ध्यान
"ध्यान मुलं गुरु मूर्ति "
यह शब्द सुनने में कितना ही सरल लगे पर व्यवहार में उतारना उतना ही कठिन हैं . एक अर्थ में इतना सरल हैं ही कोई भी परिभाषा की आवश्यकता नहीं हैं पर दूसरी और योगी भी असमंजस की अवस्था में रहे हैं की कैसे परिभाषित करे .सदगुरुदेव भगवान् कहते हैं की यह ध्यानस्थ अवस्था तो प्रकृति का वरदान हैं एक उपहार हैं जो मानव तो उसके सत्य स्वरुप से मिलाने का रास्ता बताता हैं .
(इस पोस्ट में हमने ध्यान क्या हैं , ओर सदगुरुदेव ध्यान के बारे में तथ्य रखे हैं जो की आपके लिए लाभदायक होंगे )
क्या हैं ध्यान ?, क्या सदगुरुदेव भगवान् का ध्यान इतना सरल हैं ? क्या इस गुरु ध्यान करने की प्रक्रिया या कोई प्रकार हैं जो अत्यधिक प्रभाव शाली हैं ? उन्हें किस प्रकार से हम अपने अंतर मन में देख सकते हैं ? वनारंस के एक महान संत"माधव पगला " से पादित गोपीनाथ कविराज जी ने अंत्यंत विनय पूर्वक इस प्रक्रिया के बारे में पून्छा था , तब उन्होंने कहा की हमेशा सदगुरुदेव के श्री चरणों से ध्यान प्रारंभ किया जाना चाहिए , पर ऐसा ही क्यों ? उनके दिव्या मुख मंडल से क्योंनाही ?
कारण बहुत ही सरल हैं .
किसी भी शिष्य के लिए सदगुरुदेव भगवान् के दिव्य चरण कमल ही सब कुछ हैं और सब कुछ प्राप्त करने के लिए एक मात्र आधार भी हैं .श्री चरणों से जो दिव्य किरणों का प्रसार होता हैं वह शरीर के किसी भी अन्य भाग से कहीं ज्यादा होता हैं .यही कारण हैं की न केबल प्राचीन काल बल्कि इस काल मैभी श्री गुरु के श्री चरणों के पवित्र जल से धोकर , उस चरणामृत को ग्रहण करने का विधान रहता हैं .यह चरणामृत ,श्री सदगुरुदेव जी के दिव्यता से ओत प्रोत हो जा ता हैं और इस जल को घर में छि णक ने से सब शुभता प्राप्त हो जाती हैं .
अपने आपको जानने के लिए ध्यान धारणा समाधी ये तीन द्वार हैं .अनेको प्रक्रिया अपनी श्रेष्ठता व्यक्त करती रहतीहैं ओर अनेको व्यक्ति अपनी ध्यान अवस्था की सर्वोच्चता के बारेमें प्रचार करते रहते हैं .सदगुरुदेव भगवान कहते हैं की धयान की अतिम अवस्था इतनी उच्च हैं की महाविद्याये भी ऐसे व्यक्ति के सामने हाँथ जोड़े खड़ी रहती हैं. क्या आप इस बात की उच्चता महसूस करसकते हैं ,
जब की हम मात्र आँख बंद करके बैठने को ही ध्यान मान बैठे हैं .
