भारतीय साधना ग्रंथों में एक तथ्य बार बार आता हैं की पञ्च कोष की यात्रा करना हैं या साधक को एक एक करके पञ्च कोष की यात्रा पूरी करनी ही पड़ती हैं , ये पञ्च कोष क्या हैं , क्या हैं इनका उदेश्य और कहाँ हैं इनकी स्थिति हैं , पर सामान्य साधक तो बेहद अनिर्णय की स्थिति में होता हैं , या तो वह इन शब्दों को जानता ही नहीं या फिर इनकी अर्थ ही समझे बिना यात्रा प्रारंभ कर देता हैं .
समान्यतः कोष का मतलब आवरण या शरीर होता हैं , तो क्या इस शरीर के अन्दर कोई और भी शरीर होते हैं , हाँ क्यों नहीं , समान्यतः एक शरीर का नाम जाना गया हैं वह हैं सूक्ष्म शरीर ओर कुछ ने शायद कारण शरीर का नाम भी सुना हो, पर महा कारण शरीर की भी स्थिति हैं पर कहाँ हैं , स्थूल शरीर तो सभी जानते हैं ही . तो इस तरह चार शरीर का वर्गीकरण हो गया , स्थूल ,सूक्ष्म शरीर , कारण शरीर , महा कारण शरीर .कहाँ हैं ये , ओर किस तरह व्यक्ति के आद्यात्मिक उचाई यो को प्रदर्शित करते हैं .यथा पिंडे तथा ब्रम्हांड के सूत्र के अनुसार इन सभी की स्थिति तो हमारे शरीर में ही हैं .
इसी तरह पञ्च कोशों के बारे में भी हैं ,ओर इन पञ्च कोशों का नाम हैं
1. अन्नमय कोष
2. प्राणमय कोष
3. मनो मय कोष
4. विज्ञानं मय कोष
5. आनंदमय कोष
आपने इनमें से कुछ का नाम तो अवश्य ही सुना होगा
अन्नमय कोष - जिस की इनका नाम ही प्रदर्शित करता हैं की इस शरीर के निर्माण में अन्न की विशेष भूमिका हैं या यु कहाँ जाये की स्त्री रज ओर पुरुष वीर्य के माध्यम से ही इसका निर्माण हुआ हैं, साधारण मतलब तो यही हैं की जो हमें अपना शरीर दिखाई दे रहा हैं वह अन्नमय कोष हैं, इसकी को स्थूल शरीर भी कहा गया हैं. /जाता हैं , तो सारी व्याधियां बाह्य्गत रूप से यही शरीर ही सहन करता हैं बचपन युवा काल, वर्द्धा वस्था इसी शरीर पर अपना प्रभाव डालते हैं. आद्यात्मिक यात्रा तो इसी शरीर के माद्यम से ही प्रारंभ होती हैं . तो इसका भी सुद्रढ़ हो ना जरुरी हैं .
प्राण मय कोष- कितने प्राण होते हैं इस मानव देह में कभी किसी ने सोचा हैं , आप कहेंगे बस एक .......तो नहीं , मुख्यतः ५ प्राण या सूक्ष्मत में जाये तो १० प्राण होंते हैं .
इन प्राणों के अलग अलग नाम ओर और उतने ही विशेषतः युक्त इनके कार्य हैं शरीर के बिभिन्न भाग में स्थित होते हैं , यहाँ तक आत्मा के शरीर से चले जाने के बाद एक प्राण जिसका नाम धनजय हैं वह तब भी शरीर में रहता हैं , ओर बिना शरीर को अग्नि क्रम करे यह जाता नहीं हैं . बहुधा इसी प्राण के माध्यम से मृत व्यक्ति की आत्मा को वशीभूत करके उससे बिभिन्न कर कराये जाते हैं .इसके साथ पांच कर्मेन्द्रिया भी इसकी सहयोगी हैं,इसी के कारण आत्मा को भूख प्यास आदि अनुभव होते हैं.
मनोमय कोष - जैसा की इसका नाम ही प्रदर्शित करता हैं की की मन ओर ज्ञान इन्द्रिया के सहयोग से ही इसका निर्माण हुआ होगा, जैसा की आप जानते हैं की मन की गति सर्वाधिक हैं तो मन के माध्यम से ब्रम्हांड में कहीं भी आया जा सकता हैं इच्छा मात्र से , तो इस शरीर का अपना ही एक महत्त्व हैं . सुख दुःख स्नेह मोह सभी इसी शरीर के आवरण के कारण ही जीवन को महसूस होते हैं .मन ओर इच्छा लहभग एक जैसे ही अर्थ रखते हैं , आज मेरा मन नहीं हो रहा हैं या आज ये खाने की इच्छा हैं, मतलब इस शरीर मैं इच्छा तत्व की प्रधानता हैं.
विज्ञानं मय कोष - अहंकार ओर बुद्धि इस शरीर के आधार भुत तत्व हैं मतलब जीव आत्मा को जो अहंकार ओर बुद्धित्ता प्रदान करके में उसका योग दान हैं , यही शरीर ,जीव आत्मा को अहंकार देती हैं .अपने कर्तव्य का गुण ओर अभिमानं की मैं कुछ हूँ सब इसका का ही परिणाम हैं.
