उतार चढाव तो मानो
जीवन का एक हिस्सा हैं , और जो इस
बात को समझ लेता हैं वह
कुछ हद तक
जीवन की गति को भी समझने लगता
हैं वह अब बात बात में
दुखी नहीं होता वह पुरे
जीवन को एक सम भाव दृष्टी से ही देखने लगता हैं .. और
यही तो रहस्य हैं सम भाव में जीने
का , वह
जो न दुःख में
दुखी होता और न
जो सुख में सुखी होता हैं वही तो हे
अर्जुन मेरा प्रिय हैं,, ऐसा भगवान् श्री कृष्ण ने कहा था ,,, सदगुरुदेव जी कहते हैं इसका यह मतलब
नहीं लिया जाए की व्यक्ति निठल्ला ही बैठ
जाये यह भी तो ध्यान में रखो
की जिस महा योगी परम
पुरुष ने यह बात कहीं थी
वे जीवन में
कितने कर्म शील थे
उन्होंने कब जीवन से समझौता
का मार्ग हमेशा
बताया , हाँ
वे शांति के पक्ष धर थे पर एक
सीमा तक
ही .......उन्होंने यह भी तो कहा था की
ऐसा क्या नहीं
हैं जो मुझे प्राप्त नहीं हैं पर
फिर भी मैं कर्म रत हूँ क्योंकि जैसा उच्च व्यक्ति करते हैं उसी को दृष्टी
गत करके अन्य
लोग अपना जीवन
निर्धारित करते हैं..
पर यह भी सच हैं की जीवन के
इस बार बार उतार चढाव से व्यक्ति
कभी कभी परेशां हो कर यह भी सोचने लगता हैं की कुछ पल के
लिए तो इस उतार चढाव
से हट कर शांति का
अहसास तो हो ,, और तब
तंत्र की षट कर्म विधा में से
एक “शांति
कर्म “का स्थान आता हैं .
हमें इस बात को नहीं भूलना
नहीं चाहिए की
तंत्र के " ष ट कर्मो
" में "शांति
कर्म" का भी अपना
स्थान हैं जिस पर साधक
ध्यान नहीं देते , आप ही बताये
किसी भी साधना करने के लिए
एक निश्चित वातावरण मतलब अनुकूलता
की तो जरुरत होती हैं
ही और यह न हो तो
कम स एकं जब तक मंत्र जप किया जा
रहा हो तब
तक तो...
सदगुरुदेव जी ने
एक मंत्र बहुत पहले पत्रिका
में दिया था ,
व्यक्ति के क्रोध को शांत
करने का उसी से मिलता
जुलता यह प्रयोग आपके जीवन में
आराम के पल लायेगा,
बार बार यह भी कहा जा
चूका हैं और सारे
तंत्र्ग्य इस बात पर एक
मत हैं कि पीपल के पेड़ में ऐसा कुछ
विशेष हैं जो व्यक्ति की अनेको
समस्याए बहुत आसानी से दूर
कर सकता है , जैसे की गंभीर रोगों से
युक्त व्यक्ति पीपल के
पेड़ पकड़ कर
खड़ा हो जाये और महसूस करे
की पीपल की जीवन प्रदायनी शक्ति
उसके अन्दर प्रविष्ठ
हो रही हैं तो पायेगा वह की
उसकी जीवन शक्ति बढती जा रही हैं और उसके
गंभीर रोग में सुधार होना
चालू भी होगया क्योंकि यह
पेड़ अपने आप में
परं उर्जा का विशाल
भण्डार हैं.....
तो इस प्रयोग
में आपको सांय काल पीपल
के पेड़ में मीठा पानी
अर्पित करना हैं और यदि
कुछ अगरबत्ती आदि भी वहां लगा दे तो
अच्छा होगा मन्त्र-
ॐ नमः शान्ते
प्रशान्ते ॐ ह्रीं ह्रां सर्व
क्रोध प्रशमनी स्वाहा |
आप प्रति दिन १०८ बार उच्चारण कर सकते हैं , और जो भी लडाई झगड़ा आपके परिवार में यदि चल रहा हैं तो वह भी दूर होगा
और अब आप आराम से
अपनी साधना या उच्च
जीवन के बारे में निर्णय
ले सकते हैं , क्योंकि यदि हमारा
आवास स्थान में ही लडाई झगड़ा
और तनाव बना रहेगा
तो यह कैसे संभव हैं की
व्यक्ति आगे कुछ
उच्च सोच सके , भले
ही यह प्रयोग बहुत सरल हैं पर यह भी
ध्यान देना चाहिए की यह जरुरी
नहीं हैं की सरल प्रयोग हैं तो
देर से अ सर देगा .... जीवन में
सभी चीज का एक अर्थ तो हैं ही ...
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Ups
and down makes the rhythm of life,
and one , who understand this philosophy he
is able to understand the
way of life a little, now he is not
in sorrow in small misfortunate nor he
felt extremely happy , when he encounter
something very positive. And he ,
now takes life
in even mindness condition.
Bhagvaan shri krishn advocated
this things. Sadgurudev ji
says that this
does not mean that person became
total idle , one should
see , who is
saying the word , and
how was the life of Bhagvaan shri krishn ,,that
is full of extremely working , busy
in positive work. And
bhagvaan shri krishn said that
, I have
everything , I do not need anything but still I
do work , since
as the higher level person
do , other person in society will work accordingly.
But this is
also true sometimes person is
, because of the rhythm of thses ups and
down felt very sad
and want some moment
of peace . and this
is the place where one of
the karm of famous
tantra’s shat karm comes
in to picture.
One
should not forgot that this
“shanti karm “ has its own place in
tantra shat karm. On that
in general sadhak often does not
pay much attention. Think about a minit
without having peace in your life
, how
you can proceed on the path or
proceed on the sadhana field. At least
one should have mental peace
when he is doing the
mantra jap.
Sadgurudev ji has given one , such a
mantra to control person’s anger, and
very similar to that mantra here in this sadhana ..mentioned.
This has been told many times ,that there is some very
vital force reside in pipal tree , and
this has been accepted by
all the tantragy too. And if any person suffering from severe illness and if
stand very close to this
tree and try to
encircled this tree
with his both hand and
feel that the great energy forces coming in his body so
instantly, he will receive that too. Since this tree is
full of great life energy forces.
So you have to offer
some sweet water to
this tree in evening time and do
poojan with agarbaati ,
Mantra :
Om namah shante
prashante om hreem
hraam sarv krodh prashamni
swaha ||
Now you can chant every day 108
times this mantra than whatever the friction arises in your family
life means between your
family member , that will be reduces
to much level and
you will feel much relax.
Do not think that since this
is very easy prayog so may be its
result will be very late
.. each and every prayog ha s its
own value.
****NPRU****
Dear
ReplyDelete''you havnt given any prayog for navgrah shanti.....yet, that should have been your first priority.....''
Rahul
dear brother this is not a question of first priority , since we are also publishing tantr a kaumudi e mag and kindly visit our face book group "nikhil-alchemy" where too you can find the nav grah related sadhana .prayog , so we try our best that atleast no previously published article should be again post on blog.
ReplyDeleteany way we will see what will the best can be given in this regard very sson since your suggestion is in our mind, smile
Anu
so sweet of you...
ReplyDeleteMmmuuaah!