पर इस तथ्य को भी ध्यान रखना चाहिए ही आज के इस समय में , ध्यान करना ओर इस प्रक्रिया को लगातार करना इतना आसान नहीं हैं . जबकि जीवन हमारे सामने प्रति दिन नई नई समस्याए , नई नई चुनौतिया हमारे सामने रखता ही रहता हैं . ध्यान आपको तत्काल कोई भी समाधान तो नहीं दे सकता हैं .सद्गुरुदेव्जी कहते हैं की ध्यान एक उच्च प्रक्रिया हैं परन्तु व्यक्ति को सबसे पहले सिंह वत होना चाहिए, और अपने भाग्य का स्वयं निर्माता बने , फिर ध्यान की बात आती हैं . जबकि अभी जीवन की अनेको चीजो को पूरा करना बाकि हैं . तोकमसे कम इस युग में प्रारंभ में इतना हमारे लिए यह सहयोगी नहीं हैं .( इस बात पर अनेको व्यक्तियों के अलगअलग विचार हो सकते हैं )
जब कोई व्यक्ति कहता हैंकि वह १० मिनिट का ध्यान कर रहा हैं .यह कैसे संभव हैं ? क्या आप ध्यान की कोई सीमा निर्धारित कर सकते हैं ? नहीं .....और यदि कोई ऐसा कर पा रहा हैं तब वह कमसे कम ध्यान तो नहीं कहा जा सकता ..ध्यान तो एक ऐसी अवस्था हैं जहाँ पर काल गति भीरुक जाती हैं . और जहाँ पर समय नहीं होता हैं वहां पर ध्यान होता हैं
पायलट ने ईशा मसीह से पूछा की "मेरे भगवान् ,आपके राज्य मैंक्या होगा " उन्होंने उतर दिया " वहां पर समय/काल नहीं होगा "
कोई ये कैसे कह सकता हैं की में वहां पर जाऊंगा ओर २ मिनिट के ध्यान में खो जाऊंगा, आप बोल कर तो ऐसा नहीं कर सकते हैं जब ध्यान की सीमा ३२ मिनिट को पार कर जाती हैं तब वह धारणा में बदल जाती हैं , ओर फिर इसी तरह समाधी में इसका रूपांतरण हो जाता हैं .
अभी भी यह प्रश्न अनुत्तरित हैं की आखिर इस ध्यान में हम प्रवेश कैसे करे . कबीर दास जी कहते हैं की "जल बिच मीन प्यासी ,सुन सुनकर मोहे आवे हांसी" अर्थात जल में मछली है फिर भी वह प्यासी हैं कैसे संभव हैं , आप किसीभी व्यक्ति को स्नेह/प्रेम करना कैसे सिखा सकते हैं . यह तो हो जाता हैं . इसे किसी भी स्कूल या कॉलेज में सिखया नहीं जा सकता . नहीं कोई मास्टर डिग्री की आवश्यकता होती हैं की अब आप स्नेह के क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं .
ठीक इसी तरह कोई भी आपको गुरु ध्यान कैसे हो जाता हैं सीखा नहीं सकता हैं .न ही कोई आपको दे सकता हैं यह तो आप को स्वयं ही सीखना होता हैं .
यह तोसद्गुरुदेव की और से आपको दिया गया वरदा न हैं बस जिसे आपको समझने की आवश्यता हैं .
यह जानना किकैसे गुरु ध्यान हो , की क्या हमें अधिक देर तक बैठना पड़ेगा . नहीं नहीं ऐसा नहीं हैं .ओर आप कहते हैं की आप से ज्यादा गुरु ध्यान होता नहीं यदि आपएक मिनिट का ध्यान हो पाए तो दो मिनिट का फिर आसान हो गया क्योंकि दो मिनिट वास्तव में एक +एक मिनिट ही तो हैं .
जब कोई ये बता ही नहीं सकता की गुरु ध्यान कैसे हो . तब उनके लिए जो इस को समझ नहीं पा रहे हो तो उनके लिए की अर्थ हैं .
एक व्यक्ति केवल इंगित कर सकता हैं, दिशा दिखा सकता हैं , जिस पर चलने से ध्यान मिल सकता हैं पर हमेशा मिले यह संभव नहीं. इस बारे में कुछ इशारे हैं जो काम मे आ सकते हैं ..
ध्यान के मार्ग के लिए आवश्यक तथ्य
- सबसे पहले व्यक्ति को एक समय में एक काम करने की आदत बनाना चाहिए .
- व्यक्ति को हमेशा वर्तमान काल में ही रहने का अभ्यास करना चाहिए , भले ही परिस्थतियाँ कितनी भी विपरीत हो, एक दम से संभव न हो पाए तब एक एक मिनिट केलिए ही प्रक्टिस करे.
- शक्ति चक्र पर एकाग्रता का प्रयास करे .ओर मन मेंकोई विचार न आये.
