Wednesday, May 9, 2012

आहुति विज्ञानं कुछ ज्ञात अज्ञात तथ्य ...भाग -१


आहुति   यह शब्द   ही अपने  आप  मे  दिव्यता   का  परिचायक हैं ,और   क्यों   न हो ...सारी भारतीय  सभ्यता   का परिचायक  जो यह    हैं१०८ दिव्य  विज्ञानों  मे  से   यह  एक  हैं  जो   हमारी   लिए  अनेकानेक तरीकों  से     गुण वर्धक हैं ....... ज्ञान वर्धक हैं......... पुष्टि  वर्धक   हैं  ..यह   इसलिए  की    यज्ञ   या होम या  हवन  मे  दी गयी आहुति के माध्यम  से  देव वर्ग पुष्ट  होते हैं  वातावरण  शुद्ध  होता   और आध्यात्मिक   स्तर  मे       अत्यंत   उच्चस्तरीय परावर्तन/परिवर्तन  लाये  जा  सकते हैं   , देव ता शब्द  का अर्थ  ही हैं  जो दे   ता  हो और  जब   देव वर्ग सबल    प्रबल  होगा  तो   साधक पर   इसका  सीधा  सा  प्रभाव होगा  ही . क्योंकि   अगर  हम बाह्य गत  देव वर्ग   देखते हैं   तो यथा पिंडे  तथा  ब्रम्हां ड   के अनुसार   से   अगर बाह्य गत  देव  वर्ग  प्रबल  होगा  तो  अन्तः  ब्रम्हांड  स्थित  देव  वर्ग   जो उस बाह्य गत   ब्रह्माण्ड   की   सत्य  प्रतिकृति  हैं वह भी तो पुष्ट  होगी . और   इसका  सीधा  सा  लाभ हमें  भी   प्राप्त होगा .

तंत्र   रूपी दिव्य   ज्ञान  के सागर  को भला  नाप  भी कोई  कैसे  सकता  हैं , जिस  ज्ञान की   सीमा के  लिए भी वेद भी नेति नेति कहते हैं  .....  तो  भला  इस    
 दिव्य  ज्ञान की कोई  सीमा निर्धारण  कर सका हैं   इसका  उत्तर  तो किसी के पास  नही  हैं   पर    हम सबको जो परिचय हमें  सदगुरुदेव   द्वारा दिया  गया हैं की  की  १०८  प्रमुख  विज्ञानं हैं  और  उनमे से एक    यज्ञ   विज्ञानं  या  इससे सबंधित आहुति विज्ञानं  हैं दोनों का सबंध ऐसा  की  जैसे  देह और आत्मा  का ..एक के  बिना   दूसरे का अर्थ हो  ही नही सकता हैं .

और मानव जीवन  खासकर  हमारी  सभ्यता   तो  यज्ञ  आधारित   ही  रही हीं  और    जीवन भी  तो  एक यज्ञ  पर  टिका हैं   यदि  हम  रोज  अपनी  जठराग्नि   मे   भोजन  रूपी   आहुति रोज    अर्पित    न करे  तो .कैसे   जीवन  उर्जावान बनेगा ... जीवन  चलेगा   और यही  ही नही  बल्कि     जीवन के  अतिम   मे  भी तो शमशान मे  हम उस  अग्नि  मे  अपने   इस भौतिक   देह   की  आहुति दे देते   है.

आखिर   यज्ञ ही क्यों ..मतलब  आहुतियाँ    ही क्यों ....तो उत्तर हैं  इसके  माध्यम से   यह वास्तव मे   देव  वर्ग का भोजन   और एक साधना  मे  अनिवार्य  अंग भी हैं . पर क्या   मात्र साधना   समाप्ति पर     किसी  भी तरह  बैठकर   आहुति दे कर  अपने  कर्तव्य  की इति   श्री  कर ले .???
नही बल्कि ..

अब समय हैं इस  विज्ञान की बारीकियों  और सरलता   दोनों कोआत्मसात करने  का ...  पहले   हम  गूढता   पर ध्यान  देंगे  जिससे यह समझ सके  की  की क्या  अर्थ  हैं  इस महाविज्ञान का  और    तभी तो  इसकी सरलता  समझ सकते हैं ...बिना      इसकी गंभीरता  जाने   समझे ... कैसे   इस  की सरलता को आतमसात कर सकते हैं..क्योंकि सरलता   को आत्मसातकरना   सबसे कठिन हैं.  हम्  स्वाभाव  से ही  कठिन हैं तो कठिन  चीज  हमें  ज्यादा   नजदीक लगती हैं ..और  कठिन  चीज  को  हम टुकड़े टुकड़े करके सरल  करके  समझ सकते  हैं पर  जो  पहले  से ही सरल   हो उसमे  विभाजन कैसे करें ..उस   चीज के   टुकड़े कैसे  करेउसे   तो पूरा का पूरा  ही ग्रहण करना  पडता हैं . इसलिए  सदगुरुदेव  जी के  सरल  वाक्य  हम  सुनते  तो आये  पर  जीवन मे  उतार नही पाए ..क्योंकि उन्होंने  सीधी  दिल को छु लेने  वाली  बात कही  और   हम भावार्थ नही  ले  पाए .