आनंदमय कोष - यह जीव आत्मा पर चढ़ा हुआ पहला कोष हैं, अर्थात सबसे पहले इसका आवरण होगा फिर होगा विज्ञानं मय कोष का फिर मनोमय कोष का , इस्सी तरह से क्रम चलेगा . यह तो इस शरीर के नाम से ही समझ में आता हैं की आनंदता प्रदान करने का गुण इस शरीर का हिपरिणाम हैं. वास्तव में आनंद तत्व को परिभाषित करना थोडा सा कठिन हैं ,इसे हम अपनी लौकिक भाषा में कहे तो हमारी प्रसन्नता या सुख का कोई एक विशेश प्रकार समझ ले . तो यह आत्मा को इस गुण से आवरणित कर देता हैं .
अब यहाँ बात उठती हैं की बुद्धि तो ठीक हैं आनंद भी ठीक हैं तो क्या यह दोष हुए जिन्हें हमें पार करना हैं थोडा सा इस महत्पूर्ण बात को यहाँ कम जगह में समझा पाना कठिन सा हैं, वास्तव में यदि हम देखें तो आत्मा क्या हैं एक इश्वर का अंश , ओर इश्वर में अहंकार , सुख दुःख होता हैं क्या ? कदापि नहीं, तो यह इश्वर रूपी आत्मा को बिभिन्न प्रकार के कोष रूपी जाल में आबाधित कर के रख देती हैं ओर आध्यात्म का उदेश्य तो स्वयं को जानना या यु कहूँ की अपने वास्तविक स्वरुप का परिचय प्राप्त करना ही हैं, यह जो बिभिन्न साधना ये हैं वह क्या हैं इसी ओर को यात्रा का एक अंग ही तो हैं, जब हम जान पाएंगे की हम सत्य में तो अपने सदगुरुदेव जी के ह्रदय के टुकड़े ही हैं, ओर कुछ नहीं उन्ही में पूर्णतया के साथ समां जाना ,अपनी क्षुद्रता की उनकी विराट ता में लीन कर के , या बूँद समानी समुद में ......यही तो हमारा सही परिचय होगा .यही कहना की
त्वदीयं वस्तु निखिल तुभ्य्मेत समर्पेत
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On many place this facts continuously repeated in the sadhana granth (books) that sadhak has to make journey to panch kosh or five body , what are these five kosh . what is the main object behind these koshes and where these kosh situated . many sadhak does not understand the situation and hence in confusion stage either he knew not the meaning of these words or move ahead without understanding the term.
In general terminology the kosh means body or cover. That means is there any more body lies in this body , yes why not in general we have listen only one body name that is astral body and perhaps som has listen about karan sharir but have you listen about maha karan sharir . sthul sharir or body , every one knows so like this ways there is division of foyr bodies happened sthul , sookshm(astral), karan , maha karan sharir. Where they residue and what height or level theses shows in the spiritual field.
“Yatha pinde tatha bramhaand” means what is out exists(whole universe) , lies in this body so all the above mentioned body lies in this same body
Same word is about panch kosh , these are as follows.
1. Annmay kosh
2. Pran may kosh
3. Mano may kosh
4. Vigyan may kosh
5. Aanandmay kosh
May be you have listen some of these name.
Annymay kosh : as this suggest that the anny has a major role I building this body, or this can be said that veery tatv do man , ran tatv of woman is responsible for making this body. In simple word what the body is appearing to us and others too is the result of annmay kosh. This also can be known as shthul sharir. On this body one by one childhood youth and old age comes, all the illness this body bears . and spiritual journey also starts from this body. So well build /stronger annamay kosh/esthul body also a much things .
Pran may kosh; how many pran exists in this body have you ever thought, you would say only one… no no mostly 5 pran lies in this body and if goes very deeply than 10 pran can be found in this body. all these pran’s has very different name and very specific work they undertake .and lies in different part/section of the body. Even can you believe that even when soul/atam moves from this body, still one pran exists in this body i.e. dhannajay prana, and till that that body undergo angi Sanskar. Lat ritual for a dead body . only than he left the body. on many occasion through this pran , dead persons’s atama soul can be controlled and asked to do the many work. and five working senses are also provide assistance to this body/kosh through that atama feels trusty /hungry feeling .
Mano may kosh:as the name suggest that man and gyan senses are responsible for this creation of this body. A s you already knew that nothing can travel as fast as the man. and through just wish one can travel in any part of the universe .so this kosh or body has his own importance .happiness and sorrow, love, sneh , moh all the result of these cover/ kosh and through that atama feels. Man and wish literally has the same meaning. This means the “I” element is the major role to play.
Vigyanmay kosh:ego and intelligence are the two basic factor of this body, whatever the intelligence and ego seen in the aatam are the result of this kosh.so this means this kosh provide egoism , and the having the sense that I am something is the result of this kosh.
Anand maykosh- this is the first kosh/cover/body covering on the aatama, means first this kosh after that vigyanmay kosh after that mano may kosh like this., as the name suggests that the true anand feeling are the result of this kosh, in true sense its very difficult to define what is anand. In the worldly language if we define that this anand should be a specific state of happiness. That never end. This kosh induces this quality to atama.
One question arises here , are the intelligence is the negativity or anand is the dosh. why we should have to go beyond that, in this little space it is very difficult to fully explain this subject, in true sense what is the aatama is the part of god. And can the god has ego , happiness or sorrow , never. These kosh tight the true aatam to various cover and the aim of the spirituality is to know about yourself, we are doing various sadhana what are they, actually the part of of the same journey to know about self. when we reach than only we can understand who we are, actually we all are the part of heart of our sadgurudev ji, and nothing else. when we fully melt our little ego to his vastness than a true shsishy born. Than can be said now the boond reaches the ocean.,, that is our true identity..and than we can say
Tavdiyam vastu nikhil tubhyamev samarpayet.
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