Saturday, February 25, 2012

ज्ञानमयी भुवनेश्वरी साधना (GYANMAYI BHUVANESHVARI SADHNA)


पिछले कुछ लेखो मे हमने हमारी आतंरिक त्रिशक्ति के विविध पक्षों के सबंध मे जाना. वस्तुतः जेसे हमारे ऋषिओ ने कहा है की सभी शक्तिया हमारे अंदर ही होती है तो इसके पीछे उनका गहन चिंतन तथा गुढ़तम अभ्यास कारणभुत है. व्यक्ति जब साधना के क्षेत्र मे प्रवेश करता है तो अबोध होता है तथा वह धीरे धीरे अपनी ही चेतना का विकास कर खुद अपनी ही शक्तियों का विकास करता है. लेकिन इन सब के मूल मे क्या है जो की व्यक्ति को साधना मे चेतना देता है, कौनसा वह मुख्य तत्व है जिसके फल स्वरुप व्यक्ति अपने जीवन की न्यूनता का बोध करता है? वह है ज्ञान. जब व्यक्ति को किसी भी चीज़ के बारे मे पता नहीं होता तब तक उसे प्राप्त करने की विधि विकसित होती ही नहीं जिसे इच्छा शक्ति कहा गया है. और जब इच्छा ही नहीं होगी तो फिर प्राप्ति के लिए मूल प्रक्रिया भी नहीं होगी जिसे क्रिया शक्ति कहा गया है.
वस्तुतः हमारे जीवन के दोनों पक्षों मे हमें ज्ञान शक्ति की अत्यधिक ज़रूरत होती ही है. लेकिन ज्ञान और जानकारी मे भी मूलतः अंतर है. किसी भी विषय के तथ्यों को दिमाग से समज लेना यह जानकारी हुई. और उसी चिंतन को अपने मन मे आत्मसार कर लेना, वह ज्ञान हुआ. एक वैदिक साहित्यकार को वैद का और उपनिषद के बारे मे सब जानकारी होगी लेकिन ज़रुरी नहीं है की वह ज्ञानी भी हो. दूसरी तरफ एक व्यक्ति ने वैद की एक मात्र ऋचा को जाना और अपने जीवन मे आत्मसार कर लिया तो वह ज्ञान हो गया. ज्ञान जानकारी का संग्रह नहीं लेकिन संचार है. इस प्रकार हममे यह भी ज्ञान होना ज़रुरी है की जो भी प्रक्रिया हम कर रहे है वह कितनी योग्य है, या फिर हममे क्या न्युनाताए है. हमें किस क्षेत्र मे कार्य करना होगा. ज्ञान के विकास के साथ व्यक्ति को आत्म बोध होने लगता है और फिर उसे खुद ही अपने इन सारे प्रश्नों का जवाब मिल जाता है. वस्तुतः यह साधना भौतिक क्षेत्र मे लाभ प्रदान करती ही है, साथ ही साथ आत्मज्ञान से व्यक्ति आध्याम क्षेत्र मे भी पूर्ण रूप से गतिशीलता प्राप्त कर लेता है.
महाविद्या भुवनेश्वरी तो तीनों लोको का कल्याण करती है. अपने साधक के अंदर की कमजोरियो को दूर कर ज्ञान का उदय करती है. साथ ही साथ साधक के ज्ञान तत्व को भी जागृत कर, आत्मबोध के रहस्य से पर्दा उठा देती है. इस परिस्थिति मे साधक को खुद ही अपने विविध प्रश्नों के उत्तर स्वतः ही मिल जाते है और अहंकार, जुगुप्सा, तथा कर्मगत स्वभाव से मुक्ति हो कर चित निर्मल होता है.
इस महत्वपूर्ण साधना को किसी भी शुभ दिन से शुरू किया जा सकता है. अपने सामने अगर भुवनेश्वरी का यन्त्र चित्र स्थापित हो तो उत्तम है. साधक रात्री काल मे १० बजे के बाद देवी का सामान्य पूजन करे और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करे. इसके बाद साधक स्फटिकमाला से निम्न मंत्र की २१ माला जाप करे. इसमें दिशा उत्तर रहे और आसान तथा वस्त्र सफ़ेद.
 ह्रीं भुवनमोहिनी आत्मज्ञान जाग्रयामि ह्रीं नमः
साधक यह प्रयोग ११ या २१ दिन करे. साधक अपने आतंरिक परिवर्तन को साधना काल से ही महसूस करने लगता है. प्रयोग समाप्ति पर साधक माला को किसी देवी मंदिर मे चडा दे.
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In last few articles we understood about various aspects of the internal tri power. In fact when our sages told that all the powers are within us internally then there was deep thinking and study behind their this statement. When a person enters in sadhana world he considered as unknown to self and slowly by increasing inner consciousness one develops their powers. But what is the base which gives consciousness to the person, which is the basic element with which one gets to know about the deficiency? That is Gyan (knowledge) when human is unaware about anything till that time there remains no will to achieve it which is termed as ichchha shakti or will power. And when there is no will there remains no process to achieve this which is termed as Kriya shakti.

In fact we really need gyan shakti for both sides of the life. But there is a bit different between Gyan and information. To understand aspects of anything with brain is information. And that same information is when applied for practice in mind becomes gyana. One Vaidik zone Author might have information about majority things about Vedas and Upanishad but with this we cannot say him as Gyani.  On other side there is one person who knows only one hymn of Veda and he set it in his mind and soul that become his knowledge. Gyan or knowledge is not a collection of knowledge but realization of that knowledge and flow of the same. This way, we should also have gyana or knowledge that whatever process we are doing how correct is that or else what are the internal obstacles. In which aspect we should get involved in work. With the increment in knowledge, one will feel the aatmabodha (knowledge of self existence) and thus after which one will start having answers from them self only. This way, this sadhana provides benefit in material life but with that it also provides mobility for a way in spiritual life with Atma Bodha.

Mahavidya Bhuvaneshwari blesses all the three worlds. She increases knowledge by removing all the internal obstacles of the sadhak. With that by activating knowledge element, she throws light on aatmabodha. In such situation sadhak will start receiving answer for questions and have a pure heart by being free from ego, disgust and impure nature.

This important sadhana could be started from any auspicious day. It is gud if one establishes yantra and picture of Goddess Bhuvaneshwari. Sadhak should do normal poojan of devi after 10PM in night and should pray for the internal knowledge of one’s self. After this one should chant 21 rosary of the following mantra. Direction should be North and aasana & cloths should be white.

Om Hreem BhuvanaMohinee AatmGyaan Jaagrayaami Hreem namah
Sadhak should do this process for 11 or 21 days. Sadhak will start feeling about the internal change being occurred while sadhana duration. After Prayog sadhak should place the rosary in any Goddess temple. 
   

                                                                                               
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