सफलता पाने के लिए जीवन मे आत्म विश्वास एक सबसे बड़ी आवश्यकता हैं , अब यह सफलता चाहे आध्यात्मिक क्षेत्र मे हो या भौतिक क्षेत्र मे ...पर बिना आत्मविश्वास के ....
बड़े बड़े वाक्य कह देने से तो आत्म बिश्वास नही बन जाता हैं जब सब कुछ सही चल रहा हो तब बात अलग हैं तब जो कहें सब ठीक हैं, पर जब सब टूट रहा हो ....नष्ट हो रहा हो जीवन के प्रति निराशा सी आ रही हो तब ..
इस समय साधना ही एक ऐसा मार्ग सामने रखती हैं जो जीवन मे पुनः आशा का संचार कर देती हैं . साधक सामान्य रूप से नव ग्रह का महत्त्व जितना होना चाहिए उनके जीवन मे.....खासकर साधना क्षेत्र उतना नही समझते हैं इसे बस मात्र ज्योतिष तक ही सीमित रख देते हैं जबकि वस्तु स्थिति बहुत ही विपरीत हैं .
ग्रह राज्यं प्रयच्छनति ग्रहा राज्यं हरन्ति च |
ग्रहेस्तु व्यापितम सर्व जगदेतच्चराचराम ||
ग्रह ही राज्य देते हैं और ग्रह ही राज्य का हर ण कर लेते हैं ,इन ग्रहों के प्रभाव मे सम्पूर्ण चर और अचर हैं , सभी ओर इनका प्रभाव व्याप्त हैं .
नव ग्रह ही हमारे जीवन मे सुख दुःख , लाभ हानि और आशा , उमंग और आत्मविश्वास का का रण होते हैं या बनते हैं. सदगुरुदेव जी ने एक साधक का अनुभव पत्रिका मे दिया था जिन्होंने किसी विशेष साधना मे छ या सात बार असफल होने पर अपने गुरु से पूंछ कर नव ग्रह शांति का अनुष्ठान किया और साधना मे सफलता पायी .इस बात का परिचायक हैं कि नव ग्रहो का महत्त्व कितना हैं .
ठीक इसी तरह जीवन मे जब भी कुछ ऐसे विपरीत ग्रहो का समय आये या गोचर वत अवस्था जिनकी स्थिति साधक की कुंडली मे ठीक नही हैं तब स्वाभाविक रूप से मन मे गहन निराशा का आविर्भाव होना स्वाभाविक सा हैं .
ज्योतिष मे सूर्य को नव ग्रहो मे ग्रह राज की उपाधि से विभूषित कर रखा हैं और यह उचित भी हैं सूर्य देव की उपयोगिता को ध्यान मे रखने पर . साथ ही साथ सूर्य देव आत्मा के भी प्रतीक हैं
ऋग्वेद कहते हैं ..
“सूर्य आत्मा जगतस्तस्थषचश ||”
सूर्य सबकी आत्मा हैं .
जिनकी भी कुंडली मे यह सूर्य तत्व कमजोर हैं स्वाभाविक हैं कि उनमे जल्दी ही निराशा का बार बार आगमन होना , और यह स्थिति किसी भी दृष्टी से ठीक नही हैं .
शांकर भाष्य कहता हैं ..
“रश्मीना प्राणां ना रसानां च स्वीकर णा त सूर्यः ||”
सूर्य रश्मि ही समस्त प्राणियों की शक्ति हैं .
पर यह भी सच भी हैं कि जब आत्मा मे ही उमंगयुक्त नही होगी तो शरीर तो अनुचर मात्र हैं अकेले शरीर कुछ भी नही कर सकता हैं .
“ आरोग्यम भास्करादिच्छेत “
मानसिक और बाह्य दोनों रोगों की निवृति सूर्य उपासना से हो जाती हैं .
अगर सूर्य से संबंधित रत्न पहिने जाए तो कुछ और नयी समस्याए सामने आ सकती हैं कि वह किस भाव के मालिक हैं या उनको स्थिति कैसी हैं इन सब बातों मे न जा कर यदि सूर्य देव के तांत्रिक मंत्रो का सहारा लिया जाए तो परिस्तिथियाँ बहुत ही जल्दी अनुकूल मे आ सकती हैं
यह आवश्यक भी हैं क्योंकि जीवन के हर क्षेत्र मे आत्मविश्वास और उत्साह उमंग की आवश्यकता होती हैं और जीवन मे भी वहीँ लोग ज्यादा सफल होंगे जो की गहन आत्मविश्वास से युक्त होंगे .दुखी और निराश लोगों के साथ कोई भी नही रहना चाहता हैं .
सूर्य तत्व प्रधान व्यक्ति जीवन मे निश्चय ही उचाईया छूते जाते हैं ,भगवान हनुमान , आदि शंकराचार्य , सदगुरुदेव , भगवान राम आदि सभी व्यक्ति सूर्य प्रधान ही रहे हैं और इनका आज तक क्या प्रभाव और योग दान रहा हैं वह किसी से छुपा नही हैं , नही कोई परिचय का मोहताज हैं .
