अब तक सभी कुछ कुछ तो दिव्य माँ के इस स्वरुप से परिचित हो चले हैं , पर दिव्य माँ तो सर्व काल से हमसे परिचित हैं ही, सदगुरुदेव भगवान् ने एक पूरी पुस्तक भुवनेश्वरी साधना पर प्रकाशित करायी हैं , साथ ही साथ मंत्र तंत्र यन्त्र विज्ञानं के १९९३/१९९४ के अंक में एक साधक की साधना का सम्पूर्ण विधान दिया हैं , की कैसे उन्होंने प्रतिदिन १०१ माला के हिसाब से यह मन्त्र का अनुष्ठान पूरा किया , उन्हें, प्रथम बार के अनुष्ठान से कोई अनुभूति नहीं हुयी तब उन्हें सदगुरुदेव भगवान् की यह बात आई की कई बार ऐसा भी होता हैं तो साधक को बिना निराश हुए पुनः प्रयास करना चाहिए. उस साधक ने पुनः प्रयास किया( पिछली बार की केबल यह उपलब्धि थी की उनका मन स्वतः ही साधना में लगने लगा ) इस बार उन्हें सफलता इस तरह से मिली की उनका स्कूल खुल गया , उनके बादबड़े बेटे को समाज में एक उच्चस्थ व्यक्ति के साथ रोजगार/व्यापार करने मिल गया , इस तरह से धन की वर्षा होने लगी ,साथ ही साथ उनकी बेटी ने मेडिकल सिक्षा की इच्छा की तो उसे भी उन्होंने इस अनुष्ठान की सलाह दी उसके द्वारा यह अनुष्ठान करने पर उसे भी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल गया .
+
माँ भुवनेश्वरी तो गुजरात प्रदेश की कुल देवी मानी जातीहैं इस कारण गरबा आदि का आयोजन माँ की प्रसन्न ता इस नव रात्रि त्यौहार में कैसे बड़े स्तर पर मनाई जातीहैं.
भले ही माँ महाकाली को प्रथम या आद्य माना जाता हो , पर आदि शक्ति तो माँ भुवनेश्वरी हैं ऐसा अनेक तंत्र ग्रन्थ वर्णन करते हैं जैसे कुब्जिका तंत्र .., माँ भुवनेश्वरी ही स्थिति पालन और निर्माण करती हैं , इन्हें अनेक ग्रन्थ में ज्योति ब्रम्ह और आद्या शक्ति माना गया हैं , माँ स्वयं कहती हैं की जिस तरह से ॐ को एकाक्षर ब्रह्मा माना जाता हैं उसी तरह ह्रीं भी एकाक्षर ब्रम्ह हैं .
वेदांत भी कहते हैं माया ही प्रकृति हैं , और माया से ही सारा संसार बना हैं , इसलिए माया बीज धारणी माँ ही माया , महा माया ,प्रकृति जो कुछभी कहेवह सब माँ भुवनेश्वरी हैं
स्वामी पृथ्वी धरा चार्य जो आदि शंकराचार्य की श्रंखला के एक महत योगी हुए हैं उनके द्वारा रचित " भुवनेश्वरी सहस्त्रनाम "एक दुर्लभ कृति हैं आज वह दुर्लभ हैं , पर उसका बहुत ही महत्त्व हैं .ब्रम्हा स्थूल देह के प्रतिक हैं , हरि लिंग देह के , रूद्र कारण देह के पर दिव्य माँ भुवनेश्वरी कहती हैं की मैं इन सब से भिन्न हूँ.
बहुत ही अद्भुत हैं माँ भुवनेश्वरी से सम्बंधित स्त्रोत ,१०८ नामावली का अपना ही अर्थ हैं पर खास कर भुवनेश्वरी ह्रदय स्त्रोत ,नाम ही बताता हैं की जब माँ ह्रदय में ही आ जाएँगी तब ..
जिस की आप सभी जानते हैं हर यन्त्र अपने आप में एक विशिस्ट आकृति लिये हुए रहता हैं जैसे कुछ त्रिकोण या वृत्त इनका क्या अर्थ हैं वह तो अप पिछली पोस्ट में पढ़ ही चुके हैं जो यन्त्र पर आधारित थी , भुवनेश्वरी यन्त्र मूलत दो त्रिकोण से बना हैं, ये त्रिकोण जो योनी का प्रतीक हैं वास्तव में ब्रम्हांड के शक्ति तत्व का प्रतीक हैं पर कौन सा त्रिकोण वह जो अधोमुखी हो अर्थात जिसका कोण नीचे की तरफ हो , तो उपरी मुख किया हुआ त्रिकोण शिव का प्रतीक हैं , और जब इन दोनों के संयोग से जो छ कोणीय आकृति बनती हैं वही तो भुवनेश्वरी यन्त्र का आधार हैं या दुसरे शब्दों में कहूं तो अर्ध नारीश्वर का स्वरुप हैं . तीसरा अर्थ तो यह होगा की माँ तुम किसी के आधीन नहीं हो पर विश्व तुम्हारे आधीन हैं .
