यदि जीवन मैं उच्चता प्राप्त करना हैं तो भला साधना पक्ष की कैसे उपेक्षा की जा सकती हैं . साधना तो इस जीवन का प्राण हैं भला बिना प्राण के तो जीवन का आधार क्या वह तो मनो शव वत हैं ही , साधना की बात जहाँ आती हैं वहां पर तंत्र को कैसे भुला जा सकता हैं . भले आज इसका महत्व न समझा जा रहा हो , पर अर्वाचीन काल से लोग तो तंत्र को इसके साधक को बेहद सम्मान की दृष्टी से देखते थे.
आज के परिपेक्ष मैं तो तंत्र की उपेक्षा ही नहीं की जा सकती हैं , और न केबल आजका सभी समाज बल्कि युवा वर्ग भी इसकी ओर आशा भरी दृष्टी से देख रहा हैं सदगुरुदेव जी के अनथक प्रयास के कारन नयी रोशनी, एक नयी किरण इस घटाघोप अन्धकार में सामने आ रही हैं, ओर लोग लपक के आग एबधे हैं औरुन्हे सफलता भी मिली हैं, लोगों के अब इस साहित्य का महत्त्व समझा ही हैं आज जो भी ग्रन्थ मिलते हैं उसमे अभी भी कुछ हैं जो अपने मूल स्वरुप में उप लब्ध हैं उसमेंसे एक तो दुर्गा सप्तसती हैं अपने अनेको प्रकार्र ओर उपप्रकार के साथ ही यह प्रमाणिक ता से प्राप्त हैं एक ओर ऐसा ही ग्रन्थ हैं. जिसे भगवद पाद आदि शंकराचार्य जी ने लिखा था जो की सौन्दर्य लहरी के नाम से विश्व विख्यात हैं.
वास्तव मैं यह ग्रन्थ दो भाग में हैं प्रथम भाग आनंद लहरी - 41श्लोक हैं
द्वितीय भाग - सौन्दर्य लहरी- 62श्लोक इनदोनो को मिला कर(अन्य श्लोक के सहित ) कुल १०३ होते हैं .
पर इस ग्रन्थ की इतनी उप योगिता क्या हैं , अनेको गिनाई जा सकती हैं प्रथम ये साक्षात् शिव स्वरुप द्वारा रचित हैं , अनेको गूढार्थ अपने आप में समाया हुआ यह ग्रन्थ हैं , विद्वान लगातार शोध मनाएँ लगे हुए हैं , नए नए रहस्य सामने आ रहे , प्रथम यह तो भगवद पाद द्वारा माँ पार्वती के सौन्दर्य का वर्णन का ग्रन्थ हैं ओर यह वर्णन इतना विस्त्रत्त ओर सूक्षम्ता से हैं की पढ़ने वाले आश्चर्य से भर जा सकते हैं की एक पुत्र अपनी माँ के सौन्दर्य को ऐसेकैसे लिख सकता हैं, पर सच्चा योगी तो निर्मल होता हैं शिशुवत ही होता हैं , फिर शिशु के लिए क्या श्लील क्या अश्लील .
पर आचार्य के चिंतन को इतना सी दृष्टी में बाँध देना ठीक नहीं हैं , विद्वानों ने लगातार खोज करके देखा तो पाया की ये श्लोक तो वास्तव में एक एक तंत्र के प्रतीक हर श्लोक एक तंत्र की अद्भुत साधना को प्रदर्शित कर रहा हैं , इस दृष्टी कोण से पुरे ग्रंथ को देखा तो यह तो एक तंत्र ग्रन्थ ही सिद्ध हुआ , पर पुनः जब मंत्रो की दृष्टी से देखा गया तो पाया की यह तो पूर्ण रूप से मंत्रात्मक ग्रन्थ निकला, इसी तरह से यंत्रन्त्मक रूप से देखा गया तो पाया की यदिहर श्लोक के माध्यम से यदि एक आकृति बनायीं जाये तो वह बना विशिष्ठ यन्त्र सर्व मनो रथ पूर्ण कर सकता हैं
पर सदगुरुदेव भगवान् ने इसे तो यहाँ तक बताया हैं की हर श्लोक अपने आप में एक आयुर्वेद का कल्प बता ता हैं इस तरह से यह अद्भुत ग्रन्थ की जितनी भी प्रशंशा की जाये उतनी कम हैं
इसका अभी आयर्वेद रूपी दृष्टी कोण सामने आना बाकी हैं , पर एक प्रश्न उठता हैं कि जब भाषा एक हैं तो भावार्थ भी एक होना चाहिए , पर ये गुण तो केबल केबल संस्कृत भाषा का ही चमत्कार हो सकता हैं . पर ऐसा ही क्यों ,इसका कारण यह हैं की इस भाषा में लेख या जो कुछ भी लिखा जाता वह तीन तरीके से संभव हैं पहला अभिधा, लक्षणा , व्यनजन , इसकारण कई बार टीका कार इतना सूक्ष्स्मता से न देख कर मात्र शाब्दिक अर्थ लिख देते हैं जो की अर्थ का अनर्थ करदेता हैं
पर यह ग्रन्थ वास्तव में श्री विद्या का अद्भुत ग्रन्थ हैं , श्री विद्या के बारेमें कितना भी लिखा जाये , पर सब वह कम ही हैं , अनेको ग्रन्थ हैं तंत्र की सर्वोपरि विद्या के परभी ,अभी भी १ % भी रहस्य सामने नहीं आया हैं,
हमारे यहाँ शाक्त सम्प्रदाय में दो भाग पहले जिसे कालीकुल कहा जाता हैं ओर दूसरा जिसे श्री कुल कहा जाता हैं , इस्मैसे श्री कुल के माध्यम से श्री विद्या की उपासना कहीं ज्यादा आसान हैं .
