वाणी का सौन्दर्य तो जिसके पास हैं जिसके पास मन को लुभाने वाली शब्द शक्ति हैं वह उसका का प्रयोग भी सोच बिचार कर यदि सभी के मनको हरने केलिए करता हैं तो उससे ज्यादा अमीर कोन हैं, सभी उसी के दोस्त हैं. जो सबका दोस्त हैं मित्र हैं उसका कोन न अपना न होगा .
वाणी के रूप परा , पश्यन्ति , मध्यमा ओर वैखरी इनमें परा को सबसे उच्चतम माना गया हैं ओर वैखरी को सबसे निम्नतम,
हम जो बोलतेहैं वह बैखरी का रूप हैं ,
(जो बोल कर समझया जाये वह तो सबसे निम्नतम रूप हैं सन्देश के आदान प्रदान का .. )
जो शब्द आपके मन में जीवन के प्रति सही बोध जगा सके वह किसी साधारण व्यक्ति के शब्द तो नहीं हो सकते हैं, और हमारी वाणी की क्षमता तो इसी बात से पता चल जाती हैं की घर के व्यक्ति भी हमारी बात नहीं मानते हैं.
पश्यन्ति का उदगम स्थान मणिपुर चक्र हैं इसे मानसिक शब्द भी कहा गया हैं इसका अर्थ संस्कृत में जिसे देखा जा सके या मनमें चित्र बनाया जा सके.
मध्यमा को चेतना की आवाज कहा गया हैं
तुरीय अवस्था(samadhi) में बोले गए शब्द को परा कहा गया हैं .
पर ये अंतर इतने सूक्ष्म हैंकि महायोगी के संकल्प मात्र से भले ही वाणी का स्तर वैखरी रहेगा पर वे परा स्तर के ज्ञान से परिपूरित हो सकती हैं .
श्री अरविन्द कहते हैं की संसार के सारे महान आचार्य ने तो अपना सन्देश मौनमें ही तो दिया हैं , ओर ये मौन कोई शब्दों की कमी नहीं बल्कि शब्दों से भरी एक ऐसी उर्जा हैं जो शिष्यों के मन मैं उठे प्रश्नों का उत्तर स्वयं ही दे देती हैं . ओर वाक् की इस शक्ति को परा कहते हैं .
सदगुरुदेव के जब मौन को भी जब शिष्य समझने लगे तब ही तो वह शिष्य कहलाने के योग्य होता हैं
सदगुरुदेव जीके शब्द तो इसी स्तर के हैं, वे जब बे बोलते हैं तो भले ही हमारेकर्ण उसको सुनते हैं पर वे सीधे हमारी अंतरात्मा में उतर जाते हैं . क्योंकि उनसे हमारा सम्बन्ध आत्मा से आत्मा से हैं.
सदगुरुदेव दीक्षा प्रदान करते समय जोमंत्र बोलते हैं की त्वं प्राण मम प्राण..... , अबक्या कोई संदेह हैं की उनके श्रीमुख से उच्चारित शब्द सारे ब्रम्हांड के लिए आदेश ही तो हें.तब उस काल में जो भी व्यक्ति एकनिश्चित दायरे में रहता हैं , मन से उनसे जुडा रहता हैं उसे भी उस महान दीक्षा का फल प्राप्त होता ही हैं.
इसलिए जब वे गुरु मन्त्र उच्चारित करते हैं तब आप भी उच्चारित करे, क्योंकि उनके श्री मुख से उच्चारित शब्द तो साधक के आत्मा में उतरते जाते हैं. जितने बार भी उन शब्दों को सुनने का मौका मिले कभी न छोड़े , क्योंकि सुनत बचन सदगुरुदेव के संशय सब जाये
जो भी सदगुरुदेव जीकी आवाज में दिव्य cd है उन का महत्त्व तो आज बताया नहीं जा सकता हैं , आप बारम्बार उनके शब्दों को सुनो ,उनकी आत्मा से आपकी आत्मा का सीधा सम्बन्ध हैं तो क्यों नहीं फरक पड़ेगा, यह कोई बाज़ार से राम नामकी cd तो नहीं लायी गयी हैं की आपके ओर गायक के प्राणों का मेल हो नहीं रहा हैं पर आप लगे हैं सुनने में, यदि सुनना हैंतो अपने सदगुरुदेव जी की आवाज में उन शब्दों को सुने, जब एक cd से मनभर जाये तो तो दूसरी cd लगाये, उस सुने ,धीरे धीरे आपकी अतरात्माउन शब्दों को भी पह्चाहने लगेगी फिर वे कहीं भीकभी भी बोल रहे होंगे उसे आप सुन पा रहे होंगे, क्योंकि इतनी से बात तो साधारण बच्चा भी जनता हैंकि उर्जा ख़तम नहीं की जा शक्ति हैं , फिर हमारेसद्गुरुदेव्जी के शब्द.... क्योंकि शब्द तोब्रम्ह हैं ....फिर साक्षात् ब्रम्ह के शब्द तो ...
ओर इनका अर्थ तोयही हैं की जब भी जो भी उनके श्री मुख से उच्चरित हुआ वह मन्त्र बन गया , जो भी उन्होंने किया वह तंत्र बन गया जो भी उन्होंने लिख दिया वह तोयंत्र बन गया. सदगुरुदेव जीके प्रवचन मात्रप्रवचन नहिहैन उनके श्री मुखसे उच्ज्चारित मंत्र तो आने वाले काल की धरोहर हैं ही, आप भी बार बार सुनकर उन दिव्य मंत्रो से पाने इस शरीर को आपूरित कर सकते हैं, भला इससे सरल की अहोगा, बस हाथ पाँव धोकर बैठ जाये ओर एकाग्र भाव से सुनते जाये की वे के कह रहे हैं.