- पहिने जाने वाले कपडे अत्यधिक कसे से न हो .
- शव आसनकी प्रक्टिस करे , हालांकि यह आसान दीखता हैं पर इसकी महारत ता की सीमा नहीं .
- प्रारंभ में ब्रह्मा महूरत में या फिर देर रात्रि में अभ्यास करे.
- प्रारंभ मेंकोई भी वस्तु ले, ओर उसके एक एक छोटे छोटे से विशेषता देखे.
- ध्यान के दौरान अपने प्रिय जानो को बता दे की कोई तेज आवाज एक दमसे न करे , यह हानिकारक हो सकता हैं .
- एक ही स्थान पर अभ्यास करे , उसे आरामदायक ओर प्रसन्नता युक्त बनाये रखे .
- उस स्थान पर किसी भी व्यक्ति को न आने दे जिसके विचार या मनो स्थति आपको अपने अनुकूल न लगती हो .
- हर परिश्थिति में प्रसन्न रहे, आपका चेरा का सीधा सम्बन्ध आपकेमन से हैं ,मन खुश हैं तो चेहरा भी वैसा दिखेगा, पर यदि चेहरा प्रसन्नता युक्त बनाया रख जा सके तोमन पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा.
- त्राटक आपके लिए लाभदायक होगा.
- गुलाबी, आसमानी रंग, के कपडे अनुकूल होंगे.
- जब शांत अवस्था मैनहो तभी अभ्यास करे .
हमेशा ध्यान रखे यह बिंदु आपकीसहायता कर सकते हैं.आपका लक्ष्य , अपने लक्ष्य को पाना हैं(वसे सच कहा जाये तो ध्यान का कोई लक्ष्य नहीं होता , ध्यान तो वह जो आपके पास हैं ही ओर आप उसे विस्मृत कर चुके हैं उसे फिर से प्राप्त करने का माध्यम हैं .).
की सदगुरुदेव भगवान् ने इस बारे मेंकुछ कहाँ हैं ..
यदि मैं सही हूँ तो समाधी के सात द्वार में उन्होंने एक ऐसा दिव्य मंत्र दिया है जिसको बारम्बार सुनने मात्र से साधक समाधी अवस्था तक पहुँच सकता हैं
गुरु ध्यानके बारे मेंकुछ आवश्यक बाते :
यदि सदगुरुदेव भगवान् हमारे मन , ह्रदय मैं रहे ओर हम अपना जीवन आन्तरिकता से उहे सौप दे, तथा, खाते पीते, चलते फिरते , ऑफिस या घर मैं भी जब भी समय मिले , ये माने की ये सब में सदगुरुदेव जी के लिए ही कररह हूँ , तब ध्यानके लिए कोई आसान पर बैठने की जरुरत नहीं रह जाएगी . क्योंकि जहाँ सदगुरुदेव हैं वही पूर्णता हैं सौभग्य ता हैं जीवन की गरिमा हैं जीवन का आधार हैं . ओर प्रसन्नता , के साथ हिसाथ सिद्धाश्रम भी तो हैं ही.
ओर अंत में उनसभी के लिए जिनके ह्रदय में सदगुरुदेव जी के लिए असीम स्नेह हैं पर किहीं कारणों वश साधना के लिए समय नहीं निकाल पाते हो एक छोटी सी दिव्यतम घटना .....
परमहंस योगानंद जी अपन एअमेरिका प्रवास में , अपने गुरुदेव द्वार दिए गए कार्योंमें व्यस्त थे वे एक सदगुरुदेव एक , शिष्य एक , महा योगी, एक शिक्षा सभी की भूमिका का निरवाह एक साथ कर रहे थे, परन्तु अत्यधिक सांसारिक जिम्मेदारियोंके कारण उन्होंने एक बार दो/तीन दिनकी अपनी साधनके लिए समय नहीं निकाल पाए . वे अत्यंत उदास हो गए.वह पूरी रात उन्होंने लगातार इश्वर से प्रार्थना करते हुए रेगिस्तान में बितायी , बारम्बार उनके ह्रदय में यही बात आती थी की हे प्रभु यदि मुझे अपनी क्रिया योग की साधना छोडनी पड़ेगी तो अछ्छा तो यही होगा की मुझे जानने की आज्ञा दे, मुझे इन सबसे कोई लगाव नहीं हैं . यही प्रार्थना उनके ह्रदय में गुंजरित लगातार हो रही थी.