पर एक महत्वपूर्ण बात यह हैं की यदि दिव्य माँ को ही प्रसन्न कर लिया जाये तो सदगुरुदेव भगवान् को प्रसन्न करने की की आवश्यकता हैं, क्या केबल मात्र माँ से भी चल नहीं सकता हैं , किसी साधक ने परमहंस स्वामी निगमानंद जी महाराज से यह प्रशन पूछा , उन्होंने हस्ते हुए उत्तर दिया , नहीं यह संभव नहीं हैं यदि कोई केबल माँ को प्रसन्न आकर ले तो यह भी हो सकता हैं की माँ जो भी उपहार दे या जो भी शक्ति दे उसी में साधक उलझ जाये , पर जो सदगुरुदेव देंगे तो उसमे माँ की प्रसन्नता सदैव रहती हैं , सदगुरुदेव यदि इशारा करेंगे तभी तो न महामाया रास्ता छोड़ेगी ,और जब तक महामाया रास्ता न छोड़े , साधक कहाँ से माया से मुक्त होगा तभी तो साधक अपने मूल स्वरुप को जान पाए गा, बिना माया से पार कहाँ, पर माँ ही रास्ता प्रस्सथ करेंगी .जो साधक चतुर हैं ज्ञान वान हैं वह जानते हैं माँ के प्रसन्न होने पर सदगुरुदेव प्रसन्न हो कोई जरुरी नहीं हैं पर सदगुरुदेव भगवान् के प्रसन्न होने पर माँ तो स्वयं प्रसन्न होती हैं साथ ही साथ सदगुरुदेव भगवान् के निर्देशन में साधक को क्या नहीं दे सकती हैं , अतएव हम सभी को हमेशा ही सदगुरुदेव तत्व को समझने का प्रयास करना ही चाहिए ,,, क्योंकि हमारे हाथ में प्रयास ही हैं ..सफ़लत तो स्वयं सदगुरुदेव हमारे बाल सुलभ प्रयासों के देख कर न जाने कब दे दे, उनकी क रुणाऔर स्स्नेह का हमसब के प्रति का कोई अंत ही नहीं हैं .
सदगुरुदेव भगवान् ने भुवनेश्वरी पंजर प्रयोग की सम्पूर्ण विधि कई बार हुम सब के हितार्थ प्रकाशित करायी हैं , उस साधना की ओर भी क्या साधक भाई बहिन ध्यान देंगे . सन १९८७ /८८ में स्वर्णिम काल में सदगुरुदेव भगवान् ने जोधपुर में ७/८ दिवसीय साधना संपन करायी थी , उस समय की अब विडियो cd उपलब्ध नहीं हैं ( न ही उनप्रयोगों के बारे में कोई भी किसी भी प्रकार की जानकारी उपलब्ध हैं )पर जो पत्रिका में दिए गए उस समय के जो विवरण हैं जो प्रयोग और साधनाए बतलाई गयी हैं ,, उसको पढ़ कर यही कहा जा सकता हैं धन्य हैं वे सभी जिन्होंने उस साधना शिविर या शिविरों में भाग लिया था और साधना सम्पन्न कर एक श्रेष्ठ स्थान अपना समा ज में बनाया हैं .
पर हमें निराश कभी नहीं होना हैं जब उन्होंने हम सभी से यह वादा कर गए हैंकि हम सभी को ज्ञान की कमी कभी भी नहीं होगी ,, सदगुरुदेव जी के शब्द तो पूरे ब्रम्हांड के लिए एक आज्ञा समान हैं, जो जो स्नेह के प्रतिरूप क्या साक्षात् हैं वह क्या अपना वादा , वो भी अपने ह्रदय अंशो से ,भूल सकते हैं .. इसका उत्तर हर पल हमारा ह्रदय ही दे रहा हैं क्या वह जानता हैं की सदगुरुदेव हर समय हर शिष्य के साथ हैं ...