सदगुरुदेव जी अपने ही विशिष्ट अंदाज़ में इन सौन्दर्य लहरी के रस्योंको उजागर किया हैं ओर एक दो नहीं अगर मैं सही हूँ तो लगभग सात भाग की श्रंखला हैं .अब इस से ज्यादा क्या भाग्य हो सकता हैं की सदगुरुदेव स्वयं , स्वामी शंकराचार्य की तरह रहस्यों को उद्घाटन कर रहे हैं अब क्या शेष रह जाता हैं . अभी भी ये दिव्य cd जोधपुर गुरुधाम में उपलब्ध हैं , आप वहां से प्राप्त कर सकते हैं .
में यह पर एक उदहारण ले रहा हूँ. ....
नरं वर्षी यांस नयन विरस नर्मसु जड़म ,
तवापांग लोके पतित्माणु धावन्ति शतशः ||
गलाद वेणी वन्धः कुछ कलश विस्त्रस्त सिच्या
हातात त्रुयत कान्च्यो विगलित दुकुला युवतयः ||
साधारण अनुवाद :तो यह होगा की :अनेको स्त्रियाँ जिनके दोड़ने के कारण उनके शरीर के वस्त्र गिरते जा रहे हैं ,वे उस वर्द्ध पुरुष के पीछे भाग रही हैं हे माँ जिस पर तुम्हारा कृपा पड़ रही हैं .हलाकि वह पुरुष अपनी आयु के कारण उन्हें देख सकने ओर प्रेम के लिए अयोग्य सा हो गया हैं .
विद्वानों के अनुसार : यहाँ पर वर्द्ध पुरुष प्रतीक हैं की वह जिसने अनेको जन्मो की साधना से इस जीवन में सिद्धित्ता प्राप्तकर कर ली हैं, ओर यहाँ दिगम्बर स्त्रियों से तात्पर्य यह हैं की अनेको सिद्धिया ओर वे उस व्यक्ति के पीछे भाग रही हैं , हालाँकि जो अपनी बढ़ी हुए आयु के कारण इनका भोग कर पाने में असमर्थ हैं या इनके उपभोग की इच्छा नहीं रखता . क्योंकि सिद्धया तो सामान्य साधको के लिए रूकावट के सामान हैं जिससे वे इसमें उलझकर अपने जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य माँ जगदम्बा के श्रीचरण तक नहीं पहुँच पाते, हैं
ओर हमारे लिए तो माँ जगदम्बा , माँ आदि शक्ति के विग्रह साक्षात् सदगुरुदेव भगवान् हैं ही.
तो आप सभी इस दुर्लभ कद को प्राप्त करसकते हैं ओर दिव्य अमृत वाणी को सुन कर अहसास कर सकते हैं कितनी उच्च कोटि की हमारी साधना परम्परा रही हैं , ओर हमें सदगुरुदेव जीके सच्चे शिष्य होने का धर्म निभाते हए इसे आत्मसात करना हैं , जब हमारेऊपर सदगुरुदेव जी ओर पूज्य पाद गुरुदेव त्रिमुर्तिजी का आशीर्वाद हैं तब हमें अपने लक्ष्य तक पहुँचने से कौन रोक सकता हैं. आज के लिए बस इतना ही
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If one has to attend the heightens in life than how can he set aside the sadhana part. Sadhana is the in real sense the life blood of our life. And without pran /soul what will be the use of this body it is Just as good as dead. And when sadhana field talk comes how can you not think about tantra. , its very sad that in today’s era , this has not been understand as it should be, but in very ancient time not only the tantra but the practitioner of that considered very respectful.