तभी दिव्य ध्वनि चारो और से गुंजरित हो उठी " तुम मेरे कार्य के कारण यहाँ हो. जब तुम्सधन करते हो अब तुममेरे साथ ही हो, ओर जब्किसी कारण से तुम यह साधन नहीकर पाते हो ओर यह सोचते रहते ही की में अपनी साधन नहीं कर पा रहा हूँ तब भी में ही तुम्हारे मन ह्रदय मैंहू. तब तुम चिंतित क्योंहो."
मेरे प्रिय आप सोचे की परमहंस योगानंद जी जैसे महायोगी अपनी साधनसे कैसे लगाव रखते थे की मात्र दो /तीन दिन नहीं कर पाने पर उन्जैसे महायोगी भी ..
ओर हम ओर आप क्या कर रहे हैं ......... क्या इतनी अपनी साधना के प्रति निष्ठां हैं हमारी ....
आज के लिए बस इतना ही ....
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“Dhyam moolam guru murti “…
This the word most easy to understand but hard to make in practice ,in one sense its so easy that no more definition needed but in other so difficult that even yogies confused about that , Sadgurudev ji said to achieve dhayansth position is a boon, is a gift of nature a process to know about real self.
( though its difficult but here are both aspect “sadgurudev dhyan” and for those who are interested in only dhayan ,some points ….)
what is this dhyan?, and is that so simple to do dhayan of Sadgurudev ji?, is there any order or process which will be more effective ?.. how he should be visualize ?. great saints of Varanasi, MADHAV PAGALA ( MADHAV THE MAD) advise to gopinath kaviraj in the book “ek manishi ki lok yatra “ that it should always start from Sadgurudev divine lotus feet, and why such?, why not from face?.
Reason is simple,
for a shishya , Sadgurudev divine lotus feet is every thing, and from feet divine rays compare to all other body part highly radiates, this the reason why in ancient time and in modern time , the guru feet wash with holy water, so that the water be charged with guru’s divine energy , and drinking and sprinkling that water we will achieve everything.
Dhyan dharana Samadhi, there are many way to achieve that , many process each claiming their positive and many people claiming that they had achieved the final mark, but Sadgurudev ji said that , in the last stage even mahavidya stand up in front of such a yogi with folded hand , can you claim that level ?, where we think that just by sitting with closed eye is dhayan .
One should remember that in modern times, its not so easy to practice and be in continuous, and present difficulty and problem always place challenge in front of us. And dhyan could not give on the spot give you answer. Sadgurudev clearly mentioning that yes it is great thing, but one should first like a lion be a master of his own destiny first, and much later stage the dhyan comes. When in life many things still to be completed , in the beginning its not very helpful at least in this era. Now this point attracts different reaction so leave it here.
When one say now he is doing 10 minute dhyan, how that can be possible ?, can you fix a limit?. No …if you can that means that was not the dhyan but something else. dhyan is the stage where suppose kaal gati stand still, and when there is no time, is the base of dhyan,
Poilet asked Jesus Christ that “o my lord what will be in your kingdom”, Jesus replied “time will not be there. “
One can not say that I will go there and I would absorbs in that for 2 minit, how can you say and in absorb.
When duration of dhyan crosses the limit of 32 minute than it became converted to dharana and later became Samadhi.
The question remains unanswered how we can enter into dhyan . kabir das ji used to say that “ jal bech meen prasi sun sun mohe aawe haansi, “ its very strange that fish is in the water and still get thrusty, and how you can teach a person how to sneh/love ?, actually it happens , one can not learn in a school or in college , so that a master degree required and he will enter in to sneh field.
So like that no one can teach you what is the guru dhyan, neither no one can give you that. you have to learn yourself.
