साधक के जीवन का सौभाग्य चरम पर होता है जब वो अपने सद्गुरु की
विराटता को अपने दिव्य नेत्रों से देख सके ,उनके ब्रह्म रूप को देख सके अपनी आत्मा,अपने जीवन में उतार
सके l ब्रह्म का
तात्पर्य है अपने आत्मस्वरूप को समझना ,उससे परिचित होनाlउस
ज्ञान के द्वारा जीवन के उन रहस्यों को समझना जिसके द्वारा साधक अपनी कुंडलिनी
जाग्रत करता हुआ आज्ञा चक्र तक पहुचता है और उस आज्ञा चक्र का भेदन करता हुआ शरीर
के सर्वोच्च शिखर सहस्रार को जाग्रत करता हुआ उससे झरते हुए आनंद और अमृत का पान
करने की क्रिया संपन्न करता हैl मगर ये आनंद दो ही तरीकों से
प्राप्त हो सकता है –
कुंडलिनी जागरण कर कुंडलिनी को आज्ञा चक्र से भेदित कर सहस्रार तक
पहुँचाना l
या सद्गुरु के चरणों का आश्रय लेकर उनसे अत्यधि गोपनीय ब्रह्मत्व गुरु मन्त्र
प्राप्त कर ,उसकी जप शक्ति से ही इस गृहस्थ जीवन में रहते हुए सहस्रार भेदन कर
पाना l
पहला तरीका अत्यधिक दुष्कर
है और उसमे सतत अभ्यास व निर्देशन की आवशयकता होती ही है l कई बार मात्र एक चक्र को स्पंदित करने में ही पूरा
जीवन चला जाता है सम्पूर्ण कुंडलिनी की बात कौन कहे l परन्तु
जो दूसरा तरीका है वो कही ज्यादा प्रभावकारी और सफल है ,जिसमे सद्गुरु की शक्ति का
ही आश्रय लेकर कही सुगमता से शिष्य सहस्रार को जाग्रत कर सकता है और आज्ञा चक्र का
पूर्ण भेदन हो जाने के कारण उसे वह ज्ञान प्राप्त हो जाता है जिसे वेद “ब्रह्म रहस्य” के नाम से जानते हैं l और तब उसे अपने सद्गुरु की विराटता प्रति क्षण
दृष्टिगोचर होती रहती है l इसके बाद साधक के जीवन में
याचकवृत्ति का कोई स्थान नहीं रहता है ,अपितु वो प्रकृति का साथ तटस्थ होकर सहचर
भाव से ही देता है ,साधक के लिए ऐसे में कुछ भी ,कोई भी ज्ञान अगम्य नहीं रहता है l
इस साधना का प्रारंभ सदगुरुदेव के सन्यास दिवस या किसी भी गुरूवार
को महेंद्र काल से प्रारंभ करते हैंl
इस साधना में ध्यान रखने योग्य बात मात्र इतनी है की मूल मन्त्र के
पहले और बाद में ११-११ माला गुरु मंत्र की करना है और बीच में निम्न मंत्र की ५१ माला करनी है ,साथ ही
साथ ये भी ध्यान रखना है की शुक्रवार से इस साधना को ब्रह्म मुहूर्त में ही संपन्न
किया जाता है और ये कुल १४ दिनों की साधना है सभी सामान्य नियमों का पालन करते हुए
नित्य गुरु पूजन करना है और सदगुरुदेव हमें अपने विराट स्वरुप के दर्शन करवाए और
ब्रह्म रहस्य से अवगत कराये, इसी भावना से स्फटिक माला से जप करना है lवस्त्र व आसन श्वेत ही रहेंगेl बाजोट पर गुरु चित्र ,गुरु पादुका और शक्तिपात साधना में जो यन्त्र बना
है ठीक उसी यन्त्र का निर्माण कर बाकि साडी प्रक्रिया वैसी ही करनी है l
ब्रह्मत्व गुरु सिद्धि मन्त्र-
ॐपरात्पर ब्रह्म स्वरूपं निर्विकल्पं आज्ञाचक्र दयैति गुरुवर्यै नमः l l
साधना के मध्य में ही साधक का ध्यान लगने लग जाता है और उसे विविध
दृश्य दिखाई देने लगते हैं lवे
सभी दृश्य भविष्य या भूत काल से सम्बंधित होते हैं,जिनका हमारे जीवन से गहरा
सम्बन्ध होता है lधीरे धीरे आप उस दृश्य के अर्थ को समझने लग
जाते हैं और एक समय बाद आप जिस किसी का भी चिंतन कर मात्र १०८ बार मंत्र का जप कर
नेत्र मूँद कर ध्यानस्थ होते हैं, आपके नेत्रों के समक्ष उस व्यक्ति की सभी गतिविधि
स्पष्ट होते जाती हैंl
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The good fortune is any
sadhak is on peak when he himself see the Viraat Swarup of his Saadguru by his
own eyes, our soul could see his brahma rup, imbibe it in our life.