हमने  अपनी नासमझी मे  इस विज्ञानं  की  वह अवस्था कर दी  की  अब बिना  इसका   उद्धार  करे  ..हमारा  भी  उद्धार   नही हो सकता हैं .
·         क्या आप  अग्नि  को समझ पाए  हैं....??कितने प्रकार  की अग्नि होती हैं ..??  कहाँ अग्नि  का  निवास   होता   हैं ???तो  फिर बिना    जाने ...तो फिर आहुति देने का क्या   अर्थ   यह तो मन माना  कार्य   हो गया ..साधक को  कैसे फल की प्राप्ति  होगी ....??? सारी साधना  का परिणाम ??...क्योंकि  हवन  भी  तो एक आवश्यक  अंग हैं ..
·         क्या  देव वर्ग के शयन का आपको कुछ पता हैं ???? इसके बिना  जाने  क्या  अर्थ  हैं ???आपके  आहुति  देना  का समय और धन की बर्वादी   ही  होगी ..
·         क्या  आप जानते हैं की  कब भू  रुदन करती हैं .????  तो जब  वह खुद  रुदन  की अवस्था मे  हैं तो आपके  द्वारा किया गया  सारा कार्य  का परिणाम भी   रुदन ही होगा  न ...
·         क्या  आप जानते हैं की कब  भू शयन करती हैं ,??? और जब  वह  शयन की अवस्था मे  होगी  तब आपके द्वरा   किया गया सारा  कार्य    तो  बेकार  ही  हुआ   न ...
·         क्या  आपको मालूम हैं   की  भू  कब रजस्वला    होती हैं ???शास्त्र   कहते  हैं की इस  समय  नारी जाति  को शुभ  या पूजन साधना कार्यों  के  दूर रहना  चहिये ..पर हम  खुद क्या  कररहे हैं .जब  भू रजस्वला   हैं तो  क्या अर्थ हैं  हमारे द्वारा   दिए  जाने  वाले आहुति का.
·         क्या आप जानते   हैं की कब गुरु  या शुक्र   ग्रह   अस्त होते   हैं ..???क्योंकि  बिना यह जाने  किया  गया   कार्य    तो असफल ही  होगा   न ..
·         क्या  आप जानते  हैं किस  तरह का यज्ञ   हवनकुंड होगा  और  कौन कौन से लोग आपकी सहायतार्थ  बैठ  सकते हैं .
·         आहुति  देने  मे किन अंगुली  का प्रयोग   किया  जाना   हैं ???और कब स्वाहा  का  उच्चरण करना हैं ...????
·         किस प्रकार  की आहुति    दी जा सकती हैं .????
·         क्या आप जानते हैं  की  किस वार   मे  ?????...किस  समय????  हवन /आहुति  आदि कर्म किया  जाने चाहिये ..???
तंत्र  को एक निश्चित वैज्ञानिक  प्रक्रिया हैं और जब सम्पूर्णता   से   प्रक्रिया   का पालन नही करेंगे   तब   परिणाम भी कैसे  प्राप्त होगा ????
इन सभी   प्रश्नों   पर   विचार  करना  जरुरी हैं ..अन्यथा हम सीधे  ही कह देते हैं की  हमें   क्रिया   की  पर  परिणाम प्राप्त  नही हुआ ....
  
 सबसे पहले  देखें   अग्नि को ...

आहुति   तो अग्नि   मे  ही दी जा सकती हैं   ,अग्नि  जो की एक प्रत्यक्ष   देव हैं उनको आहुति देना ..मतलब  उसके माध्यम से   सबंधित देब  वर्ग तक अपनी बात रखना  अपनी मंत्रात्मक   या  तंत्रात्मक   उर्जा  पहुचना .क्योंकि हमारा   तो उस   देव वर्ग से   सीधा  परिचय नही हैं .तब या तो   जल देव  या  अग्नि  जो सदैव पवित्र हैं उनका  आश्रय  लेना  ही पड़ेगा .

आहुतियाँ   सदैव  प्रज्ज्वलित   अग्नि  मे  दी जा सकती हैं .धुयाँ  निकाल   रही    लकड़ी मे   आहुति  नही दी जाती उसका  कोई अर्थ  ही नही हैं . पर कैसे .
यदि इन सब बातों को गम्भीर ता से    ले रहे   हो तो .....या   से न लिया  जा  रहा हो तो   क्या  आप जानते हैं की   नदी भी  रजस्वला   होती  हैं क्योंकि नदी   को हमने  नारी या   माँ  भी   तो सबोधित किया   हैं .तब  इन  दिन मे  स्नान   करना   अपने  बल ,बुद्धि , आयु तो स्वयं  क्षीण कर  लेना हैं .और  साधना  शक्ति  को   भी नष्ट  करना जैसा  हैं  ...खैर  नदी से सबंधित  तथ्य  फिर कभी ..