कभी आपको साधना मैं मन न लगे तो आप नाभिदर्शना अप्सरा साधना और षोडश योगिनी साधना की cd सुन कर एक बार देखे तो . आपका मन भी साधन के लिए मचल जायेगा,
उन दिव्य cd में उनके अमृत बचन आज भी वैसे हैं उसे आप सीधे सुनकर साधना कर सकते हैं , या फिर उन अमृत वाणी को बार बार सुने , स्वतः ही आपके मन ह्रदय में एक अद्भुत धारा बह निकलेगी , ओर आप स्वयं उस रस में डूब जायेगे , यह सही हैं सदगुरुदेव ही तो पत्रिका में हैं पर जब उनकी वह गंभीरता पूर्वक बोलने की धारा प्रवाह शैली , ओर उनके द्वारा दिए गए सभी प्रवचनों में जो भी क्रियात्मक पक्ष हैं उसका तो कोई जबाब नहीं हैं , आप उन cd को सीधे चला कर साधना कर सकते हैं , ऐसा भी किसी कारण वश न आकर पाए तो उन दिव्य cd को बार बार सुनने मात्र से भी परिवर्तन की जो श्रंखला प्रारंभ हो जाएगी वह अत्यंत ही सुख दायक होगी आनंद दायक होगी .
आज के लिए बस इतना ही ................
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Those who have lovely voice and such a power that word often steel others heart , if he use the word with little thinking than who will be more richer than he is , everybody is his friend, and he who is friends to all, than think who is not close to him.
There are four form of vani (speech) para, pashyanti, madhyama, vaikhari in that para is consider highest and vaikhari is the lowest. The word we speak to each other are consider in the vaikahari state.( the speech in that word are often speak than only other understand is the lowest form of communications).
The word which provide a hope or right direction in life cannot be of any ordinary person and the power of our speech shows in this way that even the person of our home not understand and act accordingly.
Pashyanti has an origin in naval point means in the Manipur chakra. This form can be known as mantal speech, this word has an meaning in Sanskrit is that which can be seen or whose fig can be draw in mind.
Madhyam is known as the speech of intellectual .
Para status is possible when one speak in the turiy level means Samadhi state.
Theses difference are so close that if any mahayogi wants that the speech state is in vaikhari but its effect can be converted to para state.
As shree arvind said-all the great master gives his message in the silence . and this silence is not the absence of word, actually theses unspoken words fills with so much energy that they eaily provide the answer to disciples questions. And this type of unspoken word power known as para.
When the silence of his Sadgurudev ,fully be understand by disciples only than he will be called a shishya.
Our Sadgurudev ‘s word are for this level though our physical ear herd that but they directly reaches to our heat since our relation is to him is for heart to heart.
When Sadgurudev provide Diksha he speak tvam pran ,mam prana, … means your pran force and mine pran forces are now one…, and there will be no question that his speaking word is a order to whole universe. Than in that time within a circle who so ever present will definitely get the result of the Diksha which Sadgurudev/guru dev trimurti ji provides .
This why when they speak guru mantra than we should also speak that. Since the word are coming from his mouth will directly reaches to heart and soul of disciples. So how many times if you get the opportunity to listen theses word never loose opportunity of that. Since it has been said that on listening of Sadgurudev word all the doubt of desciuples go vanish.
So the Sadgurudev ji’s divine voice filled cd, value cannot be describe in word. listen again and again the cd. And when he have directly realtion from his heart to heart this is not the things like buying a cd from a market contain ram gaan by any one, since there is not having heart to heart contact to you and singer , the last result is not worth. You can listen cd of Sadgurudev and when you want to listen the other cd you can do that , slowly and slowly your should start recognizing the sound, than he will be speaking anywhere you heart will listen, this thing a child knew that energy can not be created or destroyed, since word is the brahma and theses are the words from a Braham then..
That simply means that whatever he speak will became mantra, what he do became tantra, where he wrote became yantra, his world will be great assets for coming generation , and you can too be fill with the joy of listening such a great divine words. What more easily things will be possible. Just wash your hand and feet and listen with full concentration what he is saying..
whenever you have not having desire to go for sadhan try tolisten sadgurudev divine voice sd named nabhidarshan apsar acd and shodasha yogini sadhana , surely you wil be filled with the great force.
thses cd stil still have the same taste of divine word you can go directlyto sadhana such type of power and clarifiaction cantains that. and your heart fill with the joy you never taste, yes itis true sadgurudev also inth emag . but his own stale of speakingthe truth and reavealingthe secreat is unparallel and that contains so much practicality , that no one ha sthe asnwer, and ifanything you still not able to do than simply listing agaian again the ame cd will start a new effect inyour life., and thses changes are a great mark for achieving enjoy inyourlife..
thats enough for today
Tantra kaumudi :(monthly free e magazine) :Available only to the follower of the blog and member of Nikhil Alchemy yahoo group
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****NPRU****
Hallo gurubhai,
ReplyDeleteTantra kaumudi 5th kab release hoga ???
we are waiting.........