That’s the only wish. Here Bramha means – to understand our own internal form,
to get introduce. And with that knowledge fathom the secrets of life. Via which
activating the energy of Kundalini reached upto Agya Chakra and passing it
reached at the highest peak of body i.e. sahastrar and feels and equally
realize the state and he ends up the process. But this happiness can be
discover only by two ways –
Activation of Kundalini
and taking Kundalini to agya chaktra crossing all other chakras and reaching
upto the Sahastraar.
Or requesting into the
holy feets of Sadguru and earning very secretive Brhmatva Guru Mantra from him, only with that
Shakti one can reach to its highest in this marital life also.
First way is very
difficult and it continuously needs practice and guidance. Most of the times
whole life can go for activating only one chakra so don’t ask for whole
kundalini activation approx. time. But the second way is most effective and
successful way, in which Sadguru’s power is taken as support and shishya easily
reached upto the sahastrar level. After crossing Agya chakra he gets the
knowledge which is known as “Universal Secrets (Brahma Rahasya)”. And then he is
able to see all the time viraat swarup of his sadguru. Then after there is no
place of requesting mode in sadhak’s life, rather he accompanies the nature
with same level. In that way for Sadhak nothing remains impossible.
You can start this sadhna
on Sadguru Sanyas Day or any Thursday of Mahendra Kaal.
In this Sadhna only one
thing which you should keep in mind i.e. Before and after of Mool Mantra 11-11 rosaries guru mantra are must and in mid of it
51
rosaries,
along with that keep in mind that you should finish it on Friday early morning
time i.e. Bramha Mahurt. This is 14 days sadhna followed with all general
instructions with daily guru pujan too. And sadgurudev himself express their
Viraat swarup and aware us with the universal secrets. With the same feeling
proceed for sadhna with Sphatik (crstal) rosary. Clothes and Asana should be of
white color. On small table place the Guru Picture, Guru Paaduka and the yantra
used in Shaktipaat Saadhna. Produce similar yantra and complete the
sadhna with same procedure as before.
Brahmatva Guru Siddhi Mantra –
Om Paraatpar Brahma Swarupam
nirrvikalpam agyachakra dayeeti guruvaryai namah.
In between of sadhna sadhak’s meditation happens automatically.
And various dreams become visible which are related to his past and future,
these are deeply related to our present life. Gradually you are able to grab
the meaning of those dreams and certain point of time about whomsoever you
think of and chant the mantra for 108 times and sheer closed eyes with
concentration, all the activities of that person appears as picture.
****NPRU****
Jai Gurudev, Guru Kamalacharanebhyo namah. Thank you for posting the right sadhana on right time and reminiding all sadhaks about sadgurus birthday. jai gurudev
ReplyDeletesir kya aap muje av tak ki aapki saree तंत्र कौमुदी patrika mail kar sake hai. ye blog mene av dekha hai.me av tak aapki is aamulye darohar se vancht the.
ReplyDeleteplese send pdf format hindi तंत्र कौमुदी.
thankyou.