus (Shukra)rules all the lecherous feelings with the nocturnal emissions or diverting feelings, the capacity gets decrease for the devotion…because Venus represents – a female planet and represents love and beauty till the time the powers are balanced….but at the times,97% of the horoscopes does not focus on this part…People assumes Mars(Mangal),Rahu and Ketu as the main powerful planets and finds way to cure them but ignores the Venus planet(Shukra)…without knowing the fact that the 12th position is of Moksh and if the Shukra presence is there with the proper fragments it will be the best ever position…..Now, this is not possible in each horoscope. but if a person tries to balance the position of the Venus (Shukra),the person will definitely gets the positive result…
When the devotee performs the devotion with complete dedication he will acquire all the powers of strong attraction, wealthness, pure love & the most important victory on all the feelings…..and if a normal human being also performs this he will become able to control all the above powers….If a person feels that he or she is not attractive and is ugly can perform this devotion and wants to develop the beauty, this is the best unique devotion to get the same accomplished…& the Tantra is meant to control and come over all the lacking not to demoralize the aspects….You can maintain the dignity of the food as you wants but what about the body demands and the representative who is governing your emotions and feelings….What have you done for that???Have you ever thought for that????You are not alone; my son….80% of the devotees gets stucked in this problem and remains far away from the success…
Shivmesh Brother - You have opened my eyes...& he fell in the holy feets of the Sadgurudev…Pls.tell me how can I perform this act????
Sadgurudev – Look Shivmesh,it may happen that we feel that this planet is in favor in our horoscope, but this is not the actual position…..In today’s context the format of the horoscope is having too many different views….When we are not aware what is the correct birth time how can we analyze the right and accurate calculations because the person life not only gets affect by the current life but also gets affected by the previous birth as it is a long chain which is in existence from the first survival till now….It may happen that in today life, Venus planet is in favor with you but in your previous birth, it was against your positions….In this condition, to know and to at according to the position is the right thing for the devotee….By this,that planet will not harm you but will provide favor for your devotion and will fulfill your aim too…Each devotee needs to conduct this act in his devotional life once and is possible in the first learning phase gives more favor…This devotion can be done by anyone and no need to give second thought on this that in which position the Venus is lying with other planets…
After stating this Sadgurudev explained the method to perform this act and Shivmesh Brother went happily with the blessings of the Sadgurudev from there….
Me – Gurudev, what about the glass of water????
Sadgurudev – Now there is no need son….Sadgurudev smiled at me…
After this incident, I performed this act and gets benefits from the same….After so many years at Kamakhya Peeth co-incidentally I met Shivmesh Brother at the house of Kalidutt ji Sharma….& I saw his face was gleaming with the success…..and he told me that after reaching back from the Sadgurudev place, he performed all the devotion and in the first time he was able to feel the great and divine experience of Maa Lalitamba and apart from this he was able to accomplish all the other devotions for which he was trying for so many years…He also demonstrated me many divine acts….I am explaining the ritual which Sadgurudev has told for the devotion….
Essential Things – White Mat with white clothes (white dhoti for men devotee and white saree for women devotee), fully active and complete accomplished Shukra Yantra carved either on the copper or silver foil, White Hakik Mala,Ghee,Deepak,White flowers(Jasmine – best option),Kheer,etc…
Process – Early morning after taking bath, put white clothes and sit in the Agneya (South-East)direction facing towards it, can also face in east direction…Put the silk cloth on the stand and keeps rice heap and establish Shukra Yantra on it…Take holy water in palms and pray to the Sadgurudev and Lord Ganesh for the success of the devotion…Afterwards, accomplish 4 Malas of Guru Mantra and 1 Mala of Ganpati Mantra….After this,medidate by assuming Shukra image by the following mantra and this dhyan mantra needs to be enchanted 7 times –
“Himkund Mranalabham Daityanaam Param Brahaspatim…
Sarvshastra Pravaktaram Bhargavam Pranamamyaham”…
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं ब्रहस्पतिम्.
सर्वशास्त्र प्रवक्तारम् भार्गवं प्रणमाम्यहम्...
After this, wash the Yantra and again establish it on the rice heap and perform Pooja with Akshat,Chandan Dhoopbatti,Ghee,Deepak,Pushp and sweet offerings and enchant the following mantra while pooja –
“Om Shum Shukraye Namah; Akshat Samarpayami
Om Shum Shukraye Namah; Pushpam Samarpayami, Dhoopam Samarpayami”
ॐ शुं शुक्राय नमः अक्षत समर्पयामी ,
ॐ शुं शुक्राय नमः पुष्पं समर्पयामी , धूपं समर्पयामी .....
Also, follow the below mantra with this Pooja –
Om Streem Shreem Shukraye Namah
ॐ स्त्रीम् श्रीं शुक्राय नमः
Follow this whole process for 14 days to accomplish success in this pooja and to get all the benefits…
Daily after the pooja put “Swaha” in the mantra – and give 21 Ahutis of White Chandan Powder….This is the practice of daily basis which needs to be conducted for continuous 14 days…After this, conduct one mala of Guru Mantra and offer whole pooja to the Sadgurudev and gets up from the pooja…
In my 24 years of devotional life, I have met many of the Guru bhai and devotees and have mound many of them suffering from this problem…and for this reason, I have present this divine devotional act in front of you all which was kept hidden till the time….and if you all will adapt this, trust me you will be never dismayed….Now, the choice is yours…
****NPRU****
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