सूर्योपनिषद स्पस्ट करता हैं की
सूर्याद भवन्ति भूतानि सूर्येण पालितानी च |
सूर्यं लयं प्रापुयु य: सूर्यः सो sमेव च ||
सूर्य ही जगत की उत्पत्ति पालन और नाश के का रण बनते हैं .
इन सूर्य देव को अनुकूल करने के लिए यन्त्र विज्ञानं मे भी एक प्रयोग हैं उसे उपयोग मे लाया जा सकता हैं .
भोज पत्र मे लाल चन्दन से इस यंत्र का लेखन करना हैं , और दिन निश्चय हीदिन सूर्य वार मतलब रविवार होगा ,और ताम्बे के ताबीज मे इसे रखकर धारण किया जा सकता हैं .यन्त्र की पहले पूजा अर्चन जरुर कर ले धूप आदि से और पुरुष वर्ग इसे दाहिनी भुजा मे और स्त्री वर्ग इसे बायीं भुजा मे धारण कर ले ..
यंत्र निर्माण के सभी सामान्य नियम कई कई बार पोस्ट मे बताये गए हैं . अतः पुनः उल्लेख ठीक नही हैं . आप सभी के जीवन मे सूर्य तत्व प्रबल हो जिससे कि आप आत्मविश्वास से लबालब भरे हो और एक योग्य साधक बन कर जीवन मे लाभ उठाए .
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To attain success in life, self-confidence is
needed the most. Whether the success is in spiritual field or materialistic
field……..but without self-confidence…..
Just superfluous talks will not create
self-confidence. When everything is happening right for you, then it is
different thing, whatever you say is correct, but when everything is
crumbling…….getting destroyed, a sense of frustration is creeping in towards
the life then…..
At such times sadhna only puts the way forward
which instils the hope again in the life. Generally, sadhak does not understand
the due importance of nine planets in their life, especially in sadhna field.
They limit them merely to astrology. However the actual condition is exactly
opposite.
Grah RajyamPraychnatiGrahaRajyamHarenti Ch |
Grahestuvyaaptimsarvjagdetcgracharaam ||
Planets only give kingdoms and planets only steal
the kingdom. Due to the influence of these planets, all moving and non-moving
things are there. Everywhere their influence is evident.
These nine planets only are the reason or becomes
the reason for happiness, pain, profit, loss, optimism, joy and self-confidence
in our life. Sadgurudevji had given the experience of one sadhak in the
magazine that, upon getting failures 6-7 times, after asking Gurudev, did the
anushthan to pacify the nine planets and got success in sadhna. This incident
indicates the supreme importance of nine planets.
Similarly, when the time for opposite planets comes
in the life or due to transit of planets, a situation arises which is not
suitable in sadhak’s horoscope then it is quite natural for the feeling of
hopelessness to arise in your mind.
In astrology, sun has been honoured as king of the
nine planets. And this is correct too, considering the importance of lord sun.
To add to that lord sun signifies our soul.
Rigveda says………
“Surya
AatmaJagatststhshchsh||”
Sun is the soul of everyone.
Whose horoscopes have the weak sun element, it is
natural that very soon, frustration will enter their life again and again and
this condition is not at all correct from any point of view.
Shankar
Bhaasya
says….
“RashmeenaPranaamNaaRasanaam
Ch SweekarNaa Ta Suryah: ||”
Sun rays only are the power of all creatures.
But this is also true that if soul is not joyful,
then body is only a servant. Body alone can’t do anything.
“AarogyamBhaskaradichet”
All the mental and external diseases can be cured
by worshipping sun.
If any gems related to sun are worn, then some new problems can arise
like which house sun is the lord of or what are the condition of them. Rather
than going into all these, if we take assistance of tantric mantras then
circumstances can become favourable very quickly.
This is necessary also because every field of life
requires self-confidence, enthusiasmand zeal. In life those persons will be
more successful who are confident. Nobody wants to live with sad and frustrated
persons.
Allpeople who have the supreme sun element
definitely reach the top. Lord Hanuman, Aadi Shankracharya, Sadgurudev, and
Lord Ram etc. all these were sun-central. Their contribution and influence is
not hidden from anyone, nor does it need any introduction.
Suryopnashid explains that
SuryaadBhaventiBhootaaniSuryeenPaalitaani Ch |
SuryamLayamPrapuyu
YahSuryahSohamev Ch ||
Sun
is the cause of origin, maintenance and destruction of the world. To make lord
sun favourable, there is one process in Yantra science which can be used.
Make
this yantra (given above in diagram) on Bhoj patra with Red sandal and the day
definitely will be the day of sun means Sunday. It can be worn in copper
amulet. First do the worship of the yantra with dhoop etc. Male should wear it
on right arm and female on the left arm.
All
the general rules regarding yantra construction has been given in the various
post many times so it is not correct to reiterate them. May you all have the
strong sun element so that you are full of self-confidence and become able
sadhaks and attain success in life.
****NPRU****
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PLZ CHECK : - http://www.nikhil-alchemy2.com/
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