क्या  साधक जानता  हैं की  अग्नि का वास  या निवास   कहाँ होता हैं ???? ..सीधा  सा  उत्तर हैं जहाँ लगी होगी  या प्रज्ज्वलित   होगी ,पर  यह  सत्य नही हैं    अग्नि के  तीन स्थान बताये  गए   हैं आकाश , पृथ्वी और पाताल

 क्रमशः ..



Aahuti (oblation offered to fire) , this word in itself is indicative of divinity…….and why not……it is indicative of entire Indiancivilization. It is one among the 108 divine sciences which is beneficial to us in so many ways……it adds to our knowledge……it increases our strength. This is because of the fact that oblation offered in Yagya or sacrifice or havan makes Dev category strong, purifies the environment and we can bring very high-order changes in spiritual levels. Meaning of the word “Devta” means that the one who gives. And when this Dev category will become powerful, it will definitely have an direct influence on sadhak …because if we see the external Dev category then in accordance with “Yatha Pinde Tatha Brahmande” (What is there in the universe, it is in our body), if the external Dev Category becomes powerful then the Dev Category in our internal universe, which is true copy of outer universe, will also become stronger and this will also benefit us directly.
How one can measure tantra,the ocean of divine knowledge……even the Vedas say “Neti Neti” when it comes to describing the boundaries of tantra…….so has anyone been able to fix the boundaries of this divine knowledge. Nobody has an answer to this but the introduction which we got from our Sadgurudev that there are 108 important sciences and one among them is Yagya Vigyan or its related Aahuti Vigyan. These two bears the relation just like those of soul and body….one does not have any meaning in the absence of other.
Human life, especially our civilization, has been based on Yagyaand our life too stands on this Yagya. If we do not offer oblation (Aahuti) of food in our Jathra Agni (Fire inside our stomach), then how our life will become full of energy….and how our life will move forward. In the end of life too, we offer oblation of our physical body in the same fire in shamshaan.
Why only Yagya…..meaning why this oblations……answer is that this actually is the food for the Dev category and is also an essential part of sadhna. But by just offering oblation at the end of our sadhana, do our duties end???
No rather……
Now is the time to imbibe the minute- minute details and simplicity of this Vigyan. First we will focus on the difficult portion so that we can understand that what the meaning of this Maha Vigyan is  and then only we can understand its simplicity……How we can imbibe its simplicity without understanding its depth. Because it is very difficult to imbibe simplicity. We are very complicated in nature so we find difficult things nearer to us and we can understand the complicated things by breaking it into parts. But the thing which is simple from the outset, how we can divide it in to parts, we have to imbibe it fully. Therefore, though we listened to the simple sentences of Sadgurudev but we could not flow them in our life…because he always said the heart-touching things and we were not able to grasp the real meaning.
Our lack of understanding has led to such a situation of this Vigyan that without rescuing it, we can’t rescue ourselves.
Have you been able to understand fire…??How many types of fire are there…??Where does the Fire reside???. Without knowing these facts ….what is the point in offering oblation. This has become just like an arbitrary affair….How will sadhak get the results…? Results of entire sadhna….??...Because havan too is an important part…
Do you have any idea about the sleeping of Dev Category????Without knowing what is the meaning??? Offering oblation will be just waste of your time and money.
Do you know when the earth weeps???? So when it itself is in state of weeping then result of all the work done by you will also be bewailing.
Do you know when earth sleeps???? And when it is sleeping, all the work done by you will be fruitless…
Do you know when earth is having menstrual cycle??? Shastra says that at such times females should keep away from all the auspicious and sadhna/poojan related activities…..But what we are doing. When earth is in menstrual cycle then what is the point of us offering oblations.
Do you know when the Jupiter and Venus planets are sunk….??? Because without knowing it, the work done by us will be unsuccessful….
Do you know what type of Yagya havankund (prism shaped dugout vessel (with square ends) used for performing havan) we have to use and who are the people who can sit along with you for your help.
Which finger to use while offering oblation??? And when to pronounce “Swaha”.
Which type of oblations can be offered.????
Do you know on which day????What time???? These havan/Aahuti karmas should be done…???
Tantra is a definite scientific activity and when we do not follow the activity completely, then how we will get the results????
It is necessary to think upon all these questions….Else we directly say that we did it but did not get results….
Let’s see first the fire….
Oblation can only be offered in fire, which is a visible god. Offering oblation to it means putting forward your things to associated Dev category, energy of our mantra and tantra to reach them, through it.This is due to the fact that we do not have any direct introduction with Dev category. Then we have to take support of water god or fire which are always pure.
Oblations can only be offered in ignited fire, it is not offered in the woods emitting smoke. It does not have any meaning…But how.
If you are not taking all these points seriously then do you know that river also have menstrual cycle because we have addressed river as female and mother too. So taking bath in such days is like weakening our strength, wisdom and age ourselves.It is like reducing your power of sadhna….But the facts related to river sometime later….
Does the sadhak know where the fire resides???...Obvious answer is where it is ignited, but this is not true. Three places for fire have been told Sky, Earth and Paataal (nether world).
To be continued…..


****NPRU****   
                                                           
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