It is already given to you as a grace of Sadgurudev , only thing is needed is to recognize that.
To know whether we can do guru dhayan, and May be for that I have to sit a longer, no such a thing, if you can dhayan of one minute , its ok, but how can the duration can be made longer. simple, what is two minute it is one plus one minute that means if one minute dhyan happed than two minute is nothing but one plus one.
If no body tech us what is actually the guru dhyan , than what is the use of that those who do not understand that,
Simple. We can indicate that, provide direction , so that dhayan may happen , not always happens but it may. Actually here are some direction . and the result of that … happens
Here are the some point regarding only dhayan that help …
· Initially one must take a attitude that one time one work,
· always try to be in present tense even whatever may be the circumstances. Start this practice with one or two minit and than longer..
· practice concentration through shakti chakra .but with no thought .
· try to sit still( I said still means still), let the thought comes invite them whatever they may bad to worse, holy to evil even from related to anybody.
· Wear very loose clothe at the time of practice.
· Shavasan is the key to success, even looks easy but most difficult to master.
· Initially practice time morning at bramha mahurat . or late in night.
· Initially take any object and start visualizing that each detail minor to minute one.
· Ask your family member not to disturb you and do not make any sudden noise nearer top you, this may be harmful.
· Practice this a one place , make your best so that place will be very comfortable and enjoy.
· If possible do not enter any fellow whose thinking or vibration not suited to you.
· Be happy all the time , your face has direct relation to your feeling , if feeling are be of happy your face reflects this, so if you make your face happy naturally your heart also happy.
· Tratak help you to pure so your dhyan will be too pure.
· Yellow ,pink, light sky blue. Light green color cloths will be the best.
· Always do the practice in calm stage , not in hurry.
Always remember theses point may help you , your aim is to use them to reach the aim, use as a instrument .
But our sadgurudevji told us anything regarding ..
Kindly listen to dhyan related audio cd in sadgurudevji divine voice. And if I am right in “Samadhi ke saat dwar” cd, Sadgurudev ji provide us a mantra, and instructs us even listing continuing this mantra (if possible than make cd in that continue chanting of mantra in Sadgurudev voice), you can reach Samadhi . great.
Imp points for guru dhayan:
Instead of that if sadgurudev ji always present in our heart , and we dedicate our life this way that thinking that each moment even we are working in office /home, talking to some one , eating and other , just we are doing for Sadgurudev ji, than we do not sit to make a dhyan but every minute every sec we are with our sadgurudevji, and where he is , there is purnta , there is siddhita, happiness, joy, satisfaction, and meaning to life . and lastly siddhrasham.
In the last with a small beautiful example for those who are not having time for sadhana or mantra jap but still love very much from the bottom of heart to our beloved sadgurudevji..
Paramhansa yoganand ji, when in USA , and doing all the work which as a guru ,master teacher, he had to do as per the guide lines of his gurus. But due to heavy worldly responsibility one he missed two/three days for his sadhana, he was so sad, and that night he spent in desert continuing prayer to god that, if I have to loose my sadhana (of kriya yog) than much better allow me too move from here for me that stand nothings tome. He was doing continuous that prayer.
Than divine voice sounder from everywhere” you are here on my work, when you do sadhana , that time you are with me, and when on any reason you are not able to do that and still thinking that I am missing my sadhana, in that time I as in your mind and heart, than why to worry”
So dear one think that a yogi of pramahansa status how much love he had for his sadhana, and what are we doing……
That’s enough for a today.
****NPRU****
ab to tantra kaumudi publish kar hi do bhaiya
ReplyDeleteRespected Arifji,
ReplyDeleteReally very good article. Tnks for such useful articles.
Jai Gurudev ,
ReplyDeleteHats off to you ,is tarah ke article me jo punch hota hai kaya kahe eak naye urja bhar deta hai sath me apne galtio ka bhi pata chalta hai .
Regards
Bishwajit
Jai Gurudev,
ReplyDeleteKya fifth issue publish ho gaya hai? Agar haan, to please mujhe bhi ek bhej dijiye.
Regds