Even in today life you can not ignore the value and usefulness of this great science, and not only a section of society but even the today’s youth is looking on this side that if any change can be possible in quality wise can only comes through this way. And this is became possible is because Sadgurudev day and night work for upliftment of this science. One new rays of light of hope now start visible and that too in very dark night of ignorance towards bhartiya sadhana, and many people moved towards this and start gaining success. Now not only people start understanding the literature of this science . now whatever the tantrak granth available in today’s time that too in original forms one is durga sapatsati with many forms and sub type. In originianal forms. And other is a great granth written by great swami Shankar achary i.e. soundray lahri.
In true sense this book is in two part
first one is- Anand lahari comprises of 41 verse (shalok)
Second part is- soundry lahri of 62 verse , if we add this and other shlok than total something 103 shalok is possible.
But what is the usefulness of this granth, why we need to go through that , many important point can be counted for this granth. Even first point is more than enough that it had been written by such a one who is considered live form of bhagvaan shiva, so this is enough .many hidden menacing related to various aspect of sadhana field this book keep inside. And the scholar of not only past byt present also doing their research in this book and many many hidden point come into in front of us. In first view this is the book about physical beauty of mother divine ma Parvati. The wife of bhagvaan shiv (shaker). And this beauty explain is such a deep and clearly the even person amazed how one son can describe the beauty of his mother in such a extent. But a true yogi is a just a pure one just a like a new born, and for new born what is ashlil and what is shalil,
But the thinking of such great one can not be limited only to this aspect of thinking. Scholar always has a mind that definitely some thing is hidden in that worldly meaning and when the discovered that each shalok is describing a anew tantra sadhana, so this became a tantra granth, and the same way each shloka representing a new mantra sadhana, and this became the whole book considered to be a great mantra shastra. some scholar search on the bases of yantra they also find that each shalok showing a particular yantra. Through that each wish of life can be fulfilled.
Sadgurudev told to ys that notonly this even each shlok is representing the one specific ayurvedic kap , inthis way , this can be considered a great book.
Its ayurvedic aspect is yet to come, but now question arises that when the language is one than its meaning should also be one. But this is the specialty of the Sanskrit language , but why not this in this Sanskrit language any thing can be written in three ways first one is avidha ways other is lakshana, third one is vyannjana, many time the person conserved teeka kar (who write commentary of any book) without taking care this just translate the book in just literally term , and that is greatest mistake, since on a way you are right but you kill the meaning the author wants.
Many of us still remembered and always be how Sadgurudev ji whole pravachan is based on a single shalok of any sadhanatmak granth, think the shalok may be considered of three four Sentaza but even Sadgurudev when define in detail two three hours need to very less.
This granth is it s original form a great book of shri vidya. And what can be said about shri vidya , thousand of books has been written about that still not a single percent is come into light.
There is two kul (section) found for shakt sect . one is shree kul another is kali kul . through shree kul this shri vidya is considered little bit easier.
Sadgurudev ji describe this great soundrya lahri in his special ways of specking giving each details with his authority of the subject in in audio cd series if I am right comprises of 5/6 part. So its our luck when Sadgurudev ji describing the details like swami shaker aachary himself define that is there any thing left. One must listen that and this series still available in jodhpur guru dham one can ask for that.
Here I would like to take a simple example so you can understand .
naram varshiya yaans nayan narmsu jadam ,
tavapoaang lauke patitmanudhavanti shtashah ||
galad vedi bavdhah kuch kalash vivastra sichya
hatata tryah kanchyoh viglit dukula yuvtayah ||
literally meaningis : womna those hair are open and having all clothe slipping down running after a old person who has o h divine mother got your blessing, although due to his old age he is unable to to see and love .them .
but what this acutal meansing as per schlors are :here: old age person means a person who has attend siddhitta from so many incarnation’s sadhana, and all the woman here representing the varioius siddhi’s , running after that old person. and speciality of this , is that old person not able to see them and use them beacuse of his old age, means siddhi can only be a given to a sadhak who is not intersted or having nodesire to use themor show others (atleast for personal cause) and that old person is getting bless of mother divine.. means untill a sadhak achieved a specific mental stage where he always immersed in his goal a not showing his acheved to anyone. , for to whom siddhi are already reaching him.since one who get stuck in thses woman or siddhyan could notreach the final aim means mother divine.
so have a look this great book , ifhave time listen sadgurudev ji pravachan and have a feeling that how high high the sadhana field and ourancient science, and we all have to do great work to learn . when sadgurudev ji and poojya paadgurudev trimurti ji blessing with us, than who can stop us. this is enough for today
Tantra kaumudi :(monthly free e magazine) :Available only to the follower of the blog and member of Nikhil Alchemy yahoo group
Kindly visit our web site containing not only articles about tantra and Alchemy but on parad gutika and coming work shop info , previous workshop details and most important about Poojya sadgurudevji
****NPRU****
Hi Bhai,
ReplyDeletePlease could you give the name of the CD?