आज के लिए बस इतना ही
क्रमशः
**************************************************************************
Now we all getting some more knowledge continuously about mother divine,. Sadgurudev Bhagvaan had already published a book on “ma Bhuvneshwari sadhana”. And in addition to that in the years of 1993/94 a specific sadhak real time experienced had been published in that he had to complete 101 mala per day , when he first complete his anusthan, he had no experience but on remembering Sadgurudev words that sometimes it happens but never get discouraged and again do the sadhana with more determination and devotion ( the result of the first sadhana ,now he could sit in his aasan for long duration without any difficulty ). Now this time during the sadhana kaal he had opportunity to open his own school and his elder son had got an opportunity to be part of a business as a partner that had been going to run under by some high ups, and when her daughter shows interest to become a doctor, he also advice her to go for this sadhana, on successfully completing this she also get admission in a medical college. Like this way every wish of his get fulfilled and financial stbilty also improving.
Maa Bhuvneshwari regarding as the kul devi of gujraat state that’s why in navratri time graba organized there with so large scale .
Even mother kali is consider as prathma ( the first among ten mahavidya) and also the aadya, but many tantra granth book consider ma bhuvneshari as the adi shakti like kubjika tantra… maa Bhuvneshwari is responsible for creation , caring , that’s why in many granth consider as jyoti bramha and adya shakti, ma herself says that “om” is consider as a eakshar bramha so “hreem” also consider as eakshr bramha.
Vedant says , maya is the prakriti , and through maya whole world is created ,so maa is everything like maya, mahamaya whatever you may call , everything is mother Bhuvneshwari .
Swami prathviarchary who was a great yogi in the order of addi shankarachary and “ Bhuvneshwari sahastranaam” is great book but now rarely available, bramha is representing sthul deh, so Vishnu for ling deh so Mahesh is for karan deh , but divine mother says that she is very different from all theses.
Really the power and effect of strot related mother are amazing ,like 108 namavali and Bhuvneshwari hardy strota , here names shows that when mother will be in your heart than..
As you all are already knew that every figure mentioned in yantra has some very specific meaning , what is meaning of triangle and circle? you have already read in previous post related to yantra. Bhuvneshwari yantra has two triangle, triangle represent yoni, or can say the representation of shakti tatv in the universe, only when it faces downward direction. and upwards facing triangle is the representation of male or shiv tatv in the universe. When theses two triangle meets or crosses each other, a six angular fig forms that shows shiv shakti or ardhnarishware form or also shows whole universe is in control of her
. on every important question is that if any one pleased mother only, why he need to be also get blessing of his Sadgurudev, only mother blessing is not enough? The same question had been asked to mahayogi swami Nigmanand ji , he replied with smile, “no that is not possible, if suppose this has been done/happens, so it may possible that mother give such a things or such power that your whole life just pass playing with that , and you can not come over that ,but Sadgurudev, when ,whatever would give to you in that divine mother blessing already with you. always remember, and mother only give you way to go ahead until Sadgurudev give instruction to her. and if mahamaya , not give you way than no way to proceed further, those sadhak who are very cleaver and have faith (not belief) in Sadgurudev already knew that , when Sadgurudev bhagavaan happy than automatically divine mother also happy. and on the permission of Sadgurudev what not mother gives to her child,, “that’s why we all always need to understand more and more, love/sneh more and more to Sadgurudev and gurumantra , guru sadhana be a part of our life. we can only have efforts , no one now when Sadgurudev on seeing our small effort , will give us of that whatever about that we have no idea., Sadgurudev compassion with blessing and sneh towards us understand no boundary means its endless.
Sadgurudev Bhagvaan published Bhuvneshwari panjjar prayog for our benefit so many times in magazine, our sadhak brother and sister will look into that … in that year of 19987/88 when Sadgurudev bhagvaan had organized two 7/8 days long shivir only on mother Bhuvneshwari sadhana, the video cd of that time is not available (neither no complete detail about the prayog happened that time available ) but the highlights and some very small details are now available about the prayog name and sadhana happened there.
Now we can only say that blessed were they, who took part in that shivir and achieved a very respectable position in society too.
But we never ever discouraged , when Sadgurudev himself promised to ail of us that we never have to worried about the gyan knowledge , that will be automatically available to we all., the words of sadgurudev is a agya to whole universe and he is the sneh. so how can he forget his promise that too his own soul part , ask answer of this question to our heart , Sadgurudev is /will always with every each and every shishy/shishya ….
This is enough for today
In continuous ..
****NPRU****
No comments:
Post a Comment